भारतीय विश्व मामले परिषद
सप्रु हाउस, बाराखम्बा रोड़
नई दिल्ली
भारतीय विदेश मामले परिषद(आईसीडब्ल्यूए), नई दिल्ली,
पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डीओएनईआर) मंत्रालय तथा
एशियन सम्मिलन (अस्कोन), शिलांग, मेघालय
द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित
‘‘बहुपक्षीयवाद तथा भारत के पूर्वोत्तर के मिलान का युग:
अवसर तथा चुनौतियां’’
पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की रिपोर्ट
19-20 मार्च, 2018
सप्रु हाउस
‘‘बहुपक्षीयवाद तथा भारत के पूर्वोत्तर के मिलान का युग: अवसर तथा चुनौतियां’’ पर पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डीओएनईआर) मंत्रालय तथा एशियन सम्मिलन (अस्कोम), शिलांग, मेघालय के साथ संयुक्त रूप से भारतीय विदेश मामले परिषद (आईसीडब्ल्यूए), नई दिल्ली द्वारा दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित किया गया।
इस सम्मेलन में पूर्वोत्तर के चालिस से भी अधिक विद्वानों के साथ-साथ बंगलादेश तथा भूटान के शिक्षाविदों ने भाग लिया। उद्घाटन सत्र में श्री जितेन्द्र सिंह, राज्य मंत्री, पूर्वोत्तर विकास मंत्रालय मुख्य अतिथि थे। समापन सत्र (विदाई सत्र) में श्री नवीन वर्मा,सचिव, पूर्वोत्तर विकास (डीओएनईआर) उपस्थित रहे। थाईलैंड, मयंमार, भूटान तथा बंगलादेश के राजदूतों और जापानी दूतावास से राजनीति मंत्री के साथ-साथ संयुक्त सचिव (बीएम), विदेश मंत्रालय, नीति आयोग, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के प्रतिनिधि, असम सरकार के प्रतिनिधि तथा पूर्वोत्तर राज्यों के अखण्डता तथा विकास में संलग्न बहुत से अन्य हितधारक भी सम्मेलन में उपस्थित थे।
पहला सत्र
प्रथम सत्र का प्रारंभ अम्बेसडर नलिन सुरी, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए की टिप्पणी से हुआ। इसकी अध्यक्षता श्री एम.पी. बेजबरूआ, पूर्व सचिव, पर्यटन, भारत सरकार, पूर्व सदस्य, पूर्वोत्तर परिषद ने की।
सुश्री श्रीप्रिया रंगनाथन, संयुक्त सचिव, बीएम प्रभाग, विदेश मंत्रालय
- उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को मयंमार तथा दक्षिणपूर्व एशिया के अन्य देशों के साथ जोड़ने के अवसर तथा चुनौतियों पर चर्चा की। अपनी प्रस्तुति के दौरान उन्होंने भारत को मयंमार, थाईलैंड तथा बंगलादेश से जोड़ने वाली विभिन्न परियोजनाओं के उद्देश्यों तथा वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डाला।
- उन्होंने कालादन एमटीटी परियोजना की निम्नलिखित मुख्य बातों का उल्लेख किया:
- भारतीय बंदरगाहों और मयंमार की सिटवे बंदरगाह के बीच सम्पर्क
- पूर्वोत्तर पहुंचने के लिए वैकल्पिक मार्ग जिससे सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर दबाव कम होगा
- पूर्वोत्तर के लिए समुद्री मार्ग खुलेगा
- मयंमार तथा दक्षिण पूर्व एशिया के लिए पहुंच उपलब्ध होगा
- आर्थिक तथा वाणिज्यिक सहयोग में योगदान
- कालादन एमटीटी परियोजना की मौजूदा स्थिति का वर्णन करते हुए, उन्होंने कहा कि सित्तवे बंदरगाह, आईडब्ल्युटी टर्मिनल, बैकअप सुविधाएं, बेसिन तथा पहु्ंच मार्गतलकर्षण के कार्य पूरे हो चुके हैं। नौवहन तलकर्षण तथा एड्स लग चुके हैं बैराज बन गए हैं तथा पलेटवा टर्मिनल, बैकअप सुविधाएं पूरी हो चुकी हैं। उन्होंने श्रोताओं को सूचित किया कि पलेटवा में अतिरिक्त कार्य, जो मार्च, 2016 में दिया गया था, अप्रैल, 2018 तक पूरा होने की संभावना है।
- उनकी प्रस्तुति में त्रिपक्षीय हाइवे परियोजना की मौजूदा स्थिति भी दर्शायी गयी है। जैसाकि उन्होंने बताया 69 डब्ल्यूडब्ल्यू-II पूराने पुलों का उन्नयन (कलेवा के मोरेह/तामु) 149 कि.मी. के टुकड़े पर भारत द्वारा बनाए जा रहे हैं। नए आरसीसी पुलों (7 बड़े तथा 62 छोटे) के निर्माण की योजना है।
- आगे उन्होंने बताया कि:
- कलेवा से यार्गी: 120.7 कि.मी. सड़क का निर्माण/उन्नयन भारत द्वारा किया जाना है।
- यार्गी-मांडले: 170 कि.मी. सड़क मयंमार बना रहा है
- मांडले से बागो 560 कि.मी. सड़क तथा बागो से ईन्दु 225 कि.मी. सड़के मयंमार ने बनायी थी।
- ईन्दु से कावकेरिक : 70 कि.मी. मयंमार को बनानी है
- कावकेरिक से मयावाड्डी : 62 कि.मी. थाईलैंड द्वारा निर्मित
- मयावाड्डी से माएसोट : 3.4 कि.मी. थाईलैंड द्वारा निर्मित
- उन्होंने रिह-टेडिम परियोजना के मुख्य तीन प्रयोजनों का भी उल्लेख किया। पहला, मिजोरम के पूर्वी हिस्से से मयंमार के पश्चिमी भाग के बीच सम्पर्क मुहैय्या करवाना। दूसरा सभी मौसमों में संबद्धता (सड़क सम्पर्क)तथा भारत (मिजोरम) तथा मयंमार के बीच व्यापार सुविधा सुलभ करवाना: तथा तीसरा रिह से टेडिम तक मयंमार में मौजूदा कार्ट रोड़ (बैलगाड़ी मार्ग) को उन्नयित कर दो लेन की बनाने का काम शुरू करना।
- उन्होंने भारत और बंगलादेश के बीच आशुगंज बंदरगाह से आरवौरा मार्ग, आखौरा-अगरतला रेल सम्पर्क तथा अन्य बस, रेल तथा जलमार्ग सेवा संपर्क जैसी संबद्धता पहलों की मौजूदा स्थिति का भी जिक्र किया। आखौरा-अगरतला रेल सम्पर्क के महत्व का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इस संपर्क से पूर्वोत्तर क्षेत्र को चिटगांव बंदरगाह तक पहुंच सुलभ होगी और यह सम्पर्क बंगलादेश में जमुना नदी पर दूसरा पुल बन जाने के बाद पूर्वोत्तर तथा शेष भारत के बीच सबसे छोटा होगा। उन्होंने बताया कि इस परियोजना पर दोनों ओर से कार्य प्रगति पर है।
महामहिम चुतिनतोर्न गोंगसकडी, अम्बेसडर थाईलैंड, नई दिल्ली, भारत
- उन्होंने थाईलैंड को भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र, मयंमार तथा दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य भागों से जोड़ने में मुख्य संचालकों तथा चुनौतियों की चर्चा की। उन्होंने युरोपियन युनियन की तरह भारत और मयंमार, थाईलैंड और मयंमार के बीच निरन्तर (सीवनर हित) सम्बद्धता की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत और मयंमार के बीच सीमा बाधा नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों को समझना चाहिए कि सीमा शुल्क अधिकारियों का कोई विजन नहीं होता। उन्होंने परिवहन कॉरिडोरों को आर्थिक कॉरिडोरों में बदलने पर जोर दिया। उन्होंने त्रिपक्षीय हाइवे तथा पूर्व-पश्चिम आर्थिक कॉरिडोर सहित थाईलैंड के आर्थिक कॉरिडोरों के संपर्क की भी बात की। अपनी प्रस्तुति के दौरान पूर्व-पश्चिम आर्थिक कॉरिडोर के तहत पांच उच्च प्राथमिकता वाली परियोजनाओं का ब्यौरा दिया। सीवनहीन उतलता की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि कम संबद्धता (सड़कें) क्षेत्र में आर्थिक सहयोग को सीमित कर रही हैं। उन्होंने कहा कि उदारीकरण अभी राष्ट्र हित में है।
महामहिम मोई क्याव आँग, मयंमार संघ के राजदूत, नई दिल्ली, भारत
- उन्होंने भारत और मयंमार के बीच बेहतर हवाई संपर्क की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हवाई सम्पर्क आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए भारत और मयंमार के बीच सीधी उड़ानों की आवश्यकता है। मयंमार और अन्य दक्षिण पूर्व तथा पूर्वी एशियाई देशों के बीच उड़ानें अधिक नियमित हैं। उन्होंने मयंमार और भारत के तथा पूर्वोत्तर के बीच द्विपक्षीय सहयोग समझौतों की अनुशंसा की। उन्होंने कहा कि भारत और मयंमार के बीच व्यापार की मात्रा उत्साहजनक नहीं है।
डॉ. प्रबीर डे, आरआईएस
- उन्होंने कहा कि आर्थिक गलियारों का सुमेलन होगा तथा भारत के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों के त्रिपक्षीय हाईवे परियोजना से अधिक लाभ उठाने की संभावना है। आर्थिक गलियारे की वैचारिक संरचना पर विचार-विमर्श करते हुए उन्होंने कहा कि उप-क्षेत्र, जिनमें बहुल औद्योगिक गलियारें शामिल हैं, देशों/क्षेत्रों को आर्थिक गतिशीलता के प्रभावी उपयोग के लिए विभिन्न विकास स्तरों पर जोड़ते हैं।
- पूर्वोत्तर भारत तथा मयंमार के बीच परिकल्पित उत्पादन जालतंत्र पर चर्चा करते हुए उन्होंने द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के दृष्टिकोण से निम्नलिखित को उद्योगो के रूप में मान्यता दी (i) बांस तथा लकड़ी उत्पाद (ii) औषधीय तथा विनिर्मित पदार्थ, (iii) रबड़ उत्पाद (iv) खाद्य उत्पाद (v) शुद्ध पेट्रोलियम उत्पाद (vi) अन्य गैर-धातुवीय खनिज उत्पाद (vii) सीमेंट (viii) कपड़ा तथा कपड़े की वस्तुएं तथा (ix) बागबानी।
- उन्होंने मणीपुर के रास्ते भारत-मयंमार सीमा व्यापार बढ़ाने के लिए मणीपुर से कुछ विचारों पर प्रकाश डाला जैसे कि मोरेह में आगमन पर वीजा, इम्फाल में निर्यात-आयात कार्यालयों का होना, व्यापारियों/विनिर्माताओं के लिए मंच तैयार करना, साख सुविधाएं उपल्ब्ध कराना, विदेश नीतियां तथा उनकी शिकायतें सुनना, स्थानीय व्यावसाय को समर्थन देने के लिए सरकारी अधिकारियों का सहयोग बढ़ाना इत्यादि।
- उन्होंने सीमा-शुल्क अवसंरचना को बेहतर बनाने, पशु/पौधे संगरोध सुविधाएं स्थापित करने, विद्युत एवं दूर-संचार में वृद्धि, बैंकों की स्थापना, मयंमार के साथ सीमा विवाद सुलझाना, भारत और मयंमार के बीच पुराने मित्रता पुल तथा पारगमन और मालबाही सम्हालन व्यवस्था बदलने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने 24x7 सीमा शुल्क (कस्टम) संचालन, पूर्ण-स्वचालन एवं सम्पर्कआदान-प्रदान के समय तथा लागतकोकम करने तथा इलेक्ट्रोनिकसीमा-पार लदान पत्र स्वीकार करने की आवश्यकता का आग्रह किया। उन्होंने मयंमार के प्रगति केन्द्रों को भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र से जोड़ने की जरूरत भी दोहरायी।
- वक्ताओं के अनुसार कुछ निम्नलिखित पहलों पर साझे संसाधनों के आधार पर भारत का अनुकूल रूझान रहा है:
-
