सार्क(एसएएआरसी) को पुनर्जीवित करने पर संगोष्ठी
में
राजदूत राजीव के. भाटिया
महानिदेशक,आईसीडब्ल्युए
द्वारा
उद्घाटन वक्तव्य
सप्रू हाउस, नई दिल्ली
29 सितंबर, 2014
हम आगामी शिखर सम्मेलन (नवंबर,2014 )के आलोक में सार्क को पुनर्जीवित करने के तरीकों और साधनों
की जांच करने के लिए यहां उपस्थित हुए हैं । मेरे विचार में तीन महत्वपूर्ण प्रश्न स्वयं को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत करते हैं :
- आज सार्क(एसएएआरसी) तुलन पत्र(बैलेंस शीट) क्या है ?
- भारत के राष्ट्रीय हितों की हमारी व्याख्या के संदर्भ में हमें सार्क को कैसे देखना चाहिए ? क्या भारत वास्तव में महान शक्ति बन सकता है, भले ही उसके पड़ोसी से शांति और स्थिरता का अभाव हो ?
- सार्क को अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों विशेष रूप से चीन से कैसे संबंधित होना चाहिए ? इस सुझाव पर हमारा क्या विचार होना चाहिए कि सार्क में एक सदस्य के रूप में चीन शामिल होना चाहिए और बीसीआई-एम-आर्थिक कोरिडॉर और सुमुद्री रेशम मार्ग(एमएसआर) जैसे अन्य बड़े टिकट प्रस्तावों में शामिल होना चाहिए ?
राजदूत राजीव के. भाटिया, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यु ने उद्घाटन वक्तव्य दिया
- साउथ एशियन एसोसिएशन ऑफ रीजनल कॉपरेशन(एसएएआरसी) की स्थापना वर्ष 1885 में इसके सात संस्थापक सदस्यों अर्थात् बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका द्वारा की गई थी । वर्ष 2007 में संगठन में 8वें सदस्य के रूप में अफगानिस्तान शामिल हो गया । इन तीस वर्षों के दौरान, सार्क ने क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक मजबूत बौद्धिक पूंजी तैयार की और क्षेत्रीय सहयोग के मूल्य के बारे में दक्षिण एशिया के एक अरब से अधिक लोगों में जागरूकता फैलाने में सहायता की । सार्क चार्टर स्पष्ट रूप से इसकी प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं को दर्शाता है जिसमें दक्षिण एशिया क्षेत्र के भीतर आर्थिक और सामाजिक प्रगति, तकनीकी और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देना और आत्मनिर्भरता पर जोर देना शामिल है ।
- सदस्य-राज्यों ने वर्ष 1990 के दशक से लोकतंत्र, मानव अधिकारों के संरक्षण और वैश्विक अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए लोकप्रिय बदलाव के संदर्भ में हुए परिवर्तन को स्वीकार किया है । इससे संघ को आपसी सहयोग और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान के सिद्धांतों का पालन करने के लिए बढ़ावा दिया है । सदस्य-राज्यों ने सार्क शिखर सम्मेलन के माध्यम से सामाजिक और गैर पारंपरिक सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता भी महसूस की । हालांकि, आसियान(एएसईएएन) और यूरोपीय संघ(यूई) जैसे अन्य क्षेत्रीय संगठनों के साथ इसके प्रदर्शन की तुलना में बहुपक्षीय प्रगति धीमी रही है ।
संगोष्ठी प्रगति पर है
- कार्यक्षेत्र(टेरिटॅरि), जनसंख्या, आर्थिक विकास और संसाधनों के मामले में भारत इस संगठन का सबसे प्रमुख सदस्य है । देश की पर्याप्त आर्थिक वृद्धि पूरे क्षेत्र के लिए एक एंकर के रूप में कार्य कर सकती है और इसके विकास में सकारात्मक योगदान दे सकती है । हालांकि, भारत के भौगोलिक क्षेत्र, संसाधनों और विकास ने अन्य सार्क देशों के बीच एक ‘डर का भय(फीयर फैक्टर)’ पैदा किया है। भारत को छोटे सार्क सदस्यों द्वारा बड़े पैमाने पर ‘बड़े भाई’ अथवा ‘कुलीन’ के रूप में माना जाता है । इसके अतिरिक्त भारत की सीमाएं क्षेत्र(जिसमें अफगानिस्तान और श्रीलंका और मालदीव के साथ समुद्री सीमाएं शामिल हैं) के हर दूसरे देश छूती हैं, जबकि इस क्षेत्र के किसी भी अन्य दो देशों में साझा भूमि सीमाएं नहीं हैं, जिसमें अफगानिस्तान और पाकिस्तान अकेला अपवाद है । साझा सीमाओं ने इस क्षेत्र में सभी प्रकार के द्वीपक्षीय तनाव को जन्म दिया है और इससे सार्क में भय है।
