कई लोग सीमाओं से परे शरण एवं अवसर की तलाश में खतरनाक समुद्री यात्रा पर जाते हैं। ऐसा भूमध्यसागरीय प्रवास गलियारों में सबसे अधिक होता है। उदाहरण के लिए, अंतर्राष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) के हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि इस वर्ष यूरोप पहुंचे 42,606 शरणार्थियों एवं प्रवासियों में से 41,076 ने भूमध्य सागर का रास्ता अपनाया, जिसमें इटली, ग्रीस एवं स्पेन मुख्य गंतव्य थे। इनमें से ज्यादातर प्रवासी माली, सेनेगल और बांग्लादेश से थे।[i]
समुद्री प्रवासियों एवं शरणार्थियों की सुरक्षा अलग-अलग अंतरराष्ट्रीय कानूनों पर निर्भर होती है, जिसका उद्देश्य उनकी सुरक्षा एवं कल्याण करना होता है। समुद्री अभियानों में शामिल पक्षों (राष्ट्र और गैर-राष्ट्रीय पक्ष दोनों) को इन कानूनी दायित्वों को निभाते रहने एवं संकट में फंसे लोगों को मानवीय उपचार प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। हालाँकि, ऐसे कानूनी ढांचे के होने के बावजूद, उनके कार्यान्वयन में प्रायः अंतराल पाया जाता है, जिससे ऐसे कई मामले सामने आते हैं जहां ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों की अनदेखी की जाती है। सितंबर 2023 में, ट्यूनीशियाई नेशनल गार्ड ने बच्चों सहित विभिन्न अफ्रीकी देशों के 100 से अधिक प्रवासियों और शरणार्थियों को अल्जीरिया की सीमा पर निष्कासित कर दिया। जहाज को समुद्र में रोकने के बाद अल्जीरियाई तट रक्षक ने उन्हें वापस ट्यूनीशिया भेज दिया।[ii] ऐसी घटनाएं समुद्री प्रवास में मौजूदा कानूनी सुरक्षा उपायों को मजबूत करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती हैं, क्योंकि इससे ऐसे कार्यों से जुड़ी जटिलताएं और मानवाधिकारों के उल्लंघन की बात सामने आती है।
यह शोध-पत्र समुद्र में प्रवासियों एवं शरणार्थियों की सुरक्षा से संबंधित कानूनी ढांचे पर प्रकाश डालता है, जिसमें संबंधित पक्षों की भूमिकाओं, जिम्मेदारियों एवं परिचालन संबंधी विचारों का विवरण भी दिया गया है। व्यापक विश्लेषण के माध्यम से, यह अध्ययन समुद्री आवाजाही की बहुमुखी चुनौतियों के बीच समुद्री प्रवासियों एवं शरणार्थियों के अधिकारों तथा सम्मान को बनाए रखने संबंधी प्रावधानों पर प्रकाश डालता है। यह शोध दुनिया के महासागरों में यात्रा करने वाली कमजोर आबादी की सुरक्षा आवश्यकताओं को संबोधित करने में आने वाली जटिलताओं और सामूहिक कार्रवाई के दायित्व को समझने का एक प्रयास है।
प्रवासियों और शरणार्थियों के लिए समुद्र के माध्यम से आवाजाही की गतिशीलता और चुनौतियों को समझना
समुद्र के माध्यम से आवाजाही एक महत्वपूर्ण घटना है। समुद्री प्रवास को पहचानने के लिए कुछ प्रमुख शब्दों को समझना महत्वपूर्ण है। "प्रवासी" उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो विभिन्न कारणों से घरेलू या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने सामान्य निवास से अस्थायी या स्थायी रूप से कहीं और जाते हैं। इस श्रेणी में, हालांकि अंतरराष्ट्रीय कानून में इसकी कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है, लेकिन इसमें प्रवासी श्रमिक एवं अंतरराष्ट्रीय छात्र भी शामिल हैं।[iii] 1951 शरणार्थी कन्वेंशन में "शरणार्थियों" को ऐसे लोगों के रूप में परिभाषित किया गया है जो जाति, धर्म या राजनीतिक विचार जैसे कारकों के आधार पर उत्पीड़न के डर से अपने मूल देश से भाग जाते हैं और वापस लौटने में असमर्थ हैं या लौटना ही नहीं चाहते।[iv]
