बांग्लादेश के 350¹ सदस्यीय एकसदन वाली विधानसभा, जो ‘जतीय संसद’ (जेएस) के रूप में जाना जाता है, का कार्यकाल 28 जनवरी 2019 को समाप्त हो रहा है। स्थापित संवैधानिक मानदंडों और प्रथाओं के अनुसार अगला आम चुनाव 31 अक्टूबर 2018 और 28 जनवरी 2019 के बीच होने की उम्मीद है। दो मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों- सत्तारूढ़ अवामी लीग (एएल) और विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) के बीच राजनीतिक विवाद जारी है और विवाद तेजी से गहरा रहा है। हालांकि बीएनपी आगामी चुनावी में हिस्सा लेने को तैयार है, लेकिन उसने अपनी भागीदारी के लिए सरकार के सामने कुछ शर्तें रखी हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण शर्त है एक निष्पक्ष कार्यवाहक सरकार की मांग है, जो संसदीय चुनावों के संचालन में पक्षपातपूर्ण भूमिका ना निभाए।
सरकार पर दबाव बनाने के लिए बीएनपी नेतृत्व दो-तरफा रणनीति का इस्तेमाल कर रहा है। एक तरफ, पार्टी छोटे राजनीतिक दलों को साथ लेकर विपक्षी एकता² को अधिक से अधिक मजबूत बनाने की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक भी अपनी पहुंच बनाने का प्रयास कर रही है।³ हाल के दिनों में बीएनपी ने भारत से भविष्य में सहयोग करने का आश्वासन देने का भी प्रयास किया।⁴ अवामी लीग सरकार के खिलाफ पार्टीशांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शनों की एक श्रृंखला भी आयोजित कर रहा है। बीएनपी के प्रयासों के परिणामस्वरूप देर से सही, कुछ छोटे दलों और नागरिक समाज से जुड़े संगठनों, जिनमें सुशोसनर जोन्ने नागोरिक (सुजान) शामिल हैं, ने तटस्थ कार्यवाहक सरकार की देखरेख में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की मांग की है।⁵
ऐसे अन्य लोग भी हैं जो विपक्षी एकता और संयुक्त नेतृत्व के विचार के पक्षधर हैं, लेकिन चरमपंथी संगठनों से बीएनपी की निकटता को लेकर चिंतित हैं। गोनो फोरम के अध्यक्ष डॉ. कमल हुसैन ने जमात-ए-इस्लामी के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए चल रहे आंदोलन का हिस्सा होने को लेकर कड़ा ऐतराज जताया है। 11 सितंबर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी किसी भी विपक्षी एकजुट मोर्चे, जिसमें जमात भी शामिल है, बीएनपी के साथ नहीं जुड़ेगी।⁶
एक गैर-राजनीतिक कार्यवाहक सरकार (एनसीजी)
यह ध्यान देना दिलचस्प है कि अतीत में अवामी लीग और बीएनपी दोनों ने अपनी राजनीतिक सहूलियत के आधार पर समय-समय पर एक गैर-राजनीतिक कार्यवाहक सरकार (NCG) की स्थापना का समर्थन और विरोध किया है। जब सत्ता में थे, दोनों पार्टियों ने एनसीजी के विचार का पुरजोर विरोध किया, जब विपक्ष में आए तो इन्होंने इसके पक्ष में जोरदार दलीले दीं। 1990 के अंत में संयुक्त विपक्ष (जिसमें तब बीएनपी और अवामी लीग दोनों शामिल थे) ने राष्ट्रपति हुसैन मुहम्मद इरशाद के निरंकुश शासन को 1991 का आम चुनाव कराने के लिए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश शहाबुद्दीन अहमद के नेतृत्व वाली कार्यवाहक सरकार को सत्ता सौंपने के लिए मजबूर कर दिया था। यह एक कार्यवाहक व्यवस्था के तहत हुआ पहला चुनाव था, जिसने बीएनपी को ढेर सारे मामलों के जाल में घेर लिया। मार्च 1996 में अवामी लीग के नेतृत्व वाली खालिदा जिया सरकार ने विपक्ष के प्रचंड दबाव में संविधान में 13वां संशोधन लेकर आयी, जो गैर-राजनीतिक कार्यवाहक सरकार (एनसीजी) चुनावी प्रणाली की एक स्थायी विशेषता बन गयी।⁷
