6 अगस्त 2020 को हिंद महासागर क्षेत्र में महासागर संसाधनों की सुरक्षा, बचाव और सतत उपयोग के मुद्दे पर आई.सी.डब्ल्यू.ए. ने 1982 यून.एन.सी.एल.ओ.एस. पर राष्ट्रीय परामर्श की मेजबानी की
दिसंबर 2019 में आई.ओ.आर.ए. (हिंद महासागर तटीय क्षेत्रीय सहयोग संघ) 6वें हिंद महासागर वार्ता में विचार-विमर्श के पश्चात परामर्श आयोजित किए गए, जिसकी आई.सी.डब्ल्यू.ए. और विदेश मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा सह-मेजबानी की गई, जिसमें आई.सी.डब्ल्यू.ए. ने 1982 यू.एन.सी.एल.ओ.एस. पर आई.ओ.आर.ए. के सदस्य राष्ट्रों के क्षमता निर्माण का प्रस्ताव दिया था जो आई.ओ.आर.ए. के सदस्य राष्ट्रों और अन्य विशेषज्ञ संस्थानों के बीच सहयोग के माध्यम से हिंद महासागर क्षेत्र में सुरक्षित, रक्षित तथा स्थिर समुद्री क्षेत्र के निर्माण हेतु उत्प्रेरक के रुप में कार्य करेगा।
प्रख्यात भारतीय चिकित्सकों, विशेषज्ञों और विद्वानों ने (क) समुद्र के कानून, विवाद समाधान और नेविगेशन की स्वतंत्रता के मुद्दे; (ख) धारणीय मत्स्य पालन और आईयूयू मत्स्य-ग्रहण; और (ग) समुद्री पर्यावरण एवं समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान के मुद्दे पर प्रस्तुतियां दीं। प्रस्तुतियों से पहले डॉ. नरिंदर सिंह, पूर्व अपर सचिव, विदेश मंत्रालय, भारत सरकार; जस्टिस नीरू चड्ढा, न्यायाधीश, इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल ऑफ द लॉ ऑफ द सी (आईटीएलओएस), हैम्बर्ग, जर्मनी; और प्रोफेसर बिमल पटेल, महानिदेशक, रक्षा शक्ति विश्वविद्यालय, गांधीनगर, गुजरात ने तीन मुख्य भाषण दिए।
सभी प्रतिभागियों का मानना था कि 1982 यूएनसीएलओएस एक व्यापक कानूनी व्यवस्था है, जिसने स्थापित तंत्र और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय कानूनी व्यवस्था के माध्यम से 'समुद्र में कानून' की सुविधा प्रदान की है। इसने वाणिज्यिक, सैन्य और वैज्ञानिक गतिविधियों के संबंध में 1982 यूएनसीएलओएस के हस्ताक्षरकर्ताओं के विभिन्न अधिकारों, कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को पूरा किया है और महासागरों के पर्यावरण तथा स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों पर जोर दिया है। स्थापित तंत्रों के माध्यम से विवादों का निपटारा मजबूती से हुआ है और इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर द लॉ ऑफ सी (आईटीएलओएस), इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) और आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल का गठन अनुबंध VII और अनुबंध VIII के अनुसार किया जा सकता है, जिसने अपने उद्देश्य को अच्छी तरह से पूरा किया है।
हालांकि 1982 यूएनसीएलओएस के अलग-अलग राष्ट्रीय हितों तथा अंतरराष्ट्रीय कानून के साथ घरेलू कानून के गैर-संरेखण से उत्पन्न होने वाली अलग-अलग व्याख्याओं के कारण इन मुद्दों पर इसके हस्ताक्षरकर्ता देशों के बीच मतभेद और विवाद हैं। इसमें पूर्व कथित संभावित रूप से 1982 के यूएनसीएलओएस में स्थापित समुद्री क्षेत्रों की फिर से व्याख्या और घरेलू मानदंडों के आधार पर समुद्री क्षेत्राधिकार के बलपूर्वक जोर देने के कारण अस्थिरता का कारण हो सकता है। एक अन्य स्तर पर, 1982 यूएनसीएलओएस के हस्ताक्षरकर्ताओं के व्यवहार संबंधी पहलू जो कानूनी व्यवस्था को चुनौती देते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्थापन तंत्र स्थापित करना चिंता का मुख्य विषय है।
