1. भारतीय विश्व मामलों की परिषद (आईसीडब्ल्यूए) ने 23-24 मार्च 2021 को के.एम. पाणिकर तथा भारत में समुद्री चेतना का विकास’ विषय पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। यह सम्मेलन वर्चुअल प्रारूप में आयोजित किया गया था तथा इसमें भारत तथा विदेशों से कुल 29 वक्ता थे। वक्ताओं ने शिक्षाविदों, इतिहासकारों तथा नौसेना विश्लेषकों के एक बहु-विषयक समूह का गठन किया गया। पिछले वर्ष जुलाई 2020 में दस्तावेज़ों के लिए आह्वान किया गया तथा सम्मेलन में पूर्व-चयनित दस्तावेज़ प्रस्तुत किए गए थे।
2. सम्मेलन में शामिल प्रमुख विषय
3. सम्मेलन में आईसीडब्ल्यूए के महानिदेशक डॉ टीसीए राघवन ने स्वागत भाषण दिया। उन्होंने कहा कि सरदार के एम पाणिकर का जीवन तथा कार्य एक आकर्षक कृत्य है जिसमें भूमिकाओं, पदों तथा हितों की व्यापक विविधता शामिल है। विभिन्न क्षमताओं में उनका योगदान आधुनिक भारत के राजनयिक तथा बौद्धिक इतिहास की किसी भी स्पष्ट समझ के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण तथा घनिष्ठ अध्ययन का है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पाणिकर की ऐतिहासिक तथा साहित्यिक कृतियों ने समकालीन विचारों तथा धारणाओं को प्रभावित किया है तथा स्वतंत्र भारत की नौवहन चेतना को उन्मुख करने में प्रारंभिक भूमिका निभाई है ।
4. पहला सत्र 'के एम पाणिकर: जीवन तथा उनके कार्य' पर हुआ। ब्रिटिश कोलंबिया विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ सेबेस्टियन प्रांज सत्र के टीकाकार तथा मध्यस्थ थे। वक्ताओं में भारतीय राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष प्रो हिमांशु प्रभा रे, अमेरिकी सैन्य युद्ध महाविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ पैट्रिक ब्रैटन तथा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ रघुल वी राजन शामिल थे। यह बताया गया कि पाणिकर ने आजादी के बाद के दौर में नौवहन इतिहास पर संवाद को मजबूत करने के प्रयास किए। उन्होंने बताया कि कैसे ब्रिटिश शाही रक्षा प्रणाली अपनी नौवहन ताकत पर आधारित थी। हालांकि, ब्रिटिश भारत में समुद्री शक्ति की पूरी तरह अनदेखी की गई तथा स्थल आधारित परिसंपत्तियों तथा वहाँ मौजूद खतरों पर जोर दिया गया। वक्ताओं ने तटीय जल क्षेत्र में व्यापारिक नौवहन में निवेश के साथ-साथ स्वतंत्र भारत की मजबूत नौसेना की आवश्यकता पर पाणिकर के अध्ययन पर प्रकाश डाला। वक्ताओं ने माना कि पाणिकर की सोच तथा उनकी कृतियां समकालीन समय में बहुमुखी तथा प्रासंगिक हैं।
5. दूसरा सत्र 'केएम पाणिकर तथा नौवहन भारत' पर हुआ। लिस्बन विश्वविद्यालय से प्रो जोआओ टेलीस ई कुन्हा सत्र के टीकाकार तथा मध्यस्थ थे। वक्ताओं में आइसीईएएस, सिंगापुर के पूर्व विजिटिंग शोधार्थी श्री असद लतीफ, एमपी-आईडीएसए से कमोडोर अभय कुमार सिंह (सेवानिवृत्त) तथा आईआईटी मद्रास की शोधार्थी सुश्री अथिरा आनंद शामिल थे। यूरोपीय तथा भारतीय रणनीतिक सोच के बीच अंतर को अंकित किया गया। वक्ताओं ने दलील दी कि पाणिकर के कार्यों ने औपनिवेशिक परिदृश्य के ढांचे से परे दक्षिण एशिया के महत्व को पहचाना, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि दक्षिण पूर्व एशिया के भविष्य को भारत से अलग नहीं किया जा सकता। यह उल्लेखनीय था कि पाणिकर ने हिंद महासागर क्षेत्र में क्षेत्रीय सुरक्षा समूह के विचार को बढ़ावा दिया था। मुगल काल से ब्रिटिश भारत तक नौवहन-शक्ति की यूरोप केंद्रित इतिहासशास्त्र तथा भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण के महाद्वीपीय निर्धारण की आलोचना करते हुए उन्होंने हिंद महासागर को भारत की स्वतंत्रता के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र माना। पाणिकर ने भारत की सामरिक सोच में महाद्वीपीय तथा नौवहन आयामों को समान महत्व देने पर जोर दिया।
6. सम्मेलन के दूसरे दिन तीसरा सत्र 'हिंद महासागर में अटलांटिक शक्ति प्रभुत्व का युग: 15 वीं-19वीं शताब्दी' पर था। सत्र के लिए प्रो हिमांशु प्रभा रे टीकाकार तथा मध्यस्थ थे। वक्ताओं में बिंगहैमटन में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के प्रो रवि अरविंद पाल, सुश्री अमृता करम्बेलकर, शोध सहायक, विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन, कमोडोर ओडक्कल जॉनसन अनुसंधान निदेशक, नौवहन इतिहास सोसायटी तथा डॉ कृष्णेंद्र मीणा, सहायक प्रोफेसर,सीआईपीओडी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शामिल थे। इस सत्र में हिंद महासागर में यूरोपीय शक्ति प्रभुत्व के चरण पर चर्चा करने पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो पुर्तगाली से डच तथा बाद में फ्रांस तथा ब्रिटेन तक स्थानांतरित हुआ था। यह कहा गया था कि भारतीय तथा अरबों ने हिंद महासागर में पुर्तगालियों के आगमन तक स्वतंत्र रूप से कारोबार किया बाद में पुर्तगालियों ने नौवहन नियंत्रण का धारणा लाया जो महासागर में कभी अस्तित्व में नहीं थे। 