एनसीजी की देखरेख में हुए अगले चुनाव ने आवामी लीग को सत्ता में पहुंचा दिया। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की आड़ में 2011 में 15वें संविधान संशोधन के माध्यम से लीग ने कार्यवाहक सरकार के प्रावधान को रद्द कर दिया गया।⁸ तब से बीएनपी एनसीजी जैसे प्रणाली के लिए दबाव डाल रहा है। स्पष्ट रूप से पार्टी अपनी मांग पर अड़ी रही कि वर्तमान व्यवस्था के तहत एक विश्वसनीय चुनाव संभव नहीं है और अगर समय पर उसकी मांग पूरी नहीं की जाती है तो वह सरकार के खिलाफ एक राजनीतिक आंदोलन शुरू करेगी।
सड़क पर आंदोलन और चुनाव की तैयारी
ऐतिहासिक रूप में दोनों पार्टियों ने सड़क आंदोलन किया है, जो हड़ताल राजनीति के रूप में जाना जाता है और इसे सत्तारूढ़ व्यवस्था पर संदेह करने और इसे खारिज करने का एक प्रभावी जरिया माना जाता है।⁹ भ्रष्टाचार के मामले में दोषी पाए जाने के बाद बीएनपी की अध्यक्ष खालिदा जिया के जेल जाने के मामले को पार्टी ने शेख हसीना सरकार के खिलाफ शिकायतों की सूची में एक और शिकायत का इजाफा कर दिया है। बीएनपी का मानना है कि उनके शीर्ष नेता को सलाखों के पीछे भेजना उन्हें चुनावी प्रक्रिया से बाहर रखने की सरकार की रणनीति का हिस्सा है।¹⁰ पार्टी ने बार-बार कहा है कि बीएनपी की भागीदारी के बगैर देश में कोई भी चुनाव विश्वसनीय नहीं होगा। यह भी धमकी दी गई है कि अगर खालिदा जिया को रिहा नहीं किया गया और कार्यवाहक सरकार की उनकी मांग नहीं मानी गयी तो सरकार के खिलाफ एक राजनीतिक आंदोलन शुरू किया जाएगा। हालांकि बीएनपी नेताओं की दलील है कि खालिदा जिया के बगैर कोई चुनाव नहीं होगा, पर वे अच्छी तरह जानते हैं कि इस बार चुनाव में भागीदारी के अलावा कोई चारा भी नहीं है। इस कारण से पार्टी अपनी चुनावी रणनीति पर कड़ी मेहनत कर रही है, इसमें अपने कार्यकर्ताओं को संभावित सड़क आंदोलन में उतारने के साथ ही साथ चुनाव के लिए भी उन्हें तैयार करना शामिल है। उपलब्ध ताजा विवरणों के मुताबिक पार्टी आलाकमान ने कम से कम 100 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उम्मीदवारों के नाम को अंतिम रूप दिया और उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों में सक्रिय रहने और काम करने का निर्देश भी दिया गया है।¹¹
सरकारी नजरिया सत्तारूढ़ व्यवस्था बीएनपी की मांगों के प्रति उदासीन रहने के साथ उसकी गतिविधियों पर नजर बनाए हुए है। सरकार ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वह निर्धारित संविधानिक सीमाओं और कानूनों के तहत स्वतंत्र, निष्पक्ष और सम्मिलित चुनाव की कराने के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार थी। हालांकि सरकार ने बीएनपी के नेतृत्व वाले विपक्ष के साथ राजनीतिक बातचीत का कोई संकेत नहीं दिया, ताकि मौजूदा समस्याओं का समाधान किया जा सके। हसीना सरकार आगामी आम चुनाव से पहले अपनी राजनीतिक दुश्मनों के आगे झुकना नहीं चाहती। सड़क परिवहन और पुल मामलों के मंत्री और अवामी लीग के महासचिव ओबैदुल कादर ने हाल ही में घोषणा की है कि आगामी संसदीय चुनावों की देखरेख के लिए मध्य अक्टूबर तक चुनावी अवधि के लिए एक सरकार होगी। लेकिन बीएनपी ने इसे अतार्किक बताते हुए तुरंत खारिज कर दिया। पार्टी के उपाध्यक्ष अब्दुल्ला अल नोमान ने साफ तौर पर कहा कि "हमें लगता है कि लोगों को मौजूदा शासन पर भरोसा नहीं है। इसलिए इसके तहत चुनाव नहीं कराया जा सकता है।"¹³