समुद्री प्रवासी एवं शरणार्थियों की पृष्ठभूमि अलग-अलग होती है, जिनमें युद्ध की वजह से भागने वाले, बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश वाले और पर्यावरणीय संकटों का सामना करने वाले लोग भी शामिल हैं। वे अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में सुरक्षा एवं अवसर की तलाश के लिए जहाजों द्वारा यात्रा करते हैं।
अलग-अलग पृष्ठभूमि और विशिष्ट जरुरतों के बावजूद, समुद्री प्रवासी एवं शरणार्थियों को जोखिमों और अनिश्चितताओं से भरी खतरनाक यात्रा का समाना करना होता है। जहाज पर सवार लोगों को अपनी यात्रा के हर चरण में गंभीर खतरों का सामना करना पड़ता है। वे समुद्र में न चलने लायक जहाज़ों का उपयोग करते हैं, आपूर्ति अपर्याप्त होते हुए भी यात्रा करते हैं और तस्करों द्वारा शोषण व दुर्व्यवहार का शिकार होते हैं। साथ ही समुद्र में डूबने का खतरा भी लगातार बना रहता है। अनुमान है कि 2014 के बाद से भूमध्य सागर में कम से कम 25,313 लोग मारे गए हैं।[v]
इन खतरों के बावजूद, समुद्री प्रवास को लेकर आकर्षण बना हुआ है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) एवं अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2022 में अल्जीरिया, लीबिया और ट्यूनीशिया से यूरोप तक मध्य भूमध्य सागर को पार करने हेतु प्रवासियों और शरणार्थियों द्वारा लगभग 144,200 प्रयास किए गए थे। यह आंकड़ा 2021 में दर्ज किए गए आंकड़ों की तुलना में 33% की वृद्धि दर्शाता है और दिखाता है कि 2017 के बाद से ऐसे प्रयासों की संख्या सबसे अधिक संख्या है।[vi]
इस वास्तविकता को समझते हुए, समुद्र में ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा करने के उद्देश्य से अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचे मौजूद हैं। ये कानून राज्यों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं मानवीय एजेंसियों सहित विभिन्न पक्षों को समुद्र में संकट में फंसे लोगों के लिए हस्तक्षेप करने और सहायता प्रदान करने का प्रावधान करते हैं।
समुद्र में लोगों के लिए उपलब्ध कानूनी सुरक्षा
समुद्र में प्रवासियों एवं शरणार्थियों की सुरक्षा अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों, समुद्री कानूनों व मानवीय कानून की जटिल परस्पर क्रिया पर आधारित होती है। इन कानूनी ढांचे का उद्देश्य शरण एवं अवसर की तलाश में खतरनाक समुद्री यात्रा करने वाले लोगों की सुरक्षा और सम्मान दोनों सुनिश्चित करना है।
उनकी कानूनी सुरक्षा के मूल आधार मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) और अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार अनुबंध (आईसीसीपीआर) जैसे अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून हैं।[vii] सभी प्रवासी श्रमिकों तथा उनके परिवारों के सदस्यों के अधिकारों की सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन किसी भी देशों द्वारा सामूहिक निष्कासन पर रोक लगाता है, इस बात पर बल देता है कि निष्कासन के हर मामले की जांच की जाएगी और अलग-अलग आधार पर निर्णय लिया जाएगा।[viii]
