वर्तमान में सूडान एक वैसी ही स्थिति की ओर अग्रसर है जिसमें इस क्षेत्र के लीबिया, यमन और सीरिया जैसे देश फंसे हुए हैं।सऊदी अरब, तुर्की और संयुक्त अरव अमीरात जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के बीच वैचारिक और राजनीतिक विभाजन और तनाव एवं देश में उनकी दृश्य भागीदारी को देखते हुए, स्थिति के आगे अस्थिर होने की संभावना है।
शायद ही किसी ने कभी सोचा होगा कि सूडान अपने सफेद चोंगे मेंराष्ट्रीय ध्वज लहराते और ‘बशीर को निकालो’ का प्रमुख नारा देते हुए विरोध के प्रतीक के रूप में उभरी, एक बीस वर्ष की लड़की, अला सालेह1 के कारण इतनी जल्दी राजनीतिक रसातल में पहुँच जाएगा।इसने वैश्विक मीडिया का ध्यान आकर्षित किया और एक सप्ताह तक सोशल मीडिया पर छाई रही। लेकिन राज्य में अरब विरोधी राजनीति के बाद जो हुआ था, उसी तरहराज्य के गहरे तत्वों2के वापस आते ही उत्साह कम हो गया।
लगता है कि सूडान में सैन्य-कुलीन वर्ग राज्य केगहरे तत्वों के सहयोग से एक नई राजनीति के जन्म को इसकी नवजात अवस्था में ही कुचल रहा है।अप्रैल 2019 में उमर अल-बशीर के तीन-दशक पुराने शासन के अंत की गति लगभग उसी की प्रतिकृति थी जो स्थिति अरब के उत्थान के शुरुआती दिनों में देखी गई थी, जब लोगों के विरोध और असंतोष तथा सड़कों पर यथास्थिति की राजनीति के कारण कई लोगों को अपनी सत्ता छोड़ने मजबूर होना पड़ा था। अल-बशीर का तीन-दशक का शासन उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपति निमाइरी के समान था, जिन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के माध्यम से अपने विरोधियों पर शासन किया था। अल-बशीर की तरह, राष्ट्रपति निमाइरी को भी खाद्य मूल्य वृद्धि के विरोध और शासक के प्रति बढ़ते असंतोष के बाद कुछ हफ्तों में हटा दिया गया था।
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1 उन्हें स्थानीय और वैश्विक मीडिया में कंडाका के रूप में प्रस्तुत किया गया था जो न्युबियन रानी कीउपाधि थी। वे सूडानी लोकगीतों में एक ऐसी औरत के रूप मेंवर्णित हैं जिसने सूडान के लिए बहुत त्याग किया है
2 गहरे राज्य (डीप स्टेट) में उन तत्वों को शामिल किया जाता है जिन्होंने यथास्थिति की राजनीति में रुचि विकसित की है और हमेशा मौजूदा राज्य प्रणाली का समर्थन किया है। वे मुख्य रूप से राजनीतिक अभिजात वर्ग, नौकरशाह, उद्यमी, मीडिया हाउस और सैन्य कुलीन वर्ग हैं जिनकी शक्ति और विशेषाधिकार सीधे राज्य से जुड़े हुए हैं।
निमाइरी को हटाने में सशस्त्र बलों की भूमिका बहुत निर्णायक थी और अल-बशीर के शासन का अंत भी तभी हुआ, जब उनकी सेना ने यह एहसास होने के बाद उन्हें छोड़ दिया कि उनका अस्तित्व बने रहना असंभव हो गया था।
यह सब दिसंबर 2018 में शुरू हुआ, जब लोग रोटी अनुदान3 को हटाने और आम वस्तुओं की मूल्य वृद्धि का विरोध करने के लिए खारतूम की सड़कों पर उतर आए।धीरे-धीरे इस आंदोलन ने पूरे देश को जकड़ लिया और जल्द ही एक बोझ बन गये और आर्थिक और राजनीतिक कठिनाइयों के अपराधी के रूप में देखे जाने वाले,राष्ट्रपति उमर अल-बशीर को सत्ता से हटाने के लिए एक पूर्ण सार्वजनिक मार्च में शामिल हुए।6 अप्रैल 2019, सूडान की राजनीति में एक विशेष दिन बन गया क्योंकि लोगों ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया और उमर के बाहर निकलने की मांग की।अरब दुनिया के अन्य देशों की तरह, सेना ही एक बार फिर से, उत्प्रेरक साबित हुई और प्रदर्शनकारियों के रास्ते में नहीं आई, जिससे शायद यह बात परिलक्षित होती थी कि एक देश की सेना दूसरे देशों के उदाहरणों से कैसे सीखती है।अरब के उभरने के बाद की राजनीति में सेना की भूमिका को देखने पर यह बात और स्पष्ट हो जाती है, जहां सेना ने अलग-अलग लेकिन निर्णायक भूमिका निभाई है।