बतौर पर राजनीतिक पार्टी बीएनपी की समग्र रणनीति को ध्यान में रखते हुए आवामी लीग सावधानीपूर्वक, लेकिन तेजी से चुनाव की तैयारी में आगे बढ़ रही है। शेख हसीना के करिश्मे, लोकप्रियता और नेतृत्व की क्षमता को देखते हुए पार्टी अपने नेता के पीछे मजबूती से एकजुट होकर खड़ी है और सरकार के पिछले प्रदर्शन और उपलब्धियों, खासकर सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में, के आधार पर लोगों तक पहुंचने के लिए सभी संभव साधनों का उपयोग कर रही है। पार्टी ने इस्लामिक संगठनों और समूहों में अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए दबाव डाला है।
सरकार पोषक सूत्र
11वां संसदीय चुनाव एक कार्यवाहक व्यवस्था के बीच कराने की मांग के कदम के कारण बड़े पैमाने पर विपक्ष को एकजुट करने के साथ बीएनपी कुछ ठोस प्रस्ताव देने की तैयारी कर रहा है। माना जाता है कि पार्टी ने पृष्ठभूमि का काम पूरा कर लिया है और बिकल्पो धारा बांग्लादेश (बीडीबी), गणो फोरम, भारतीय समाजतांत्रिक दौल (जेएसडी-रॉब) और नागोरिक ओइको जैसे अन्य छोटे दल से सुझाव लेने की प्रक्रिया में है।¹⁴ चर्चा में कम से कम चार तदर्थ प्रस्ताव हैं:
अन्य विपक्षी दलों के साथ गहन चर्चा के बाद अक्टूबर में पार्टी द्वारा प्रस्ताव की औपचारिक रूप से घोषणा करने की उम्मीद है। इन चारों में बीएनपी 1991 की व्यवस्था के अनुरूप सर्वसम्मति वाली चुनाव की अवधि तक के लिए एक सरकार की पक्षधर है, जिसे सभी राजनीतिक दलों के आपसी परामर्श से चुना गया था। वैसे इन अस्थायी प्रस्तावों पर एक सरसरी नज़र डालने से पता चलता है कि बीएनपी, दरअसल, अपनी मांगों को कम कर रही है। पहले बीएनपी प्रधान मंत्री शेख हसीना की अध्यक्षता वाले किसी भी व्यवस्था का विरोध करती रही, लेकिन अब कम से कम सैद्धांतिक रूप से संभावित कार्यवाहक सरकार के उनके प्रमुख होने के एक प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है।
सड़क पर आंदोलन की तैयारी
एक राजनीतिक इकाई के रूप में बीएनपी बड़े अस्तित्व के संकट का सामना कर रहा है। खालिदा जिया के जेल में होने से पार्टी को एकजुट रखने और कैडरों में हौसला बरकरार रखने के मद्देनजर पार्टी अपने शीर्ष नेता के बगैर चुनाव में जाने के लिए पर्याप्त आत्मविश्वास महसूस नहीं करती है। संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय तक पहुंचने के इसके प्रयासों के ठोस परिणाम नहीं निकले हैं। सत्तारूढ़ अवामी लीग के साथ किए गए राजनीतिक समझौते सहित बहुत सारे रास्तों की खोज कर थक जाने के पार्टी सड़क आंदोलन शुरू करने के लिए कमर कस रही है। मानव श्रृंखला के जरिए विरोध-प्रदर्शन के दौरान बीएनपी के वरिष्ठ नेता मौदूद अहमद ने खुद संकेत दिया कि पार्टी अपने नेता को रिहा करने के लिए चौतरफा आंदोलन की तैयारी कर रही थी। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि "हमें कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से खालिदा जिया को जेल से रिहा करने के बारे में भूल जाना चाहिए... सड़क आंदोलन ही एकमात्र रास्ता है।"¹⁶
