कजाखस्तान अपने प्राकृतिक संसाधनों और भौगोलिक दृष्टि से लाभप्रद अवस्थिति का प्रभावशाली ढंग से लाभ उठाते हुए विकसित होते क्षेत्रीय, राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में एक प्रमुख देश के रूप में उभर रहा है। यह देश आज एक क्षेत्रीय आर्थिक शक्ति है, एक प्रमुख निर्यातक है और यह विकसित होते एशिया और यूरोप के बीच एक व्यापारिक और सांस्कृतिक जोड़ बन गया है। अपनी स्वतंत्रता के बाद से, कजाखस्तान भारत के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता प्रदान कर रहा है क्योंकि 1992 में देश के राष्ट्रपति नरसुल्तान नादरबायेव द्वारा स्वतंत्र राष्ट्रमंडल राज्यों (सीआईएस) के बाहर यात्रा किए जाने के लिए नई दिल्ली को प्रथम गंतव्य के रूप में चुना गया था। नई दिल्ली और अस्ताना ने द्विपक्षीय और प्रादेशिक, दोनों ही स्तरों पर आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्रों में अपने क्रियाकलापों को सुदृढ़ बनाया है। पिछले दो दशकों में, दोनों देशों के संबंध घनिष्ठ द्विपक्षीय संबंधों से ऊपर उठते हुए 2009 में रणनीति भागीदारी तक पहुंच चुके हैं। कजाखस्तान मध्य एशिया में पहला ऐसा देश था जिसके साथ भारत ने इस भागीदार करार पर हस्ताक्षर किए।
भारत और कजाखस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों का हाइड्रोकार्बन महत्वपूर्ण अवयव हैं। दोनों देशों की राष्ट्रीय तेल कंपनियां भारत की ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) और कजाखस्तान की कजमुनैगैस कजाखस्तान की सत्यायेव तेल अन्वेषण परियोजना में व्यस्त हैं। तथापि, भारत को नज़रअंदाज करते हुए चीन को कोनोकोफिलिप के शेयर बेचने का कजाखस्तान का निर्णय ऊर्जा सहयोग के क्षेत्र में भारत और कजाखस्तान के बीच विकसित होते संबंधों के लिए झटका था। ओवीएल ने कशागन तेल क्षेत्र में अमेरिकी कंपनी कोनोकोफिलिप के 5 बिलियन यूएस डॉलर के मूल्य के 8.4 प्रतिशत शेयर खरीदने का लक्ष्य बनाया था तथा यह सौदा लगभग अंतिम चरण पर था, परंतु कजाखस्तान सरकार ने कोनोकोफिलिप के शेयर खरीदने के अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए इसमें हस्तक्षेप किया तथा सितम्बर 2013 में चीनी राष्ट्रपति जी जिनपिंग की कजाखस्तान यात्रा के दौरान उन्हें चीन की नेशनल पेट्रोलियम कार्पोरेशन को बेचने का निर्णय लिया।
तथापि, यह प्रतीत होता है कि अस्ताना ने यह महसूस किया होगा कि भारतीय संबंध की कीमत पर चीन को प्रसन्न करना उसके ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक शुभ संकेत नहीं है। कजाखस्तान देश के अपतटीय अबई तेल ब्लॉक में इंडियन ओवीएल के 25 प्रतिशत स्टेक की पेशकश करते हुए इस हानि की क्षतिपूर्ति करने का प्रयास कर रहा है जिसे पूर्व में नार्वे की स्टैट ऑयल कंपनी द्वारा संचालित किया जा रहा था। अबई तेल क्षेत्र उत्तरी कैस्पियन सागर में कजाखस्तान तट से 65 किमी की दूरी पर स्थित है। अनुमानित रिजर्व 2.8 बिलियन बैरल तेल के समतुल्य है। यह ब्लॉक ओवीएल के सत्पायेव अन्वेषक ब्लॉक के समीप है।
अबई ब्लॉक की पेशकश के पीछे कजाखस्तान के दो उद्देश्य प्रतीत होते हैं : पहला यह भारत (हिंदू व्यापार क्षेत्र) को 'लुभाना' चाहता है तथा दूसरा यह अपने निर्यात के गंतव्यों का वैविध्यकरण करना चाहता है और ऊर्जा की मांग करने वाले बड़े दक्षिण एशियाई बाजार का लक्ष्य बनाना चाहता है। कजाखस्तान के प्रमुख तेल बाजार यूरोपीय देश और चीन है। अस्ताना दक्षिण एशियाई बाजार में प्रवेश करना चाहता है और भारत को वह इस क्षेत्र का हार मानता है। उत्तर-दक्षिण अक्ष के साथ-साथ कजाखस्तान से भारत तक हाइड्रोकार्बन पाइपलाइन बिछाने का किए जाने वाले बार-बार उल्लेख को भी इस संदर्भ में देखा जा सकता है।
वस्तुत: भारतीय उपमहाद्वीप में इसके तेजी से होने वाले आर्थिक विकास को जारी रखने के लिए मध्य एशियाई संसाधनों के लिए भारी मांग विद्यमान है। भारत और कजाखस्तान तुलनात्मक रूप से बेहतर व्यापार संबंध रखते हैं जो लगभग 426 मिलियन यूएस डॉलर का है तथा जो कुछ भारत-मध्य एशिया व्यापार का लगभग आधा भाग है। तथापि, गहन और घनिष्ठ राजनीतिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को देखते हुए दोनों देश अपनी आर्थिक क्षमता का पूरी तरह से उपयोग कर पाने में अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं। दक्षिण एशिया और मध्य एशिया से दो तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं की संपूरणताएं एक सीमित परिमाण तक प्रत्यक्ष संयोजनता के अभाव में बाधित होती हैं। कजाखस्तान एक स्थलरूद्ध देश है जबकि भारत की भी उस क्षेत्र के साथ कोई स्वतंत्र पहुंच नहीं है। ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के माध्यम से मध्य एशिया के साथ सतही संपर्क स्थापित करने के लिए व्यापक पूंजी और अवसंरचना के निवेश की आवश्यकता है तथा यह एक छोटी अवधि के भीतर व्यवहार्य भी नहीं है।
