परिचय
अपनी विशिष्ट भौगोलिक स्थिति के कारण मध्य एशिया शताब्दियों से विश्व-राजनीति के केन्द्र में रहा है। ऐतिहासिक रूप से यह क्षेत्र ’रेशम व्यापार मार्गो’ से निकटता से जुडा हुआ था, जो युरोप एवं सुदूर पूर्व के मध्य लोगों, वस्तुओं और विचारों की आवाजाही के लिए एक सेतु के रूप में कार्य करता था।
वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् मध्य एशिया के पाँच देशों -कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान- को स्वतंत्रता मिली। पिछले तीस वर्षों से भी अधिक समय में मध्य एशियाई देशों ने राजनीतिक सुधारों, आधुनिकीकरण एवं आर्थिक विकास के विभिन्न स्तरों को छुआ है। वर्तमान में मध्य एशिया एक परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है।
मध्य एशिया न केवल भू-राजनीतिक दृष्टि से अपितु भू-आर्थिक दृष्टिकोण से भी वैश्विक रूप में एक अति महत्वपूर्ण क्षेत्र है। यह क्षेत्र विविध प्राकृतिक एवं उर्जा संसाधनों से समृद्ध है, जहाँ कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान में तेल, गैस और कोयले के महत्वपूर्ण भंडार है वहीं ताजिकिस्तान और किर्गिज गणराज्य में अविकसित जलविद्युत क्षमता की प्रचुरता है।
वैश्विक शक्तियों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस एवं युरोपीय संघ दूसरी तरफ भारत, चीन, तुर्की एवं ईरान जैसे क्षेत्रीय देशों के बढ़ते हितो ने मध्य एशिया की भू-सामरिक महत्ता को और अधिक बढ़ा दिया है।
जहाँ एक तरफ, मध्य एशिया के समृद्ध संसाधन, साझा ऐतिहासिक, धार्मिक एवं नृवंशीय विरासत एवं परिवहन संयोजकता, वैश्विक स्तर पर आर्थिक रूप से विभिन्न प्रकार के अवसरों की एक पूरी श्रृंखला प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी तरफ हाल ही में घटित विभिन्न भू-राजनितिक संघर्षो, जैसे रूस-युक्रेन संघर्ष, अफगानिस्तान में तालिबान का शासन, हमास-इजराइल युद्ध एवं लाल सागर संघर्ष ने क्षेत्र एवं उससे परे, भू-राजनीतिक परिदृश्य को बदलाव की ओर धकेल दिया है, जिसे बदलती विश्व व्यवस्था के रूप में देखा जा सकता है। इन संघर्षों एवं संकटों से उत्पन्न वित्तिय परिणामों, खाद्य असुरक्षा एवं आपूर्ति श्रृंखला में व्यवद्यान एवं साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावो ने मध्य एशिया क्षेत्र के लिए परस्पर संबधित अनेकों चुनौतियों को भी पैदा किया है।
इसी संदर्भ में, क्षेत्र के भू-राजनीतिक/भू-रणनीतिक एवं भू-आर्थिक महत्व को केन्द्र में रखते हुए यह विशेष प्रतिवदेन समकालीन मध्य एशिया में उभरती चुनौतियों एवं अवसरों का विश्लेषण करने का प्रयास करता है।
अनवरत रूस-युक्रेन संघर्ष एवं प्रभाव
मध्य एशियाई देश रूस के साथ ऐतिहासिक, आर्थिक एवं सैन्य संबंध साझा करते हैं, परन्तु स्वतंत्रता के पश्चात इन देशों ने रूस और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के मध्य अपने संबंधों को संतुलित करने का प्रयास किया है। बहु-पक्षीय (मल्टी-वेक्टर) विदेश नीति इस संतुलन का आधार बनी। बहु-पक्षीय विदेश नीति द्वारा पांचो मध्य एशियाई देशों ने रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखते हुए, क्षेत्र में अन्य प्रतिस्पर्धी शक्तियों- अमेरिका, युरोपीय संघ, भारत, चीन, ईरान एवं तुर्किये- के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करने की नीति अपनाई। परिणामस्वरूप मध्य एशियाई देशों ने अपनी विदेश नीति में स्वतंत्रता को बनाए रखने का प्रयास किया जिससे उन्हें अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में सहयोग प्राप्त हुआ।
हालांकि वर्ष 2022 में रूस-युक्रेन संघर्ष की शुरुआत ने मध्य एशियाई देशो के सम्मुख, आर्थिक एवं कूटनीतिक दोनो प्रकार की चुनौतियों को प्रस्तुत किया। मध्य एशियाई देशों के सम्मुख, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, मुद्रास्फीति में वृद्धि के साथ-साथ पश्चिमी देशों के द्वारा रूस पर लगाये गऐ आर्थिक प्रतिबंधों एवं रूस पर मध्य एशियाई देशों की आर्थिक निर्भरता के परिणामस्वरूप, कई प्रकार की आर्थिक चिंताओ को उत्पन्न किया है।