निष्कर्ष बांग्लादेश में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के इतिहास को देखते हुए, राजनीतिक गतिरोध का शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्वक हल महत्वपूर्ण है। मुद्दों के शांतिपूर्ण समाधान को लेकर उम्मीद की किरण यह है कि बीएनपी सहित सभी राजनीतिक पार्टियां चुनाव में भाग लेने के लिए तत्परता है।
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* लेखक, इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स, नई दिल्ली के रिसर्च फेलो हैं।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं और परिषद के नहीं।
संदर्भ
¹ वैसे जातीय संसद के 350 सदस्य हैं, पर केवल 300 अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्र से बहुमत के आधार पर सीधे चुने जाते हैं। बाकी 50 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं और अप्रत्यक्ष रूप से भरी जाती हैं।
² 22 सितंबर को ढाका में जातीय ओइको प्रोक्रिया (एक अव्यवस्थित राजनीतिक समूह) द्वारा आयोजित नागरिक रैली के मंच पर कई शीर्ष बीएनपी नेता मौजूद थे। विस्तार के लिए हसन, राशिदुल (2018), "ग्रेटर यूनिटी टेकिंग शेप" द डेली स्टार, 23 सितंबर 2018 में देखें, उपलब्ध है निम्न लिंक में:
https://www.thedailystar.net/politics/bnp-join-today-jatiya-oikya- prokriya-rally-1637062
³ बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरूल इस्लाम ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र का दौरा किया और आपस में उठापटक कर रहे राजनीतिक दलों के बीच मध्यस्थता करने और निर्वाचन पर्यवेक्षकों को भेजने का अनुरोध किया। विस्तृत जानकारी के लिए धेखें शेख शहरयार (2018), "संयुक्त राष्ट्र संघ: बांग्लादेश की अंदरुनी राजनीति में हस्तक्षेप नहीं करेंगे," ढाका ट्रिब्यून, 18 सितंबर, 2018, देखें। उपलब्ध है निम्न लिंक में:
https://www.dhakatribune.com/bangladesh/nation/2018/09/18/un-won-t-interfere-in-bangladesh-internal-politics
⁴ बीएनपी के तीन प्रमुख सदस्य-अब्दुल अवल मिंटू, अमीर खसरू महमूद चौधरी और हुमायूँ कबीर-पुरानी मानसिकता को दूर करने के लिए जून 2018 में नई दिल्ली आए थे। उन्होंने आरएसएस कुछ पदाधिकारियों से भी मुलाकात की और मोदी सरकार से बांग्लादेश में चुनावों के दौरान स्वतंत्र और निष्पक्ष प्रक्रिया का समर्थन करने की अपील की। विवरण के लिए इमाम, शाह हुसैन (2018), “बीएनपी लीडर्स इंडिया ट्रिप”, द डेली स्टार, 22 जून, 2018, देखें। उपलब्ध है निम्न लिंक पर:
https ://www.thedailystar. net/opinion/pleasure -all-mine/bnp-leaders-india-trip-1593646
⁵ ईरानी, बिल्किस (2018) "सुजोन: पदस्थ सरकार के तहत निष्पक्ष चुनाव असंभव", ढाका ट्रिब्यून, 16 सितंबर, 2018, को उपलब्ध है निम्न लिंक पर
https://www.dhakatribune.com/bangladesh/election/2018/09/16/sujan-free-fair- election-impossible-under-this-govt
⁶ “डॉ. कमल: जमात के साथ रहने पर बीएनपी के साथ कोई एकता नहीं,” ढाका ट्रिब्यून, 11 सितंबर, 2018 को उपलब्ध निम्न लिंक पर
https://www.dhakatribune.com/bangladesh/politics/2018/09/11/dr-kamal-no-unity-with-bnp-if-jamaat-stays-with-it
⁷ अहमद, निज़ाम (2011), "एबॉलिसन ऑर रिफॉर्म?: नॉन पार्टी केयरटेकर सिस्टम एंड गवर्नमेंट सक्सेशन इन बांग्लादेश," द राउंड टेबल, 100 (414): 303-321.
