भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों के बीच किसी प्रकार की नरमी की प्राय: दोनों पक्षों के उत्तम हावभाव के साथ स्वागत किया जाता है। किन्तु इस बार के व्यवहार के प्रति भारत की ओर से मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की गयी।
भारत-पाकिस्तान के सम्बन्धों का इतिहास अविश्वास, खण्डित वादों, अनसुलझे मुद्दों तथा असीमित संघर्षों का इतिहास है। विचारधारा से सम्बद्ध विभिन्न कारकों के विभाजनकारी प्रभाव, विभाजन की हिंसक परम्परा, पड़ोसी शत्रु की छवि तथा कश्मीर सहित अनेक अनसुलझे मुद्दों के कारण दोनों देश एक ऐसी जटिल स्थिति में उलझ कर रह गये हैं जिसमें किसी भी एक पक्ष के इच्छित लाभ को दूसरे की समतुल्य हानि के रूप में देखा जाता है। भारत के पूर्व विदेश सचिव के. नटवर सिंह के अनुसार, भारत-पाकिस्तान के सम्बन्ध पाकिस्तान के लिए "दीर्घकालिक दुर्घटना सम्भावित" और इतना अधिक परिवर्तनशील तथा अनिश्चित है जिससे स्थिति का सामान्य होना असम्भव सा है।
भारत-पाक सम्बन्धों में अनेक विफलताएँ और सीमित निष्कर्ष देखे गये हैं। निरन्तर वैमनस्यता के कारण दोनों पक्षों की सीमाओं पर भूराजनीतिक परिवेश को क्षति पहुँची है। तनाव होने के बावजूद दोनों देशों के नागरिक समाज के कुछ वर्गों ने लम्बित मुद्दों पर परिचर्चा तथा उसके समाधान पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। चूँकि दोनों देशों की सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत एक जैसी है अत: यह विश्वास किया जाता है कि शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व पर आधारित एक ठोस सम्बन्ध का विकास निश्चित रूप से किया जा सकता है। द्विपक्षीय सम्बन्धों को उन्नत करने अथवा किसी भी एक पक्ष से सौहार्द्र प्रदर्शित करने के किसी प्रयास की प्राय: दोनों पक्षों से एक समान प्रतिक्रिया आती है। सिख तीर्थयात्रियों के लिए करतारपुर कारीडोर खोलने तथा दो सिख तीर्थस्थलों डेरा बाबा नानक साहिब (भारत) तथा करतारपुर साहिब (पाकिस्तान) को जोड़ने की हालिया घोषणा इस सम्बन्ध में एक सार्थक प्रगति है।
करतारपुर साहिब का महत्त्व
सिख धर्म के अत्यधिक श्रद्धेय प्रथम गुरु गुरु नानक देव ने करतारपुर में कम से कम अपने जीवन के 18 वर्ष व्यतीत किये थे। जनश्रुति के अनुसार जब उनके अनुयायियों को उनकी जोति जोत (स्वर्गीय प्रस्थान) की तैयारी का पता चला तो उनमें उनके मृत अवशेषों के अधिकार को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। सिख, हिन्दू तथा मुसलमान अपनी-अपनी परम्पराओं के अनुसार उनका संस्कार करना चाहते थे। दूसरे शब्दों में सिख तथा हिन्दू उनके शरीर का दाह संस्कार करना चाहते थे जबकि मुसलमान उन्हें दफनाना चाहते थे। इस समस्या के समाधान के लिए अनुयायी गुरु नानक देव के पास गये जिन्होंने सिख तथा हिन्दू अनुयायियों को अपनी दाहिनी ओर तथा मुसलमान अनुयायियों को अपनी बायीं ओर फूल रखने का निर्देश दिया। फिर उन्होंने अपने अनुयायियों से कहा कि अन्तिम संस्कार का निर्धारण कल सुबह फूलों की ताजगी के द्वारा निर्धारित किया जायेगा। दूसरे शब्दों में यदि बायीं ओर फूल ताजे बने रहे तो मुसलमानों को उनके अन्तिम संस्कार का अधिकार होगा और यदि दाहिनी ओर के फूल ताजे बने रहे तो सिख और हिन्दू उनके शरीर का दाह संस्कार कर सकेंगे।
गुरुद्वारा करतार पुर साहिब (पाकिस्तान)