वर्तमान में जब रूस-युक्रेन संघर्ष अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर गया है, विशेषज्ञो की राय यह है कि मध्य एशियाई देशो पर संघर्ष का प्रतिकूल प्रभाव, विशेषतः आर्थिक एवं कूटनीतिक, अभी तक अपेक्षा से कम ही रहा है। विशेषज्ञों की राय यह भी है कि संघर्ष के बावजूद, रूस का मध्य एशिया पर आर्थिक एवं कूटनीतिक प्रभाव अनवरत रूप से जारी है[i]। जहाँ एक और रूस और मध्य एशिया के बीच व्यापार एवं प्रवासन बढ़ रहा है वहीं दूसरी तरफ मध्य एशियाई देशों में से किसी ने भी अभी तक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा लाए गये प्रस्तावों पर रूस के विरोध में मतदान नहीं किया है अपितु कुछ स्थितियों में वे या तो अनुपस्थित रहे या मतदान में भाग ही नहीं लिया। रूस और मध्य एशियाई देशों के नेताओं की विशेष आयोजनों पर हाल ही में की गई परस्पर यात्राएं भी रूस के मध्य एशिया क्षेत्र में प्रभुत्व की ओर संकेत करती है[ii]। साथ ही अनवरत जारी रूस-युक्रेन संघर्ष ने मध्य एशियाई देशों के सामने अनेकों अवसरों जैसे आर्थिक विविधिकरण एवं वैकल्पिक संयोजकता आदि को भी प्रस्तुत किया है।
अंतर-क्षेत्रीय हितों की गतिशीलता
मध्य एशिया की व्यापक भू-सामरिक महत्ता को देखते हुए क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियां इस क्षेत्र में अपने-अपने हितों का विस्तार करने का प्रयास करती रही है, जिसका प्रभाव समय समय पर मध्य एशिया की सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक प्रक्रिया में भी देखा जा सकता है। रूस-युक्रेन संघर्ष एवं काबुल पर तालिबान के शासन की पृष्ठभूमि में मध्य एशिया एक बार पुनः विश्व की भू-राजनीति के केंद्र में आ गया है जिसे पिछले दो वर्षों में मध्य एशियाई देशों के नेताओ द्वारा भारत, रूस, तुर्की, चीन, युरोपीय संघ, खाडी सहयोग परिषद्, अमेरिका, जर्मनी एवं युरोपीय परिषद् के अध्यक्ष के साथ शिखर सम्मेलन स्तर की उच्च स्तरीय बैठकों के रूप में देखा जा सकता है[iii]। बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य ने भी सभी देशों को मध्य एशिया क्षेत्र में अपनी-अपनी राजनीतिक, आर्थिक एवं सुरक्षा रणनीतियों का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए प्रेरित किया है।
जहाँ एक तरफ चीन मध्य एशिया केन्द्रित ’गो वेस्ट’ रणनीति द्वारा न केवल अपने पश्चिमी प्रांत, शिनज्यांग, जो कि एक मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है, में स्थिरता बनाए रखने का प्रयास करता है अपितु इस अपेक्षाकृत अविकिसित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में भी सुधार करना चाहता है[iv]। वही दूसरी तरफ विभिन्न स्थानीय ढांचागत परियोजना के नाम पर चीन ने अपनी बेल्ट एवं रोड इनिशिएटिव (BRI) द्वारा प्रचुर धन निवेश कर मध्य एशियाई देशों की चीन पर आर्थिक निर्भरता को बढ़ावा दिया है। मई 2023 में हुई चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन में लगभग 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की व्यापक वित्तिय सहायता[v] भी इसी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम हैं जो एक तरफ रूस के युक्रेन संघर्ष में व्यस्त होने के कारण पैदा हुए रिक्त स्थान को भरने की चेष्टा करता है साथ ही पश्चिमी देशों के संभावित बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश को दर्शाता है।
मध्य एशिया में तुर्की भी अपनी उपस्थिति को लगातार बढ़ा रहा है। हाल के वर्षों में, तुर्की ने अपने ’पैन तुर्कवाद’ नीति के तहत मध्य एशिया एवं काकेशस क्षेत्र में अपने भू-राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास किया है। तुर्क राज्यों के संगठन का 10वां शिखर सम्मेलन नवंबर 2023 में कजाकिस्तान की राजधानी अस्ताना में आयोजित किया गया जिसका मुख्य विषय ’तुर्क टाइम’ था[vi]। दीर्घकालिक योजना जैसे ’तुर्किक विश्व-2040’ एवं अल्पकालिक योजना जैसे ’तुर्क राज्यों के संगठन का रणनीति दस्तावेज-2022-26’, के साथ-साथ ’तुर्क टाइम’ नीति भी भविष्य में इस संगठन की एक महत्वपूर्ण योजना होगी[vii]। वर्ष 2021 मेें तुर्की की अध्यक्षता मेें संगठन का नाम ’तुर्क भाषी राज्यों की सहयोग परिषद’ से ’तुर्क राज्योे का संगठन’ किया गया एवं इस्ताम्बूल में नया मुख्यालय खोला गया[viii]। तुर्की की आकाक्षांए ’वृहत तुर्क विश्व’ का नेतृत्व करना और युरेशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाना है।