⁸ खान, आदिबा अज़ीज़ (2015), "द पॉलिटिक्स ऑफ कॉन्सिट्यूशनल एमेंडमेंट्स इन बांग्लादेश: द केस ऑफ नॉन-पॉलिटिकल केयरटेकर गवर्नमेंट," इंटरनेशनल रिव्यू ऑफ लॉ, लंदन: एसओएएस, उपलब्ध निम्न लिंक पर
http ://www.qscience.com/doi/pdf/10.533 9/irl. 2015.9
⁹ हुसैन, अख्तर (2000), "हार्टल पॉलिटिक्स की एनाटॉमी इन बांग्लादेश," एशियन सर्वे, 40 (3): 508-529.
¹⁰ “फखरूल खालिद जेल्ड टू टेक पॉलिटिकल रिवेंच,” ढाका रू्रिब्यून, 22 अप्रैल 2018, उपलब्ध है निम्न लिंक पर:
https://www.dhakatribune.com/bangladesh/politics/2018/04/22/fakhrul-khaleda-jailed-take-political-revenge/
¹¹ मोल्ला, मोहम्मद अल-मासूम (2018), "बीएनपी 'फाइनलाइजेज 100 पार्टी कैंडीडेक्ट्स," डेली स्टार, 15 सितंबर 2018, उपलब्ध है निम्न लिंक पर:
https://www.thedailystar.net/frontpage/news/bnp-finalises-100-party-candidates-1634119
¹² “पोल-टाइम गवर्नमेंट इन मिड-अक्टूबर, द डेली स्टार, 12 सितंबर 2018, उपलब्ध है निम्न लिंक पर:
https://www.thedailystar.net/politics/news/bangladesh-election-time-government-formed-mid-october-obaidul-
quader-1632355
¹³ बीएनपी ने विधानसभा चुनावों के समय को स्वीकार नहीं किया: नोमान, "प्रोथम अलोम, 11 सितंबर, 2018, उपलब्ध है निम्न लिंक पर:
https://en.prothomalo.com/bangladesh/news/183221/BNP-won%E2%80%99t-accept-AL%E2%80%99s-polls-time- cabinet-Noman
¹⁴ "बीएनपी टू अनवेल 'सर्पोटिव-गवर्नमेंट’ फॉर्मूला" प्रोथोम आलो, 15 सितंबर, 2018, यहां उपलब्ध है निम्न लिंक पर:
https://en.prothomalo.com/bangladesh/news/183444/BNP-to-unveil-%E2%80%98supportive-govt%E2%80%99- formula
¹⁵ पूर्वोक्त
¹⁶ "मौदूद: बीएनपी गेटिंग रेडी फॉर स्ट्रीट एजीटेशन," ढाका ट्रिब्यून, 19 सितंबर, 2018 को उपलब्ध है निम्न लिंक पर:
https://www.dhakatribune.com/bangladesh/politics/2018/09/19/moudud-bnp-getting-ready-for-street-agitations