प्रेसीडेंसी ऑफ होप - संयुक्त राष्ट्र महासभा का 76 वां सत्र कोविड महामारी औरबहुपक्षवाद में सुधार की आवश्यकता
38वां सप्रू हाउस व्याख्यान
मालदीव गणराज्य के विदेश मंत्री और 76वीं संयुक्त राष्ट्र महासभा के निर्वाचित अध्यक्ष महामहिम श्री अब्दुल्ला शाहिद की ओर से
विश्व मामलों की भारतीय परिषद
23,जुलाई 2021, नई दिल्ली
पूरी सदाशयता के साथ मेरा परिचय देने के लिए राजदूत मनजीव सिंह पुरी को बहुत-बहुत धन्यवाद। गर्मजोशी से मेरा स्वागत करने और यहां भारतीय विश्व मामलों की परिषद में बोलने का अवसर प्रदान करने के लिए डा. राघवन को भी धन्यवाद।
नई दिल्ली में आना वास्तव में मेरे लिए विशेष सम्मान की बात है। जब मैंने इस साल अप्रैल में दिल्ली का दौरा किया था, तब भारत में कोविड के मामले दुनिया के किसी और हिस्से की तुलना में सबसे तेजी से फैल रहे थे। ऐसे समय में भारत के लोगों ने एक बार फिर अपनी नायाब सहनशक्ति का परिचय दिया। देशवासियों का अटूट जज्बा इस महान देश को किसी भी चुनौती का सामना करने में सक्षम बनायेगा। मुझे इसपर पूरा भरोसा है।
हमें भारत के लोगों की दरियादिली पर भी पूरा भरोसा है। भारत वासियों की उदारता की वजह से ही आज दुनिया के 95 देशों को कोविड का टीका उपलब्ध है। भारत द्वारा 150 से अधिक देशों को आवश्यक दवाएं उपहार की तरह दी गईहैं। मैं विश्व समुदाय के साथ, भारत की इस नेतृत्व भूमिका की सराहना करता हूं।
प्रिय साथियों,
पिछले साल, एक ऐसे वायरस ने जिसे हम देख नहीं सकते थे पूरी दुनिया को घुटनों के बल ला खड़ा किया। जीवन अब पहले जैसा नहीं रहा। काफी बदल चुका है। हालांकि साल के अंत में हमे आशा की किरणें दिखाई दीं।
टीके विकसित किए जा रहे थे लेकिन किसी के पास यह स्पष्ट जानकारी नहीं थी कि ये कितनी जल्दी बनकर तैयार हो जाएंगे और कितने प्रभावी होंगे।
आज जैसे-जैसे हालात सामान्य होते जा रहे हैं हम शायद यह कह सकते हैं कि तस्वीर थोड़ी साफ हो रही है। लेकिन यह कोई जश्न मनाने की बात नहीं है। हमें अच्छी पता चल चुका है कि 2020 में दुनिया की अर्थव्यवस्था 4.3 प्रतिशत सिकुड़ चुकी है और खरबों डॉलर का नुकसान हुआ है।
हम इस बात को जानते हैं कि कई देश और ज्यादा कर्ज में डूब चुके हैं। बीस वर्षों में पहली बार वैश्विक स्तर पर गरीबी के विकराल रूप धारण करने की आशंका है। साल 2020 में 11करोड़ 40 लाख लोगों ने अपनी नौकरी गंवाई, जबकि कईयों के काम के घंटे या वेतन में कटौती हुई , या वे आर्थिक रूप से निष्क्रिय हो गए। जिसका सीधा अर्थ यह है कि वह श्रम बल का हिस्सा नहीं रह गए।
आज हम इस बात से वाकिफ हैं कि महिलाएं, मूल निवासी , युवा और गरीब सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। 1 अरब 70 लाख से अधिक छात्र-जो दुनिया की छात्र आबादी का लगभग 99 प्रतिशत हैं,स्कूल या विश्वविद्यालय बंद होने से प्रभावित हुए हैं। व्यावसायिक उड़ानों में 42 प्रतिशत की गिरावट आई जिससे संपर्क के माध्यम और आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई।
अगर पिछले साल इस समय हम एक ऐसी महामारी से जूझ रहे थे जिसे हम समझ नहीं सकते थे और उन दीर्घकालिक प्रभावों को समझने की कोशिश कर रहे थे जिनका हम आकलन नहीं कर सकते थे तो वहीं इस साल अब हम यह समझने की कोशिश कर रहे हैं या फिर यूं कहें कि हमें यह समझना जरुरी है कि किस तरह से स्थिति से निबटा जाए और कैसे हालात सामान्य बनाए जाएं जो बिल्कुल अलग तरह से या नए सिरे से सामान्य हो सकें।
महासभा के अध्यक्ष पद के लिए प्रचार अभियान के दौरान, मुझसे कई बार पूछा गया कि आखिर उम्मीद की बात क्यों? मेरा जवाब था क्यों नहीं?