सड़कों पर बढ़ते दबाव के कारण 11 अप्रैल को, उमर अल-बशीर को सत्ता से हटा दिया गया था। सशस्त्र बलों का समर्थन या सहानुभूति जीतने में उनकी विफलता का मतलब लगभग वही था जो2011 में मिस्र के राष्ट्रपति मुबारक के साथ हुआ था,जब उनकी सेना ने बढ़ते दबाव के कारण यह एहसास होने के बाद उनका साथ छोड़ दिया कि उनका अस्तित्व असंभव हो गया है।
सशस्त्र बलों ने देश पर शासन करने के लिए एक सात सदस्यीय संक्रमणकालीन सैन्य परिषद (टीएमसी) का गठन किया और प्रदर्शनकारियों ने अपने समूह, 'एलायंस ऑफ़ फ्रीडम एंड चेंज (एएफसी)' तथा सूडानी प्रोफेशनल एसोसिएशन का गठन किया, जो चाहता था कि तत्काल नागरिक इकाई को सत्ता सौंप दी जाए।
कई दौर की वार्ता हुई, लेकिन कार्यकारी और संप्रभु परिषद में प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर कोई प्रगति नहीं हुई।4टीएमसी ने नागरिकों के साथ कार्यकारी शक्ति साझा करने से इनकार कर दिया, जबकि विपक्षी ताकतें परिषद में बहुमत और कार्यकारी शक्ति दोनों चाहती थीं।"सूडान पर कौन शासन करेगा" के मुद्देके सूडान के राजनीतिक प्रक्षेप को निर्धारित करने की संभावना है और किसी को नहीं पता कि यह मिस्र के मार्ग पर जाएगा या ट्यूनीशिया के राजनीतिक मॉडल का अनुसरण करेगा।
3 कई अरब देशों में अनुदान अशांति का एक प्रमुख कारण रहा है और इस क्षेत्र ने अतीत में रोटी अनुदान को हटाने के कारण कई विरोध देखे हैं
4 15 मई को टीएमसी और एएफसी के बीच हुए एक समझौते के अंतर्गत, एक कार्यकारी परिषद विधायी निकाय और एक मानद संप्रभु परिषद बनाई गई थी।
वास्तव में सुन्नी राजनीति नेसूडानी राजनीति के पूरे परिदृश्यको बदल दिया और खारतूम में सेना मुख्यालय के सामने 3 जून, 2019 को धरने के समय प्रदर्शनकारियों के खिलाफ सेना द्वारा की गई हिंसक कार्रवाई ने सुलह की संभावना को कम कर दिया।मरने वालों की संख्या के बारे में विरोधाभासी रिपोर्टें हैं और कुछ रिपोर्टों में तीन सौ प्रदर्शनकारियों की हत्या का उल्लेख है।5नील नदी से निकाले गए कई शवों से महिलाओं से बलात्कार की खबरें मिली हैं।विपक्ष ने घटना6में संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व वाली जांच की मांग की और इसके बाद सेना के साथ सभी वार्ताएं स्थगित कर दीं।प्रदर्शनकारियों ने शहरी क्षेत्रों से सेना को हटाने और विशेष रूप से, सरकार द्वारा बनाए गए मिलिशिया, जांजावेद6 को तत्काल भंग करने की भी मांग की, जो कथित रूप से 3 जून की हत्याओं के पीछे थी।उनकी ओर से टीएमसी के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अब्देल फतह अब्देलरहमान बुरहान ने एक टेलीविज़न संबोधन में तीन वर्ष की बजाय नौ महीने8 के भीतर चुनाव कराए जाने के साथ एक कार्यवाहक सरकार के गठन की घोषणा की।यह देखना बाकीहै कि क्या यह देश की नई राजनीतिक प्रक्रिया में पुराने रक्षक को बहाल करने के लिए एक सामरिक कदम से अधिक है।
5वाशिंगटन पोस्ट, अमेरिका ने सेना की तबाही को विनाशकारीhttps://www.washingtonpost.com/14 जून, 2019 को उपयोग किया गया।
6दबंग, एक अरबी समाचार पोर्टलhttps://www.dabangasudan.org/en/all-news/article/sudan-junta-calls-for-resumption-of-talks-opposition-refuses?utm_source=Media+Review+for+June+7%2C+2019&utm_campaign=Media+Review+for+June+7%2C+2019&utm_medium=email
14 जून, 2019 को उपयोग किया गया