1951 शरणार्थी कन्वेंशन और इसके 1967 प्रोटोकॉल सहित अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून, विशेष रूप से शरणार्थियों को अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते हैं।[ix] ये कानूनी माध्यम शरणार्थियों से संबंधित देशों के अधिकारों एवं दायित्वों को तय करते हैं, जिसमें गैर-वापसी का सिद्धांत भी शामिल है, जो देशों को शरणार्थियों को उन क्षेत्रों में लौटने से रोकता है जहां उनका जीवन या स्वतंत्रता खतरे में हो।[x] इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून शरणार्थियों को कानूनी सेवाओं तक पहुंच सहित मानवीय सहायता एवं सुरक्षा के प्रावधान को अनिवार्य बनाता है।[xi] ये कानून संभावित नुकसान को रोकने हेतु शरणार्थियों के संबंध में व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा को अनिवार्य करते हैं।[xii]
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून समुद्र में फंसे लोगों को सहायता देने हेतु पोत मालिकों के लिए कुछ दायित्व निर्धारित करते हैं। द इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर द सेफ्टी ऑफ लाइफ एट सी (एसओएलएएस) जहाज मालिकों को संकट में फंसे व्यक्तियों की सहायता करने का आदेश देता है, भले ही उनकी राष्ट्रीयता, स्थिति या वे जिस भी परिस्थिति में हों।[xiii] यूएनसीएलओएस को यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि जहाज की ध्वज स्थिति दर्शाए कि वह "किस स्थिति तक जहाज, चालक दल या यात्रियों को गंभीर खतरे के बिना उनकी सहायता कर सकता है।"[xiv] द इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन मैरीनटाइम सर्च एंड रेस्क्यू (एसएआर) में देशों को एसएआर संचालन के लिए एसएआर क्षेत्र स्थापित करने की आवश्यकता होती है।[xv]
भूमि, समुद्र एवं वायु मार्ग[xvi] द्वारा प्रवासियों की तस्करी के खिलाफ प्रोटोकॉल, यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम (यूएनटीओसी) का एक अभिन्न अंग, विशेष रूप से प्रवासी तस्करी के आपराधिक पहलू से संबंधित है। यह प्रोटोकॉल देशों को महिलाओं व बच्चों की जरूरतों पर विशेष ध्यान देते हुए तस्करी के जरिए लाए गए प्रवासियों की सुरक्षा और हिंसा के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने के लिए उचित उपाय करने हेतु बाध्य करता है।[xvii] सबसे खास बात यह है कि, इसमें माना गया है कि शरणार्थी सीमा पार करने के लिए तस्करी का सहारा ले सकते हैं[xviii] और इस बात पर जोर देता है कि ऐसे चैनलों के माध्यम से शरण मांगने पर व्यक्तियों को दंडित नहीं किया जाना चाहिए।[xix] ये प्रावधान 1951 शरणार्थी कन्वेंशन और इसके प्रोटोकॉल के सिद्धांतों के अनुरूप हैं, विशेष रूप से गैर-वापसी के सिद्धांत के संबंध में, जो शरण चाहने वालों और शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करता है।
कुल मिलाकर, इन कानूनी ढाँचों के कार्यान्वयन एवं लागू करने हेतु राष्ट्रों, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और मानवीय एजेंसियों सहित विभिन्न पक्षों के सहयोग और साथ की आवश्यकता होती है। देश अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर आने वाले समुद्री प्रवासियों और शरणार्थियों के अधिकारों एवं कल्याण को बनाए रखने में प्राथमिक जिम्मेदारी निभाते हैं, जबकि नागरिक समाज संगठन खोज एवं बचाव अभियान, मानवीय सहायता और सुरक्षा सेवाओं सहित समर्थन और सहायता प्रदान करते हैं।
समुद्र में संकटग्रस्त व्यक्तियों को कौन सी संस्थाएँ सहायता प्रदान करती हैं?
