भारतीय विदेश नीति के उभरते आयामों पर बनारस हिंदु विश्ववि़द्यालय-आईसीडब्ल्यूए
राष्ट्रीय वार्ता
पर
इवेंट रिपोर्ट
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
29 जनवरी, 2015
भारतीय विदेश नीति के उभरते आयामों पर वाराणसी के बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बनारस हिंदु विश्ववि़द्यालय) में 29 जनवरी 2015 कोराष्ट्रीय वार्ता का आयोजन किया गया। इस वार्ता का आयोजन बनारस हिंदु विश्ववि़द्यालय ने भारतीय विश्व मामलों की परिषद (आईसीडब्ल्यूए), सप्रू हाउस नई दिल्ली के सहयोग से किया था। इस आयोजन का प्रमुख उद्देश्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों में शोध विद्वानों के बीच अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और भारतीय विदेश नीति में उभरती चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। इसकाउद्देश्य भारतीय विदेश नीति के व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र में स्थानीय परिप्रेक्ष्य को उजागर करना भी था। विदेश नीति के मुद्दों पर पैनल चर्चा के अलावा, आईसीडब्ल्यूए की सर्वश्रेष्ठ शोध पत्र प्रस्तुति और एक निबंध लेखन प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया ताकि अधिक छात्रों और शोध विद्वानों को चर्चा और बहस में शामिल किया जा सके। पूरा कार्यक्रम हिंदी में आयोजित किया गया। इस वार्ता में शिक्षाविदों, शोध विद्वानों, मीडिया, विधान सभा के सदस्यों और बड़ी संख्या में छात्रों ने भाग लिया।
उद्घाटन सत्र में बनारस हिंदु विश्ववि़द्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर के.के. मिश्रा ने सभी अतिथियों का स्वागत किया और वार्ता के विचार और रूपरेखा के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने वाराणसी के विशेष संदर्भ में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकारी विदेश नीति का भी विश्लेषण किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की पहल से स्थानीय लोगों को लाभ होगा और सभी के लिए अधिक अवसर पैदा होंगे। बनारस हिंदु विश्ववि़द्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग के डीन,प्रोफेसर आर. आर. झा ने अपने संबोधन में कहा कि हाल के दिनों में वैश्विक ढांचे और भारतीय विदेश नीति में काफी बदलाव हुए हैं। उन्होंने विश्व राजनीति में बदलाव के प्रति भारतीय दृष्टिकोण और इसने भारतीय विदेश नीति को कैसे बदल दियाहै,का विश्लेषण किया। उन्होंने तर्क दिया कि विश्व राजनीति में धीरे-धीरे भारत का महत्व बढ़ा है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के प्रोफेसर अश्विनी महापात्रा ने दलील दी कि प्रधानमंत्री ने देश को सक्रिय किया है।उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के तहत देश की छवि बदली गई है। प्रोफेसर महापात्रा ने नव क्रियाशीलता और यथार्थवाद पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भारतीय विदेश नीति नव-कार्यात्मकता पर अधिक केंद्रित होगी। इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (आईडीएसए) के रिसर्च फेलो डॉ. उत्तम सिन्हा ने भी नोट किया कि मोदी सरकार भारतीय विदेश नीति में बदलाव लेकर आई है। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के कार्यभार संभालने के बाद विश्व समुदाय के बारे में धारणा कैसे बदल गई है। उन्होंने विश्व नेताओं और लोगों के साथ जुड़ने के प्रोटोकॉल को तोड़ने के लिए प्रधानमंत्री मोदी की पहलों पर प्रकाश डाला। बनारस हिंदु विश्ववि़द्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव ने भारतीय विदेश नीति में सॉफ्ट पावर और पब्लिक डिप्लोमेसी पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि सॉफ्ट पावर, भारतीय विदेश नीति बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उत्तर प्रदेश के विधायक श्री रवीन्द्र जायसवाल ने सरकारी नीति और विकास कार्यक्रमों पर भी चर्चा की, जिनकी अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के लिए प्रासंगिकता है ।
आईसीडब्ल्यूए के निर्देश के अनुसार, अधोहस्ताक्षरी ने उद्घाटन सत्र में आईसीडब्ल्यूए गतिविधियों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत की। उन्होंने विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं में चर्चा और शोध को बढ़ावा देने के लिए आईसीडब्ल्यूए की नीति और कार्यक्रम पर चर्चा की। अधोहस्ताक्षरी ने शोधकर्ताओं और अकादमिक समुदाय को आईसीडब्ल्यूए के प्रकाशन और हिंदी में उनके अनुवाद के बारे में सूचित किया, जो इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। उन्होंने यह भी बताया कि आईसीडब्ल्यूए प्रकाशनों को व्यापक पहुंच और विदेश नीति के मुद्दों पर अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों को नि:शुल्क वितरित किया जाता है। अनेक विद्वानों ने आईसीडब्ल्यूए के प्रकाशनों में अपनी रुचि दिखाई है।