7वे 2003 के दारफुर संघर्ष के दौरान और दारफुर संकट की समाप्ति के बाद शुरू में विद्रोही ताकतों को दबाने के लिए पिछली शासन द्वारा बनाई गई एक अनियमित सशस्त्र मिलिशिया हैं; सूडान राज्य ने उन्हें भंग नहीं किया और राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए समय-समय पर इसका इस्तेमाल करने के लिए इसे बनाये रखा।उमर के अधीन, वे सूडान की राष्ट्रीय सेना में लगभग एकीकृत थे और उन्हें विशेष सुरक्षा बलों का नाम दिया गया और उन्होंने राष्ट्रपति की निजी सेना की तरह काम किया और आज वे अब्देल फतह, के डिप्टी श्री दागोलो के नियंत्रण में काम कर रहे हैं।
8स्पुतनिक, एक रूसी दैनिकhttps://sputniknews.com/middleeast/201906041075597056-sudan-military-transitional-council-agreements-opposition/17 जून, 2019 को उपयोग किया गया
क्षेत्रीय शक्तियों की भूमिका:
अरब जगतके संकट के सबसे दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सों में से एक यह रहा है कि कोई भी देश बाहरी हस्तक्षेप से नहीं बच पाया है और सूडान को भी इसी कासामना करना पड़ा है।3 जून की घटना श्री बुरहान के मक्का में अरब-इस्लामिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए सऊदी अरब जाने और “डील ऑफ द सेंचुरी” और यमन9के युद्ध के लिए अपने समर्थन की घोषणा करने के बाद हुई।शिखर सम्मेलन में बुरहान की भागीदारी घरेलू स्तर पर बिना किसी राजनीतिक या संवैधानिक वैधता के हुई थी।इसके अलावा, श्री बुरहान द्वारा अपनी वर्दी उतारने का निर्णय एक नागरिक वेश और सैन्य भावना के साथ देश पर शासन करने की उनकी इच्छा को दर्शाता है।
हेमेती के नाम से जाने जानेवाले और बुरहान के डिप्टी, मोहम्मद हमदान दगोलो भी सऊदी अरब गए और शहजादा मोहम्मद बिन सलमान के साथ बैठक में सूडानी सैनिकों को यमन में सऊदी के नेतृत्व वाले गठबंधन की मदद करने के लिए भेजने की घोषणा की गई।यह ध्यान रखना चाहिए कि सऊदी अरब के अल-बशीर के साथ भी अच्छे संबंध थे और उसने नए शासन के साथ भी इसी तरह का संबंध बना रखा है।संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब द्वारा सूडान के नए शासन को 3 अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता की हाल की घोषणा इस बात का संकेत है कि ये देश की नई शासन व्यवस्था के पूर्ण समर्थक हैं।बाद में श्री बुरहान ने संयुक्त अरब अमीरात और मिस्र का दौरा किया, जिसका सऊदी अरब की तरह अल-बशीर के साथ एक अच्छा संबंध थाऔर लगता है कि इन तीनों देशों की इस क्षेत्र में देश या विदेश में किसी लोकतांत्रिक उत्थान के लिए कोई चाह नहीं है।यह ध्यान रखना चाहिए कि वर्तमान अरब राजनीति को आकार देने वाले कई कारक सूडान में भी काम कर रहे हैं।उदाहरण के लिए, तुर्की, जिसने हाल के वर्षों में पूरे क्षेत्र में इस्लामवादियों का समर्थन किया है, सूडान में भी ऐसी ताकतों का समर्थन कर रहा है, जबकि सऊदी अरब, मिस्र और संयुक्त अरब अमीरात सेना को सहर प्रकार का समर्थन प्रदान कर रहे हैं और वे इस्लामवादी तत्वों को किसी भी प्रकार का लाभ नहीं उठाने देना चाहते, जो राजनीतिक अशांति के बीच अपने लिए जगह बनाने की कोशिश कर रही हैं।ऐसी खबरें हैं कि मिस्र के अपार दबाव के कारण वर्तमान शासन अल-बशीर के कार्यकाल के दौरान तुर्की के साथ हस्ताक्षरित सौदे को रद्द करने की योजना बना रहा है।11सऊदी अरब की तरह तुर्की का भी अल-बशीर के साथ अच्छा संबंध था और 2017 में राष्ट्रपति एर्दोगन की यात्रा को ऐतिहासिक माना गया था, उस समय दोनों नेताओं ने कई रणनीतिक और आर्थिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे।