देश, जहाजों के ध्वजवाहक देश एवं तटीय राज्य दोनों के रूप में, समुद्र में संकट में फंसे व्यक्तियों की सुरक्षा और कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समुद्री, शरणार्थी एवं मानवाधिकार कानून के तहत अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप, ध्वजवाहक राज्यों को प्रशासनिक, तकनीकी और सामाजिक मामलों में अपने झंडे फहराने वाले जहाजों पर अधिकार क्षेत्र एवं नियंत्रण रखना आवश्यक होती है।[xx] तटीय राज्य प्रभावी खोज एवं बचाव सेवाओं की स्थापना, संचालन और रखरखाव को बढ़ावा देने के लिए बाध्य हैं।[xxi] इन राज्यों को अपने-अपने जिम्मेदारी वाले क्षेत्रों में संकट के दौरान संचार एवं समन्वय हेतु आवश्यक व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।[xxii] राज्यों को समुद्र में संकट में फंसे किसी भी व्यक्ति को सहायता प्रदान करना और उनकी प्रारंभिक चिकित्सा या अन्य ज़रूरतें पूरी करना, उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना आवश्यक है, चाहे उनकी राष्ट्रीयता या स्थिति कुछ भी हो।[xxiii] दिसंबर 2023 को, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भारतीय अधिकारियों ने 142 रोहिंग्या शरणार्थियों को बचाया, जिनकी नाव को शहीद द्वीप के पास रोक लिया गया था। 47 महिलाओं और 59 नाबालिगों सहित ये शरणार्थी इंडोनेशिया जाने के लिए बांग्लादेश से निकले थे। नाव में तकनीकी समस्या आने के बाद, इसे शहीद द्वीप तक खींच लिया गया और शरणार्थियों को स्थानीय अधिकारियों द्वारा अस्थायी आश्रय एवं देखभाल के लिए पोर्ट ब्लेयर ले जाया गया।[xxiv]
जहाजों के प्रतिनिधि के रूप में शिपमास्टर, समुद्र में संकटग्रस्त व्यक्तियों की सहायता करने में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाते हैं। शिपमास्टरों को समुद्र में खो जाने के खतरे वाले किसी भी व्यक्ति की सहायता करने और सहायता की आवश्यकता की जानकारी मिलने पर संकट में फंसे व्यक्तियों के बचाव के लिए हर संभव प्रयास करने का आदेश दिया गया है।[xxv] 2001 के एमवी टाम्पा मामले में, जहां एक नॉर्वेजियन मालवाहक जहाज ने हिंद महासागर में डूबती नाव से सैकड़ों शरणार्थियों को बचाया था, जहाज के कप्तान, चालक दल एवं मालिक ने उल्लेखनीय साहस और समर्पण के साथ अपना कर्तव्य निभाया, जिससे उन्हें यूएनएचसीआर से प्रतिष्ठित नानसेन शरणार्थी का पुरस्कार मिला।[xxvi] इस घटना से समुद्र में जीवन की सुरक्षा पर चर्चा में महत्वपूर्ण बदलाव आया।
समुद्र में लोगों की सहायता के लिए परिचालन संबंधी विचार
पहले से ही संकट में फंसे व्यक्तियों की सुरक्षा और कल्याण के लिए परिचालन संबंधी विचार महत्वपूर्ण हैं। इस संबंध में तीन प्रमुख परिचालन पहलू महत्वपूर्ण हैं: खोज एवं बचाव अभियान, सुरक्षित स्थान पर उतरना और जरूरतों एवं प्रतिक्रियाओं की पहचान करना।
समुद्री संकटपूर्ण स्थितियों का जवाब देने हेतु खोज एवं बचाव (एसएआर) अभियान सबसे अहम हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत, देश प्रभावी एसएआर सेवाओं की स्थापना, संचालन एवं रखरखाव में सहयोग करने हेतु बाध्य हैं।[xxvii] एसएआर कन्वेंशन के अंतर्गत तय किए गए दिशानिर्देश समुद्र में बचाए गए व्यक्तियों के उपचार और सहायता के प्रावधान से संबंधित जिम्मेदारियों को रेखांकित करते हैं। इनमें सुरक्षित स्थान तक पहुंचना शामिल है जहां जीवित बचे लोगों की सुरक्षा को कोई खतरा न हो, बुनियादी ज़रूरतें पूरी हो, और उनके अगले गंतव्य के लिए परिवहन व्यवस्था की जा सकती है। जबकि किसी सहायक जहाज पर अस्थायी रूप से सुरक्षा देने के लिए उन्हें रखा जा सकता है, लेकिन वैकल्पिक व्यवस्था उपलब्ध होते ही ऐसे जहाज को हटा दिया जाना चाहिए।[xxviii]