इस समय दुनिया गहन अंधकार में घिरी हुई है। लेकिन इस बीच उम्मीद की किरणें भी दिखाई देती रही हैं। सदाशयता और दयाभाव के छोटे छोटे कार्यों ने बहुत व्यापक प्रभाव डाला है। इस दौरान दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों और अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं ने अनगिनत बलिदान दिए। रिकॉर्ड समय में वैक्सीन खोजने वाले वैज्ञानिकों के अथक प्रयास भी इसमें शामिल रहे। इन सब चीजों से उम्मीद बंधी है। यह उम्मीद आगे भी बनी रहेगी।
यह उम्मीद ही है जो हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। हमें दोबारा खड़े होने के लिए प्रेरित करती है। बीमारी, निराशा और तबाही से घिरी इस अंधकारमय दुनिया का मुकाबला करने के लिए यही वह चीज है जिसकी हमें आज सबसे ज्यादा जरूरत है।
उम्मीद मालदीव के हर नागरिक के स्वभाव में रची बसी है। हमारा एक छोटा सा देश है। जिसके समक्ष कई चुनौतियां हैं। यह कई तरह की मुसीबतें झेल चुका है। यह रोज ही जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव झेलता है। ऐसे हालात में हम तो बहुत पहले ही हार मान चुके होते लेकिन यह उम्मीद ही है जो हमें आगे बढने का हौसला दे रही है। यह एक बेहतर भविष्य का वादा है एक बेहतर भविष्य की उम्मीद है।
यही कारण है कि मैंने अध्यक्ष के रूप में उम्मीद को अपने मुख्य विषय के रूप में चुना है। संयुक्त राष्ट्र महासभा का 75 वां सत्र जहां कोविड से उपजी चुनौतियों से निबटने पर केन्द्रित था वहीं आगामी 76वां सत्र कोविड के हालात से उबरने पर केन्द्रित होना चाहिए।
यही वहज है कि मैंने महासभा के 76वें सत्र की सामान्य बहस के लिए जो विषय चुना है वह आगे की सोच और वहनीयता पर केन्द्रित है जिसका प्रेरक तत्व उम्मीद है।
कोविड से उबरने का प्रयास मेरी तत्काल प्राथमिकता होगी। महामारी का बहुत व्यापक प्रभाव पड़ा है और इसके पूरी तरह से खत्म होने में अभी भी बहुत समय लगेगा। इसके नए वेरिएंट सामने आ रहे हैं। हमें अभी भी इसके दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ भी पता नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र इस समस्या के निदान के लिए बहुत कुछ कर सकता है और उसे ऐसा करना भी चाहिए।
वर्तमान में की गई पहलों और दृष्टिकोणों के आधार पर मैं अपने लोगों और हमारी अर्थव्यवस्थाओं में सुधार लाने की कोशिश करना चाहूंगा। सबके लिए समान रूप से वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए हमें पूरी दुनिया का टीकाकरण करना होगा। जबतक सभी सुरक्षित नहीं हो जाते मान कर चलें की कोई भी सुरक्षित नहीं है।
हमें मिलकर उन चुनौतियों से पार पाने की जरूरत है जो वैश्विक टीकाकरण अभियान के रास्ते में आ रही हैं। इसमें निजी क्षेत्र, समाजसेवी संगठनों, शिक्षाविद, वैज्ञानिक और सरकारों सबका सहयोग होना चाहिए।
हमें एक बार फिर बेहतर और मजबूत विश्व के निर्माण की ओर देखने की जरूरत है। हमने 2020 की शुरुआत एक ऐसे कार्यशील दशक के रूप में की थी जिसका एजेंडा 2030 तक सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
लेकिन आज के कार्यशील दशक को अब उबरने का दशक बनना पड़ेगा। यही कारण है कि मेरी आशा की दूसरी किरण - मेरी दूसरी प्राथमिकता स्थायी पुनर्निर्माण है। कोविड के बाद की दुनिया अत्याधिक गरीबी से मुक्त एक ऐसी आदर्श दुनिया होनी चाहिए जो अधिक टिकाऊ हो और जिसमें अधिक वहनीयता हो।