- सीमा-शुल्क एकल खिडकी (एसडब्ल्यूआईएफटी)
- टीआईआर समझौते का पुष्टिकरण
- डब्ल्युटीओटीएफए का पुष्टिकरण
- व्यापारियों के लिए बेहतर सुविधाएं तथा जानकारी (व्यापार पोर्टल: व्यापार सरलीकरण समितियां)
- सीमा समकालन (24x7 पेट्रापोल-बेनापोल सीमा)
- बैंकिंग तथा भुगतान प्रणाली में सुधार
- जीएसटी तथा पारदर्शिता के द्वारा एकल बाजार
- डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर
- उपग्रह तथा अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी
- सुदृढ़ सुरक्षा स्थापना
- सागर में बचाव तथा आपदा प्रबन्धन क्षमता
- राज्य स्तरीय कार्यसूची के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र राज्य अपने आशियान कार्यक्रमों को सामाजिक-सांस्कृतिक, सम्बद्धता तथा अर्थव्यवस्था मोर्चों (फ्रन्टस) से डिजाइन करें।
- पारस्परिक बातचीत
- पूछे गए अधिकांश प्रश्न सीमा हेट्स, लोगों की अपेक्षाओं तथा कार्य प्रकृति में अंतर से संबंधित थे। संयुक्त सचिव, बीएम, विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत सरकार तथा मयंमार इकट्ठे बैठे हैं और भारत मयंमार सीमा पर और अधिक सीमा हेट्स विकसित करने को प्रयासरत हैं। भारत-बंगलादेश सीमा पर सीमा हेट्स पहले ही फल-फूल रहे हैं। आज तक आठ हेट्स स्थलों की पहचान की जा चुकी है, कुछ भारत की ओर तो अन्य मयंमार की ओर।
सत्र के प्रतिवेदक डॉ. अमित कुमार, आरएफ, आईसीडब्ल्युए थे।
सत्र – दो
अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार के दूसरे सत्र की अध्यक्षता अम्बेसडर रंजीत मित्तेर ने की।
- अपने वक्तव्य में उन्होंने बिम्सटेक (बीआईएमएसटीईसी) तथा बीबीआईएन की प्रमुख पहलों तथा परियोजनाओं के कार्यान्वयन तथा दोनों उप-क्षेत्रीय समूहन की संस्थानिक कार्यनिधि से जुड़ी (सम्बद्ध) चुनौतियों का उल्लेख किया। उन्होंने ऊर्जा सहयोग तथा व्यापार सहयोग के लिए बिम्सटेक की संभावना पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि ब्रिक्स-बिम्सटेक पहुंच बैठक जो 2017 में गोवा में आयोजित की गई थी एक बहुत बड़ा अग्रणी कदम था। चुनौतियों की चर्चा करते हुए, अम्बेसडर मित्तेर ने बताया कि:
- बहुत-सी अवसंरचनात्मक परियोजनाएं शुरू की गई हैं परन्तु पूरी नहीं हुई हैं।
- लगभग 20 वार्ताओंके दौर के बावजूद भी बिम्सटेक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप नहीं दे पाया है।
- बिम्सटेक सचिवालय के पास सही ढ़ग से कार्य करने के लिए पर्याप्त मानवीय तथा वित्तीय संसाधन नहीं हैं।
- जनशक्ति तथा वित्त अनुभाग में चुनौतियां हैं।
- उन्होंने सिफारिश की कि बिम्सटेक को वित्त के लिए बहुपक्षीय संस्थानों विशेषत: जापान अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेन्सी (जेआईसीए) से संभावनाए तलाशनी चाहिए।
श्री सैयद मौज्जेम अली, भारत में बंगलादेश के उच्चायुक्त
- उन्होंने क्षेत्रीय सहयोग के उद्देश्य से 1980 में सार्क की शुरूआत के लिए बंगलादेश की पहलों का जिक्र किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि सहयोग और विकास की सुविधा के लिए विश्वास का माहौल तैयार करना ही इसका दृष्टिकोण था। तथापि उनका कहना था कि सार्क उतना सफल नहीं हुआ है।
- उन्होंने 1997 की बंगलादेश की पहल के बारे में बताया- जो दक्षिण एशिया प्रगति चतुष्टय के नाम से प्रसिद्ध है (बंगलादेश, भारत, नेपाल तथा भूटान मिलकर) उन्होंने बताया कि बीबीआईएन इस सन्दर्भ में एक नया नामकरण है। उन्होंने तर्क दिया कि उप-क्षेत्रीय समूहन का फोकस नये सम्पर्क सृजित करने तथा पुरानें सम्पर्कों को बहाल करना है जो औपनिवेशिक युग में प्रचलित थे। इस संबंध में उन्होंने उल्लेख किया कि रेल सम्पर्क बहाल किए गए हैं तथा अगरतला और बंगलादेश के बीच नये रेल सम्पर्क निर्माण की प्रक्रिया में हैं।
- उन्होंने जोर देकर कहा कि बिम्सटेक का दक्षिण एशिया तथा दक्षिण पूर्व एशिया के बीच एक महत्वपूर्ण अन्तर्क्षेत्रीय सहयोग मंच है। भारत, बीबीआईएन तथा बिम्सटेक दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। उनका सुझाव था कि इन संगठनों को अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से निधि लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां तक बीबीआईएन का संबंध है अन्तर्क्षेत्रीय व्यापार बहुत कम है। उन्होंने कहा कि बंगलादेश किसी अतिवाद तथा उग्रवाद के लिए अपने क्षेत्र का उपयोग नहीं होने देगा परन्तु वह अन्य से भी ऐसी ही अपेक्षा रखता है।
- मोटर वाहन समझौते (एमवीए) के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत उम्मीद हैं। नेपाल, बंगलादेश तथा भारत, भूटान की इच्छानुसार और आगे बढ़ सकते हैं। यदि कार्यान्वित हुआ तो सम्बद्धता में यह एक और उपलब्धि होगी।
- इसके अलावा उन्होंने कहा कि सचिवालय की भूमिका के पुनर्मूल्यांकन की जरूरत है। मानव तथा वित्तीय संसाधनों के दृष्टिकोण से बिम्सटेक सचिवालय को और सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए। सदस्य राष्ट्रों के अम्बेसडरों तथा बिम्सटेक के बीच और अधिक सहयोग एवं समन्वय होना चाहिए।
- अपनी प्रस्तुति के समापन पर अम्बेसडर अली ने कहा कि क्षेत्र में विशाल संभावनाएं हैं लेकिन इसे भारी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में प्रगति देखने के लिए पर्याप्त मात्रा में राजनैतिक इच्छा की जरूरत है।
भारत में भूटान के राजदूत मेजर जनरल वेटसॉप नामगिल
- उन्होंने भूटान की राजनीति, समाज तथा अर्थव्यवस्था की संक्षेप में चर्चा की। उन्होंने भारत को ‘अति महत्वपूर्ण पड़ौसी तथा देश’ बताया तथा ‘सर्वोतम द्विपक्षीय संबंधों’ की बात की। उन्होंने क्षेत्रीय सहयोग प्रक्रिया में भारतकी भूमिका पर जोर दिया। सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सर्वाधिक जनसंख्या तथा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी की दृष्टि से अत्यधिक उन्नत देश के रूप में भारत को एक निर्णायक भूमिका का निर्वाह करना है। उन्होंने बताया कि भारत की भूमिका ‘निर्णायक’ होगी। इस प्रक्रिया में बंगलादेशा को भी ‘अहम् भूमिका’ निभानी है।
- उनकी राय में बीबीआईएन तथा बिम्सटेक के बीच कोई गंभीर समस्या नहीं है इसलिए सहयोग की सकारात्मक संभावनाएं हैं। उन्होंने बीबीआईएन तथा बिम्सटेक के प्रत्येक देश की सफलता पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि अपनी मध्य श्रेणी की प्रगति के लिए बंगलादेश की सफलता उल्लेखनीय है। नेपाल में पनबिजली की बहुत अधिक संभावना है तथा श्रीलंका ने मानव विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है।
- उन्होंने अभी तक एमबीए को पृष्ठांकित न करने के कारण बताए तथा अनुरोध किया कि अन्य तीन देश आगे बढ़ें। उन्होंने कहा ‘‘हमें विलम्ब के लिए खेद है...और तीनों देशों द्वारा दिखायी गई सूझबुझ की अत्यधिक प्रशंसा करते हैं।’’
- उन्होंने भारत की एक्ट ईस्ट नीति तथा थाईलैंड की एक्ट पश्चिम नीति को सह क्रियात्मक बनाने की आवश्यकता का सुझाव दिया। उन्होंने अपने भाषण में भूटान की ‘‘सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक’’ का भी हवाला दिया।
डॉ. समता माल्लेमपति, शोध अधिष्ठाता, आईसीडब्ल्यूए
- वक्ता ने बिम्सटेक के भविष्य तथा चुनौतियों का विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि भारत दक्षिण पूर्व एशिया के साथ संबंध बढ़ाने का इच्छुक है। दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग की धीमी प्रगति ने भारत को दक्षिण पूर्व एशिया की ओर रूख करने को मजबूर होना पड़ा, ऐसा उन्होंने तर्क दिया। उन्होंने आगे कहा कि आसियान के साथ भारत की आर्थिकसंलिप्तता बढ़ी है तथा आसियान के साथ उसका व्यापार 2016-2017 में 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया है। यह आसियान का 7वां सबसे बड़ा व्यापारिक हिस्सेदार हो गया है। उन्होंने तर्क दिया कि व्यापार, निवेश तथा पर्यटन के मामले में सदस्य देशों की उन्नति के लिए बिम्सटेक को एक महत्वपूर्ण तंत्र समझा जाता है।
- उन्होंने कहा कि भौतिक सम्बद्धता का भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों को लाभ होगा। उन्होंने बिम्सटेक द्वारा की गई प्रगति तथा बिम्सटेक आपदा प्रबन्धन अभ्यास के समापन, प्रौद्योगिकी अन्तरण की सुविधार्थ प्रक्रिया, तटीय पोत परिवहन, व्यापार सुविधा समझौता तथा चल रहे बिजली सहयोग जैसी, पहलों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस सब के रहते हुए भी अभी बहुगुणी चुनौतियां हैं जिन्हें निपटाया जाना है। आर्थिक अखण्डता की धीमी प्रगति बिम्सटेक के लिए एक चुनौती है उन्होंने आगे तर्क दिया कि घरेलु सुधार, सामाजिक विकास, व्यापार सुविधा, सुरक्षा मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
डॉ. आशिश शुक्ला, शोध अधिष्ठाता, आईसीडब्ल्यूए
- वक्ता ने बीबीआईएन की संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा की। उन्होंने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत की केन्द्रीयता तथा भारतकी ‘पड़ौसी-प्रथम’ नीतिका विश्लेषण किया। उन्होंने अपने तर्कों में जनसंख्या के आकार तथा अर्थव्यवस्था प्रौद्योगिकीय उन्नति तथा भारत के मानव संसाधनों को भी जोड़ा। क्षेत्रीय व्यापार तथा निवेश ने दक्षिण एशिया में पूरा लाभ नहीं दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं कहा था कि भारतीय कम्पनियां विदेशों में बिलियन्स निवेश कर रही हैं परन्तु दक्षिण एशिया में इसका एक प्रतिशत से भी कम गया है।