पिछले कुछ वर्षों में, ईरान ने भी मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधो को मजबूत किया है। एक तरफ ईरान मध्य एशियाई देशों के समक्ष समान जातीय-सांस्कृतिक एवं भाषायी तत्व जैसे फारसी एवं दूसरी तरफ वाणिज्यिक जैसे ऊर्जा क्षेत्र और व्यापार गलियारों द्वारा एक रसद (लौजिस्टिक) केन्द्र के रूप में अपने आप को प्रस्तुत करता है। जो इस क्षेत्र में ईरान के प्रभाव को बढ़ाने में सहायक है।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी ने पश्चिमी देशों के प्रभाव के रूप में एक शून्यता को पैदा किया जिसे पश्चिमी देश अति शीघ्र भरना चाहते थे। रूस युक्रेन संघर्ष ने पश्चिमी देशों को यह अवसर प्रदान किया और क्षेत्र में अपने हितो को नवीनीकृत करने के लिए भी प्रोत्साहित किया।
सितंबर 2023 में सभी पांच मध्य एशियाई देशो के राष्ट्राध्यक्षों एवं अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के मध्य हुए शिखर सम्मेलन को भी इसी संदर्भ में देखा जा सकता है[ix]। क्योकि यह अमेरिका और मध्य एशियाई देशों के बीच पहली शिखर-स्तरीय बैठक थी एवं यह पहली बार था की किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने मध्य एशियाई देशो के सभी नेताओं के साथ एक साथ मुलाकात की थी।
दूसरी ओर यूरोपीय संघ भी मध्य एशियाई देशो के साथ अपने संबधों और सहयोग को मजबूत करके रणनीतिक साझेदारी को सुरक्षित करने का प्रयास कर रहा है। जून 2023 में कजाकिस्तान में हुए दुसरी यूरोपीय संघ-मध्य एशिया बैठक के साथ ही सितंबर 2023 में जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज की पांचो मध्य एशियाई देशों के नेताओ के साथ मुलाकात तथा नंवबर 2023 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन एवं इटली के राष्ट्रपति सर्जियो मैटरेल्ला की विभिन्न मध्य एशियाई देशों में की गई यात्राएं क्षेत्र में फिर से जाग्रत पश्चिमी रूचि को रेखांकित करती है[x]।
मध्य एशिया में पश्चिमी देशों की महत्वपूर्ण भूमिका चीन और रूस दोनों के प्रभाव को संतुलित करने, अपने उर्जा स्त्रोतो में विविधता लाने और वैकल्पिक संयोजकता को बढ़ावा देनी की क्षमता में निहित है।
जहाँ तक भारत की बात है वहाँ विशेष तौर पर पिछले दस वर्षों में भारत एवं मध्य एशिया के संबंधो में नऐ आयाम जुडे है। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2015 में सभी पांच मध्य एशियाई देशों का दौरा इस दिशा में मील का पत्थर साबित हुआ है[xi]। भारत के लिए ’विस्तारित पड़ोस’ के रूप में एकीकृत एवं स्थिर मध्य एशिया बहुत ही महत्वपूर्ण है। जनवरी 2022 में भारत ने पहली बार भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन की मेजबानी की जिससें दोनो पक्षों के मध्य राजनीतिक समझ को और अधिक मजबूत करने में सहायता मिली। भारतीय विदेश मंत्री डा. एस जयंशंकर ने भारत और मध्य एशिया संबधो की रूपरेखा को 4C (वाणिज्य, क्षमता वृद्धि, कनेक्टिविटी एवं संपर्क) के माध्यम से परिभाषित किया[xii]।
इस प्रकार मध्य एशिया क्षेत्र में अंतर-क्षेत्रीय गतिशीलता को क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियों द्वारा अपने-अपने हितों की पूर्ति के लिए क्षेत्र के देशों के साथ संबंधो को मजबूत करने के रूप में देखा जा सकता है जो मध्य एशियाई देशो के समक्ष चुनौतियो के साथ-साथ विभिन्न अवसरों को भी प्रस्तुत करते हैं।
सुरक्षा संम्बन्धी चुनौतियाँ
अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बाद से ही मध्य एशिया विभिन्न सुरक्षा चुनौतियों के साथ एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक क्षेत्र के रूप में उभर रहा है। मध्य एशियाई देशों के लिए तालिबानी शासन, धार्मिक उग्रवाद, कट्टरवाद एवं आंतकवाद की चिंताओं को उत्पन्न करता है, क्योंकि अफगानिस्तान में सक्रिय होने में रूचि रखने वाले विभिन्न आंतकवादी समूहो के लिए यह क्षेत्र एक उर्वरक के रूप में प्रस्तुत होता है। जिसका प्रभाव आने वाले वर्षो में मध्य एशिया एवं इसके इत्तर भी देखा जा सकता है।
साथ ही पांचो मध्य एशियाई देशों ने हाल ही के वर्षो में राजनीतिक क्रांतियां, हिसंक श्रमिक अंशाति एवं सीमा युद्ध जैसी अनेक चुनौतियो का सामना किया है जो कि मध्य एशिया की सुरक्षा चिंताओ को और अधिक बढ़ावा देती है। जहां एक तरफ जनवरी 2022 में, कजाकिस्तान में बडे विरोध प्रदर्शन हुए जिसके कारण कजाकिस्तान राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायेव को सामुहिक सुरक्षा संधि संगठन (CSTO) के सैन्य हस्तक्षेप का अनुरोध करना पडा। इस हिंसा को कजाकिस्तान ने देश को अस्थिर करने के लिए ’विदेशी ताकतो का आंतकवादी हमला’ कहा था[xiii]।