फिर भी, भारत और चीन के बीच बढ़ते हुए आर्थिक संबंध मध्य एशियाई देशों तक संपर्क बनाने के लिए एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध कराते हैं। उत्तर-पश्चिमी चीन तीन एशियाई गणराज्यों अर्थात् कजाखस्तान किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के साथ सीमाएं साझा करता है और नई दिल्ली इसके भू-भाग से इन देशों तक पहुंच बनाने के लिए बीजिंग के साथ इस मुद्दे पर चर्चा कर सकता है। चीन और भारत में नेतृत्व परिवर्तन तथा आर्थिक विकास पर दिया गया उनके बल, जिसे ब्रिक्स बैंक की स्थापना के साथ प्रदर्शित किया गया है, ने भारत-चीन-मध्य एशिया भूमि संयोजनता गलियारे की संभावना को और भी बढ़ाया है।
कजाखस्तान मध्य एशिया और यूरोप के साथ चीन के व्यापार को जोड़ने और उसमें वृद्धि करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अस्ताना ने इन बाजारों तक पहुंच बनाने के लिए चीन को अपने भू-भाग का प्रयोग करने की अनुमति प्रदान की है। इसके बदले में, कजाखस्तान बीजिंग को अपने भू-भाग के माध्यम से दक्षिण एशिया और मध्य एशिया के बीच संयोजनता और आर्थिक गलियारे का विकास करने में सहायता और सहयोग प्रदान करने का आग्रह भी कर सकता है। दक्षिण एशिया - मध्य एशिया व्यापार गलियारा दो क्षेत्रों के बीच निवेश और वाणिज्यिक क्रियाकलापों को बल प्रदान करेगा। यह ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से भी अधिक मूल्य के दक्षिण एशियाई बाजार तक इसे पहुंच प्रदान करते हुए मध्य एशिया के स्थलरूद्ध छवि को भी तोड़ेगा। यह मार्ग ईरानी पत्तनों तथा अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) के माध्यम से मध्य एशिया तक भारत की संयोजनता के विकल्प के रूप में भी उभरकर आएगा। यह आईएनएसटीसी पर होने वाली परेशानियों को भी कम करेगा जैसे पोतों से रेल अथवा सड़क नेटवर्क पर कार्गों का अंतरण। दो क्षेत्रों को निकट लाने के उदृदेश्य से, जैसा बीसीआईएम बांग्लादेश-चीन-भारत म्यांमार में किया गया था, केकेटीआईसी (कजाखस्तान-किर्गिस्तान-ताजिकिस्तान-भारत-चीन) फोरम के निर्माण पर विचार किया जा सकता है। यदि केकेटीआईसी का निर्माण कर लिया जाता है तो दक्षिण एशिय-मध्य एशिया गलियारा भी एक हकीकत बन जाएगा।
उनके द्विपक्षीय संबंधों को पुन: प्रवर्तित करने के अलावा, दोनों देशों के पास विकसित होती प्रादेशिक और वैश्विक व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाने तथा उसमें योगदान देने की क्षमता भी होती है। भारत को दिया गया अबई प्रस्ताव भारत-कजाखस्तान द्विपक्षीय संबंध में एक नए अध्याय की शुरुआत करता है। कजाखस्तान ने भारत के भू-आर्थिक महत्व को भी पहचाना है तथा वह नई दिल्ली को अपने विविध उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदारी मानता है। अस्ताना ने गैर-तेल क्षेत्रों जैसे परमाणु प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी अंतरिक्ष, भेषजी, परामर्श, मानव संसाधन विकास, पर्यटन आदि में नई दिल्ली की सहायता लेने में गहरी रुचि दशाई है। दूसरी ओर, विशाल देश तथा एक बड़ी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था होने के नाते कजाखस्तान भारत को क्षेत्र में उसकी पकड़ को बढ़ाने के लिए एक मंच भी प्रदान करता है जो भारत की 'मध्य एशिया से संपर्क' नीति के अनुरूप भी हो। यह भारतीय व्यापार के लिए उपयुक्त समय है कि वे कजाखस्तानी व्यापारियों के साथ अपने संबंधों को गहन बनाएं और उनका विस्तार करें तथा दोनों देशों में व्यवहार्य संयुक्त उद्यम स्थापित करें। आपस में घनिष्ठ सहयोग उन्हें 2015 में यूरेशियाई आर्थिक संघ के प्रारंभ होने के साथ ही व्यापक यूरेशियाई बाजार की क्षमता का उपयोग करने के लिए तैयार करेगा।
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*डॉ. अथर जफर, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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