- इन सभी कारकों के कारण क्षेत्र में अमेरिका और चीन की उपस्थिति बढ़ गई है क्योंकि अधिकांश पड़ोसी देश अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों के हितों को समायोजित करने के इच्छुक हैं । भारत के पड़ोसी देशों की सहायता से इस क्षेत्र में चीन की दिलचस्पी और इसकी बढ़ती समुद्री पहुंच एक चिंता का विषय है । प्रतिशिष्ट व्यक्तियों के समूह की सिफारिशों के आधार पर सार्क का सुदृढ़ीकरण और सहयोग के चिह्नित क्षेत्रों में इन्हें लागू करना दक्षिण एशिया में अधिक एकीकृत आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए एक विकल्प हो सकता है ।
संगोष्ठी प्रगति पर है
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अधीन वर्तमान सरकार ने पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने और सार्क को मजबूत करने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए हैं । उनके शपथ ग्रहण समारोह में सभी सार्क सदस्य देशों और मॉरीशस के नेताओं ने भाग लिया । प्रधानमंत्री द्वारा सार्क बैंक और सार्क उपग्रह(सेटेलाइट) की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया था । प्रस्तावित प्रस्ताव को सार्क सदस्यों के बीच गहन विचार करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह बड़े हित में अधिक लाभ प्रदान करेगा । इसलिए आंतरिक समस्याएं जो पूरे क्षेत्र की आर्थिक और सामाजिक प्रगति पर प्रभाव डाल सकती हैं, उनका वृद्धिशील तरीके से समाधान किए जाने की आवश्यकता है । सार्क ने इस पहलू को एक हद तक दूर करने की कोशिश की, जिसमें क्षेत्र के विभिन्न सामाजिक और आर्थिक मुद्दों को संबोधित किया गया, जैसे नशीले पदार्थों की तस्करी, लड़कियों को प्रभावित करने वाले मुद्दे, पर्यावरण संबंधी मुद्दे और कुछ को नाम देने के लिए गैर पारंपरिक सुरक्षा मुद्दे ।
- इसलिए, इस संदर्भ में तीन मूलभूत कारक हैं जो सार्क के भविष्य को प्रभावित कर सकते हैं जो हैं : भारत का दृष्टिकोण; पड़ोसियों की सहयोगी मानसिकता; और क्षेत्रीय संगठन के साथ-साथ अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियों की उभरती भूमिका के प्रति उनका दृष्टिकोण ।
- ऐसी स्थिति में जहां सार्क के कुछ सदस्य देश सार्क की सदस्यता का विस्तार करने के इच्छुक हैं, वहीं यह प्रश्न उठता है कि क्या सार्क में अधिक सदस्यों को शामिल करना संभव है और क्या सार्क के समग्र प्रदर्शन पर इसका कोई सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा अथवा नहीं ।
- यह संगोष्ठी उन मुद्दों को संबोधित करने की कोशिश करेगी जो सार्क की प्रगति में बाधा बन रहे हैं और इसके पुनरोद्धार के लिए सभी सार्क सदंस्य राज्यों की अधिक भागीदारी के लिए कुछ रचनात्मक सिफारिशें करते हैं ।
- संक्षेप में, यहां उपस्थित विशिष्ट विशेषज्ञों से अनुरोध किया जाता है कि वे मुद्दों अथवा समस्या का निदान करें, उपाय सुझाएं और साथ ही यह भी दर्शाएं कि कैसे सार्क सरकारों को मूल्यवान संस्था के पुनरोद्धार हेतु हमारे सामूहिक विचारों को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाए ।
मैं संगोष्ठी की सफलता की कामना करता हूं ।
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