विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली ने भारत एवं रूस के बीच सामरिक साझेदारी की घोषणा की 20वीं वर्षगांठ के अवसर पर 20 अक्टूबर 2020 को 'भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी' पर रूसी अंतर्राष्ट्रीय मामलों की परिषद (आर.आई.ए.सी.) के साथ एक वार्ता का आयोजन किया, यह वार्ता दोनों पक्षों को दो दशक की रणनीतिक साझेदारी की उपलब्धियों का आकलन करने तथा आगे बढ़ने का अवसर प्रदान करती है। उद्घाटन सत्र के वक्ताओं में एंड्री कोर्तुनोव, डीजी, रूसी अंतर्राष्ट्रीय मामलों की परिषद; डॉ. टीसीए राघवन, डीजी, विश्व मामलों की भारतीय परिषद; डीबी वेंकटेश वर्मा, रूस में भारत के असाधारण एवं पूर्णतावादी राजदूत; और निकोले कुदाशेव, भारत में रूस के असाधारण एवं पूर्णतावादी राजदूत शामिल हुए।
2. उद्घाटन सत्र में, इस बात पर चर्चा हुई कि वैश्विक राजनीति के संबंध में आज की स्थिति 20 साल पहले भारत तथा रूस के सामरिक भागीदारी घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए जाने वाले समय से बहुत अलग है। आज अंतरराष्ट्रीय राजनीति विशेष रूप से नए कारकों की वज़ह से नई चुनौतियों का सामना कर रही है, परिवर्तन से गुज़र रही है, और इसलिए दोनों पक्षों को इन नई चुनौतियों का सामना करने हेतु नए दृष्टिकोण अपनाने चाहिए। दोनों पक्ष अपने निकटवर्ती बाहरी क्षेत्रों में समान भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। भारत तथा रूस एक विशेष व विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी साझा करते हैं; महामारी के बावजूद उच्च स्तरीय बातचीत जारी तथा मजबूत हुई है। दोनों पक्षों को आर्थिक संबंधों को और मज़बूत करने हेतु काम करना चाहिए। ऊर्जा तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में परिवर्तन को देखते हुए दोनों पक्षों को यह आकलन करना चाहिए कि नई हथियार नियंत्रण प्रणाली कैसे विकसित की जानी चाहिए। आई.सी.डब्ल्यू.ए. और आर.आई.ए.सी. के बीच मजबूत संवाद का स्वागत किया गया। महानिदेशक, आई.सी.डब्ल्यू.ए. डॉ. टीसीए राघवन ने कहा कि, भू-राजनीति में उथल-पुथल को देखते हुए, दोनों पक्षों के लिए अधिक निकटता से मिलकर काम करना व संवाद को अधिक स्पष्टता के साथ आगे बढ़ाना महत्वपूर्ण है।
3. "प्रणालीगत संकट के खिलाफ वैश्विक एजेंडा: रूस तथा भारत के साझा हितों का लाभ उठाना " रूस के और भारत के साझा हितों और असहमति को दूर करना" पर आयोजित पहले सत्र में राजदूत ग्लेब इवाशेंत्सोव, आर.आई.ए.सी. उपाध्यक्ष और राजदूत अशोक मुखर्जी, यू.एन. में भारत के पूर्व पीआर वक्ता के रुप में शामिल हुए। इस दौरान भारत तथा रूस के लिए अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता में शामिल हुए बिना एक नई तरह की गुटनिरपेक्षता का निर्माण करने पर चर्चा हुई। सबसे बड़ी चुनौती दुनिया को एकध्रुवीय से बहु-ध्रुवीय करने की है, जिसमें भारत तथा रूस अग्रणी देशों में से हैं। भारत तथा रूस दोनों के लिए, संयुक्त राष्ट्र का कोई वैकल्पिक मंच नहीं है। यह विभिन्न क्षेत्रीय मंचों पर जिन मुद्दों पर चर्चा होती है, उनपर विचार-विमर्श करने का अवसर प्रदान करता है। इसलिए, संयुक्त राष्ट्र में भारत तथा रूस के लिए प्राथमिकता सीसीआईटी की प्रारंभिक स्वीकृति और अफगानिस्तान व एनएसजी में भारत के प्रवेश जैसे विशिष्ट मुद्दों पर सहयोग होना चाहिए। भारत तथा रूस को इंडो-पैसिफिक में नौपरिवहन की स्वतंत्रता की दिशा में काम करना चाहिए।
4. "यूरेशिया, एशिया प्रशांत और इंडो-पैसिफिक में क्षेत्रीय रणनीतिक गतिशीलता: रूस-भारत सहयोग हेतु रूपरेखा का विस्तार" पर आयोजित दूसरे सत्र के वक्ताओं में प्रोफेसर सर्गेई लुनेव, एमजीआईएमओ विश्वविद्यालय और डॉ. विवेक मिश्रा, शोध अध्येता, आई.सी.डब्ल्यू.ए. शामिल थे। इस दौरान, यह कहा गया था कि भारत तथा रूस प्राकृतिक तौरपर भागीदार हैं तथा सहयोग का पूरी तरह से लाभ लेते हैं तथा उनके हित एक-दूसरे के विपरीत नहीं हैं। रूस तथा भारत संयुक्त राष्ट्र और उसकी एजेंसियों सहित बहुपक्षीय संस्थानों में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। मास्को ने एससीओ में भारत के शामिल होने का भी समर्थन किया। सुरक्षा तथा अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में अफगानिस्तान और मध्य एशिया में भारत-रूस सहयोग की संभावनाएं हैं। भारत तथा रूस को इंडो-पैसिफिक के संदर्भ में अपने विस्तार को बढ़ाना चाहिए और अपने दृष्टिकोण के बीच सामंजस्य बनाना चाहिए।
5. "द्विपक्षीय बातचीत हेतु नई प्राथमिकताओं की तलाश: व्यापार व निवेश प्रवाह, नवोन्मेष, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी" पर आयोजित तीसरे सत्र के वक्ताओं में लिडा कुलिक, इंस्टीट्यूट ऑफ ओरिएंटल स्टडीज और प्रो. संजय देशपांडे, केंद्रीय यूरेशिया अध्ययन केंद्र, मुंबई विश्वविद्यालय शामिल थे। इस दौरान, यह कहा गया कि कोविड महामारी की वज़ह से दोनों देशों में व्यापार में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। भारत में स्थित डॉ. रेड्डीज लैब द्वारा रूसी कोविड वैक्सीन का संयुक्त उत्पादन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण विकास है। द्विपक्षीय संबंध कृत्रिम बुद्धिमत्ता, उच्च-प्रौद्योगिकी, जैव-तकनीक, रसायन इंजीनियरिंग, आदि जैसे नए क्षेत्रों में आगे बढ़ सकते हैं। भारत-रूस संबंध उभरती विश्व व्यवस्था का एक प्रमुख घटक होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि वे राजनीतिक, ऊर्जा, आर्थिक, रक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में बहुआयामी संबंधों को साझा करते हैं।
6. चर्चाओं के दौरान, इस बात पर जोर दिया गया कि भारत तथा रूस एक नई दुनिया की दहलीज पर खड़े हैं और उनका निकट सहयोग एक ऐसी दुनिया के प्रबंधन में महत्वपूर्ण है जो विशिष्ट भू-राजनीतिक परिवर्तन से गुजर रही है।
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