कहा जाता है कि जब अनुयायी अगली सुबह (22 सितम्बर, 1539) वहाँ पहुँचे तो वे यह देखकर चकित रह गये कि गुरु नानक देव का शरीर गायब था और सभी फूल ताजे दिखाई दे रहे थे। अत: सिखों, हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने वे फूल उठाये और अपनी-अपनी आस्थाओं के अनुसार उनका अन्तिम संस्कार किया। इसी कारण गुरुनानक देव का दाह-संस्कार स्थल और कब्र दोनों ही बनायी गयी हैं। वर्तमान के करतारपुर साहिब में उनकी कब्र है। अगस्त, 1947 में करतारपुर के पाकिस्तान में चले जाने के पश्चात भारत के सिख इस पवित्र स्थल तक पहुँच पाने में कठिनाई का अनुभव करते थे। इसी समय गुरुद्वारे का निर्माण भी किया जा रहा था।
करतारपुर साहिब कारीडोर की माँग
भारतीय सिख तीर्थयात्रियों के लिए करतारपुर साहिब की ओर जाने वाले कारीडोर को खोलने की माँग भारत द्वारा अनेक अवसरों पर की गयी। 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की सदा-ए-सरहद या दिल्ली-लाहौर बस की ऐतिहासिक यात्रा के दौरान उन्होंने अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ के साथ इस मुद्दे को उठाया था। कुछ रिपोर्टों के अनुसार नवम्बर, 2000 में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जाने के लिए सिख श्रद्धालुओं की सुविधा हेतु कारीडोर बनाने के लिए सकारात्मक संकेत दिया। बाद में, एक साक्षात्कार में, तत्कालीन पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी (पीएसजीपीसी) के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल जावेद नासिर ने इस योजना का विवरण साझा किया। किन्तु इस समझौते को अन्तिम स्वरूप नहीं दिया जा सका।
ध्यान देने योग्य है कि ले. जन. जावेद नासिर को उनकी कट्टरपन्थिता के लिए जाना जाता था। वे पाकिस्तानी सेना के उन कट्टरपन्थी इस्लामिक लोगों में से एक थे जिनका विश्वास था कि "खालिस्तान" का लक्ष्य शान्तिपूर्ण माध्यमों से हासिल किया जा सकता है। दिल्ली गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति के पूर्व अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना द्वारा लाहौर में आयोजित एक स्वागत समारोह में जन. नासिर ने कहा कि सिखों को अलगाववादी आन्दोलन प्रारम्भ करने से पूर्व संविधान में निहित अपनी अलग अस्मिता के सम्बन्ध में अपनी माँग उठानी चाहिए।
2004 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमन्त्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह को सूचित किया कि भारत सरकार अगली द्विपक्षीय वार्ता के दौरान पाकिस्तान के समक्ष पुन: इस मुद्दे को उठायेगी। किन्तु तब से अब तक इस विषय में कोई प्रगति नहीं हुई।
सिद्धू-बाजवा को गले मिलने का विवाद
अगस्त 2018 में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान ने अपने शपथ समारोह में पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को आमन्त्रित किया। इस यात्रा के दौरान पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने सिद्धू से करतारपुर कारीडोर खोलने के लिए पाकिस्तान की तत्परता का स्पष्ट संकेत दिया। किन्तु बाजवा-सिद्धू की मिलनसारी भारतीय मीडिया में एक गम्भीर विवाद का विषय बन गया। एनडीटीवी के साथ एक साक्षात्कार में बाद में सिद्धू ने स्पष्ट किया कि शपथग्रहण समारोह के दौरान पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा उनके पास टहलते हुए आए और कहा कि "नवजोत, हम शान्ति चाहते हैं.... इस्लामाबाद 2019 में गुरु नानक के 550वें प्रकाशोत्सव के अवसर पर करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब कारीडोर खोल देगा।" किन्तु स्पष्टीकरण देने के बावजूद पाकिस्तान सरकार द्वारा इसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गयी।
