परिचय
शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organization; SCO - एससीओ) की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी| दरअसल सोवियत रूस के विघटन के बाद मध्य एशिया के सीमावर्ती क्षेत्रों में विश्वास निर्माण के उपाय करने और मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने के लिए चीन, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, रूस और ताजिकिस्तान ने 1996 में शंघाई पाँच (Shanghai Five) का गठन किया। इसके बाद, राजनीतिक, सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग को शामिल करने के लिए एजेंडा का विस्तार किया गया। उज़्बेकिस्तान को, जिसकी सीमा न तो चीन और न रूस के साथ साझा होती है, 2001 में समूह में शामिल किया गया था। इस प्रकार, शंघाई पाँच से एससीओ अस्तित्व में आया| सैद्धांतिक रूप में यह एक यूरेशिया केंद्रित क्षेत्रीय संगठन है और अपने स्थापना के केवल दो दशकों में एक मजबूत क्षेत्रीय मंच के रूप में उभरा है।
इस संगठन का पहला विस्तार 2017 में हुआ था जब भारत और पाकिस्तान की पूर्ण सदस्यता के साथ एससीओ दक्षिण एशिया पहुंचा| दूसरा विस्तार भारत की अध्यक्षता के दौरान 2022-23 में हुआ जब ईरान इसमें नौवें सदस्य के रूप में शामिल हुआ और इसे पश्चिम एशिया तक विस्तारित दिया| बेलारूस की सदस्यता की प्रक्रिया अगले साल 2024 एससीओ शिखर सम्मेलन तक पूरी होने की संभावना है। एससीओ में वैश्विक आबादी का लगभग 40 प्रतिशत और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 33 प्रतिशत शामिल है। देशों के लिए एससीओ से संबद्ध होने की तीन परतें हैं जिनमें ‘सदस्यता’, ‘पर्यवेक्षक’ का दर्जा और ‘संवाद साझेदारी’ शामिल हैं (Members, Observers and Dialogue Partners)। अफ़ग़ानिस्तान, मंगोलिया और बेलारूस इसके पर्यवेक्षक हैं| पर्यवेक्षक देशों के बारे में ध्यान देने योग्य दो बातें हैं, पहली ये की बेलारूस जल्द ही पूर्ण सदस्य बन जायेगा, और दूसरी ये की अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा काबुल पर कब्ज़े के बाद से अफ़ग़ानिस्तान को किसी भी एससीओ प्रारूप में आमंत्रित नहीं किया गया है और ना ही किसी भी एससीओ देश ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान शासन को आधिकारिक मान्यता दी है|
आर्मीनिया, आज़रबाइजान, बहरीन, कंबोडिया, मिस्र, कुवैत, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, तुर्किये, संयुक्त अरब अमीरात इसके 14 पर्यवेक्षक देश हैं| मध्य एशिया को केंद्र में रखते हुए यह संगठन अब पूर्वी एशिया से अफ़्रीका के क्षेत्रों को एक सूत्र में पिरोता है|
एससीओ के उद्देश्य
मूल रूप से एससीओ का उद्देश्य आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद की 'तीन बुराइयों' से लड़ना रहा है। शुरुआती दिनों में और क्षेत्र की स्थिति के कारण, एससीओ ने सदस्य देशों के सामने आने वाली तत्काल चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया, जिसमें आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद और नशीले पदार्थों की तस्करी का खतरा शामिल था। 2003 में अपनाया गया एससीओ चार्टर साथ ही सदस्य देशों के बीच आपसी विश्वास और बेहतर पड़ोसी व्यवहार को मजबूत करने की बात करता है; राजनीति, व्यापार, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, अनुसंधान, प्रौद्योगिकी, संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण सहित सहयोग को अपना मकसद बताता है। यह संगठन क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने और सुनिश्चित करने के प्रयासों का आह्वान करता है; और एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और तर्कसंगत नई अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की स्थापना की दिशा में आगे बढ़ने की बात करता है।