प्रथम सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर अश्विनी महापात्रा ने की। भारतीय विदेश नीति के कई विषयों पर बहस हुई। प्रोफेसर ए. पी. पांडेय ने मेक इन इंडिया की नीति पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि अर्थशास्त्र वर्तमान भारतीय विदेश नीति की कुंजी है। भारत सरकार देश में आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने के लिए विदेशों से उन्नत तकनीक और निवेश लाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में रोजगार पैदा करने के लिए विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि महत्वपूर्ण है। डॉ. घनश्याम ने भारतीय विदेश नीति में प्रवासी भारतीयों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि विश्व समुदाय में भारत की छवि बनाने में भारतवंशी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने भारतीय विदेश नीति के हालिया रुझानों का उल्लेख करने का प्रयास किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका (अमेरिका) और ऑस्ट्रेलिया यात्रा में उन्होंने भारतवंशियों की एक बड़ी सभा को संबोधित किया है। प्रोफेसर मिरटुंजय मिश्र ने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की।उन्होंने उत्तर-दक्षिण विभाजन और जलवायु परिवर्तन के मुद्दे उठाए। उन्होंने युवा पीढ़ी के बारे में जागरूकता बढ़ाने का तर्क दिया। डॉ. उत्तम सिन्हा ने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रति भारत की नीति के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत के पक्ष को अनसुना किया जाता है किंतु, धीरे-धीरे इसमें बदलाव हो रहा है। प्रोफेसर प्रियंकर उपाध्याय ने मानव सुरक्षा के उभरते आयामों पर चर्चा की। उन्होंने मानव अधिकार के उल्लंघन, यौन हनन और सड़क दुर्घटनाओं का मुद्दा उठाया। उन्होंने यह भी कहा कि इन मुद्दों पर विदेशी मीडिया में व्यापक रूप से चर्चा की जाती है और देश की छवि पर असर पड़ता है ।
निबंध लेखन प्रतियोगिता में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने भाग लिया और आईसीडब्ल्यूए व बनारस हिंदु विश्ववि़द्यालय ने तीन श्रेष्ठ निबंधों को प्रशस्ति पत्र व वित्तीय पुरस्कार प्रदान किया। निबंध लेखन का विषय भारत-पाक संबंध था। श्रेष्ठ आईसीडब्ल्यूए शोध-पत्र पुरस्कार प्रतियोगिता में गोविद जी को श्रेष्ठ शोध-पत्र का पुरस्कार प्राप्त हुआ। उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री श्री ओमप्रकाश सिंह ने पुरस्कार वितरित किए। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि देश में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। उन्होंने भारतीय भाषाओं में कार्यक्रम आयोजित करने के लिए आईसीडब्ल्यूए की पहलों की प्रशंसा की। उन्होंने उप-क्षेत्रीय स्तर पर शोध को बढ़ावा देने और शोध और विकास में अधिक युवा शोधकर्ताओं को शामिल करने के लिए आईसीडब्ल्यूए के दृष्टिकोण को साझा किया।
संक्षेप में, वार्ताका आयोजन अच्छी तरह से किया गया था और विभिन्न प्रकार के लोगों को एक मंच पर लाने में काफी सफल रही। इस कार्यक्रम की जानकारी मीडिया में भी दी गई। दैनिक जागरण, अमर उजाला और हिन्दुस्तान नाम के कई राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्रों ने 30 जनवरी 2015 को इस कार्यक्रम कीरिपोर्ट प्रकाशित की। निबंध लेखन, शोध-प्रस्तुतिकरण और परिचर्चा में बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने भाग लिया। आईसीडब्ल्यूए विदेश नीति जागरूकता कार्यक्रम हिंदी में अधिक सफल हो सकता है, यदि अधिक छात्रों और शोधकर्ताओं को इसमें शामिल किया जाए। युवा शोधकर्ताओं को चर्चा और शोध-प्रस्तुति में भाग लेने के लिए अधिक अवसर दिए जाने चाहिए। उपलब्ध संसाधनों के अनुभव के आधार पर यह सुझाव दिया जाता है कि बनारस हिंदु विश्ववि़द्यालय में विदेश नीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर दो या तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिए।
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यह रिपोर्ट आईसीडब्ल्यूए के अध्येता डॉ. दिनोज के. उपाध्याय ने तैयार की है।