वहीं दूसरी तरफ मई 2022 अशांत गोर्नो-बदाख्शां स्वायत्त क्षेत्र में सरकारी विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए क्योकि सुरक्षा बलों की प्रदर्शनकारियों से झडप हो गई जिसमें कम से कम नौ लोग मारे गए[xiv]। साथ ही जुलाई 2022 की शुरूआत में उज्बेकिस्तान की सरकार को संविधान में प्रस्तावित परिवर्तनों के खिलाफ स्वायत्तशासी काराकलपाकस्तान में आयोजित बडे विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पडा[xv]। सितम्बर 2022 में किर्गिस्तान और तजाकिस्तान दोनो की सेनाओ के मध्य संक्षिप्त लेकिन तीव्र सशस्त्र सीमा संघर्ष भी इस क्षेत्र में सुरक्षा संबंधी चुनौतियो को प्रस्तुत करता है जिसका प्रभाव ना केवल मध्य एशिया अपितु उससे परे क्षेत्र में भी हो सकता है[xvi]। इसलिए क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियों के लिए भी यह क्षेत्र एक प्रमुख सुरक्षा संबधी चुनौतियां प्रस्तुत करता है।
आर्थिक चुनौतियाँ एवं अवसर
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही मध्य एशियाई देश राज्य नियंत्रित अर्थव्वस्था से बाजार अर्थव्यवस्था की और अग्रसर हुए। इसी वजह से पिछले 30 वर्षो में मध्य एशियाई देशों ने आर्थिक विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। परन्तु पिछले कुछ वर्षों में, पहले महामारी एवं उसके पश्चात् बदलते भु-राजनीति परिदृश्य के कारण, मध्य एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थायों ने कई चुनौतियों जैसे वैश्विक मंदी, उच्च और अस्थिर खाद्य और उर्जा कीमतें, मुद्रास्फीति में वृद्धि एवं भू-राजनीतिक संघर्षों का अर्थव्यवस्था पर विपरीत प्रभाव, आदि का सामना किया है। यद्यपि रूस युक्रेन संघर्ष का प्रतिकूल प्रभाव मध्य एशिया पर अब तक अपेक्षाकृत कम ही रहा है।
मध्य एशिया की अर्थव्यवस्था भविष्य के लिए एक आशाजनक तस्वीर भी पेश करती है। वैश्विक सकल घरेलु उत्पाद (पीपीपी) में मध्य-एशिया की हिस्सेदारी वर्ष 2000 की तुलना में लगभग दो गुना बढ़ गई है[xvii]। वर्ष 2021 में मध्य एशिया का कुल सकल घरेलु उत्पाद 347 बिलियन डॉलर था[xviii]। पिछले दो दशकों में, मध्य एशिया के सकल घरेलु उत्पाद में सात गुना तक की वृद्धि देखी गई है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का संचय 211 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है[xix]। 2000 के बाद से विदेशी व्यापार भी लगभग छः गुना बढ गया है। जो कि 2021 में 165.5 बिलियन डॉलर तक पहँच गया है[xx]। मध्य एशियाई देशों के विदेशी व्यापार में एशियाई देशों की भूमिका भी उत्तरोत्तर बढती जा रही है। क्षेत्र मे रूस के व्यापार प्रतिस्पर्धियों की सूची में अब ना केवल चीन अपितु भारत, तुर्की, ईरान एवं दक्षिणी कोरिया भी शामिल हो गए है। यह भी महत्वपूर्ण है कि मध्य एशियाई देशों के मध्य उनके कुल व्यापार कारोबार में आपसी व्यापार की हिस्सेदारी भी लगातार बढ रही है जो 2021 के अंत तक 9.9 प्रतिशत तक पहुंच गई थी[xxi]। सामूहिक रूप से मध्य एशियाई देश संरचनात्मक विकास की चुनौतियों का अधिक बहेतर तरीके से सामना कर पाएगें।
मध्य एशिया क्षेत्र की बढ़ती जनसंख्या भी विशाल ब्रिक्री बाजार के रूप में एक अवसर प्रदान करती है। मध्य एशिया क्षेत्र की 77 मिलियन जनसंख्या प्रतिवर्ष लगभग 2 प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रही है[xxii]। मध्य एशिया के श्रमिक प्रवासियों ने भी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। हालांकि रूस-युक्रेन के शुरूआती दिनों में मध्य एशिया का प्रेषण गिर गया था परन्तु उसके बाद से इसमें उत्तरोत्तर वृद्धि देखी गई है। 2022 में रूस ने 3.5 मिलियन नए प्रवासी श्रमिको को पंजीकृत किया जिनमें से 90 प्रतिशत मध्य एशिया से आए थे[xxiii]। 2021 की तुलना में 2022 में किर्गिस्तान उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान में श्रमिको के प्रवासन से आने वाले धन में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई जिसमें उज्बेकिस्तान में 72 प्रतिशत एवं तजाकिस्तान में 40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई[xxiv]।