समुद्री कानून उस देश को सुरक्षा पहुंचाने की आवश्यकता वाले स्थान पर उतरने की प्राथमिक जिम्मेदारी देता है जिसके एसएआर क्षेत्र में बचाव कार्य होता है। हालाँकि, चुनौतियाँ तब पैदा होती हैं जब जिम्मेदारी पर आम सहमति नहीं होती है, विशेष रूप से ऐसे शरण चाहने वालों और शरणार्थियों के संबंध में जिन्हें उनके मूल देश में वापस नहीं लौटाया जा सकता है। ऐसे मामलों में, बचाए गए व्यक्तियों के लिए उचित उपचार एवं सहायता हेतु संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) के साथ समन्वय आवश्यक है। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत "सुरक्षा का स्थान" वह स्थान है जहां बचे लोगों की सुरक्षा एवं भलाई सुनिश्चित हो और जहां उन्हें भोजन, आश्रय एवं चिकित्सा देखभाल सहित उनकी मूल मानवीय आवश्यकताएं प्रदान की जा सकती हैं। यह ऐसा बिंदु भी होता है जहां से जीवित बचे लोगों की आगे या अंतिम यात्रा की व्यवस्था की जा सकती है।[xxix] 2001 में, नॉर्वेजियन ध्वज फहराने वाले मालवाहक जहाज एमवी टाम्पा ने हिंद महासागर में डूबती नाव से 400 से अधिक शरणार्थियों को बचाया। शुरुआत में इंडोनेशिया की ओर जा रहे जहाज ने बचाए गए व्यक्तियों के अनुरोध पर अपना रास्ता क्रिसमस द्वीप की ओर मोड़ लिया।[xxx] इसके बाद, ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने क्षेत्रीय जल में प्रवेश की अनुमति देने से इनकार कर दिया, लेकिन जहाज मालिक ऑस्ट्रेलियाई जल में प्रवेश कर गया, जिसके परिणामस्वरूप जहाज को जब्त कर लिया गया।[xxxi] सात दिनों के गतिरोध के बाद, बचाए गए व्यक्तियों को "पैसिफिक सॉल्यूशन"[xxxii] के तहत पापुआ न्यू गिनी ले जाया गया, जो एक विवादास्पद ऑस्ट्रेलियाई नीति थी जिसमें शरण चाहने वाले लोगों को प्रशांत द्वीप देशों में अपतटीय प्रोसेसिंग सेंटर में स्थानांतरित करना शामिल था। इस घटना ने बड़े पैमाने पर बचाव एवं अनिच्छुक देशों से जुड़े मामलों पर तत्कालीन मौजूदा कानूनों की खामियों को रेखांकित किया। नतीजतन, आईएमओ ने सुधारों की शुरुआत की, एसएआर कन्वेंशन एवं एसओएलएएस कन्वेंशन में संशोधन किया और ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए समुद्र में बचाए गए व्यक्तियों के उपचार पर दिशानिर्देशों को अपनाया, जिससे तटीय राज्यों के लिए सुरक्षा का स्थान उपलब्ध कराने से इनकार करना मुश्किल हो गया।[xxxiii] नियत समय में सुरक्षा का स्थान उपलब्ध कराने से इनकार करके, राज्य सीमा एवं प्रवासन नियंत्रण के उद्देश्य से एसएआर नियमों का दुरुपयोग कर रहे हैं।