एससीओ का मुख्य कार्यक्षेत्र मध्य एशिया है और शीत युद्ध के बाद कई अन्य क्षेत्रों की तुलना में मध्य एशिया कमोबेश स्थिर बना हुआ है| अपने पड़ोस में सुरक्षा स्थिति और आर्थिक चुनौतियों के बावजूद, पिछले दो दशकों में यह समूह मध्य एशिया के अपने 'मुख्य' क्षेत्र को पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से स्थिर रखने में काफी हद तक सफल रहा है। सुरक्षा संबंधी मुद्दों से निपटने के लिए, SCO ने एक स्थायी क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (SCO RATS) बनाई है और इसका मुख्यालय ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में है।
धीरे-धीरे विश्व की आर्थिक केन्द्रीयता पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रही है और एससीओ में भारत और चीन जैसी विशाल अर्थवयवस्थाएँ हैं जबकी रूस और मध्य एशियाई देशों के पास निर्यात करने के लिए अपार प्राकृतिक सम्पदा।
हालाँकि एससीओ को कुछ चुनौतियों का भी सामना है| इसे अपनी संरचनाओं के भीतर और सदस्य देशों के साथ विशेष रूप से तात्कालिकता के समय (emergency situation) में अधिक सहयोग को सक्रिय करने और संचार में सुधार करने की आवश्यकता है। क्षेत्र में आतंकवाद अभी ख़त्म नहीं हुआ है और कुछ देश न केवल इसे पनपने दे रहे हैं बल्कि इसका उपयोग एक नीति के रूप में कर रहे हैं| अफ़ग़ानिस्तान लगातार अस्थिर है| विदेशी ताकतों के जाने से देश में एक शक्ति निर्वात (power vacuum) पैदा हो गया है। क्षेत्रीय देशों पर अपने सहयोग को बढ़ाने और एक समावेशी सरकार के साथ अफगानिस्तान में दीर्घकालिक स्थिरता लाने के लिए ठोस प्रयास करने की एक बड़ी जिम्मेदारी आ गई है। कोविड महामारी के परिणामों से निपटना, रूस-यूक्रेन संघर्ष, रूस और ईरान पर प्रतिबंध, पश्चिम एशिया में अनसुलझे मुद्दे आदि ऐसे विषय हैं जिन पर इस संगठन को निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता होगी और इसमें भारत का सहयोग अपरिहार्य होगा|
भारत और एससीओ
भारत 2005 में पर्यवेक्षक के रूप में एससीओ से पहली बार जुड़ा था। बारह साल बाद वर्ष 2017 में यह पूर्ण सदस्य बन गया, जिससे संगठन की राजनीतिक, आर्थिक, कनेक्टिविटी, सांस्कृतिक और सुरक्षा संभावनाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था का समावेश किसी भी अंतरराष्ट्रीय संगठन के महत्व को कई गुना बढ़ा सकता है। यह संगठन को मजबूत बनाता है और इसे अधिक श्रव्य, संतुलित और स्थिर बनाता है। भारत के पर्यवेक्षक के रूप में एससीओ के अनुभव ने उसे संगठन में पूर्ण सदस्य के रूप इसकी भूमिका के बारे में आश्वस्त किया होगा। इसके अलावा, अकादमिक बहस यह भी है कि भारत का समावेश संगठन को आंतरिक रूप से अधिक संतुलित बनाता है। बाह्य रूप से, एससीओ अधिक प्रभावशाली और आकर्षक हो गया।
भारत एससीओ में बहुआयामी सहयोग के विकास और एससीओ क्षेत्र में शांति, स्थिरता, आर्थिक विकास और बेहतर पड़ोसी व्यवहार को बढ़ावा देने को बहुत महत्व देता है। एससीओ की आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद की बुराइयों के खिलाफ प्रतिबद्धता का भारत समर्थक रहा है। क्षेत्र के साथ कनेक्टिविटी में सुधार भारत की 'कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति' 2012 का एक महत्वपूर्ण घटक रही है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 2017 में अस्ताना एससीओ बैठक में कहा, “यह सही है कि सदस्यता हमें आज मिल रही है किन्तु आप सभी देशों के साथ हमारे संबंध ऐतिहासिक हैं। परस्पर विश्वास तथा सद्भावना हमारे राजनैतिक तथा आर्थिक सहयोग की मुख्य आधारशिला हैं।