2023 की पहली छमाही में भी मध्य एशिया की अर्थव्यवस्थाओं में मजबूत वृद्धि देखी गई है, यह अंतराष्ट्रीय व्यापार और पर्यटन की बहाली, विशेषतः कोरोना महामारी के पश्चात्, के साथ-साथ रूस से उच्च स्तर के प्रवासन और प्रेषण के कारण संभव हुआ है। विश्व बैंक का भी अनुमान है कि 2024 और 2025 के वर्षो में मध्य एशिया की विकास दर औसतन 4.7 प्रतिशत रहेगी जिससे मुद्रास्फीति को कम करने में सहयोग मिलेगा[xxv]।
मध्य एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए सबसे बडी चुनौती उसका खनिज संसाधनों और प्रवासी प्रेषण से प्राप्त राजस्व पर अत्यधिक निर्भर होना है। हांलाकी, क्षेत्रीय सरकारें समय-समय पर सुधारों के माध्यम से आर्थिक विविधीकरण करने का प्रयास करते है परन्तु सुधारों का प्रभाव बहुत ही कम देखने को मिला है।
वैकल्पिक संयोजकता
व्यापार मार्गो के एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में मध्य एशिया सदियों से एक चौराहे के रूप में रहा है। प्राचीन रेशम मार्ग, जो पूर्व और पश्चिम के मध्य सांस्कृतिक, आर्थिक और वैचारिक आदान-प्रदान का एक ऐतिहासिक केन्द्र था, इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में मध्य एशिया, प्राचीन रेशम मार्ग के चौराहे के रूप में वैश्विक वाणिज्य में एक प्रमुख पारगमन क्षेत्र के रूप में अपनी ऐतिहासिक भुमिका को पुनः प्राप्त कर रहा है।
विशेष रूप से रूस युक्रेन संघर्ष और आपूर्ति श्रृंखलाओ एवं मार्गो पर इसके प्रभाव ने मध्य एशिया की महत्ता को एक चौराहे के रूप में पुनः रेखांकित किया है। क्षेत्र का बदलता भू-राजनीतिक परिदृश्य वैकल्पिक संयोजकता की प्रगति का अवसर प्रस्तुत करता है। क्षेत्र एवं इसके इत्तर, हाल की भू-राजनीतिक घटनाओं के संदर्भ में वैकल्पिक संयोजकता का विकास न केवल अन्य देशों अपितु स्वयं मध्य एशिया के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। क्योंकि सभी मध्य एशियाई देशों को भी समुद्री बंदरगाहो तक भूमि पहुँच की आवश्यकता है।
एक तरफ भारत और चीन का तेजी से आर्थिक विस्तार और दूसरी तरफ रुस-युक्रेन संघर्ष के कारण, यूरोपीय संघ और अमेरिका के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय शक्तियाँ भी वैकल्पिक संयोजकता की संभावनाओ को या तो तलाश रहे है अथवा उसका समर्थन करते हुए नजर आते हैं। ’मध्य गलियारा’ मध्य एशिया क्षेत्र में इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। हांलाकी, मध्य गलियारे के प्रत्येक हित धारक के पास गलियारे के विकास के लिए अपने-अपने हित और उद्देश्य है परन्तु क्षेत्र में घटित भू-राजनीतिक घटनाओं ने ’मध्य गलियारो’ के विकास को वैकल्पिक संयोजकता तथा वैश्विक वाणिज्य व्यापार के लिए अनिवार्य बना दिया है।
सितंबर 2023 में जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कोलज एवं पाचों मध्य एशियाई देशों के नेताओं के मध्य बर्लिन में हुए शिखर सम्मेलन के पश्चात् संयुक्त बयान में ’ग्लोबल गेटवे’ योजना के तहत ’मध्य गलियारे’ को विकसित करने ओर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए धन सुरक्षित करने की बात की गई[xxvi]। वहीं दूसरी तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन और मध्य एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ पहले शिखर सम्मेलन में ’मध्य गलियारे’ के विकास चर्चा की एवं इसमें अमेरिकी निवेश को बढ़ावा देने और विकास मे सहायता करने के लिए वैश्विक अवसंरचना और निवेश के लिए साझेदारी (PGII) के लिए जी 7 की साझेदारी का उपयोग करने का वादा किया[xxvii]। सितम्बर 2023 में ही मध्य एशिया के राष्ट्राध्यक्षों की 5वी सलाहकार बैठक में अजरबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव की सम्मानित अतिथि के रूप में भागीदारी भी ’मध्य गलियारे’ के लिए दक्षिणी काकेशस क्षेत्र की महत्ता को दर्शाता है[xxviii]। इसी के साथ मध्य एशियाई देश अनेक द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय एवं बहुपक्षीय, अंतर-क्षेत्रीय एवं क्षेत्रीय रेल एवं रोड संयोजकता की परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं जो आने वाले वर्षों में वैकल्पिक संयोजकता के दृष्टिकोण को सुदृढ़ करने का प्रयास करेगें।
क्षेत्रीय सहयोग की प्रक्रिया