एक ऐसी दुनिया जिसमें हम भुखमरी और खाद्य असुरक्षा की समस्या से निजात पाने के लिए प्रभावी कदम उठा सकें। जहां हम सबके लिए गुणवत्ता युक्त शिक्षा का इंतजाम कर सकें और डिजिटल डिवाइड की खाई को पाट सकें।
एक ऐसी दुनिया है जहां किए गए प्रयासों का लाभ दिखे।एक ऐसी दुनिया जहां शांति हो। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई पीछे न छूटे। कोई देश पीछे न रह जाए लक्षित हस्तक्षेपों की आवश्यकता होगी।
हमारे घर, हमारी पृथ्वी की आवश्यकताओं को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना चाहिए। कोविड की चुनौती ने जलवायु परिवर्तन, महासागरों की स्थिति, मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण तथा जैवविविधता को हो रहे नुसकान जैसी चुनौतियां की जगह नहीं ली है। पुरानी समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं।
इतना अवश्य हुआ है कि कोविड के कारण संसाधनों का इस्तेमाल दूसरी जगह हो जाने से इन चुनौतियों से निबटने के प्रयास सीमित हों गए हैं।
जलवायु परिवर्तन का असर और गहराता जा रहा है। इस महीने की खबरों की सुर्खियों पर एक नज़र डालें तो लू, बाढ़, ज्वार भाटा ये सभी जलवायु में हो रहे खतरनाक बदलाव का संकेत दे रहे हैं।
आम सभा का इस बार का सत्र ऐसे समय होने जा रहा है जब जलवायु परिवर्तन पर कोप-26, महासागर सम्मेलन ,जैव विविधता कोप-15, मरुस्थलीकरण पर कोप-15, ऊर्जा संवाद, “टिकाऊ परिवहन और खाद्य प्रणालियां” जैसे कई सम्मेलनों का आयोजन भी होगा ऐसे में इसबार का सत्र प्रकृति सें संबधित विषय पर सुपर सत्र हो सकता है। ये सब एक तरह से इस बात का परिचायक हैं कि हमारे ग्रह कीआवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में हो रहे प्रयास रफ्तार पकड़ रहे हैं।
अपने लोगों की जरूरतों का ध्यान रखना भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से यह देखते हुए कि महामारी के दौरान मानवता और और मानवाधिकारों दोनों की अहमियत घटी क्योंकि लॉकडाउन के कारण ज्यादा से ज्यादा लोग घरों में कैद रहे और दुनिया भर में काफी कड़े उपाय किए गए।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि हम सभी के अधिकारों का सम्मान करते हैं, सामूहिक इच्छा शक्ति और मानवता की अंतरात्मा दोंनो को साथ लेकर चलना होता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो निरंतर बनी रहनी चाहिए। मैंने इस बार के सत्र में अपनी तरफ से युवाओं को अपनी बात कहने के लिए ज्यादा ज्यादा समय देने का वायदा किया है।
मेरा यह मानना है कि हमें उन निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में युवाओं की पूरी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए जो उनके भविष्य को प्रभावित करते हैं। लैंगिक समानता मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता है। मैं लैंगिक भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाऊंगा। लैंगिक समानता के हक में बात करूंगा मेरे कार्यालय में महिला और पुरुष कर्मियों की संख्या के बीच संतुलन रहेगा।
मैंने जिन प्राथमिकताओं का ऊपर उल्लेख किया है उन्हें केवल एक मजबूत, प्रभावी, कुशल, पारदर्शी और जवाबदेह संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से ही संबोधित किया जा सकता है। एक ऐसा संयुक्त राष्ट्र जो चार्टर के पहले तीन शब्दों "वी, द पीपुल्स" का अधिक प्रतिनिधित्व करता हो।
