विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली ने ‘इंडो-एससीओ एंगेजमेंटः द नेक्स्ट स्टेप्स’ पर दिनांक 2 सितंबर 2020 को एक वेबिनार का आयोजन किया। शंघाई सहयोग संगठन में भारत पूर्ण सदस्य के रूप में साल 2017 में शामिल हुआ। अगली एससीओ शासनाध्यक्षों की बैठक (एचओजीएम) की अध्यक्षता भारत द्वारा की जाएगी, जिसका आयोजन इस वर्ष के अंत में किया जाएगा। वेबिनार का आयोजन एससीओ एचओजी की आगामी बैठक के लिए किया गया था। वेबिनार के मूलतः दो घटक थेः उद्घाटन सत्र और तकनीकी सत्र। राजदूत व्लादिमीर नोरोव, महासचिव, शंघाई सहयोग संगठन, ने बीजिंग से उद्घाटन सत्र को संबोधित किया, और इस दौरान शिक्षाविदों, राजनयिकों, व्यावसायिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने तकनीकी सत्रों में भाग लिया। वे भारत के विभिन्न हिस्सों तथा एससीओ सदस्य देशों में भारतीय मिशनों से शामिल हुए।
2. राजदूत टी.सी.ए. राघवन, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की। राजदूत विकास स्वरूप, सचिव (पश्चिम), विदेश मंत्रालय द्वारा विशेष टिप्पणी की गई, और उद्घाटन संबोधन राजदूत व्लादिमीर नोरोव, महासचिव, शंघाई सहयोग संगठन, बीजिंग, चीन द्वारा किया गया। यह उल्लेख किया गया कि एससीओ अपने अस्तित्व के पिछले दो दशकों में यूरेशियाई क्षेत्रों में एक प्रमुख क्षेत्रीय संगठन के रूप में उभरा है। एससीओ में भारत का शामिल होना एससीओ को एक नई गतिशीलता और क्षमता प्रदान करता है। एससीओ भारत के लिए अपने विस्तारित पड़ोस के साथ फिर से जुड़ने हेतु आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता है। यूरेशिया के देशों में भारत की सांस्कृतिक विरासत का गहरा प्रभाव है। भारत के बढ़ते आर्थिक ओहदे के साथ एससीओ में वैश्विक आर्थिक विकास का एक प्रमुख चेहरा बनने की क्षमता थी। एससीओ को सभी सहयोग देने के भारत के प्रयासों को स्वीकारा और सराहा गया।
3. पहले तकनीकी सत्र का विषय ‘‘एससीओ इन चेंजिंग ग्लोबल, रिजनल डायनामिक्स’ था, और इसकी अध्यक्षता राजदूत पी.एस. राघवन, अध्यक्ष, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड और रूस में भारत के पूर्व राजदूत ने किया। इस सत्र के पैनलिस्ट थेः प्रो. पी. स्टोबदान, अध्यक्ष, लद्दाख इंटरनेशनल सेंटर, लेह; प्रो. निर्मला जोशी, पूर्व प्रोफेसर, एसआईएस, जेएनयू, नई दिल्लीय और वर्तमान में निदेशक, भारत-मध्य एशिया फाउंडेशन, नई दिल्ली, श्री नंदन उन्नीकृष्णन, विशिष्ट फेलो, ओआरएफ, नई दिल्ली। यह उललेख किया गया कि वैश्विक क्रम उबाल की स्थिति में है; कोविड-19 महामारी ने अमेरिका-चीन, अमेरिका-रूस और भारत-चीन संबंधों को प्रमुख निशाना बनाते हुए पहले से मौजूद भू-राजनीतिक प्रवाह को भू-राजनीतिक मंथन में बदल दिया था। इसका असर उस दिशा पर पड़ने की संभावना है, जो भविष्य में एससीओ के लेने की उम्मीद है, जिसकी स्थापना शांति, सुरक्षा और अच्छे-पड़ोसी के उद्देश्यों पर की गई थी। भारत के महाद्वीपीय हितों के लिए एससीओ काफी महत्वपूर्ण है।
4. द्वितीय तकनीकी सत्र ‘भारत और एससीओ’ विषय पर था, जिसकी अध्यक्षमता राजदूत गौतम बांबावाले, भूटान, पाकिस्तान और चीन में भारत के पूर्व राजदूत; और वर्तमान में सिंबायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, पुणे के विशिष्ट प्राध्यापक ने की। इस सत्र के पैनलिस्ट थेः प्रो. संजय कुमार पांडे, एसआईएस, जेएनयू, नई दिल्ली; प्रो. आर. जी. गिद्दुबली, पूर्व प्रोफेसर, सेंटर फॉर सेंट्रल यूरेशियन स्टडीज, मुंबई विश्वविद्यालय, और डॉ. अतहर जफर, रिसर्च फेलो, आईसीडब्ल्यूए। यह उल्लेख किया गया कि एससीओ ने मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए भारत को एक महत्वपूर्ण मंच प्रदान किया; और यह कि भारत को इस छोर पर एक रणनीति का विकास करना चाहिए। यह भी उल्लेख किया गया कि सहयोग के लिए गैर-पारंपरिक सुरक्षा एजेंडा को ऊर्जा, पर्यावरण, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में बढ़ाया जाना चाहिए। बहुपक्षीय मंचों में भारत को संस्कृति, कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास के नरम मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
5. अंतिम सत्र का विषय ‘अवलोकन’ था जिसका मार्गदर्शन राजदूत टी.सी.ए. राघवन, महानिदेशक, आईसीडब्ल्यूए ने किया। एससीओ सदस्य देशों में इसके प्रमुखों/भारतीय मिशनों के प्रतिनिधियों द्वारा अवलोकन प्रस्तुत किए गए जैसे कजाकिस्तान, चीन, किर्गिज गणराज्य, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान द्वारा, और साथ ही विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में तुर्कमेनिस्तान द्वारा। सेवारत राजनयिकों ने भारत-एससीओ संलग्नता के बारे में अगले प्रयासों पर परामर्श हेतु अपने मूल्यवान प्रतिपुष्टि प्रदान कीं, और अन्य बातों के साथ-साथ मेजबान देशों की प्राथमिकताओं तथा एससीओ पर साझा दृष्टिकोणों पर भी।
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