- उन्होंने काठमाण्डु घोषणा में व्यक्त विनिश्चय की विशेषताओं का जिक्र किया। घोषणा में शांति, स्थायित्व तथा दक्षिण एशिया में समृद्धि के लिए व्यापार, निवेश तथा ऊर्जा में सहयोग तथा सुरक्षा और अवसंरचना में बढ़ोतरी करके क्षेत्रीय अखण्डता को गहरा करने का दृढ़ निश्चय व्यक्त किया गया था। उन्होंने बीबीआईएन की सफलताओं तथा उपलब्धियों जैसे कि बीबीआईएन मोटर वाहन समझौता (एमवीए) पर 2015 में हस्ताक्षर किए गए थे, का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि बीबीआईएन में व्यापार वृद्धि के लिए गहरी सम्भाव्यता है। भारत अवसंरचना तथा सम्बद्धता (सड़क आदि) के निर्माण की विषम जिम्मेदारी उठा रहा है। पर्यटन की भी भारी संभावना है। फिर भी, उन्होंने तर्क दिया कि बीबीआईएन प्रक्रिया धीमी पड़ गई है तथा जनवरी,2016 के उपरान्त जो डब्ल्यू जे बैठकें नहीं हुई हैं। अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए कोई समयबद्ध तरीका नहीं है।
पारस्परिक बातचीत
- एक प्रश्न के जवाब में भूटान के भारत में राजदूत,मेजर जनरल वेटसॉप नामगिल, ने ‘‘सकल राष्ट्रीयता प्रसन्नता’’ के चार घटक बताए। ये है (क) राष्ट्रीय पर्याव्रण सरंक्षण (ख) संस्कृति का संरक्षण तथा प्रोन्नति (ग) समान और स्थायी विकास (घ) सुशासन
- एक प्रश्न के उत्तर में श्री सैयद मौज्जेम अली, बंगलादेश के भारत में उच्चायुक्त ने बताया कि महिला तस्करी चिन्ता का विषय है और इस संबंध में बंगलादेश सरकार द्वारा की गयी कार्रवाई बतायी।
सत्र के प्रतिवेदक डॉ. संजीव कुमार तथा डॉ. दनोज कुमार उपाध्याय, आरएफ, आईसीडब्ल्यूए थे
उद्घाटन सत्र
उद्घाटन सत्र की शुरूआत अम्बेसडर नलिन सुरी, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए की शुरूआती टिप्पणी से हुई।
- उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डीओएनईआर) द्वारा कार्यक्रम की सह-प्रायोजकता पूर्वोत्तर क्षेत्र की अखंडता के महत्व को एक सीवन रहित तथा व्यापक आधार में प्रदर्शित करती है। उन्होंने आगे बताया कि पूर्वोत्तर भारत सरकार की एक्ट ईस्ट नीति का एक महत्वपूर्ण घटक था। क्षेत्र के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक रूपान्तरण तथा सम्बद्धता के लिए व्यापक सर्वसम्मति है।
- यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि क्षेत्र का विकास स्थानीय संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए एक स्थायी तरीके से हो। युवाओं पर ध्यान केन्द्रीत करना महत्वपूर्ण है तथा पूर्वोत्तर का युवा लाभांश एक ऐसा महत्वपूर्ण कारक है जिसकी क्षेत्र के विकास में उपयेाग करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पड़ौसियों और भागीदारों के साथ् क्षेत्र के संयुक्त विकास से पारस्परिक लाभ मिलने की प्रत्याशा है। शुरूआती टिप्पणी के समापनपर उन्होंने सेमिनार के प्रतिभागियों से भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास तथा संबद्धता के लिए नये विचार, नये तरीके सुझाने के लिए कहा। हमें यह भी तलाशनेकी जरूरत है कि दक्षिण एशिया के साथ हमारी संबद्धतातथा विकास लक्ष्यों में पूर्वोत्तर किस प्रकार एक अंग हो सकता है।
मुख्य भाषण माननीय डॉ. जितेन्द्र सिंह, राज्य मंत्री (स्वतंत्रप्रभार), पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डीओएनईआर), भारत सरकार द्वारा दिया गया।
- उन्होंने कार्यक्रम के आयोजन तथा डोनेर (पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास) के काम को सरल बनाने के लिए आईसीडब्ल्यूए को बधाई दी। उन्होंने कहा कि विगत में पूर्वोत्तर अज्ञात संभाव्यताओं की भूमि था तथा उस संभाव्यता को न पहचानने के यहां दोनों (क) भौतिक एवं (ख) मनोवैज्ञानिक कारण थे। जहां हमने इस संभाव्यता की अनुभूति के प्रयास किए हैं, हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि यह क्षेत्र ‘‘विविधताओं में विविधताओं’’ की भूमि है अर्थात् ‘विविधता में विशाल एकता के भीतर’ जो भारत की अभिव्यक्ति है। पूर्वोत्तर कोई पूर्ण सजातीय नहीं है वरन् इसने सौहर्दय से रहना सीख लिया है।
- मनोवैज्ञानिक फासलों पर उन्होंने कहा कि सरकार का विचार केवल पूर्वोत्तर को शेष भारत के निकट लाना नहीं था बल्कि शेष भारत को पूर्वोत्तर के समीप लाना भी था। उन्होंने कहा कि यद्यपि पूर्वोत्तर छोटे राज्यों के गठन से बना है लेकिन उनकी साक्षरता दरें तथा जीडीपी राष्ट्रीय औसत से बेहतर है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण खुलासा भी किया कि जब महिला सशक्तिकरण की बात आती है तो पूर्वोत्तर क्षेत्र शेष देश से आगे होता है। उन्होंने कहा कि लोगों की प्राकृतिक प्रतिभा एवं युवाओं का औसत से अधिक आई क्यू (बौद्धिक स्तर) एक वरदान है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में मौजूद संभाव्यता का उपयोग तथा उसे उपेक्षाकी स्थिति से उच्च प्राथमिकता पर लाना एक चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए उन्होंने बताया कि एक मनौवैज्ञानिक पहुंच की गयी है। यह इससे स्पष्ट होता है कि प्रधानमंत्रीस्तर पर पिछले चार वर्ष में अधिसंख्यक दौरे किए गए हैं जो विगत में प्रधानमंत्रियों द्वारा किए गए सारे दौरोंसे अधिक हैं। उन्होंने बताया कि पूर्वोत्तर परिषद की बैठक में उपस्थिति सहित प्रधानमंत्री मोदी इस क्षेत्र के 25 दौरे कर चुके हैं।
- मनोवैज्ञानिक फासला और कम करने तथा अंतर भरने के लिए, डोनेर (डीओएनईआर) सचिवालय को अब पूर्वोत्तर के राज्यों के इर्द-गिर्द घुमाया जा रहा है। मासिक आधार पर सचिवालय को घुमाने का निर्णय मंत्रिमण्डल सचिवालय ने पिछले मार्च, 2015 में लिया था। इसने लोगों को दिखा दिया कि दिल्ली उनके पास आ सकती है और उपलब्ध है। डोनेर को दरवाजे पर लाने के विचार के पीछे एक ईमानदार प्रयास रहा है।
- दूरी कम करने का एक और प्रयास युवाओं को नियोजित करने का है। युवाओं को देशभर के कॉलेजों में अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। मंत्रालय पूर्वोत्तर की ओर अधिक लोगों को आकर्षित करने के लिए युवा एवं सांस्कृतिक उत्सव आयोजित कर रहा है। देश भर में पूर्वोत्तर छात्रावास बनाएजा रहे हैं, और चण्डीगढ़,दिल्ली और मुम्बई जैसे स्थानों पर ‘पूर्वोत्तर बुला रहा है कार्यक्रम’ आयोजित किए जा रहे हैं। इस पहु्ंच ने लाभांश भी दिए हैं। इसने मुख्य प्रदेश तथा भीतरी प्रदेश की सीमा रेखा खत्म कर दी है। इसके परिणामस्वरूप पूर्वोत्तर तथा शेष भारत के बीच दूरियां कम हो रही हैं। इस कदम से क्षेत्र के लोगों, सरकारी कर्मचारियों तथा शेष भारत के लोगों के बीच मेल-जोल बढ़ाने में मदद मिली है।
- मंत्रालय पूर्वोत्तर से विभिन्न उत्पादों को देश के लिए प्रदर्शित करने का प्रयास कर रहा है। सिक्किम एक ऑर्गेनिक खेतीबाड़ी वाला प्रदेश है तथा अरूणाचल प्रदेश इस क्षेत्र का फलों का राज्य है। मिजोरम अपने बांस के हस्तकला तथा दूसरे उत्पादों में बहुसृजनात्मक प्रयोगसे बांस का राज्य हो सकता है तथा मणिपुर अपने हथकर्घा उत्पादों के कारण साड़ी राज्य के रूप में हो सकता है। इसके लिए बांस को वन अधिनियम से बाहर निकाल लिया गया है जो इस प्रक्रिया में संलग्न सूक्ष्म विचारधारा की द्योतक है। समय की मांग है पूर्वोत्तर राज्यों तथा समग्रत: क्षेत्र को अधिक महत्व देना।
- भौतिक दूरीके बारे में उन्होंने कहा कि सरकार मेघालय-अरूणाचल रेल पथ पर काम कर रही थी और कुछ वर्षों में उम्मीद की जा सकती है कि दिल्ली और क्षेत्र में राज्यों की विभिन्न राजधानियों के बीच रेलगाड़ियां सुलभ हों। सिक्किम हवाई अड्डा खोल दिया गया है और ये दूरी कम करने में सहायक है। अगरतला और बंगलादेश के बीच भी रेल संपर्क बनाया जा रहा है। सरकार ने लोगों की जरूरतों को समझने के लिए क्षेत्र के राज्य मुख्य सचिवों को लगाकर एक मासिक प्रगति कार्यक्रम की भी पहल की है। सामान्य धारणा है कि राज्यों को आबंटित धनराशि उपयोग नहीं हो पाती। अत: निगरानी के परियोजन से परिदृश्य पर उपग्रह लगाए गए हैं।
- सरकार क्षेत्र में विश्व श्रेणी के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना को प्रोत्साहन दे रही है। क्षेत्र में फिल्मों की शुटिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वित्त मंत्रालय द्वारा पूणे के पैटर्न पर अरूणाचल प्रदेश में एक फिल्म तथा दूरदर्शन संस्थान की स्वीकृति दी गयी है।
- सरकार ने एक अलग पूर्वोत्तर सड़क विकास परियोजना स्थापित की है जो अनाथ सड़कों की तथा चल रहे काम की प्रगति की भी देखरेख करेगी। सरकार क्षेत्र के लिए एक अलग तथा सीधा रेल संपर्क विकसित करने पर भी विचार कर रही है। इस क्षेत्र के लिए एक अलग स्टार्ट अप इंडिया कार्यक्रम के पूरक रूप में एक प्रारम्भिक पूंजी उपक्रम निधि लायी गयी है। इस निधिका पहला लॉट मिजोरम में वितरीत भी कर दिया गया है। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को एयरबंब जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को आकर्षित करने के लिए प्रौत्साहित किया जा रहा है। इन पहलों और कार्यक्रमों से भारत सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक नये भारत के इंजन के रूप में देख रही है।
पारस्परिक बातचीत
- एक सुझाव यह था कि भारत के पूर्वोत्तर के बारे में जानकारी के लिए सूचना एवं प्रसारण विभाग के सहयोग से मीडिया को उपयोग में लाया जाए। सुझाव से सहमति जतलाते हुए मंत्री ने बताया कि मीडिया संबंधी प्रयास पहले ही शुरू हो चुके हैं; और अरूण प्रभा के नाम से एक चैनल शुरू किया गया है। लड़कियों और लड़कों को पूर्वोत्तर से भारत के विभिन्न भागों में तथा विभिन्न भागों से पूर्वोत्तर में घुमाने का कार्यक्रम भी है। असल में हम एक दूसरे को जानने की प्रक्रिया में लगें हैं। फिर भी हमें एक दूसरे के बारे में और अधिक जानना है।