“[1] एससीओ देशों से भारत के साथ सहभागिता के कई आयाम हैं । ऊर्जा, शिक्षा, कृषि, सुरक्षा, खनिज, क्षमता निर्माण, विकास साझेदारी, व्यापार और निवेश इसके प्रमुख चालक हैं। प्रधान मंत्री ने कहा की भारत की एससीओ की सदस्यता निश्चय ही हमारे सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगी । भारत ने एससीओ देशों के साथ कनेक्टिविटी को प्राथमिकता बताया। भारत आतंकवाद को मानव अधिकारों तथा मानव मूल्यों के सबसे बड़े उल्लंघनकारियों में से एक मानता है तथा ये समझता है की आतंकवाद तथा अतिवाद के खिलाफ संघर्ष एससीओ के सहयोग का अहम भाग है।
दूसरी ओर, एससीओ देश भारत को वस्तुओं और ऊर्जा संसाधनों के लिए एक बड़े बाजार और एक संभावित निवेशक के रूप में देखते हैं। सदस्यों के पास वैश्विक तेल भंडार का लगभग 25 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस भंडार का 50 प्रतिशत से अधिक, लगभग एक तिहाई कोयला और दुनिया के ज्ञात यूरेनियम भंडार का लगभग 50 प्रतिशत है। बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था पड़ोस में स्थित आपूर्ति का स्रोत बन सकती है। भारत आईसीटी, दवाई और अंतरिक्ष सहित कम लागत और उच्च गुणवत्ता वाली प्रौद्योगिकी में अग्रणी है। भारतीय उद्यमिता ने अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संरचनाओं में अपनी जगह बनाई है और एससीओ उपलब्ध प्रतिभा का दोहन करने के लिए इच्छुक होगा। साथ ही भारत जमीन से घिरे मध्य एशिया के एससीओ सदस्यों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग से जोड़ने का प्रयास भी कर रहा है।
भारत की एससीओ अध्यक्षता (2022-23)
सितंबर 15-16, 2022 में समरकंद शिखर सम्मेलन के बाद भारत ने पहली बार संगठन की अध्यक्षता संभाली। भारत ने 2022-23 में अपनी एससीओ अध्यक्षता के दौरान अभूतपूर्व गतिविधियों का प्रदर्शन किया| भारत ने 15 मंत्री स्तरीय बैठकों सहित 100 से अधिक बैठकें और कार्यक्रम सफलतापूर्वक आयोजित किए। भारत की अध्यक्षता की एक अनूठी विशेषता विभिन्न कार्यक्रमों में एससीओ पर्यवेक्षकों और संवाद भागीदारों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना भी था।
भारत की एससीओ अध्यक्षता का विषय (theme) 'एक सुरक्षित एससीओ की ओर' था, जो 2018 एससीओ के क़िंगदाओ (Qingdao) शिखर सम्मेलन में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिये गये गए एक संक्षिप्त नाम से प्रेरित है। प्रधान मंत्री ने 'सुरक्षित' एससीओ की ओर बढ़ने के लिए भारत की प्राथमिकताओं को स्पष्ट किया था | संक्षिप्त नाम 'SECURE' का अर्थ सुरक्षा (Security), आर्थिक विकास (Economic development), कनेक्टिविटी (Connectivity), एकता (Unity), संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए सम्मान (Respect for sovereignty and territorial integrity) और पर्यावरण संरक्षण (Environment) है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में एससीओ राष्ट्र प्रमखुों की परिषद की 23वीं बैठक 4 जुलाई 2023 को हुई| इसे वर्चुअल मध्यम में आयोजित किया गया था| नेताओं ने ईरान के संगठन के पूर्ण सदस्य राज्य के रूप में शामिल होने की प्रक्रिया पूरी होने का स्वागत किया। शिखर सम्मेलन के नतीजे के रूप में, नेताओं ने नई दिल्ली घोषणा (New Delhi Declaration) और दो विषयगत संयुक्त वक्तव्यों को अपनाया - एक कट्टरपंथ, अलगाववाद, उग्रवाद और आतंकवाद का मुकाबला करने में सहयोग (Statement on countering radicalization leading to terrorism, separatism and extremism) पर, और दूसरा डिजिटल परिवर्तन (Cooperation in digital transformation) के क्षेत्र में सहयोग पर। इसके अलावा नेताओं ने कुल 10 फैसलों पर हस्ताक्षर भी किये|[2]
