नए वर्ष के दौरान फिजी में व्याप्त प्रजातांत्रिक गतिविधियों से उसके पड़ोसी देशों में वहां प्रजातंत्र बहाल होने के बारे में आशा जगी । फिजी में सितंबर 2014 में चुनाव हो रहे हैं । 7 चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करके फिजी ने उन सभी आशंकाओं को दूर कर दिया कि वहां प्रजातांत्रिक सरकार कायम नहीं होगी । वर्ष 2006 से फिजी में कोमोडोर वोरीक बैनिमरामा के अधीन सैनिक शासन रहा है और बैनिमरामा फिजी में चुनाव कराने संबंधी अपने वादे को पूरा नहीं कर सके हैं ।
ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने 2014 में संसदीय चुनाव कराने की घोषणा का स्वागत किया है तथापि सरकार द्वारा प्रयुक्त “आचरण”, और “पारदर्शी” जैसे शब्दों के बारे में चिंता भी व्यक्त की है । फिजी के चुनाव मंत्री और महाधिवक्ता अयाज़ सैय्यद कय्यूम ने आम चुनावों के लिए एकदिवसीय चुनाव का प्रस्ताव रखते हुए कहा है कि इससे मतदान की संख्या बढ़ने के साथ-साथ मतदान पेटियों की सुरक्षा के खर्च में भी कमी आएगी । यूनाइटेड फ्रंट फॉर ए डेमोक्रेटिड फिजी (यूएफ़डीएफ़) के नेतृत्व वाले विपक्षी दलों ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा है कि सरकार इसके द्वारा मतदान पेटिकाओं में हेर-फेर करना चाहती है ।
फिजी की सैनिक सरकार ने अगस्त 2013 में चौथा नया संविधान जारी किया है (पिछले तीन संविधान, 1970, 1990 और 1997 में अंगीकार किए गए थे) । इस प्रकार सरकार ने प्रजातंत्र को बढ़ावा देने का आह्वान किया था । इससे प्रशासनिक, सुशासनिक और निर्वाचन संबंधी सुधार प्रक्रिया का मार्ग प्रशस्त हुआ । फिजी के राष्ट्रपति रातू इपेली नेलाटीकौ ने सितंबर 2013 में संविधान में संशोधन किया था । प्रधानमंत्री कोमोडोर वोरीक बैनिमरामा ने नस्ल पर आधारित फ़ार्मुले को निरस्त करते हुए एक व्यक्ति, एक मत और एक मूल्य सिद्धांत का प्रस्ताव रखा था । संविधान की दूसरी अन्य विशेषताओं में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटकर 18 वर्ष करना, फिजियंस शब्द का इस्तेमाल करना ताकि सभी नागरिकों को एक जैसा माना जाए (नस्ल आधारित पहचान की पूर्ण समाप्ती) और आई टोकेई (मूल फिजियंस) के जमीन पर मालिकाना हक के विशेष अधिकार की संरक्षा शामिल है ।
फिजी के संविधान में चार वर्षों की अवधि के लिए 50 सदस्यों वाली संसद की व्यवस्था की गई है । फिजी के संविधान में परिकल्पित तीन महत्वपूर्ण सिद्धान्त-धर्मनिरपेक्ष राज्य, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निष्पक्ष न्यायपालिका हैं । फिजी द्वारा राष्ट्र निर्माण का प्रयास प्रशंसनीय है और नए संविधान के तहत, फिजी के मूल लोगों के कष्टों को दूर किया गया है ।
यद्यपि पिछले वर्ष जनवरी में बैनिमरामा प्रशासन द्वारा फिजी संविधान आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर यश घई द्वारा बनाए गए पूर्ववर्ती मसौदा संविधान को इसलिए निरस्त कर दिया गया था चूंकि इसमें प्रस्ताव रखा गया था कि फिजी की सेना पूरी तरह से राजनीति से दूर रहे । नए संविधान में सेना को सुरक्षा, रक्षा और राष्ट्र निर्माण का कार्य सौंपा गया था । नए संविधान के अनुसार सेना को यह सुनिश्चित करना था कि वह फिजी और सभी फिजीवासियों की सुरक्षा, रक्षा और कल्याण का कार्य करे ।