स्वतंत्रता के पश्चात से ही मध्य एशियाई देशों ने अलग-अलग स्तर के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन देखें है। हांलाकि पिछले 30 वर्षों में मध्य एशिया में स्थिरता रही परन्तु फिर भी मध्य एशियाई देशो में सहयोग की सापेक्षिक कमी ने क्षेत्र की पूर्ण क्षमता की प्राप्ति को सदैव ही प्रभावित किया है। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में पाँचो देशों के मध्य बातचीत और सहयोग लगातार बढ़ रहा है।
विशेष तौर पर 2017 में उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव द्वारा प्रस्तावित वार्षिक ’परामर्श बैठक’, मध्य एशियाई देशों के मध्य सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में उभरी है[xxix]। इन वर्षों में, सलाहकार बैठकें एक प्रमुख कार्यक्रम बन गई है जो विभिन्न मध्य एशियाई देशों में सालाना आयोजित की जाती है। 2018 में कजाकिस्तान, 2019 में उज्बेकिस्तान, 2021 में तुर्कमेनिस्तान, 2022 में किर्गिस्तान एवं 2023 में तजाकिस्तान ने मेजबानी करके सभी पांचों देशों ने इन बैठकों का एक दौर पूरा कर लिया गया है[xxx]।
बेहतर द्विपक्षीय संबंधो और परामर्शदाती बैठकों के माध्यम से मध्य एशियाई नेता राजनीतिक, व्यापार, आर्थिक, सांस्कृतिक, मानवीय और अंतराष्ट्रीय मामलों में व्यापक क्षेत्रीय सहयोग बनाने का प्रयास कर रहे है। सलाहकारी बैठक विशेष रूप से मध्य एशियाई देशों के लिए चर्चा करने और क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने के तरीके खोजने के लिए एक मात्र क्षेत्रीय मंच है।
समकालीन मध्य एशिया परिवर्तन की प्रक्रिया में है और भू-राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। मध्य एशिया क्षेत्र में ये चुनौतियाँ परस्पर सम्बंधित है इसलिए इन चुनौतियों का सामना करने के लिए क्षेत्र को एक सामूहिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। मध्य एशिया में बहुपक्षीय और अंतराष्ट्रीय सहयोग की सम्भावनाएं भी सभी पाँच देशो के मध्य क्षेत्रीय सहयोग पर निर्भर करती है। इस संदर्भ में, ’सलाहकार बैठक’ मध्य एशियाई देशों की ’पांच तरफा’ सहयोग की रूपरेखा बनाने के उद्देश्य की इच्छाशक्ति को प्रदर्शित करती है। और अब जब की इन बैठकों का एक दौर पूरा हो गया है तब इन बैठकों को एक संस्थागत स्वरूप देना मध्य एशियाई देशों के लिए आने वाले वर्षों में बहुत ही महत्वपूर्ण होगा विशेष रूप से वैश्विक शक्तियों के साथ वार्तालाप में रणनीतिक शक्ति का प्रदर्शन करने में।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
सम्पूर्ण विश्व की तरह, जलवायु परिवर्तन मध्य एशिया के लिए भी 21वीं सदी की मुख्य चिंताओं में से एक है। मध्य एशियाई देश क्षेत्र की अर्ध-शुष्क से शुष्क जलवायु के कारण पहले से ही सूखे से ग्रस्त है। जलवायू परिवर्तन के प्रभावों को मध्य एशिया में बढ़ती पानी की कमी के रुप में व्यापक रूप से देखा जा सकता है और इसी कारण सिचिंत कृषि के लिए मध्य एशिया, सीर दरिया और अमु दरिया पर अत्यधिक निर्भर है। जैसा की अनुमान है कि 2050 तक सीर दरिया और अमु दरिया बेसिन में पानी की मात्रा में 10% से 15% तक की गिरावट हो सकती है जो मध्य एशियाई देशों के लिए बहुत बड़ी चितां का विषय है[xxxi]। पानी की कमी के कारण जनसंख्या का भी बहुत ही असमान वितरण हुआ है जिसकी अपनी चुनौतियाँ हैं, अधिकांश लोग दक्षिण-पूर्व में नदियों के उपजाऊ किनारों या उपजाऊ पहाडी तलहटी में रहते है और मध्य और पश्चिमी कजाकिस्तान, पश्चिमी उज्बेकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के विशाल शुष्क क्षेत्र में अपेक्षाकृत कम रहते हैं। इसलिए यह अनिवार्य हो गया है कि मध्य एशियाई देश क्षेत्र में पानी का स्थायी रूप से प्रबंधन करने के लिए मिलकर काम करें।
20वीं सदी की शुरुआत से ही ग्रीनहाउन गैस उत्सर्जन में वृद्धि के कारण मध्य एशिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियम बढ़ गया है जिसका पर्यावरण और क्षेत्र के देशों की अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट प्रभाव पड़ा है[xxxii]। बदलती जलवायु परिस्थितियों के परिणामस्वरूप पिछले 50-60 वर्षों में मध्य एशिया में ग्लेशियर सतह क्षेत्र में लगभग 30% की कमी आई है[xxxiii]। ग्लेशियर के पिघलने के साथ-साथ मौसम की तीव्र घटनाओ के कारण बाढ़ और भूस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाँए उत्पन्न हो गई है, जो मध्य एशियाई देशों के लिए एक गंभीर समस्या है।