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा की पिछले दो दशकों में एससीओ पूरे एशियाई क्षेत्र में शांति, समृद्धि और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बनकर उभरा है। भारत और इस क्षेत्र के बीच हजारों साल पुराने सांस्कृतिक और लोगों के बीच आपसी संबंध हमारी साझा विरासत का जीवंत प्रमाण हैं। भारत इस क्षेत्र को "विस्तारित पड़ोस" (extended neighbourhood) के रूप में नहीं, बल्कि "विस्तारित परिवार" (extended family) के रूप में देखता है।[3]
प्रधानमंत्री ने आतंकवाद को क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए एक बड़ा खतरा बताया एवं इस से निपटने के लिए निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता पर ज़ोर दिया । उन्होंने कहा की कुछ देश सीमा पार आतंकवाद को अपनी नीतियों के साधन के रूप में उपयोग करते हैं, आतंकवादियों को आश्रय प्रदान करते हैं। एससीओ को ऐसे देशों की आलोचना करने में संकोच नहीं करना चाहिए। अफ़ग़ानिस्तान के बारे में उन्होंने कहा की अफगान नागरिकों को मानवीय सहायता; एक समावेशी सरकार का गठन; आतंकवाद और मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ लड़ाई; और महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को सुनिश्चित करना हमारी साझा प्राथमिकताएं हैं।
एससीओ सदस्य देशों के बीच व्यापार, प्रौद्योगिकी, निवेश, पर्यटन आदि को बढ़ाना सहयोग के प्राथमिक क्षेत्रों में से रहे हैं । बेहतर कनेक्टिविटी न केवल आपसी व्यापार को बढ़ाती है बल्कि आपसी विश्वास को भी बढ़ावा देती है। भारत एससीओ में मध्य एशियाई राज्यों की केंद्रीय भूमिका को मान्यता देता है। कुछ एससीओ देश चारों ओर से ज़मीन से घिरे हुए हैं ऐसे में एससीओ में ईरान की सदस्यता से चाबहार बंदरगाह की उपयोगिता और अधिक बढ़ जाती है | अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) मध्य एशिया में भूमि से घिरे देशों के लिए हिंद महासागर तक पहुँचने के लिए एक सुरक्षित और कुशल मार्ग के रूप में काम कर सकता है। भारत चाबहार में निवेश कर रहा है और इस बंदरगाह को आईएनएसटीसी से जोड़ना चाहता है|
भारत की अध्यक्षता के दौरान विभिन्न मंत्री स्तरीय बैठकों में भारत द्वारा प्रस्तावित की गईं और एससीओ द्वारा अपनाई गईं कुछ महत्वपूर्ण पहलों के बारे में बताना उचित होगा| जनता में डिजिटल प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे (DPI) के विकास की अवधारणा; उभरते ईंधन (emerging fuel) पर एससीओ देशों के बीच सहयोग पर; संसाधन दक्षता और चक्रीय अर्थव्यवस्था पर फोकस करते हुए जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण की चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करना; एससीओ सदस्य राज्यों के बीच सहयोग के माध्यम से परिवहन बुनियादी ढांचे को डीकार्बोनाइज़ करना; और डिजिटल परिवर्तन और नवीन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना। एससीओ सदस्य देशों में डिजिटल वित्तीय समावेशन नीतियों पर पहली रिपोर्ट को भी अपनाया गया ।
एससीओ को, भारत स्टार्टअप और नवाचार (innovation) के क्षेत्र सहित अपनी विशेषज्ञता साझा करने की पेशकश करता है। भारत ने एससीओ के भीतर सहयोग के पांच नए स्तंभ स्थापित किए हैं: स्टार्टअप और इनोवेशन, पारंपरिक चिकित्सा, युवा सशक्तिकरण, डिजिटल समावेशन, और साझा बौद्ध विरासत।