इस बीच यह आशा की गई कि नए संविधान के तहत नस्लीय फिजीवासियों के हितों को बढ़ावा देने वाले पूर्ववर्ती सैनिक शासन की दमनकारी नीतियों के बाद ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जाने वाले नस्लीय भारतीयों को वहां दोबारा से आबाद किया जाएगा । पूर्व में फिजी के दो नस्लीय समुदायों अर्थात फिजियन भारतीयों और नस्लवादी फिजियन के बीच मतभेद से उनकी नस्लीय पहचान की तर्ज पर चुनाव संबंधी राजनीति का ध्रुवीकरण हुआ था । इन नीतियों से फिजी के आर्थिक विकास में रुकावट आने के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में भी रुकावट आई थी । इस नस्लीय विप्लव के कारण बहुत से प्रतिभावान और कौशल युक्त फिजियन भारतीय न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका पलायन करने के लिए बाध्य हो गए थे । वर्ष 2010 में न्यूजीलैंड द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार फिजी की आबादी में फिजियन भारतीयों की प्रतिशतता 1990 के प्रारंभ में लगभग 49% से घटकर 2010 में 37% हो गई । कोमोडोर बैनिमरामा सामाजिक, राजनीतिक और प्रशासनिक अवसंरचना में उत्पन्न अनियमितताओं में सुधार लाने का प्रयास कर रहे हैं यहां तक कि उन्होंने फिजियन भारतीयों से फिजी वापस लौटने के लिए कहा है । फिजी के शासक ने गैर प्रवासी फिजीयंस से कहा है कि वे इलेक्ट्रोनिक मतदाता पंजीकरण (ईवीआर) के लिए अपना नाम दर्ज कराएं ।
ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड मौजूदा फिजियन सैनिक शासन की लगातार आलोचना करते रहे हैं क्योंकि उसने 2009 में प्रजातांत्रिक चुनाव कराने संबंधी अपने वादे को पूरा नहीं किया था । इसके अलावा फिजी को राष्ट्रकुल और प्रशांत द्वीप मंच से बहिष्कृत किए जाने संबंधी कार्रवाई फिजी को पसंद नहीं आई और उसने इन दोनों देशों के विरुद्ध कड़े नीतिगत वक्तव्य दिए । फिजी के विदेश कार्यालय ने भी उत्तर दिशा नामक नीति को अंगीकार किया जिसका उद्देश्य यह था कि चीन और भारत जैसे एशियाई देशों के साथ गहन संबंध बनाएं जाएं । कोमोडोर बैनिमरामा ने मई और जून 2013 में चीन और रूस की यादगार यात्राएं की । उन्होंने इस अवसर पर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के साथ अपने मतभेदों को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि ये देश प्रशांत द्वीप सुरक्षा व्यवस्था को कब्जाए हुए हैं । हाल ही में चीन ने फिजी को आश्वासन दिया है कि वह चुनावों के साथ-साथ उसकी अर्थव्यवस्था में भी सुधार लाने के लिए सहायता देगा । इससे स्पष्ट पता चलता है कि चीन इस क्षेत्र में अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहता है ।
2013 में सूवा में एएनज़ेड बैंक रेनमिनबी ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म ने फिजी के डॉलर को सीधे-सीधे चीनी रेनमिनबी में बदल दिया । इससे दोनों देशों के बीच व्यापार में वृद्धि होगी और संबंधित लागत में कमी आने के साथ-साथ डॉलर की भूमिका समाप्त हो जाएगी । पिछले कुछ वर्षों में रूस और चीन फिजी की सैनिक सरकार से सक्रिय रूप में तालमेल स्थापित करते रहे हैं । दोनों देश फिजी में निवेश और व्यापार के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं ।
इसके अलावा फिजी ने प्रशांत द्वीप मंच (पीआईएफ़) से निकाले जाने के कारण इसके समकक्ष एक और मंच बनाया है जिसका नाम प्रशांत द्वीप विकास मंच है । वह इसका कार्यालय सूवा में स्थापित करना चाहता है । पिछले वर्ष 6 प्रमुख प्रशांत द्वीप देशों ने मंच के उदघाटन अवसर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई ।
इस वर्ष फिजी में चुनाव होने जा रहे हैं । भारत वहां चुनाव करने के लिए फिजी सरकार को संबंधित सामग्री के साथ राजनायिक सहायता भी दे सकता है । फिजी में चुनाव कराने के लिए संस्थागत सुविधाएं कम हैं, इसलिए भारत मतपत्र बनाने एवं सत्यापित करने, संबंधित रोशनाई उपलब्ध कराने के साथ-साथ इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और अन्य आवश्यक वस्तुएं फिजी को दे सकता है ।
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*डॉ. पंकज कुमार झा एवं डॉ. स्मिता तिवारी, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं।
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