अराल सागर संकट भी मध्य एशियाई देशों के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दा है जो कि पारिस्थितिकी तंत्र के पतन का एक उदाहरण माना जाता है। अराल सागर जो पूर्व में दुनिया की चौथी सबसे बडी झील थी, 1960 के दशक से सिकुडना शुरू हो गया था विशेषत जब इसे पानी देने वाली नदियों को सिचांई के लिए उपयोग में लाया जाने लगा। 1997, तक अराल मागर अपने मूल आकार से 10% तक सिकुड गया था और 2014 तक नासा से उपग्रह चित्रों से पता चला कि अराल सागर का पूर्वी बेसिन पुरी तरह से सूख गया था[xxxiv]।
जलवायु परिवर्तन मध्य एशिया के देशों के आर्थिक विकास में भी बाधा डालने वाले कारकों में से एक है। मध्य एशिया क्षेत्र जल प्रदूषण और उसके साथ ही अन्य पर्यावरणीय मुद्दों से जूझ रहा है, जिसमे मुख्य रूप से तेजी से औद्योगिकीकरण, रेडियोधर्मी संदूषण और अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियों के कारण मिट्टी संदूषण आदि है। अतः यह आवश्यक है कि मध्य एशियाई देशों को परस्पर सहयोग करके इन चुनौतियो से पार पाने की कोशिश करनी होगी जो कि विश्व स्तर पर स्तत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मदद करेगा।
निष्कर्ष
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के कारण उत्पन्न हुई विभिन्न चुनौतियों से निपटने के लिए मध्य एशिया के लिए व्यापक क्षेत्रीय और अंतराष्ट्रीय साझेदारी और सहयोग एक महत्वपूर्ण कारक है। रूस युक्रेन संघर्ष ने मध्य एशिया के सामने जहाँ राजनीतिक एवं कूटनीतिक चिंताओं को प्रस्तुत किया है वही क्षेत्र के देशों के लिए यह अवसर भी प्रदान किया है कि किसी एक देश पर आर्थिक, राजनीतिक एवं सुरक्षा की दृष्टि से निर्भर होने से बचे इसलिए पिछले दो वर्षों में मध्य एशियाई देशों द्वारा क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियों के मध्य संतुलन बना कर रखने का प्रयास भी किया गया हैे।
आंतरिक एवं बाह्य सुरक्षा चुनौतियों और आर्थिक विकास के लिए क्षेत्रीय सहयोग एवं एकीकरण एक बेहतरीन उपक्रम है जो मध्य एशियाई देशों के समक्ष सामूहिक रूप से चुनौतियों से निपटने का अवसर प्रदान करता है। इस संदर्भ में सलाहकार बैठकों का संस्थागतकरण एवं संगठानात्मक रूप देना भी क्षेत्र एवं उससे परे सहयोग के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा।
विश्व के महत्वपूर्ण व्यापार मार्गों पर जारी संघर्ष के कारण वैकल्पिक संयोजकता एक वास्तविकता बन कर उभरी है एवं सभी क्षेत्रीय एवं वैश्विक शक्तियाँ इस दिशा में अपने-अपने स्तर पर पहल कर रहीं है। इस संदर्भ में मध्य एशिया की भौगोलिक एवं सामरिक स्थिति सभी के लिए एक महत्वपूर्ण विकल्प प्रदान करती है एवं साथ ही मध्य एशियाई देशों के लिए भी विभिन्न अवसरों को उत्पन्न करती है।
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*डॉ. पुनीत गौड भारतीय वैश्विक परिषद में शोध-अध्येता हैं।
लेखक द्वारा व्यक्त किये गये विचार व्यक्तिगत हैं।
अंत टिप्पण
[i] Congressional Research Service (2023), “Central Asia: Implications of Russia’s War in Ukraine”, June 9, 2023, https://sgp.fas.org/crs/row/R47591.pdf. Accessed February 22, 2024.
[ii] Punit Gaur (2023), “Renewed Western Interest in Central Asia”, Indian Council of World Affairs, January 25, 2024, /show_content.php?lang=1&level=3&ls_id=10438&lid=6660. Accessed February 25, 2024.
[iii] Ibid
[iv] Tukmadiyeva, M. (2013). Xinjiang in China’s Foreign Policy toward Central Asia. Connections, 12(3), 87–108. http://www.jstor.org/stable/26326333. Accessed February 27, 2024.
[v] Andrew Hayley (2023), “China's Xi unveils grand development plan for Central Asia”, Reuters, May 19, 2023, https://www.reuters.com/world/asia-pacific/chinas-xi-calls-stable-secure-central-asia-2023-05-19/. Accessed February 25, 2024.
[vi] Necati Demircan (2023), “The Role of Turks in the New World Order: Summit of the Organization of Turkic States and Turk Time”, Modern Diplomacy, November 24, 2023, https://moderndiplomacy.eu/2023/11/24/the-role-of-turks-in-the-new-world-order-summit-of-the-organization-of-turkic-states-and-turk-time/. Accessed February 28, 2024.