18वीं सदी की बंगाल की खाड़ी की लड़ाइयों का भारतीय इतिहास पर स्थायी प्रभाव पड़ा, जो सशस्त्र नौवहन शक्ति तथा भारतीय नौसेना के उद्भव को प्रभावित कर रहा था। हिंद महासागर में यूरोपीय प्रभुत्व को आकार देने में जहाजों तथा जहाज निर्माण के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया।एक वक्ता ने इस बात पर प्रकाश डाला कि किस तरह पाणिकर ने वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था को लागू होने के बारे में चर्चा की तथा कैसे भारतीय समाज पूंजीवादी अर्थव्यवस्था बनने में सफल नहीं हो पा रहा है ।
7. चौथे सत्र का शीर्षक था 'प्रशांत क्षेत्र का उदय:हिंद महासागर में भूराजनीतिक होड़: 20-21शताब्दी। इस सत्र के लिए नीदरलैंड के लीडेन विश्वविद्यालय के डॉ महमूद कोरिया टीकाकार तथा मध्यस्थ थे। वक्ताओं में जम्मू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फलेंद्र कुमार सुदन, कलकत्ता विश्वविद्यालय के डॉ मोहर चक्रवर्ती, सुश्री प्रियंका चौधरी तथा सुश्री कृष्णा कटारिया, सहायक अनुसन्धान सहायक, नौवहन इतिहास सोसायटी से तथा मुंबई से श्री अक्षय होमाने तथा सुश्री शीना सोफी शामिल थे। इस सत्र में इस क्षेत्र में 20 तथा 21वीं सदी के भू-राजनीतिक मंथनों पर चर्चा हुई क्योंकि हाल के वर्षों में वैश्विक रणनीतिक तथा आर्थिक ध्यान यूरो-अटलांटिक से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थानांतरित हो गया है। जर्मनी तथा फ्रांस जैसे अतिरिक्त क्षेत्रीय अग्रणी राष्ट्र के रूप में उभर रहे हैं क्योंकि वे इस क्षेत्र की क्षमता का अनुभव करते हैं। यह भी कहा गया कि क्षेत्र के सामने आने वाली संरचनात्मक चुनौतियों तथा लंबे समय से चली आ रही समस्याओं की समझ बनाने के संबंध में दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य के लिए हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण की बारीकियों पर गहराई से सोचने की जरूरत है ।
8. 'केएम पाणिकर तथा भारत में नौवहन चेतना के विकास' पर पैनल चर्चा की अध्यक्षता एमपी-आईडीएसए के प्रतिष्ठित फेलो तथा शासकीय परिषद्, आईसीडब्ल्यूए के सदस्य डॉ संजया बारू ने की। इसमें भारतीय नौसेना के रियर एडमिरल राजा मेनन(सेवानिवृत्त), वाइस एडमिरल एम पी मुरलीधरन, भारतीय तटरक्षक बल के पूर्व महानिदेशक, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के पूर्व सदस्य, राजदूत बीरेन नंदा, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और आसियान में भारत के पूर्व राजदूत प्रोफेसर लॉरेंस प्रभाकर, सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च, कोच्चि के सलाहकार प्रोफेसर लॉरेंस प्रभाकर तथा हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रिलामुखजेर्जी शामिल थे। आजादी के बाद, भारत का अपनी सुरक्षा के लिए स्थल केंद्रित दृष्टिकोण रहा है; हाल के दिनों में ही भारतीय सामरिक सोच में बढ़ती नौवहन चेतना देखी जा रही है, जो दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया तथा अफ्रीका के साथ बढ़ते संबंधों के लिए काफी हद तक है। केएम पाणिकर पहले विचारक थे जिन्होंने महाद्वीपीय सुरक्षा चिंताओं से परे भारत में नौवहन चेतना के पर जोड़ दिया। पैनलिस्टों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि पाणिकर ने हिंद महासागर में चीन के उदय को एक रणनीतिक चुनौती के रूप में प्रत्याशित किया तथा यह भी कि भारत द्वारा हिंद महासागर में रणनीतिक भविष्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाना प्राकृतिक तौर पर था। उन्होंने हिंद महासागर में अमेरिका के प्रवेश की भी भविष्यवाणी की थी । पाणिकर के विचारों को यथार्थवादी तथा रचनात्मकवादी के रूप में देखा जा सकता है। उन्होंने भारत की नौसैनिक शक्ति के लिए आवश्यक विध्वंसक, फ्रिगेट्स तथा विमान वाहकों की कल्पना की थी । भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी एंड प्रोजेक्ट मौसम में पाणिकर की सोच की छाप है। वक्ताओं ने दोहराया कि भारत को अपनी महाद्वीपीय तथा नौसैनिक शक्ति को संतुलित करने की जरूरत है। पैनल ने ब्लू इकोनॉमी के विचार पर भी जोर दिया जो नौवहन बहसों में बढ़ते संकर्षण को तीव्र कर रहा है।
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