बचाए गए व्यक्तियों की ज़रूरतों की पहचान करना और उचित प्रतिक्रिया करना मानवीय सहायता के महत्वपूर्ण घटक हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून और मानवाधिकार कानून में प्रारंभिक चिकित्सा और अन्य आवश्यक जरूरतों, शरण मांगने का अधिकार एवं उत्पीड़न या मृत्यु से सुरक्षा का प्रावधान हैं। पहचान में कमजोरियों की स्क्रीनिंग शामिल है, जबकि प्रतिक्रियाओं में तत्काल सहायता एवं सरकारी एजेंसियों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों तथा सिविल सोसाइटी संगठनों (सीएसओ) द्वारा प्रदान की जाने वाली विशेष सेवाओं का रेफरल शामिल है। कानूनी ढाँचे होने के बावजूद, समुद्र में बचाए गए व्यक्तियों की अलग-अलग आवश्यकताओं, प्रोफाइलों एवं अधिकारों के साथ-साथ कई विशिष्ट एजेंसियों और सीएसओ के शामिल होने के कारण चुनौतियाँ बनी रहती हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए दुनिया भर के महासागरों में यात्रा करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए सभी पक्षों के बीच निरंतर सहयोग एवं समन्वय की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, समुद्री प्रवासियों एवं शरणार्थियों की सुरक्षा का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय कानूनों एवं समझौतों के जटिल जाल द्वारा प्रशासित एक बहुआयामी मुद्दा है। समुद्री प्रवास से जुड़े खतरों और चुनौतियों के बावजूद, लोग सुरक्षा एवं अवसर की तलाश में ऐसी खतरनाक यात्राएं करते ही हैं। हालांकि, समुद्र में लोगों के अधिकारों और कल्याण की रक्षा हेतु अंतरराष्ट्रीय कानूनी ढांचे बने हुए हैं, लेकिन उनके सही तरीके से कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों तथा एजेंसियों के बीच सहयोग की आवश्यकता है। समुद्र में संकटग्रस्त व्यक्तियों की सुरक्षा और कल्याण में खोज एवं बचाव अभियान, सुरक्षित स्थान पर उतारना और उनकी जरूरतों एवं प्रतिक्रियाओं की पहचान सहित परिचालन संबंधी विचार महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि, बचाए गए व्यक्तियों की आवश्यकताएं और प्रोफाइल अलग-अलग होती हैं और कई विशिष्ट एजेंसियों और नागरिक समाज संगठनों की भागीदारी की भी आवश्यकता होती है, इस कारण प्रभावी सुरक्षा सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। एकजुटता एवं मानवीय गरिमा के सम्मान पर आधारित भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण अपनाने से हम सुरक्षा और सद्भाव के साथ समुद्री प्रवास की जटिलताओं से निपट सकेंगे।
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*नित्यकल्याणि नारायणं. वी, भारतीय वैश्विक परिषद, नई दिल्ली में शोध प्रशिक्षु हैं।
अस्वीकरण : यहां व्यक्त किए गए विचार निजी हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
अंत टिप्पण
[i] Migration Flow to Europe: Arrivals. (n.d.). International Organisation for Migration. Retrieved April 19, 2024, from https://dtm.iom.int/europe/arrivals.
[ii] Tunisia: African Migrants Intercepted at Sea, Expelled. (2023, October 10). Human Rights Watch. https://www.hrw.org/news/2023/10/10/tunisia-african-migrants-intercepted-sea-expelled.
[iii] Who is a Migrant? | International Organization for Migration. (n.d.). International Organization for Migration. https://www.iom.int/who-migrant-0.
[iv] Who is a Migrant? | International Organization for Migration. (n.d.). International Organization for Migration. https://www.iom.int/who-migrant-0.