[vii] Ibid
[viii] Middle East Monitor (2021), “Organisation of Turkic States ready to establish ties with all nations”, December 3, 2021, https://www.middleeastmonitor.com/20211203-organisation-of-turkic-states-ready-to-establish-ties-with-all-nations/. Accessed February 25, 2024.
[ix] The White House (2023), “Remarks by President Biden After Central Asia 5 + 1 Meeting”, September 19, 2023, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/speeches-remarks/2023/09/19/remarks-by-president-biden-after-central-asia-5-1-meeting/. Accessed March 4, 2024.
[x] Punit Gaur (2023), “Renewed Western Interest in Central Asia”, Indian Council of World Affairs, January 25, 2024, /show_content.php?lang=1&level=3&ls_id=10438&lid=6660. Accessed March 5, 2024.
[xi] Punit Gaur (2023), Changing Connectivity Dynamics in Central Asia And India’s Growing Engagement”, Sapru House Paper, Indian Council of World Affairs, /pdfs/SHPChangingConnectivityDynamicsWeb.pdf. Accessed March 7, 2024.
[xii]Ibid
[xiii] Yelnur Alimova (2023), “The Fire Could Be Ignited At Any Point': Kazakhstan's 'Bloody January' Through The Eyes Of Those Who Covered It”, RadioFreeEurope RadioLiberty, January 10, 2023, https://www.rferl.org/a/kazakhstan-january-cheryl-reed-journalists/32217364.html. Accessed March 5, 2024.
[xiv] Al Jazeera (2022), “Nine killed in clashes in Tajikistan’s restive eastern region”, May 18, 2022, https://www.aljazeera.com/news/2022/5/18/nine-dead-24-wounded-in-clashes-in-restive-tajikistan-region#:~:text=Tajikistan's%20interior%20ministry%20says%2070,deadly%20clashes%20in%20Gorno%2DBadakhshan. Accessed March 8, 2024.
[xv] Catherine Putz (2022), “Unrest in Central Asia: The Trouble in Karakalpakstan”, The Diplomat, July 06, 2022, https://thediplomat.com/2022/07/unrest-in-central-asia-the-trouble-in-karakalpakstan/. Accessed February 28, 2024.
[xvi] Reuters (2022), “Two reported killed in clashes between Kyrgyz and Tajik border guards”, September 14, 2022, https://www.reuters.com/world/asia-pacific/world/fresh-clash-erupts-between-kyrgyz-tajik-border-guards-2022-09-14/. Accessed March 12, 2024.
[xvii] Eurasian Development Bank (2022), “The Economy of Central Asia: A Fresh Perspective”, https://eabr.org/en/analytics/special-reports/. Accessed March 11, 2024.
[xviii] Ibid
[xix] Ibid
[xx] Ibid
[xxi] Ibid
[xxii] Ibid
[xxiii] Samantha Fanger (2023), “Central Asian Economies Forge Ahead with Strong Growth Despite Geopolitical Challenges”, Caspian Policy Centre, October 13, 2023 https://www.caspianpolicy.org/research/economy/central-asian-economies-forge-ahead-with-strong-growth-despite-geopolitical-challenges. Accessed March 18, 2024.
[xxiv] Ibid
[xxv] World Bank Group (2023), “Europe and Central Asia Economic Update”, https://www.worldbank.org/en/region/eca/publication/europe-and-central-asia-economic-update#:~:text=Central%20Asia%3A%20Growth%20in%20Central,and%202025%2C%20assuming%20inflation%20moderates. Accessed March 15, 2024.
[xxvi] Punit Gaur (2023), “Significance of the Middle Corridor in Changing Geopolitical Landscape”, Indian Council of World Affairs, November 14, 2023, /show_content.php?lang=1&level=3&ls_id=10186&lid=6497. Accessed March 2, 2024.
[xxvii] Ibid
[xxviii] Ibid
[xxix] Punit Gaur (2022), “A Perspective on Fourth Consultative Meeting in Central Asia”, Indian Council of World Affairs, September 9, 2022, /show_content.php?lang=1&level=3&ls_id=7888&lid=5267. Accessed March 5, 2024.
[xxx] Ibid
[xxxi] M Khamidov et al (2023), “Water scarcity under global climate change: Ways of addressing water scarcity in the Amu Darya lower reaches”, IOP Conf. Ser.: Earth Environ. Sci. 1138 012008, https://iopscience.iop.org/article/10.1088/1755-1315/1138/1/012008/pdf. Accessed March 15, 2024.
[xxxii] Haag, I.; Jones, P.D.; Samimi, C. Central Asia’s Changing Climate: How Temperature and Precipitation Have Changed across Time, Space, and Altitude. Climate 2019, 7, 123. https://doi.org/10.3390/cli7100123. Accessed February 25, 2024.
[xxxiii] Asian Development Bank (2022), “By the Numbers: Climate Change in Central Asia”, November 23, 2022, https://www.adb.org/news/features/numbers-climate-change-central-asia. Accessed March 12, 2024.
[xxxiv] Nasa Earth Observatory, “World of Change: Shrinking Aral Sea”, https://earthobservatory.nasa.gov/world-of-change/AralSea. Accessed March 11, 2024.