एक ऐसा संयुक्त राष्ट्र जो एक परिवार की तरह है। जो एक साथ काम करता है, समन्वय बनाता है, सहयोग करता है और सामंजस्य बढ़ाता है। एक ऐसा संयुक्त राष्ट्र जो अधिक समावेशी है - जो सभी की बात सुनता है और जो सभी की जरूरतों को ध्यान में रखता है।
मेरी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि महासभा संयुक्त राष्ट्र को ऐसा रूप दे जो सक्षम हो और आज के समय की जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त हो। यही कारण है कि मेरी आशा की पांचवीं किरण संयुक्त राष्ट्र में सुधार है।
देवियों और सज्जनों
मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने महासभा के 75वें सत्र में हुई आम बहस में अपने संबोधन के दौरान "बहुपक्षवाद में सुधार " की जिस अवधारणा का जिक्र किया था उसमें इन पहलुओं पर प्रकाश डाला गया था।
पारदर्शी और समावेशी निर्णय लेने की आवश्यकता, शांति, सुरक्षा और विकास के बीच संबंधों को समझने और पहचानने की आवश्यकता और बहु-हितधारक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र को आज के समय की चुनौतियों का समाधान तलाशने के "उद्देश्य के लिए उपयुक्त" बनाने के संदर्भ में इस पर प्रकाश डाला था।
वैश्विक मुद्दों के समाधान में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को समझने के लिए हमें संयुक्त राष्ट्र की शक्तियों को समझना होगा। मेरा मानना है कि संयुक्त राष्ट्र की ताकत मानदंड तय करने, विमर्श बदलने और आम सहमति बनाने की क्षमता में निहित है।
संयुक्त राष्ट्र के पास सर्वोत्तम सोच, सर्वोत्तम विचारों और सर्वोत्तम प्रथाओं को एक साथ लाने और इनके जरिए सर्वोत्तम समाधान निकालने की संयोजक शक्ति है। संयुक्त राष्ट्र देशों और लोगों को अपने विचार साझा करने और सभी के लिए लाभकारी समाधान खोजने के लिए एक मंच प्रदान करने की क्षमता है।
संयुक्त राष्ट्र के पास जमीनी स्तर पर स्थितियों का आकलन करने और जहां आवश्यक हो, स्थानीय अधिकारियों के साथ सहयोग करते हुए लक्षित हस्तक्षेप करने की विशेषज्ञता है।
मेरा मानना है कि यही संयुक्त राष्ट्र की ताकत है। यही वह बात है जिससे संयुक्त राष्ट्र अपनी पहचान बना सकता है। उसकी इस महत्वपूर्ण भूमिका का अनुभव तभी किया जा सकता है जब संयुक्त राष्ट्र पर भरोसा किया जाए।
यह विश्वास संयुक्त राष्ट्र को लोगों के करीब लाकर ही बनाया जा सकता है। ऐसा उसकी दक्षता और प्रभावशीलता को बढ़ाकर तथा उसे लोगों तथा इस ग्रह के लिए और समृद्धि के लिए ज्यादा प्रभावी तरीके से काम करने के लायक बनाकर ही कायम किया जा सकता है।
कोविड-19 महामारी ने दुनिया को संकट में डाल दिया है। लेकिन मेरा मानना है कि यह एक मजबूत और अधिक टिकाऊ दुनिया बनाने के लिए एक अवसर भी हो सकता है। यह बहुपक्षवाद के विस्तार तथा सहयोग को मजबूत बनाने का अवसर भी हो सकता है।
यह संयुक्त राष्ट्र के लिए एक बार फिर से समुदायों को पुर्नजीवित करने , ग्रह को बचाने, अर्थव्यवस्थाओं को ठीक करने, और सबसे बढ़करउम्मीद जगाने की बड़ी भूमिका निभाने का अवसर है जैसा की उसने बड़े युद्धों के बाद किया था।
महासभा के अध्यक्ष के रूप में मैं वह सब कुछ करूंगा जो मैं कर सकता हूं और इसे वास्तविकता बनाने के लिए मैं वह सब कुछ अर्पण करूंगा जो मैं कर सकता हूं।
आपका धन्यवाद!
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