इसके अलावा, भारत की अध्यक्षता काल में सामाजिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का भी एक बड़ा हिस्सा था। इसमें एससीओ बाजरा महोत्सव, एससीओ फिल्म महोत्सव, सूरज कुंड मेले में एससीओ संस्कृति प्रदर्शन, एससीओ पर्यटन बाजार, पारंपरिक चिकित्सा पर एससीओ सम्मेलन आदि शामिल थे | एससीओ की पहली पर्यटक और सांस्कृतिक राजधानी के तौर पर बनारस में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किये गये। नई दिल्ली में साझा बौद्ध विरासत पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया | भारत सरकार की व्यवस्था के तहत नालंदा विश्वविद्यालय में साझा बौद्ध विरासत पर एक विशेष पीठ भी बनाई गई।
वर्तमान में केवल रूसी और चीनी एससीओ की दो आधिकारिक भाषाएँ हैं| भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिए भारत ने एआई-आधारित (AI-based) भाषा मंच, ‘भाषिनी’ (https://bhashini.gov.in/) को सभी के साथ साझा करने की पेशकश की है। यह समावेशी विकास के लिए डिजिटल प्रौद्योगिकी के उदाहरण के रूप में काम कर सकता है।
युवा वैज्ञानिक कॉन्क्लेव, युवा लेखक कॉन्क्लेव, एससीओ यंग रेजिडेंट स्कॉलर्स प्रोग्राम, एससीओ स्टार्टअप फोरम, एससीओ यूथ काउंसिल, एससीओ सम्मेलन[1] जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किये गये।
भारत के एससीओ की पहली अध्यक्षता को चिह्नित करने के लिए, एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया। साथ ही बीजिंग में एससीओ सचिवालय में एक भारतीय विषय वाले ‘नई दिल्ली हॉल’ का उद्घाटन किया गया। यह एक प्रकार से एससीओ सचिवालय में एक लघु भारत का प्रदर्शन करेगा।
अंततः यह कहा जा सकता है कि एससीओ के साथ भारत का जुड़ाव दोनों पक्षों के लिए उत्साहवर्धक और फलदायक रहा है तथा भारत की अध्यक्षता ने क्षेत्रीय और आपसी सहयोग को गहरा करने के उद्देश्य से संगठन में विभिन्न महत्वपूर्ण आयाम जोड़े हैं।
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*डॉ. अतहर ज़फ़र भारतीय वैश्विक परिषद में वरिष्ठ शोध अध्येता हैं, विचार व्यक्तिगत हैं|
व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
अंत टिप्पण
[1] भारत की एससीओ अध्यक्षता के दौरान, भारतीय वैश्विक परिषद ने दो महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को किया; रेजिडेंट स्कॉलर्स कार्यक्रम और दूसरा एससीओ पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का अयोजन था|
[1] Press Information Bureau, Government of India, “Prime Minister's Office, PM’s statement at SCO Summit in Astana, Kazakhstan,” 9 June 2017, https://www.pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=165542, accessed 20 December 2024,
[2] Ministry of External Affairs, Government of India, “Transcript of Special Briefing by Foreign Secretary on the 23rd Summit of the SCO Council of Heads of State,” 5 July 2023, https://www.mea.gov.in/virtual-meetings-detail.htm?36757/Transcript+of+Special+Briefing+by+Foreign+Secretary+on+the+23rd+Summit+of+the+SCO+Council+of+Heads+of+State, accessed 10 January 2024
[3] “English Translation of Prime Minister Shri Narendra Modi’s Remarks at the 23rd SCO Summit,” 4 July 2023, https://www.mea.gov.in/Speeches-Statements.htm?dtl/36750/English_Translation_of_Prime_Minister_Shri_Narendra_Modis_Remarks_at_the_23rd_SCO_Summit, accessed 10 January 2024