[v] Already Complicit in Libya Migrant Abuse, EU Doubles Down on Support. (2023, February 8). Human Rights Watch. Retrieved April 15, 2024, from https://www.hrw.org/news/2023/02/08/already-complicit-libya-migrant-abuse-eu-doubles-down-support.
[vi] Migrant and refugee movements through the Central Mediterranean sea - Joint Annual Overview 2022 | Displacement Tracking Matrix. (2024, March 27). https://dtm.iom.int/reports/migrant-and-refugee-movements-through-central-mediterranean-sea-joint-annual-overview-2022.
[vii] Article 6, Article 9 and Article 7, ICCPR.
[viii] Article 22, International Convention on the Protection of the Rights of All Migrant Workers and Members of Their Families.
[ix] Convention and Protocol relating to the Status of Refugees, UNGA Resolution 2198 (XXI).
[x] Article 33 (1), 1951 Convention Relating to the Status of Refugees.
[xi] Article 16, 1951 Convention Relating to the Status of Refugees.
[xii] UNHCR Advisory Opinion on the Rules of Confidentiality Regarding Asylum Information. (2024, February 12). Refworld. https://www.refworld.org/jurisprudence/amicus/unhcr/2005/en/93151.
[xiii] Chapter V, Regulation 33(1), SOLAS Convention, 1974.
[xiv] Article 98, UNCLOS, 1982.
[xv] Chapter 2, SAR Convention, 1979.
[xvi] UNGA resolution 55/25.
[xvii] Article 16 (2) and (4), Protocol against the Smuggling of Migrants by Land, Sea and Air, 2000.
[xviii] Preamble, Protocol against the Smuggling of Migrants by Land, Sea and Air, 2000.
[xix] Article 5, Protocol against the Smuggling of Migrants by Land, Sea and Air, 2000.
[xx] Article 94, UNCLOS, 1982.
[xxi] SAR Convention, 1979.
[xxii] Chapter V, Regulation 7 SOLAS Convention, 1974.
[xxiii] Annex para 1.3.2, SAR Convention.
[xxiv] UNHCR thanks India for taking care of 142 Rohingyas intercepted in Andaman. (2023, December 26). The Hindu. Retrieved April 15, 2024, from https://www.thehindu.com/news/national/unhcr-thanks-india-for-taking-care-of-142-rohingyas-intercepted-in-andaman/article67674873.ece.
[xxv] Article 98(1) UNCLOS, 1982.
[xxvi] Norwegian sailors, refugee women honoured on World Refugee Day. (2002, June 20). United Nations High Commissioner for Refugees. Retrieved April 15, 2024, from https://www.unhcr.org/in/news/norwegian-sailors-refugee-women-honoured-world-refugee-day.
[xxvii] SAR Convention, 1979.
[xxviii] Guidelines to the Treatment of Persons Rescued at Sea, Resolution MSC. 167 (78).
[xxix] International Maritime Organization (IMO), Resolution MSC.167(78), Guidelines on the Treatment of Persons Rescued At Sea, -, 20 May 2004, https://www.refworld.org/legal/resolution/imo/2004/en/32272 [accessed 16 April 2024]
[xxx] Victorian Council for Civil Liberties Inc. v. Minister for Immigration & Multicultural Affairs (& Summary) ("Tampa Decision"), [2001] FCA 1297, Australia: Federal Court, 11 September 2001, https://www.refworld.org/jurisprudence/caselaw/ausfc/2001/en/19206 [accessed 15 April 2024].
[xxxi] Barnes, R. (2004). Refugee Law at Sea. The International and Comparative Law Quarterly, 53(1), 47–77. http://www.jstor.org/stable/3663136.
[xxxii] Bailliet, C. (2003). The “Tampa” Case and Its Impact on Burden Sharing at Sea. Human Rights Quarterly, 25(3), 741–774. http://www.jstor.org/stable/20069685.
[xxxiii] IMO Resolution MSC.155(78), MSC 153 (78), 20.05.2004 and Resolution MSC.167(78) Annex 34.