- पूर्वोत्तर में उद्योग तथा कुशल मानव संसाधनों की कमी से संबंधित सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नीति आयोग में पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए एक अलग फोर्म है। वास्तव नीति आयोग फोरम की पहली बैठक अगरतला में हुई थी। दोनों पहलुओं पर कुछ प्रगति हुई है।
- ताजा फलों के क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए क्या मंत्रालयकी दिलचस्पी है? इस प्रश्न का जवाब देते हुएमंत्री ने कहा कि क्षेत्र में 40 प्रतिशत फल, भण्डारण की कमी तथा परिवहन और संबद्धता की कमी के कारण बेकार चला जाता है। पिछले तीन वर्षोंके दौरान मंत्रालय ने ऐसे कई मामले निपटाए हैं। इजरायल के सहयोग से एक विशाल फल केन्द्र बनाया गया है। जापान ने भी अवसंरचनात्मक परियोजनाएं पेश की हैं।
- मंत्रीने आगे बतायाकि परियोजना निधियन के लिए डोनेर ई-फाईलिंग लाया है। पारदर्शिता तथा जिम्मेदारी में सुधार हुआ है ताकि मार्ग में चोरी की गुजांइश कम से कम हो।
डॉ. सब्यसाची दत्ता, निदेशक, एशियाई सम्मिलन ने उद्घाटन सत्र की समाप्ति पर धन्यवाद प्रस्ताव रखा।
डॉ. स्तुती बैनर्जी तथा डॉ. सौरभ मिश्रा, आर एफ, आईसीडब्ल्यूए उद्घाटन सत्र के लिए प्रतिवेदक थें।
तीसरा सत्र
सेमिनार के तीसरे सत्र की अध्यक्षता अम्बेसडर नलिन सुरी ने की जिन्होंने पैनल के वक्ताओं का स्वागत किया।
श्री जितेन्द्र कुमार, सलाहकार (एनआरई), नीति आयोग
- उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के बारे में तथा इसकी विशाल संभावनाओं जिनमें प्राकृतिक संसाधन, जल स्रोत तथा विशाल वन क्षेत्र शामिल है का सामान्य परिचय दिया। उन्होंने बताया कि भारत सरकार का ध्यान इस क्षेत्र की ओर बढ़ा है तथा फोकस पीपीपी मॉडल से पीपीपीपी मॉडल की ओर है। जिसमें लोगों को प्रगतिगाथा में शामिल किया गया है। उन्होंने सूचित किया कि क्षेत्र के विकास के लिए नई नीति बनाई जा रही है तथा नये विचारों में युवा मस्तिष्क लगाए गये हैं।
श्री हिडको असारी, मंत्री, राजनीति, जापान दूतावास
- उन्होंने अपने देश की स्वतंत्र एवं खुली हिंद-प्रशांत कूटनीति (एफओआईपीएस) नीति पर भाषण दिया जिसमें बताया कि हिंद-प्रशांत सापेक्षत: एक नई नीति रचना है। उनका कहना था कि भारत की कूटनीति क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर सक्रिय हो गयी है।
- उन्होंने कहा कि भारतीय सागर की भूमिका महत्वपूर्ण है और उनके दृष्टिकोणसे हिंद- प्रशांत अफ्रीका में उपलब्ध संभावनाओं को जोड़ता है। श्री असारी के अनुसार एफओआईपीएस, जापान तथा भारत की एक्ट ईस्ट नीति क्षेत्रीय विकास में सहयोग कर सकते हैं। भारतीय पूर्वोत्तर कूटनीतिक तथा आर्थिक दृष्टि से स्थित है तथा इस क्षेत्र के स्थायित्व से क्षेत्र के निकट अन्य क्षेत्रों के विकास में मदद मिलेगी।
- उन्होंने कहा कि जापान अपने निकट पड़ने वाले पूर्वोत्तर क्षेत्र में काम करना चाहता है तथा उन्होंने जापान-भारत एक्ट ईस्ट फोरम और जापान और बंगलादेश के बीच बे-ऑफ बंगाल औद्योगिक ग्रोथ बेल्ट (बीआइजी-बी) पहल के उदाहरण दिए। उन्होंने धारणीय प्रगति के लिए ‘गुणवत्ता अवसंरचना’ विकसित करने पर भी जोर दिया।
सुश्री ममता शंकर, सलाहकार, डीओएनईआर (पूर्वोत्तर विकास)
- उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय (डीओएनईआर) द्वारा शुरू किए गए कार्यों का विस्तार से ब्यौरा दिया। प्रथम, उन्होंने जोर देकर कहा कि डीओएनईआर ही भारत सरकार का अकेला प्रादेशिक मंत्रालय है।
- उन्होंने कहा कि क्षेत्र में जनसंख्या की विविधता है, तथा भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में लिंग व पोषण संतुलन बेहतर है। क्षेत्र में पर्यटन की गुंजाइश है तथा सम्पर्क परियोजनाओं जिसमें दूरदराज के क्षेत्रों का विकास शामिल है, की विशाल संभावनाएं हैं।
- उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि इस क्षेत्र में तराई(मैदान) की किस्म भी एक बड़ी चुनौती है जिसका सामना किया जा रहा है।
सुश्री श्रीराधा दत्ता, एस्कॉन
- उन्होंने कहा कि क्षेत्र को बहुत थोड़ा मिला है और वह भी बहुत देर से। क्षेत्र में कार्यक्रमों का कार्यान्वयन निराशाजनक रहा। उन्होंने कालादन परियोजना के रोपन में विलम्ब तथा इसके तैयार होने की अंतिम तारीख (डेड लाइन) को बहु-विस्तार दिए जाने पर सवाल उठाए।
- उन्होंने बताया कि जब भौतिक अवसंरचना सृजित की जा रही है तो पश्चमार्गों (बैक चैनल) चर्चाएं नहीं हो रही हैं। उन्होंने क्षेत्र से लोगों की आवाजाही का विश्लेषण किया और कहा कि युवा नौकरियां और रोजगार की तलाश में बाहर जा रहे हैंजो अच्छा और बुरा दोनों है। जहां ये राष्ट्रीय अखण्डता में योगदान है तो यह भी प्रदर्शित करता है कि क्षेत्र में रोजगार की कमी है।
- उन्होंने बताया कि भ्रष्टचारएक मसला है तथा पूर्वोत्तर भारत में व्यवसाय करना एक समस्या है। वह क्षेत्रीय उत्पादों में विविधता की पक्षधर थी यथा मणिपुर की साड़ी और उन्होंने आगे कहा कि डिजाइन समय के साथ विकसित करने की जरूरत है।
श्री सज्जाद आलम, एसीएस, उपसचिव, एक्ट ईस्ट नीति मामले, असम सरकार
- उन्होंने अपनी बात यह कहते हुए शुरू की कि विभाजन से पूर्व के दिनों में इस क्षेत्र से चाय का निर्यात चिट-गांव बन्दरगाह के रास्ते होता था जो अब बंगलादेश में है। उन्होंने सूचित किया कि विभाजन के बाद असम की प्रतिव्यक्ति आय में गिरावट आयी है जिसके कारण थे सम्पर्क की अनुपलब्धता तथा सम्बन्धों का टूटना।
- उन्होंने आगे कहा कि इसके परिणामस्वरूप अतिवाद तथा हिंसा का पदार्पण हुआ तथा क्षेत्र को सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखा जाना शुरू हुआ। उन्होंने आशा व्यक्त की कि क्षेत्र को क्षेत्रीय सम्बद्धता के हब के रूप में विकसित किया जा सकता है, उदाहरण के तौर पर गुवाहाटी से आशियान तक हवाई सम्पर्क।उन्होंने स्टीलवैल मार्ग जो असम को चीन के कुन्मिंग से जोड़ता है, बहाल किये जाने का भी आग्रह किया। उन्होंने यह भी उल्लेख कियाकि रोहिंग्या मसला एक चुनौती बन सकता है जिसका सारे क्षेत्र पर प्रभाव पड़ेगा।
पारस्परिक बातचीत
- बिग-बी (बीआईजी-बी) परियोजना के बारे में सवाल पूछे गए। यह जवाब दिया कि यह जापान और बंगलादेश के बीच व्यक्तिगत पहल है। तथापि व्यापक क्षेत्रीय सम्बद्धता के लिए इसकी सहक्रियात्मकता की जा सकती है।
- क्षेत्र में परियोजनाओं के निधियन पर यह उल्लेख किया गया कि भारत सरकार पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए विभिन्न शीर्षों के अंतर्गत निधियां मुक्त करती है, जिसमें प्राय: क्षेत्र का सारा हिस्सा (सभी क्षेत्र) सम्मिलित होते हैं।
- यह बताया गया कि परियोजना लागू करने में कुशलता बढ़ी है तथा एक निगरानी तंत्र काम कर रहा है विकास की मात्रात्मकता तथा इसकी गति के लिए संकेतकों की पहचान कर ली गयी है।
- विकासात्मक गतिविधियों के कारण क्षेत्र में पारिस्थितिकीय बदलावों के संबंध में यह तर्क दिया गया कि विकास तथा पारिस्थितिकी में संतुलन बनाए रखने की जरूरत है तथा यह कि वृद्धि (प्रगति) के पर्यावरणीयपहलुओं को भी गुणवत्ता अवसंरचना ध्यान में रखती है।
- यह बताया गया कि क्षेत्र का विकास इसकी राजनीतिक समस्याओं के समाधान में भी योगदान देगा।
सत्र के प्रतिवेदक डॉ. अथर जफर, आरएफ, आईसीडब्ल्यूए थे।
- दूसरे दिन दो सत्र थे तथा एक संतुलित गोल-मेज वार्ता का कार्यक्रम था।
सत्र चार
चौथे सत्र की अध्यक्षता अम्बेसडर रणजीत राय ने की।
- उन्होंने बताया कि सीमाओं को लोगों के लोगों से संपर्क के लिए व्यवस्थित किया जा सकता है। उनकी राय थी कि बंद सीमाओं के नकारात्मक प्रभाव को तटस्थ घोषित करने की आवश्यकता है जो कि जैविक रूप से जुड़ी हुई हैं।
- यद्यपि खुली सीमाओं की सकारात्मकता के साथ-साथ नकारात्मक निहितार्थ भी हैं विशेषत: सुरक्षा के दृष्टिकोण से। सरकार के सामने इन विरोधाभाषों के समाधान की चुनौती है।
डॉ. राखी भट्टाचार्य, सह आचार्य, पूर्वोत्तर अध्ययन कार्यक्रम, जेएनयू
- उनकी प्रस्तुति में स्थानिक श्रम गतिशीलता तथा बहुपार्श्ववाद के लिए भारत की गुंजाइश पर एक विश्लेषणात्मक प्रस्तावना दी गयी।
- नीतिगत प्राथमिकताओं के लिए स्थानिक श्रम गतिशीलता तथा बहुपार्श्ववाद को समझने के लिए तीन सम्बद्ध क्षेत्रहैं। इनमें ये शामिल हैं :
- भारत के बृहद् मूल सिद्धान्त तथा घरेलु आर्थिक मामले
- पूर्वोत्तर (एनई) को केंद्रस्थल मानते हुए सीमापार भूगोल की राज्य परिकल्पना
- पूर्वोत्तर को एक सम्पर्क स्थल के रूप में लेकर स्थानिक श्रम गतिशीलता तथा पारदेशी अर्थव्यवस्था के बीच सम्बन्ध
- लोगोंकी आवाजाही राज्य निगरानी का मसला बन गयी जो प्रतिकूल था और जिसने आगामी कई दशकों तक कुछ रूढ़िवादी धारणाओं वाले पूर्वोत्तर के एक नये ऐतिहासिक भूगोल का सृजन किया। उपनिवेशिक अवधि के उपरान्त जैसे ही स्थलीय व्यक्तिपरकता कूटनीति विस्तार में परिवर्तित हुई सीमा क्षेत्रीय सुरक्षा के रूप में और अधिक प्रासंगिक हो गयी तथा लोगों की सीमापार अध:गतिशीलता सीमा सैन्यकरण द्वारा प्रतिबंधित कर दी गयी।
- श्रम बाजार समूहों का दूसरी ऐसी आर्थिक अखण्डता की परियोजनाओं के साथ संपर्क का समझना ही ऐसी परियोजनाओं का विकल्प है। एक पुष्ट मानदंडीय तथा ज्ञानपरक समझ अनिवार्य है जो नीति को संरचनात्मक स्तम्भ मुहैय्या कर सकते हैं। विगत प्रयास यह ठोस शिक्षा देते हैं कि कोई आकस्मिक ढुलमुल नौकरशाही नीति काम नहीं करेगी। इससे तो और अधिक दरारें तथा जटिलताएं पैदा होगी। लोगों का विश्वास तथा भरोसा जीतने के लिए वैकल्पिक आर्थिक सुरक्षा सर्वश्रेष्ठ मार्ग है।