अफ्रीकी संघ (एयू) शांति और सुरक्षा परिषद ने अफ्रीकी संघ (एयू) गतिविधियों में सूडान की भागीदारी को निलंबित कर दिया और टीएमसी से तीन महीने के भीतर एक नागरिक सरकार को सत्ता सौंपने के लिए कहा, लेकिन यह कार्रवाई कोई भी बदलाव लाने में विफल रही है और वर्तमान में टीएमसीऔर एएफसीकी अगुवाई वाले असैन्य समूहों के बीच की बातचीत को टीएमसी12द्वारा निलंबित कर दिया गया है।
9रेल योउम, एक अरबी दैनिक, https://Shrinx.it/3tk5पर 12 जून, 2019 को उपयोग किया गया।
10रायटर्सhttps://www.reuters.com/article/us-sudan-protests/saudi-arabia-uae-to-send-3-billion-in-aid-to-sudan-idUSKCN1RX0DGपर26जून, 2019 को उपयोग किया गया।
11मुस्तफ़ा गुरबज,सऊदी अरब और तुर्की ने सुडान में तुर्की को किस तरह से पछाड़ा, अहवाल,https://ahvalnews.com/geopolitics/how-saudi-arabia-outmanoeuvred-turkey-sudan पर,27 जून, 2019 को उपयोग किया गया।
12भ्वॉयस ऑफ अमेरिकासमाचारhttps://www.voanews.com/africa/african-union-suspends-sudan-demands-civilian-administrationपर, 13जून, 2019 को उपयोग किया गया।
जहां तक बड़ी शक्तियों की भूमिका का सवाल है, चीन और रूस ने संयुक्त राष्ट्र में सूडान के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के अमेरिकी कदम का विरोध किया, अगर यह याद करें कि सीरिया और लीबिया पर राष्ट्रपति असद के खिलाफ अमेरिका के कितने कदमों पर वीटो लगाया गया या विरोध किया गया तो यह अमेरिका के खिलाफ उनकी हाल की नीतियों को जारी रखने के लिए किया गया कार्य प्रतीत होता है।इथियोपिया के प्रधानमंत्री अबे अहमद ने दोनों पक्षों को सुलह की दिशा में मनाने के गतिरोध के बीच सूडान13 गए, लेकिन उन्हें बिना किसी वांछित परिणाम के वापस लौटना पड़ा।श्री अबे ऐसे व्यक्ति है जिनपर विपक्ष विश्वास करता है, विशेषकर जबसेउन्होंने अपने पड़ोसी देश, एरेट्रिया के साथ हाल ही में शांति स्थापित करने में हिस्सा लिया है, तबसे उन्हें उनके कूटनीतिक कौशल के लिए व्यापक रूप से जाना जाता है।
निष्कर्ष:
देश में वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए, सूडान के क्षेत्रीय हस्तक्षेप के एक नए खतरे के भंवर में फंसने की आशंका हो सकती है, जो शायद देश को अपने स्वतंत्र राजनीतिक मार्ग का अनुसरण करने काअवसर न दे।
वर्तमान में सूडान एक ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है जिसमें सऊदी अरब, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात जैसी क्षेत्रीय शक्तियों के बीच के वैचारिक और राजनीतिक विभाजन के कारण क्षेत्र के अधिकांश देश पहले से ही हुए फंस गए हैं और क्षेत्रीय देशों के घरेलू मामलों में उनका स्पष्ट हस्तक्षेप है।वर्तमान में यह आवश्यक है कि एएफसी और सेना के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों के बीच विश्वास निर्माण के उपायकिए जाएं क्योंकि दोनों पक्षों के बीच पूरी तरह से विश्वास की कमी है।टीएमसी और वार्ताकारों दोनों को एक-दूसरे की सीमाओं और आकांक्षाओं को समझना चाहिए और इनका सम्मान करना चाहिए।इसके आगे, स्थिति की जटिलताओं को देखते हुए, जिसमें दोनों पक्षों में एक समावेशी दृष्टिकोण की कमी है, एक क्रमिकतावादी और समावेशी दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है ताकि दोनों पक्ष यमन और लीबिया की घटनाओं से सबक ले सकें,जहाँसमावेशी दृष्टिकोण और एक रोडमैपकी कमी नेराजनीतिक प्रक्रिया को पटरी से उतार दिया है।
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* डॉ. फज़ूर रहमान सिद्दीकी, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद के नहीं।