22 नवम्बर, 2018 को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में भारतीय संघीय कैबिनेट ने 2019 में श्री गुरुनानक देव की 550वीं जन्मशती मनाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया और भारत से पाकिस्तान में गुरुद्वारा करतारपुर साहिब जाने के लिए तीर्थयात्रियों की सुविधा हेतु भारत की ओर से गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक से अन्तर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी) तक करतारपुर कारीडोर के निर्माण तथा विकास का अनुमोदन किया। भारत ने तब पाकिस्तान सरकार से भारत के सिख समुदाय की भावनाओं को समझने और अपने क्षेत्र अर्थात आईबी से करतारपुर साहिब तक उपयुक्त सुविधाओं सहित कारीडोर का विकास करने का आग्रह किया।
पाकिस्तान का तत्काल अनुमोदन
इस स्थिति में भारत में सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत पाकिस्तान ने यह माँग स्वीकार कर ली और कहा कि वह सिख तीर्थयात्रियों के लिए कारीडोर खोलने के लिए तैयार है। पाकिस्तान के विदेश मन्त्री शाह महमूद कुरैशी ने सोशल मीडिया पर अपनी सरकार के निर्णय की घोषणा की। ट्विटर पर उन्होंने लिखा कि "पाकिस्तान ने बाबा गुरु नानक की 550वीं जन्मशती पर करतारपुर कारीडोर खोलने के लिए भारत को अपना निर्णय पहले ही सुना दिया है। प्रधानमन्त्री इमरान खान 28 नवम्बर को करतारपुर सुविधाओं का शुभारम्भ करेंगे।" 23 नवम्बर, 2018 को पाकिस्तान के विदेश मन्त्री द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया :
इसलाम तथा कायदे आजम के शान्तिपूर्ण पड़ोसी की संकल्पना के सिद्धान्त के अनुसार पाकिस्तान की यह पहल विशेष रूप से भारत के सिखों को सुविधा प्रदान करेगी। करतारपुर के विषय में पाकिस्तान की धारणा संघर्ष से सहयोग की ओर, कटुता से शान्ति की ओर तथा शत्रुता से मित्रता की ओर एक उचित कदम हो सकता है।
उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू आधारशिला रखते हुए
26 नवम्बर, 2018 को भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भारत में प्रस्तावित कारीडोर की आधारशिला रखी। समारोह के दौरान उन्होंने कहा कि "मुझे प्रसन्नता है कि पाकिस्तान ने करतारपुर कारीडोर की दीर्घकाल से लम्बित माँग को स्वीकार कर लिया है जिससे सिख समुदाय की भावनाओं की पूर्ति होगी। अब आपको अटारी सीमा से होकर जाने का कोई लम्बा तथा कठिन मार्ग नहीं अपनाना पड़ेगा।" इसका अनुसरण करते हुए पाकिस्तान में हरसिमरत कौर बादल, हरदीप सिंह पुरी तथा नवजोत सिंह सिद्धू जैसे भारतीय राजनीतिज्ञों की उपस्थिति में पाकिस्तान में एक भव्य समारोह आयोजित किया गया।
पाकिस्तान में भूभंजक समारोह
पाकिस्तान की बढ़ती कुण्ठा
यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि पंजाब राज्य में जारी गहन धार्मिक भावनाओं के कारण भारत ने इस प्रक्रिया को क्रियान्वित करने का तत्काल निर्णय लिया। उल्लेखनीय है कि विगत में उत्तम सम्बन्धों तथा नियमित संवाद के बावजूद सिख तीर्थयात्रियों के लिए कारीडोर खोलने हेतु पाकिस्तान ने भारत के निवेदन का अनुमोदन नहीं किया। इस बार अभिवृत्ति में अचानक हुए परिवर्तन तथा तुरन्त अनुमोदन ने अनेक लोगों को अचम्भित कर दिया। हृदय के इस अचानक परिवर्तन के पीछे छिपे निहित कारणों को जानना भी आवश्यक है। 23 नवम्बर, 2018 को पाकिस्तान के विदेश मन्त्रालय द्वारा की गयी प्रेस विज्ञप्ति से पता चलता है कि पाकिस्तान की इच्छा करतारपुर कारीडोर के अतिरिक्त भारत के साथ अन्य मुद्दों को उठाने की है।