- भारतीय पड़ौस नीति ने सीमा पार अर्थव्यवस्थाओं तथा बाजारों को एकीकृत करने के लिए कूटनीतिक तौर पर स्थिति सम्हाली है। ऐसी रूपान्तरणीय अर्थव्यवस्था के लिए अपने कौशल का उपयोग कर लोगों की सीमापार आवाजाही के एक व्यावहार्य समाधान की तलाश का यह एक उचित समय है। नीतियों ने पार-देशीय सीमाओं के दोनों ओर मार्गों के बदलाव में सफलतापूर्वक मदद की है, सीमा पर स्थित हाटों तथा दूसरी गतिविधियों को बहाल किया है। अर्थव्यवस्था के लिए सीमाएं न रखने के ऐसे प्रयासों से लोगों की आवाजाही के लिए वैधानिक संभावना भी बनती है और एक उत्पादक श्रम बाजार के रूप में आर्थिक भूगोल में इजाफा होता है।
- यदि पड़ौस में आवाजाही के लिए प्रबल स्पेस रहता है तो सदस्य राष्ट्र ऐसे स्थलों के संचय के लाभों की आशा कर सकते हैं। आर्थिक राष्ट्रवाद ने शीतयुद्ध के बाद के युग में व्यापार तथा निवेश सहित ऐसी आवाजाही पर अभूतपूर्व प्रतिबंध लगाए और यह प्रथमत:शरणार्थियों, विस्थापितों तथा गैर कानूनी आप्रवासियों से संबद्ध थी। इसके आर्थिककी बजाय राजनैतिक निहितार्थ अधिक थे। नई मान्यताएं प्रवास को आर्थिक कारणों से संचालित मानती हैं तथा इसे प्रगति के लिए सकारात्मक समझती हैं।
- समूह तथा श्रमआवाजाही के बीच वार्ता में अर्थव्यवस्थाओं को कई स्तरों पर मापने की भी शक्ति है। अत: आर्थिक कारणों से संचालित श्रम गतिशीलता से लोगों के कौशल तथा प्रतिभा का एक स्थान पर बड़ा जमावड़ा हो सकता है जिसके कारण उन स्थलों पर भीड़भाड़ की लागत पर सामूहिक लाभ बढ़ सकते हैं। कभी-कभार क्षेत्र आधारित समूह निर्धनता तथा अन्य अभावों के मसले कारगर ढ़ग से निपटाने में मदद कर सकता है।
- पूर्वोत्तर तथा इसके पड़ौसी क्षेत्रों में स्थानीय तथा परम्परागत ज्ञान वाली ऐसी बहुत सी अर्थव्यवस्थाओं पर परीक्षण किया जा सकता है जो दीर्घकाल में विश्व बाजार सृजित कर सकती हैं। वस्त्र तथा हथकर्घा क्षेत्रों की भी पड़ौस में समूहन की काफी संभावना है। सीमा के इधर से उधर तक पर्यटन तथा विभिन्न स्टार्ट-अपस का विचार बेकार श्रमबल का प्रभावी ढ़ग से प्रयोग करने में मददगार हो सकता है। यह क्षेत्र प्रतिस्पर्धात्मक लाभ पैदा कर सकता है तथा बृहद् अखंडता में सहायक हो सकता है।
- दक्षिण एशियाई अर्थव्यवस्थाओं का शायद ही सफल समूहन तथा एकीकरण हो पाया हो क्योंकि यह लम्बे समय तक युद्ध स्थल रहा है। श्रमबल की क्षेत्रमें संभाव्यता क्षितिज के पार पहुंच गयी है और विश्व के अन्य भागों में विशाल मूल्य सृजित किए हैं।
- अब सीमाओं के पुननिर्माण तथा सुदृढ़ एकीकरण सृजित करने का समय है ताकि संभाव्य श्रमबल को स्वछंद रूप से कार्यकरने में सक्षम बनाया जा सके। यदि बाजार अर्थव्यवस्था का प्रबल कारक बनता है तो श्रम नीति को सीमापार स्तर पर विनियमों के माध्यम से ढ़ांचागत तथा एकीकृत बनाने की आवश्यकता है जहां बाजार एकीकरण की प्ररेणा के लिए सीमाओं के पार आवाजाही की लोगों की क्षमता एक पूर्व शर्त हो सकती है।
डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्जी, शोध अधिष्ठाता, आईसीडब्ल्यूए
- एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों की आवाजाही आमतौर पर भय पैदा करती है तथा यह विगत में तथा आगे भी बहुत-से विवादों तथा गलतफहमियो के प्रमुख कारणों में एक है। परन्तु ऐसी आवाजाही की पहचान करना महत्वपूर्ण है जिसे सकारात्मक निहितार्थ वाली होने एवं चुनौती पेश करने वाली, विशेषकर नागालैंड राज्य के लिए है, के रूप में देखा जा सकता है।
- प्रवास के चार प्रवाह हैं: ग्रामीण-ग्रामीण, ग्रामीण-शहरी, शहरी-ग्रामीण तथा शहरी-शहरी। इसके अतिरिक्त जिले के भीतर, राज्य के भीतर, अंतर्राजीय तथा सीमा पार प्रवाह भी हो सकते हैं। लोगों की दूसरे क्षेत्रों में आवाजाही, विशेषकर भारत में, विवाह के कारण उसके बाद रोजगार के बेहतर अवसर विशेषकर सरकारी नौकरियां जिसके पश्चात बेहतर शिक्षा की तलाश जैसे कारणों से होती है। नागालैंड में सभी प्रकार के प्रवास देखने को मिलतें है जो विगत में हुए हैं ओर अभी भी जारी हैं। राज्य के भीतर ग्रामीण-शहरी आवाजाही अधिक देखने को मिलती है। तथापि सुदृढ़ जनजातीय तादाम्यताओं के रहते देखने में आता है कि अपने मूल स्थान से आने के बाद भी वहां के संबंधों और संपर्कों को नहीं छोड़ते तथा अपने घरों तथा गांवों में आते-जाते रहते हैं।
- ग्रामीण-शहरी प्रवास के परिदृश्य से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए अपेक्षित निहितार्थ तथा महत्वपूर्ण नीति के फोकस के बावजुद राज्य में ग्रामीण-शहरी प्रवास की प्रवृतियों के संबंध में कोई सरकारी आंकड़े उपलब्ध नहीं है। इस संबंध में जो अभी तक सामग्री उपलब्ध है वह अभी तक चार नगरों यथा कोहिमा, दिमापुर, मोकोकचुंग मोन के 2003 में आयोजित एक नमूना सर्वेक्षण (अप्रकाशित) की रिपोर्ट है।
- नौकरियां या बेहतर शिक्षा की तलाश में गांवों में प्रारम्भिक प्रवास के पश्चात परिवार अपने गांवों बहुत-ही कम वापस जाते है लेकिन सामाजिक तथा सांस्कृतिक निकट संबंध अपने मूल गांवों से बनाए रखते हैं। समय बीतने के साथ-साथ पूर्ववर्ती प्रवासी परिवार के अन्य सदस्यों को शहरों में प्रवास के लिए स्थान उपलब्ध कराते हैं जिससे एक सिलसिला शुरू हो जाता है जिसे वर्षों गुजरने के साथ ‘प्रवास कड़ी’ कहना सर्वश्रेष्ठ हो सकता है।
- जिला मानव विकास रिपोर्ट द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, जो 2010 में प्रकाशित किया गया था, इसका हल शहरी क्षेत्रों की ओर बाहरी-प्रवास के रूप में निकलता है जहां बेहतर शैक्षणिक तथा रोजगार के अवसर मौजूद हैं। तीन जिलों में अर्थात् मोन, फेक तथा कोहिमा में प्रवास के विभिन्न कारणों में महत्वपूर्ण स्थान जिन कारकों को दिया जाए वह भिन्न-भिन्न पाए गए। जिन कारणों को लोग महत्ता देते हैं यथा रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, संचार इत्यादि, उनकी भिन्नता, भिन्न जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध सुविधाओं से नजर आती है।
- 1991 की जनगणना के अनुसार प्रवासियों की अधिकतम संख्या असम, बिहार, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, केरल तथा त्रिपुरा से है। भारत के अधिकांश राज्यों से लोग नागालैंड को अपना आवास ढूंढते पाएंगे। सीमा पार से भी प्रवासी मिलेंगे जिन्होंने नागालैंड में रहना पसन्द किया है। 1991 की जनगणना के अनुसार विदेशी प्रवासियों की सर्वाधिक संख्या नेपाल, भारत से इत्तर एशिया के देशों जिनमें रूस एवं बंगलादेश शामिल है, से थी।
डॉ. पाहि सेकिया, सहआचार्य, आईआईटी, गुवाहटी
- उन्होंने पूर्वोत्तर भारत के सीमावर्ती युद्ध क्षेत्रों में महिलाओं के अनुभवों तथा स्थानीय शासन संरचना तथा निर्णयकारी प्रक्रियाओं से महिलाओं के बहिष्कार पर लम्बा भाषण दिया। पूर्वोत्तर की परिधीय सीमा की शेष भारत के साथ तथा दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ एकीकरण तथा दक्षिण एशिया के महिला भागीदारी की ध्यान में रखने की जरूरत पर वार्ता जो अभी तक राज्य निर्माण परियोजनाओं के विश्लेषणों के साधनों की सीमा से बाहर रही है।
- साक्षात्कारों तथा जीवन्त अनुभवों के आधार पर, डॉ. सेकिया ने तर्क दिए कि क्षेत्रों के प्रतिभूतिकरण तथा भौगोलिक फासलों के सीमांकन ने अलग-थलग हाशिये पर डाले गए वर्गों, विशेषत: महिलाओं के समावेशन ने एक चुनौती का रूप ले लिया है।
- अपनी प्रस्तुति में उन्होंने बाजार संबंधों में संलिप्त महिलाओं की साधारण चुनौतियों तथा अपने दैन्दिन जीवन में पूर्वोत्तर में सैन्य सुरक्षा का सामना कर रही महिलाओं की साधारण चुनौतियों पर नजर डालने का आग्रह किया।
- उन्होंने निश्चय पूर्वक कहा कि न केवल श्रम बाजार में महिला की भूमिका पर वरन् उभरती हुई एकीकृत अर्थव्यवस्थाओं में भी तथा स्थानीय शासन संरचनाओं में उनकी भागीदारी पर भी ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है।
- उन्होंने तर्क दिया कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में गैर-व्यापारिक सुरक्षा परिप्रेक्ष्य से लिंग स्त्री/पुरुष को देखने के लिए स्थानीय तथा वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं के बीच संबंधों की नयी पद्धति अति अनिवार्य है।
डॉ. विनायक दत्ता, सहायक आचार्य, इतिहास विभाग, पूर्वोत्तर हिल विश्वविद्यालय (एनईएचयू), शिलांग
- उन्होंनेनिकटता की चुनौतियों पर भाषण दिया। वैश्विकरण एक दृष्टिकोण है, प्रथम चरण से शुरू करें तो यह विरोधाभाषों का एक अवसर है। पूर्वोत्तर में एक्ट ईस्ट नीति तथा सीमाओं पर बाड़ लगाने में एक अंतर्विरोध है।
- उन्होंने निश्चय पूर्वक कहा कि राष्ट्र-स्थिति के निर्माण की दृष्टि से सीमाएं मूलभूत रही हैं। सीमा क्षेत्रों का ‘सीमान्त’ क्षेत्रों में अंतरण क्षेत्र की राजनीतिको समझने में निर्णायक है। अत: जहां एक ओर सीमाएं खिची गयी थी वहीं दूसरी ओर लोगों के प्रवास को प्रोत्साहित किया गया था।
- 1951 की जनगणना एक प्रजायी दस्तावेज है जो औपचारिक रूप से लोगों की राजनीति की शुरूआत करता है। यह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का भी स्रोत है जो एक महत्वपूर्ण नवाचार है जिसमें जनगणना का पूरा डाटा लिप्यांतरित किया गया था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी 2014 में 1951 की जनगणना की ओर संकेत करते हुए कहा है कि इसे अद्यतन करने की आवश्यकता है। तर्क यह है कि लोगों की तथा सीमांकन के विचार और लोगों के आन्दोलन की बड़ी भारी समस्या है।
- 1951 की जनगणना में एनआरसी नामक परियोजना से लोगों की तीन कोटियों को छोड़ दिया गया है। यह भी एक दस्तावेज है जिसे अद्यतन करने की आवश्यकता है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- विस्थापित व्यक्ति: जनगणना की तैयारी के समय पूर्व बंगाल से विशेषकर सिल्हट नामक उपनिवेशिक प्रदेश से असम में लोगों का विशाल प्रवास हुआ था।