यह स्वीकार किया गया कि 'नेविगेशन की स्वतंत्रता’ (एफओएन) 1982 के यूएनसीएलओएस के तहत दी गई सबसे प्राचीन तथा सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त सिद्धांतों में से एक है। व्यापारिक जहाजों के लिए एफओएन की प्रयोज्यता पर अंतरराष्ट्रीय सहमति है, हालांकि कुछ राष्ट्रों ने युद्धपोतों और सैन्य विमानों सहित सैन्य विमानों के संबंध में इसकी अलग-अलग व्याख्या की है। ये राष्ट्र प्रतिबंधात्मक प्रथाओं को अपनाते हैं जो संभवतः विवाद का कारण हो सकते हैं।
इस बात को मान्यता दी गई थी और इसपर सहमति व्यक्त की गई थी कि अवैध, गैर-पंजीकृत और अनियमित मत्स्य पालन (आईयूयू मत्स्य पालन) पूरी तरह से व्यापक है और इससे समुद्री मत्स्य संसाधनों की स्थिरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यह ध्यान दिया गया कि आईयूयू मत्स्य पालन के अपराधियों ने मछलियों के स्टॉक के संरक्षण तथा प्रबंधन हेतु वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय प्रयासों को कमजोर किया है। यह संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थायी मत्स्य पालन को बनाए रखने हेतु कई प्रस्तावों को अपनाने के विपरित है। हालांकि, राष्ट्र उच्च स्तर की प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं और आईयूयू मत्स्य पालन के खिलाफ लड़ने और इसकी दिशा में कदम उठा रहे हैं। यह देखते हुए कि आईयूयू मत्स्य पालन विशेष रूप से पड़ोसी राष्ट्रों के बीच विवादों को बढ़ा सकता है, धारणीय मछली पालन प्रबंधन के 1982 यूएनसीएलओएस के उद्देश्य अधिक महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।
यह विचार व्यक्त किया गया कि समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान (एम.एस.आर.) मानव जाति के समग्र लाभ में योगदान देता है। यह तटीय राज्यों को अपने विशेष आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) के संसाधनों की क्षमता का मूल्यांकन करने हेतु जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है और यह महासागरों के स्वास्थ्य का भी निर्धारण करता है। इस संदर्भ में, अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग काफी महत्वपूर्ण है और तटीय राज्यों को मदद करता है जिनके पास तकनीकी क्षमता और प्रशिक्षित कर्मी नहीं हैं। 1982 में स्थापित कानूनी तंत्र यूएनसीएलओएस समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान (एम.एस.आर.) की स्वतंत्रता और तटीय राज्य के हितों के संरक्षण के बीच संवेदनशील संतुलन सुनिश्चित करता है। हालांकि, जब राज्य अन्य राज्यों के ईईजेड में वैज्ञानिक-सैन्य सर्वेक्षण में संलग्न होते हैं, तो कन्वेंशन के तहत एमएसआर का दायरा एक ग्रे (भूरे) क्षेत्र में बदल जाता है, जिन गतिविधियों को संबंधित राज्यों द्वारा कन्वेंशन द्वारा दिए गए अधिकारों में घुसपैठ तथा चुनौती के रूप में माना जाता है।
पर्यावरण के मुद्दों पर 1982 के यूएनसीएलओएस का ध्यान महासागरों और समुद्रों के स्वास्थ्य पर केन्द्रित है। यह पारिस्थितिक और आवास संरक्षण पर जोर देता है, पोत प्रदूषण और समुद्र में कचरे के डंपिंग से प्रदूषण की आपात स्थिति के खिलाफ आकस्मिक योजना बनाता है। प्लास्टिक और अन्य सामग्रियों के रूप में समुद्री कूड़े और मलबे के डंपिंग पर रोकथाम तथा नियंत्रण जो मछुआरों के समुद्री जीवन और आजीविका को प्रभावित करता है, एक अन्य मुद्दा है जिसपर राष्ट्रों का ध्यान आकर्षित हुआ है और इसके लिए देशों के बीच सहयोग आवश्यक है।