जब से भारत सरकार ने द्विपक्षीय वार्ता पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है और यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते तबसे द्विपक्षीय सम्बन्धों में कोई सार्थक प्रगति नहीं हुई है। जब नवम्बर, 2016 में भारत ने इस्लामाबाद में आयोजित होने वाले 19वें सार्क सम्मेलन में भाग न लेने का निर्णय लिया तो अन्य पड़ोसी देशों ने भी इसका अनुसरण किया। यह सन्देश स्पष्ट और ठोस था कि यदि पाकिस्तान आतंकवाद के मुद्दे पर ध्यान नहीं देता है तो इसे क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय पृथकता का सामना करना पड़ेगा। पाकिस्तान पर भारत के साथ वार्ता प्रारम्भ करने का अत्यधिक दबाव है।
करतारपुर कारीडोर के भव्य समारोह के दौरान इमरान खान ने समस्त द्विपक्षीय मुद्दों को हल करने के लिए आगे बढ़ने का आह्वान किया। किन्तु भारत की विदेश मन्त्री सुषमा स्वराज ने स्पष्ट किया कि करतारपुर की वार्ता दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय वार्ता का संकेत नहीं है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि :
देखिए, द्विपक्षीय वार्ता तथा करतारपुर कारीडोर दो अलग बातें हैं। और मुझे प्रसन्नता है कि गत 20 वर्षों से बल्कि अनेक वर्षों से भारत करतारपुर कारीडोर की माँग करता रहा है और पहली बार पाकिस्तान इस पर सकारात्मक रुख दिखाया है। किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि केवल इसी बात पर द्विपक्षीय वार्ता प्रारम्भ हो जायेगी। द्विपक्षीय वार्ता का सदैव यह अर्थ रहा है कि बातचीत तथा आतंकवाद दोनों साथ-साथ नहीं चल सकते। जिस दिन से पाकिस्तान भारत में आतंकवादी गतिविधियों को रोकना प्रारम्भ करेगा उसी समय से वार्ता प्रारम्भ हो सकती है। किन्तु वार्ता केवल करतारपुर कारीडोर से ही सम्बद्ध नहीं है।
किन्तु यह पाकिस्तान नहीं हो पायेगा क्योंकि वह एक ओर करतारपुर कारीडोर के मुद्दे को अपनी अच्छाई के रूप में दिखाना चाहता है और दूसरी ओर भारत को वार्ता के लिए तैयार करना चाहता है। यद्यपि वह कुछ हद तक अच्छा दिखाई देने में कामयाब रहा और विशेष रूप से पंजाब राज्य में, किन्तु वह वार्ता के क्षेत्र का विस्तार करने में पूर्णत: असफल रहा। अपनी अप्रसन्नता के बावजूद पाकिस्तान इस प्रक्रिया में आगे बढ़ता रहा और 21 जनवरी, 2019 को समझौते की एक रूपरेखा साझा की तथा भारत से करतारपुर कारीडोर खोलने के लिए समझौते को अन्तिम स्वरूप देने हेतु एक प्रतिनिधिमण्डल भेजने के लिए आमन्त्रण दिया। इसके उत्तर में भारत ने शून्य बिन्दु (क्रॉसिंग प्वाइंट) के नियामक साझा किये और साथ ही इसके तौर-तरीके पर चर्चा करने और अन्तिम स्वरूप देने के लिए पाकिस्तानी प्रतिनिधिमण्डल को भारत आने का निमन्त्रण भी दिया।
चूँकि भारत वार्ता का क्षेत्र विस्तारित करने पर सहमत नहीं था और स्वयं को करतारपुर कारीडोर तक ही सीमित रखा अत: पाकिस्तान की कुण्ठा और अधिक बढ़ गयी। पाकिस्तान के सूचना मन्त्री फवाद चौधरी ने 28 जनवरी को गल्फ न्यूज के एक साक्षात्कार में कहा कि "जब तक कुछ स्थिरता नहीं आती है तब तक उनसे (भारत से) बातचीत करना निरर्थक है। चुनाव समाप्त होने के बाद नई सरकार के बनने पर हम आगे की दिशा तय करेंगे। हम भारत के साथ बातचीत करने के अपने प्रयासों में देर कर चुके हैं क्योंकि हमें वर्तमान भारतीय नेतृत्व से किसी बड़े निर्णय की आशा नहीं है।" यह सम्भवत: उनकी बढ़ी हुई कुण्ठा का सूचक थी।
अस्थायी गड़बड़ी