- द्विभाषा
- स्वदेशी
- सीमाओं के रेखांकन तथा लोगोंके आन्दोलन के बीच निरन्तर समस्या बनी रही है। समस्या यह है कि विभाजन की दशा में संबद्धता की समस्या से कैसे पार पाया जाए। सोच की सीमाओं का सीमाओं के धरातल पर कार्यान्वयन के तरीके पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है।
- तीन ‘डी’ पहचान (डिटेक्शन), हिरासत (डिटेंनसन), निर्वासन (डिपोर्टेशन), पूर्वोत्तर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने आई हैं। पहचान शायद जनश्रुति है। पूर्वोत्तर में हिरासत एक जीवन्त वास्तविकता है। ऐसे बहुत से मामले हैं जो लंबित पड़े हैं। कानूनी निर्वासन का कोई ढ़ांचा नहीं है। ये ऐसी चुनौतियां हैं जिन्हें ध्यान में रखने की जरूरत है।
डॉ. जोसफ के. लालफक जुआला, ओमेओ कुमार दास इन्स्टीट्यूट ऑफ सोशल चेंज एंड डेवलेपमेंट (ओकेडीआइएससीडी), गुवाहटी
- उन्होंने स्थानीय लोगों में सीमाओं की अवधारणा को समझने की जरूरत के संबंध में भाषण दिया। इस बात की जांच की आवश्यकता है कि पूर्वोत्तर में लोग क्षेत्र में स्वतंत्र आवागमन के इतिहास के आधार पर सीमा को तथा उनके सीमान्कन को कैसे समझते हैं।
- कालादन बहुमुखी डैम परियोजना को काम में लेने की गुंजाइश है। क्षेत्र में प्रभावी अवसंरचना परियोजना के कार्यान्वयन के लिए भौगोलिक स्थिति को समझने की आवश्यकता है।
- जेम्स स्कॉट जो ‘‘द आर्ट ऑफ नॉट बिंग गवर्नंड:एन एनार्कीस्ट हिस्टरी ऑफ अपलेंड साउथ ईस्ट एशिया’’ के लेखक हैं, ब्रह्मपुत्र घाटी को छोड़कर पूर्वोत्तर राज्यों सहित दक्षिण पूर्व एशिया को जोमिया संस्कृति का हिस्सा अर्थात् गैर-राज्य क्षेत्रके रूप में मानते हैं। यद्यपि गैर-राज्य क्षेत्र की धारणा से कोई सहमत न भी हो, परन्तु क्षेत्र के इस हिस्से ने अप्रवास इत्यादि की दृष्टि से तरलता का लम्बा इतिहास देखा है। इस वर्ष मिजोरम ने चीन लुसाई सम्मेलनकी 126वीं वर्षगांठ मनायी है जिसमें इस क्षेत्र के लोगों के बीच सजातीय सम्पर्कों का गुणगान किया गया था। जब कोई सम्बद्धता की बात करता है तो उसे आम लोगोंके दृष्टिकोण को ध्यान में रखना होगा जो इन मार्गों को लम्बे समय से खोलते आएं अर्थात् लम्बें समय से जिनकी इन मार्गों तक पहुंच रही है।
- लोगों का लोगों से सम्पर्कएक वास्तविकता है तथा नीति निर्माताओं को इस क्षेत्र की सम्बद्धता तथा विकास संबंधी नीतियां बनाते समय इसके इतिहास में झांकना चाहिए। देखने में आता है कि दोनों ओर के लोगों के बीच सजातीय संपर्क है जिसका नीति निर्माण के समय ध्यान में रखा जाना महत्वपूर्ण है।
- सीमाएं तीन प्रकार की हैं: सैनिक, राजनीतिक तथा आर्थिक। सैनिक सीमा से जनजातियों का दमन हुआ है जो स्वास्थ्यकर नहीं है। अन्य सीमाएं जैसेकि आर्थिक सीमा अनौपचारिक संदर्भ में यह जिस प्रकार की है औपचारिक संदर्भ में इतनी सफल नहीं रही है।
- सीमा व्यापार के माध्यम से एकत्रित कर अन्य सीमा व्यापारों की तुलना में कम हैं। इसका समाधान लोगों-का-लोगों से संपर्क में है जहां सीमा हदबंदी धुंधली पड़ जाती है और व्यापार सुचारू ढ़ंग से चल सकता है।
पारस्परिक बातचीत
- क्षेत्र में तथा इसके बाहर जनसंख्या के प्रवाह को रोकने के लिए आईएलपीएल एक महत्वपूर्ण कारक है। आईएलपीएल के इस पहलु को देखने के लिए मिजोरम और नागालैंड के बीच एक तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
- लोगों की आवाजाही के विश्लेषण के लिए 1951 की जनगणना विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है। क्या इससे अभिप्राय है कि 2017 एनआरसी प्रमाणित है? डॉ. दत्ता ने इसका यह कहकर जवाब दिया कि जनगणना जारी रखने के लिए एनआरसी एक अनौपचारिक अप्रमाणित दस्तावेज है। तथापि लोगों ने इस पर विश्वास करना शुरू कर दिया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। एनआरसी 1951 तथा एनआरसी 2017 को मिलाना ऐसा है जैसे सेबों और सन्तरों को मिलाना।
- पूर्वोत्तर में तनावपूर्ण वातावरण इस क्षेत्र के विकास जिसमें सम्बद्धता शामिल है, के लिए हितकर नहीं है। स्थानीय लोगों को स्वतंत्र रूप से इधर-उधर जाने के लिए पहचान-पत्र दिखाना पड़ता है जब तक और जहां तक चुनौतियों से नहीं निपटा जाता, समस्याएं परियोजनाओं की प्रगतिपर नकारात्मक तरीके से प्रभावडालती रहेंगे।
- पूर्वोत्तर पर सरकार का फोकस लोगों की भलाई के लिए नहीं है बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के दबाव के कारण से है। इस दबाव ने सरकार को पूर्वोत्तर की ओर ध्यान देने को बाध्य कर दिया है। यदि ऐसी बात है तो सरकार पूर्वोत्तर के लोगों का फायदान उठा पाकर क्या करेगी? अध्यक्ष ने जवाब दिया कि यह सरकार की विकास परियोजनाओं के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण है।
सत्रके प्रतिवेदक थे डॉ. अरूंधती शर्मा तथा डॉ. इन्दरानी तालुकदार, आर एफ, आईसीडब्ल्यूए
सत्र पांच
अपने सम्बोधनमें सत्र के अध्यक्ष अम्बेसडर राजीव भाटिया ने निम्न मुद्दों पर टिप्पणी की:
- सत्र का मूलविषय यद्यपि अति महत्वपूर्ण (निर्णायक) है तो भी अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विद्वानों द्वारा इसकी गहराई से खोजबीन नहीं की गयी।
- अध्यक्ष ने टिकाऊ विकास लक्ष्यों की अवधारणा की भूमिका से सत्र की शुरूआत की, पूर्वोत्तर भारत के संदर्भ के स्थायी विकास लक्ष्य हासिल करने के बारे में चुनौतियों तथा अवसर पर चर्चा की।
- सरकार तथा व्यापारिक समुदाय के अलावा, नागरिक समाज समूह, मीडिया तथा युवा विद्वानों को टिकाऊ विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के बारे में चुनौतियों और अवसरों की विवेचना करनी चाहिए।
डोरजी पेनजोर, भूटान अध्ययन केंद्र, थिम्पु
- सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (जीएनएच) भूटान तथा टिकाऊ विकास लक्ष्यों के बीच गहरी समानता है। तथापि, जीएनएच स्थायी विकास की दृष्टि से व्यापक है।
- स्थायी विकास लक्ष्य विकासशील देशों के विकास के नियमन के महत्व को कम आंकते है, यह विराम में उपभोग का उल्लेख करने में विफल रहते हैं। अत: सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता स्थायी विकास लक्ष्यों की तुलना में अधिक टिकाऊ तथा व्यापक है।
- एसडीजीएस में परिसीमा है क्योंकि इसमें ज्यादा ध्यान भौतिक विकास की पूर्ति पर होता है जबकि लोगों की भावनात्मक तथा आध्यात्मिक जरूरतों की उपेक्षा होती है। जीएनएच ज्यादा पवित्र तथा संतुलित है तथा व्यक्तिगत प्रसन्नता की बजाय सामुहिक प्रसन्नता पर अधिक केंद्रित है।
डॉ. तेमजेनमेरेन एओ, आईसीडब्ल्यूए
- उन्होंने बताया कि क्षेत्र में विकास पहलों ने मौजूदा पारिस्थितिकी प्रणाली पर भारी आक्रमण कोदेखा है। सड़क नेटवर्क, गहरे जंगली इलाके में नदियों पर पन-बिजली परियोजनाओं का निर्माण,परम्परागत झुमिंग प्रथाओं के अतिरिक्त जंगलों को काटकर तथा जलाकर खेती के लिए जमीन बढ़ाने जैसी परियोजनाओं की वृद्धि के साथ क्षेत्र की समृद्ध पारिस्थितिकी का ह्रास हुआ है।
- वनस्पतियों और जीवों की दृष्टि से इस क्षेत्र का पहले अंग्रेजों ने दोहन किया जो वनसंसाधनों का प्रयोग अपने जहाजों तथा रेलवे लाइनों के निर्माण में करते थे। स्वतंत्रता के बाद भी वनों पर आधारित उद्योगोंके प्रसार यथा कागज तथा प्लाईवुड उद्योगों ने वन संसाधनों का दोहन किया।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र ने शहरीकरण के स्तर पर वृद्धि दर्जकी है। यह अवसंरचना की दृष्टि से हुए विकास के परिणामस्वरूप हुआ है जिसके कारण स्थानीय व्यवसाय बढ़े, नगरों ने शहरों का रूप ले लिया तथा साथ ही शहरी क्षेत्रों की ओर लोगों का प्रवास हुआ। उचित निकासी की व्यवस्था, साफ पानी, सड़कों जैसी स्थायी शहरी सुविधाओं की कमी के कारण शहरीकरण बढ़ा है; शहरी जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ क्षेत्र में परिवहन में बढ़ोतरी हुई है जिससे क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर दबाव पड़ा है।
- घोर गरीबी के साथ-साथ जीविका अर्जनके वैकल्पिक माध्यमों की वास्तविक कमी के कारण पर्यावरणीय दुर्दशा हुई है।
- भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2017 के अनुसार अरुणाचल प्रदेश में सबसे अधिक 93.61 प्रतिशत वन क्षेत्र है जो 2005की तुलना में थोड़ी सी कम है। असम में सर्वाधिक गिरावट आयी जो 2005 के 34.24 प्रतिशत से कम होकर 2017 में 23.62 प्रतिशत रह गयी। त्रिपुरा तथा मणिपुर में भी वन क्षेत्र में वृद्धि के संकेत मिले हैं।
- वन विनाश से निपटने के तरीकों में एक है क्षेत्र में निर्धनता उन्मूलन तथा प्रशमन। पारिस्थितिकीय असंतुलन से निपटने का प्रमुख कार्य है गरीबी उन्मूलन के माध्यम से विकास बढ़ाना तथा वन को जीविकाके स्रोत की बजाय इसे बहुमूल्य भण्डार-घर की अवधारणा में बदलना।
- विकास प्रक्रिया में स्थानीय भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
डॉ. सुश्री लाम्या मोस्तक्यु, बीआईएसएस, बंगलादेश
- दक्षिण एशियाई क्षेत्र में स्थायी विकास के लिए जल तथा ऊर्जा क्षेत्रों में सहयोग की आवश्यकता है।
- भारत और बंगलादेश के बीच ऊर्जा सहयोग क्षेत्रीय की बजाय द्विपक्षीय अधिक है।
- भारत की नेपाल, भूटान तथा बंगलादेश के साथ ऊर्जा सहयोग परियोजनाएं चल रही है। ऊर्जा सहयोग के लिए सार्क संरचना समझौतेपर 18वें सार्क सम्मेलन काठमाण्डु में हस्ताक्षर किए गए थे।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में अप्रयुक्त पन बिजली संभाव्यता है जहां केवल 2-2.5 प्रतिशत का ही उपयोग हो पाया है।
- स्थायी विकास के प्रोत्साहन के लिए स्पष्ट सरकारी नीतियों तथा विधायी व्यवस्था की आवश्यकता है।
- ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ती पारस्परिक निर्भरता दीर्घकालिक संबंधों में स्थायित्व लाने में उत्प्ररेक का काम करेगी।
- सार्क के साथ-साथ बिम्सटेक तथा बीबीआईएन क्षेत्र में सहयोग के लिए एक विकल्प का काम कर सकते है।
- एसडीजी की बड़ी कार्यसूची के कारण सभी देशों को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। वैश्विक लक्ष्यों को क्षेत्रीय में संरेखित करने से स्थानीय सरकारों के लिए केन्द्र तथा राज्य को मिलकर काम करना होगा।
के. यहोम, ओआरएफ
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों की अवधारणा तथा केन्द्र सरकार की पहल के बीच असम्बद्धता बनी हुई है जिसे खत्म करने की आवश्यकता है।
- पूर्वोत्तर भारत में राजनीतिकरण तथा सुरक्षात्मकता जैसे मसले हैं जिन्हें संतुलित करने की जरूरत है।
- स्थानीय लोगों को मल्कियत देने और लेने की सीख की जरूरत है। स्थानीय लोग चुनौतियों की पहचान कर सकते हैं और मुख्यधारा की नीतियों से जुड़सकने में सक्षम होंगे।
- मिलकर काम करने के लिए शांति की पारिस्थितिकी विकसित करने की जरूरत है।
मिर्जा रहमान, आईटीआई, गुवाहाटी
- शांति, प्रगति तथा समृद्धि के माध्यम से पूर्वोत्तर भारत को जोड़ने की आवश्यकता है। पूर्वोत्तर भारत में शांति, प्रगति तथा समृद्धि की समझ एक रेखीय व्याख्या नहीं हो सकती। समुदायों के बीच असमानता तथा स्थायित्व के सवालों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
- विकास नीतियों में विकास हस्तक्षेपों तथा अवसंरचनाओं के दीर्घकालिक टिकाऊपन के पहलुओं की उपेक्षा नहीं हो सकती। विकास नीतियों ने असमान स्थलोंको जोड़ा है और यह स्वयं समुदायों से सम्पर्क नहीं कर सकती।
- विकास नीतियों ने क्षेत्र की पारिस्थितिकीय भूखण्डों को जैविक रूप से जोड़ा है।
पारस्परिक बातचीत
- यह प्रश्न पूछा गया कि भूटान में रह रहे विभिन्न भाषाई तथा जातीय समुदायों के सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता (जीएनएच) संरचनाकी युक्ति परिवर्तनीयता कितनी वास्तविक है। भूटान के विद्वान ने बताया कि भूटान एक विशाल समरूप समाज है जिसमें भिन्न-भिन्न समूह हैं। देश दूसरों के बलबुते पर मुख्यधारा या प्रमुख समूहों के लिए विशेषाधिकार पेश नहीं करता।
- भूटान में महिलाओं की स्थिति पर सवाल पूछे गए। यह भी पूछा गया कि क्या महिलाओं के लिए किसी आरक्षण की व्यवस्था है तथा नीति निर्माण प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी की दर क्या है? भूटान के विद्वान से जवाब दिया कि भूटान ने यह सिद्ध कर दिया है कि महिलाओंकी बजाय पुरुष अधिक प्रसन्न हैं। परम्परागत क्षेत्रों तथा शिक्षा, सारक्षता, जीविका मानक (जीवन स्तर),आवास तथा और कई कामों में महिलाएं पुरुषों से पिछड़ी हैं जबकि वे गैर-पराम्परागत क्षेत्रों यथा संस्कृति, समुदाय, विश्वास, करूणा और भावनाओं में बेहतर निष्पादन कर रही हैं। महिलाएं सभी प्रकार अगणित काम रही हैं यथा घर संचालन, बच्चों का पालन-पोषण यद्यपि। महिलाओं को समान अवसर दिए जा रहे हैं तथा इसमें काफी प्रगति भी हुई है, परन्तु महिला सशक्तिकरण के लिए अभी बहुत कुछ शेष है जिसकी ओर ध्यान देने की जरूरत है।
डॉ. चयनिका डेका, आरएफ आईसीडब्ल्यूए सत्र के लिए प्रतिवेदक थी।
सन्तुलित गोल मेज वार्ता
सन्तुलित गोलमेज वार्ता की अध्यक्षता श्री पी पी श्रीवास्तवा श्रीवास्तव, पूर्व आईएएस ने की तथा संयुक्त रूप से डॉ. निवेदिता राय, निदेशक अनुसंधान, आईसीडब्ल्यूए तथा श्री सब्यसाची दत्ता, निदेशक, एस्कॉन ने नियंत्रित की।
श्री श्रीवास्तवा ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणियों में निम्नलिखित बातें कहीं;
- पिछले दो दिन की चर्चाओं में यह ध्यान में आया है कि स्वतन्त्रता के 70 वर्षों के बाद भी लोगों तथा भारतीय स्थिति में भारी अंतर है। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि केंद्र सरकार पूर्वोत्तर के प्रति सहानुभूति रखती है। फिर भी समस्याएं हैं तो हमें उन्हें निपटाने की आवश्यकता है।
- युवा विद्वान मंच का उद्देश्य कर्मचारियों (नीति निर्माताओं) तथा विद्वानों के बीच अंतर पाटना है।
- प्रगति का मतलब है गति और गति का आशय है पुरानी चीजों को नयी चीजों के लिए स्थान खाली करना। इसके लिए मुख्य तीन चीजें हैं; सम्बद्धता मार्ग (भौतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक स्तर पर लोगों की लोगों से बातचीत), समृद्धि मार्ग (व्यापार और वाणिज्य, उद्यमियता की संस्कृति) तथा प्रगति मार्ग (शासन व्यवस्था, पारदर्शिता, भागीदारी में सुधार)।
- अंतर्निरीक्षण एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसके लिए दोषारोपण त्याग की आवश्यकता है। सीमा प्रबंधन के विचार को बदलने की जरूरत है। सीमा सुरक्षा से अभिप्राय है सीमा के दोनों तरफ से सभी पैमानों की सुरक्षा।
- युवा सरकारके साथ परिवर्तन ला सकते हैं। बुद्धिमता यह स्वीकारने में है कि हमारे अन्दर क्या कमी है। लूट खसोट तथा हिंसा का वातावरण एक ऐसी गंभीर समस्या रही है जिसका पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को सामना करना पड़ रहा है।
इसके उपरान्त दो दिन के सेमिनार में भाग ले रहे युवा विद्वानों (पूर्वोत्तर राज्यों, पड़ौसी देशों तथा दिल्ली से विद्वानों) के बीच वार्ता हुई।
प्रथम वक्ता
- यह सोचने की गलती मत करें कि भारत पूर्वोत्तर के फायदे के लिए कुछ कर रहा है। हमें सोच में बड़ी तस्वीर रखनी चाहिए। यह पूर्वोत्तर के रास्ते बृहद् अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से संबंधित है।
- जनसंख्या की दृष्टि से हमें यह याद रखने की आवश्यकता है कि पूर्वोत्तर भारत के लिए खतरा नहीं हो सकता। महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों, विशेषकर इन्दिरा गांधी जनजातीय विश्वविद्यालय में नियुक्तियों में राजनीति इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
- क्षेत्र की समरूपता का विरोध करें और पूर्वोत्तर की विविधता के लिए सतत् तरीके से बहस करें।
द्वितीय वक्ता
- हम एक्ट ईस्ट नीति का स्वागत करते हैं परन्तु जब इसके लागू करने की बात आती है तो हमें संबंधित विभाग का पता नहीं होता।
- सरकार ने बहुत सी स्टार्ट-अप योजनाओं की पेशकश की है परन्तु लागू शर्तें अव्यवहारिक हैं। उदाहरण के तौर पर फल भण्डारण सुविधा के लिए मुझे बताया गया कि स्टार्ट-अप योजना का पात्र बनने के लिए कम से कम 5 करोड़ रुपए मेरे खाते में होने चाहिए। जब ऐसी बातें होती हैं तो हम स्वयं को खेल से पूर्णत: बाहर पाते हैं।
तृतीय वक्ता
- मैं मानता हूं कि केन्द्र सरकार ने अपनी ओर से बहुत बढ़िया किया है परन्तु जिस स्थिति में यह क्षेत्र है उससे यही लगता है कि सरकार बुरी तरह विफल है।
- सरकार के पास वैश्विक आर्थिक विकास के अनुसरण की दूरदर्शिता नहीं है जिससे पूर्वोत्तर को मदद मिलती। वास्तव में, क्षेत्र ऐसी अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी के लिए सुविधाजनक मार्ग के रूप में काम करने तक सीमित रह गया।
- सीमाओं पर कोई सही पुलिस या सिविल अधिकारी नहीं है। हमें केवल सेना नजर आती है जो डराने और धमकाने दोनों कामों के लिए है। वहां नागरिक अधिकारी या शिकायत कक्ष होना चाहिए।
चतुर्थ वक्ता
- एक्ट ईस्ट नीति से बहुत सी आशाएं और आकांक्षाएं हैं। उदाहरण के तौर पर बढ़ती हुई सुरक्षात्मकता, पारिस्थितिकीय सन्तुलन का रखरखाव। हितधारकों के साथ आमने-सामने की परस्पर बातचीत के साथ-साथ सलाह-मशविरा भी होना चाहिए।
- एक्ट ईस्ट नीति के कार्बन पद्चिह्न पर किसी प्रकार की लिखित प्रस्तुति होनी चाहिए। हमें इसे आगे बढ़ाने के लिए अनुसंधान तथा अकादमियों की एक कार्यसूची की आवश्यकता है (भले ही स्थायी विकास पर कुछ हो)।
पंचम वक्ता
- पूर्वोत्तर ने बहुत से संघर्ष देखे हैं और हम ओर कोई भावी संघर्ष (व्यक्तिगत, साम्प्रदायिक या पारिस्थितिकीय) नहीं चाहते। एक निहित प्रजातांत्रिक घाटा और इसके समाधान की आवश्यकता है। हमें समुदायों की व्यापक भागीदारी की प्रत्याशा है।
छठा वक्ता
- भारतीय फिल्मों में पूर्वोत्तर की प्रस्तुति। इससे रूढ़िवाद को तोड़ने में मदद मिलेगी।
सातवां वक्ता
- मंत्री ने बताया था कि पूर्वोततर के छात्रों के लिए छात्रावास प्राय: तैयार है। परन्तु धरातल पर उतरते हुए मैं यह बताना चाहूंगा कि छात्रावास की नींव भी नहीं रखी गयी है, पूर्ण होने की बात तो दूर।
आठवां वक्ता
- सेना की सर्वव्यापी उपस्थिति। हमें हर जगह अपने पहचान पत्र दिखाने पड़ते हैं। राज्य तथा लोगों के बीच विश्वास की पूरी कमी है। हमें कानूनी पहलू पर नजर डालने की जरूरत है। स्थानीय लोगों के प्रति सेना के रवैए के कारण क्षेत्र में जीवन के अधिकार पर निरन्तर डर मंडराता है।
नौवां वक्ता
- हमें क्षेत्रीय विकास पहलों पर ध्यान देने तथा पहले से ही बॉटम-अप दृष्टिकोण के साथ किए गए प्रयासों को भुनाने की जरूरत है।
दसवां वक्ता
- हम लोगों और नीति निर्माताओं के बीच पुल हैं। मैं इस अवसर को बहुत गंभीरता से लेता हूं तथा इसे आगे ले जाऊंगा। यदि हमारे पास कुशल लोग नहीं होगे तो लोगों को देने के लिए राज्य के पास कौन से प्रयासोंका लाभ होगा।
- हमें क्षमता निर्माण पर काम करने तथा असली लाभों के साथ स्थानीय लोगों के पास पहुंचने की आवश्यकता है।
ग्यारवां वक्ता
- भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिए केन्द्र सरकार को ईमानदार बनना होगा। यदि पार्टी को सत्ता में आने के लिए वोट नहीं मिले तो आप धनराशि नहीं दोगे। क्या सरकारने कभी यह जांच करने के प्रयास किए हैं कि वास्तव में धनराशि जा कहां रही है?
बारहवां वक्ता
- हम राज्य को दी गयी शक्तियों के संबंध में संघवाद तथा विदेश नीति के दृष्टिकोण को भी देख सकते हैं। इसमें पड़ौसी देशों के साथ वार्ता की शक्ति भी शामिल हो सकती है।
- क्षेत्र की विविधता के रहते, हमें समानुपातिक प्रतिनिधित्व के बारे में बात करने की जरूरत है।
- परियोजनाओं के मूल्यांकन तथा निगरानी में निष्पक्षता (वस्तुनिष्ठता) सुनिश्चित करें।
तेरहवां वक्ता
- पूर्वोत्तर में रह रहे समुदायों के बारे में अध्ययन, ज्ञान बढ़ाएं। एनसीआरटी की पुस्तकों में पूर्वोत्तर भारत के बारे में बहुत ही कम उल्लेख है।
- सही ज्ञान का प्रसार हो तथा सूचना तथा राज्य शिक्षा विभागों में दिए गए पाठ्यक्रम (विषय वस्तु) की गुणवत्ता बनाए रखी जाए।
चौदहवां वक्ता
- पूर्वोत्तर का विकास एक प्राथमिकता हो।
- स्थायित्व का मुद्दा एक शोध परियोजना हो सकता है जहां आसियान देशों की मांगों (अपेक्षाओं) तथा पूर्वोत्तर की उत्पाद क्षमता पर गौर कर सकते हैं। इसे बड़े, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में चैनेलाइज किया जा सकता है।
इस सत्र के प्रतिवेदक थे डॉ. अम्बरीन आगा, आरएफ, आईसीडब्ल्यूए
विदाई (समापन) सत्र
शुरूआती टिप्पणी डॉ. धनुवज्योति भट्टाचार्जी, आरएफ आईसीडब्ल्यूए तथा डॉ. सब्यसाची दत्ता, निदेशक, एस्कॉन द्वारा दी गयी जिन्होंने विभिन्न सत्रों के दौरान आयोजित वार्ताओं पर संक्षेप में बताया।
विदाई भाषण श्री नवीन वर्मा, सचिव, डीओएनईआर द्वारा दिया गया था।
- उन्होंने सराहना की कि आईसीडब्ल्यूए तथा एस्कॉन एक ऐसा मंच मुहैय्या करवा पाए जिस पर दोनों नीति निर्माता एवं युवा विद्वान परस्पर बातचीत कर पाये जिससे शेष भारत को पूर्वोत्तर की ओर लाने में एक दूसरे की चुनौतियों की समझ सुदृढ़ हुई।
- चल रहे विकासात्मक कार्यों की तीव्र प्रगति के प्रति वह बिल्कुल आशावादी बने रहे और उम्मीद की कि क्षेत्र को समृद्धि तथा प्रगति के जोन में बदल दिया गया है।
- उन्होंने आगे कहा कि अपने बार-बार क्षेत्र के दौरों के दौरान वह विश्वासपूर्ण कह सकते हैं कि इन राज्यों के हिंसा और संघर्ष के दिन समाप्त हो गए हैं और अब इन राज्यों के पवित्रता, स्थायित्व, समानता संतुलित प्रगति और विकास की ओर तेजी से बढ़ने का समय आ गया है।
पारस्परिक बातचीत
- प्रश्न लेते समय उन्होंने कहा कि डीओएनईआर के सचिव के तौर पर उन्हें युवा विद्वानों से मिलने, उनके सुझाव लेने तथा उन्हें जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें सुनने की हमेशा उत्कंठा रहेगी।
- उन्होंने माना कि उपस्थित कुछ विद्वानदिल्ली में शिक्षा और रोजगारके लिए आए पूर्वोत्तर के युवाओं की मदद के लिए सामाजिक तथा आर्थिक मंच तैयार करने में सक्रिय रूप से जुटे हुए थे।
समापन टिप्पणियांश्रीपीपी श्रीवास्तवा ने दीं जिन्होंने दरियादिली से सचिव, डीओएनईआर का धन्यवाद किया।
डॉ. टेमजेनमेरेन एओ, आरएफ, आईसीडब्ल्यूए ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा।
मुख्य उपलब्धियां
- दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार ने नीति सृजेताओं तथा उनसे प्रभावित होने वालों के बीच परस्पर बातचीत के लिए एक अदभूत स्थल मुहैय्या कराया।
- यह बात समझ में आयी कि सतत् बातचीत, युवाओं और सिविल सोसायटी की गहरी संलिप्तता के लिए स्थल सृजना की जरूरत है ताकि ऐसा औपचारिक तंत्र बना रहे जो आशंकाओं और गलत फहमियों को दूर करने में, समस्याओं और चुनौतियों को जानने तथा विभिन्न संवेदनाओं को समझने में यंत्र की तरह बना रह सके।
- बातचीत तथा वार्ताओं से क्षेत्र तथा निकट पड़ौस के लिए प्रासंगिक भावी शोध की कार्यसूची सृजित हुई। शोध के क्षेत्र वार्ताओं और प्रस्तुतियों से सामने आये।
- सम्बद्धता गलियारों का मानचित्रण – विभाजन पूर्व सम्बद्धता गलियारों का एक विस्तृत दृश्य बनाना जो क्षेत्र में पहले मौजूद था जो वास्तव में रेलवे, मोटर योग्य सड़कों, जलमार्गों(अंत:स्थलीय एवं समुद्री), पैदल पगडंडियों तथा हवाई मार्गों का भी एक नेटवर्कथा जिसने क्षेत्रको जोड़े रखा जिससे लोगों, कौशल तथा विचारों के संचलन की सुविधा उपलब्ध थी। मौजूदा सम्बद्धता गलियारे तथा जो प्रस्तावित हैं एवं जो बाहर है उनकी भी व्यावहार्यता एवं पुनरोधार की गुंजाइश को समझने के लिए भी आकलन हो सकता है।
- ट्रांस बाउंड्री वैल्यू चेन बनाने के लिए उत्पादों की जांच करना – क्रॉस बॉर्डर वैल्यू चेन के माध्यम से विकसित होने वाली वस्तुओं की बड़ी टोकरी बनाने की संभावनाओं का आकलन करना जिससे बंग्लादेश भारत और नेपाल के राज्यों के बीच अधिक आर्थिक तालमेल हो सके, जैविक खेती, बांस की खेती का उदाहरण लेना, आदि।
- सार्क, बीबीआईएन, बिम्सटेक (बीआईएमएसटीईसी) तथा एमजीसी से अवसरों और चुनौतियों की समझ से अध्ययन करना तथा उनके जीर्णोंधार के लिए उपाय ढूंढ़ना।
- सीमा समुदायों और उनकी जीविकाओं पर ध्यान केंद्रित करना: सीमा क्षेत्रों में समुदायों के विकास के तौर-तरीके। विद्वान (शोधार्थी) विशेषत: जिनके विशिष्ट सीमा से पारिवारिक बंधन है वे सीमापार मूल्य कड़ियों (ट्रांस बॉउंडरी वाल्यु चेन) के सृजन के उपायों पर स्थापित तंत्रों द्वारा या नये परिदृश्य विकसित करके, शोध शुरू कर सकते हैं।
- भारत सरकार एमएसएमई की पहल तथा पूर्वोत्तर के लिए विशेष रूप से बनायी गयी नयी औद्योगिक नीति का अध्ययन तथा आकलन: और फिट्स तथा गेप्स की जांच।
- कौशलों, विचारों तथा उस पार लोगों के प्रवाह के लिए आज की मौजूदा सीमा सुरक्षा केन्द्रीत व्यवस्था के बजाय, सूचना साझा करने, संस्थागत सम्पर्कों तथा अवसंरचना की सुविधा पर आधारित सहयोग के ईद-गिर्द आवाजाही की नयी व्याख्या शुरू करना।
- आईसीडब्ल्यूए तथा एस्कॉन के मंच के अंतर्गत इस संवाद की प्रक्रिया को जारी रखना, पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डीओएनईआर) को हित-धारकों, विद्वानों, शिक्षाविदों इत्यादि के बीच बातचीत में अभिन्न अंग बनाना। मंच (संगोष्ठी) शिलांग, नयी दिल्ली अथवा पूर्वोत्तर राज्यों के किसी भी शहर में आयोजित हो सकता है।
रिपोर्ट डॉ. ध्रूबाज्योति भट्टाचार्जी द्वारा बनायी गयी।