14 फरवरी, 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा हमले के बावजूद जिसमें के.रि.पु.ब. (सीआरपीएफ) के 40 सैनिकों की मृत्यु हो गयी थी और बालाकोट में जैशे मुहम्मद के प्रशिक्षण शिविर पर पूर्व-अग्रक्रय तथा गैर-सैन्य हमले और उसके पश्चात वायुसेना के प्रकरण हुए, करतारपुर वार्ता जारी रही। 14 मार्च के अटारी में एक बैठक आयोजित हुई जिसमें दोनों पक्षों ने प्रस्तावित करतारपुर कारीडोर से सम्बन्धित अनेक मुद्दों पर रचनात्मक बातचीत हुई। दोनों देशों के तकनीकी विशेषज्ञों ने तकनीकी मुद्दों जैसे तैयार सड़क की ऊँचाई, उच्च बाढ़ स्तर आदि पर चर्चा के लिए 19 मार्च को जीरो प्वाइंट पर बैठक की। दोनों पक्ष कारीडोर के क्रियान्वयन को अन्तिम स्वरूप देने के लिए 2 अप्रैल को वाघा में अगली बैठक करने के लिए सहमत हुए।
दोनों पक्षों की तैयारी के मध्य, 27 मार्च को पाकिस्तान की फेडरल कैबिनेट ने 10 सदस्यों की एक नयी पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी (पीएसजीपीसी) का गठन किया जिसमें बिशनसिंह, कुलजीत सिंह, मनिन्दर सिंह, गोपालसिंह चावला, महिन्दरपाल सिंह, साहिब सिंह, सन्तोख सिंह, शमशेर सिंह, तारा सिंह तथा भगत सिंह को शामिल किया गया। पीएसजीपीसी में गोपाल सिंह को शामिल करने से भारत ने न केवल विरोध प्रदर्शित किया और इस पर स्पष्टीकरण माँगा बल्कि साथ कहा कि इसकी रूपरेखा पर अगली बैठक पाकिस्तानी उत्तर प्राप्त होने के बाद ही निर्धारित की जा सकेगी।
भारतीय मीडिया गोपाल सिंह चावला को "खालिस्तानी आतंकवादी" मानती है जो कि लश्करे तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद के काफी निकट है। किन्तु द प्रिन्ट के अनुसार चावला कभी किसी आतंकवादी गतिविधि में संलिप्त नहीं रहा है और भारतीय सतर्कता एजेन्सियों ने संदिग्ध के रूप में उसे कहीं सूचीबद्ध नहीं किया है। पाकिस्तान ने बिना पूर्व परामर्श के प्रस्तावित बैठक रद्द करने पर खेद जताया और कहा कि इससे प्रगति में बाधा पड़ेगी। यह एक अस्थायी अशान्ति प्रतीत होती है और प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए दोनों पक्षों द्वारा इसे शीघ्र ही सुलझा लिया जायेगा।
द्विपक्षीय सम्बन्धों के निहितार्थ
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, भारत-पाक सम्बन्धों में किसी भी प्रकार की नरमी का दोनों पक्षों द्वारा उत्तम हाव-भाव तथा उत्साह से स्वागत किया जाता है। किन्तु इस बार पाकिस्तान के इस व्यवहार के प्रति भारत की मिश्रित प्रतिक्रिया हुई। पंजाब के अनेक उदार बुद्धिजीवियों तथा जनता ने करतारपुर पहल का स्वागत किया और वे यथाशीघ्र इसे तार्किक परिणति पर देखना चाहते हैं। किन्तु पाकिस्तान के प्रति कठोर मंशा वाले लोगों को शंका है और नई दिल्ली को पाकिस्तानी डिजाइन तथा वार्ता की सम्भावित गिरावट की चिन्ता है। उनका तर्क है कि पाकिस्तान सरकार तथा इसकी संस्थाओं की प्रकृति के कारण भारत को पाकिस्तान से सम्बन्धित उपागम तथा नीतियों के विषय में अत्यधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है। इन विरोधाभासी दृष्टिकोणों के कारण नई दिल्ली की सत्तासीन सरकार वर्तमान समय में कम उत्साहजनक प्रतीत होती है। भारत में आम चुनाव नजदीक हैं जिसके कारण सत्ताधारी दल तथा विपक्ष दोनों ही किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते हैं। किन्तु नई दिल्ली में पुन: नई सरकार के गठन के बाद करतारपुर प्रक्रिया को तेज करने के विषय में निश्चित रूप से कदम उठाये जायेंगे।
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* लेखक, शोधकतार्, वैश्विक मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण : इसमें व्यक्त विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
सन्दर्भ
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