अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सहायता बल "...काबुल और इसके आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा के रखरखाव में अफगान अंतरिम प्राधिकरण की सहायता करने, ताकि अफगान अंतरिम प्राधिकरण के साथ ही संयुक्त राष्ट्र के कार्मिक एक सुरक्षित वातावरण में काम कर सकें”1के लिए 2001 में स्थापित एक संयुक्त राष्ट्र अधिकृत बल था। आईएसएएफ का गठन दिसंबर 2001 में बॉन सम्मेलन2के अनुसार किया गया था।
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन ने अगस्त 2003 से दिसंबर 2014 तक अफगानिस्तान में आईएसएएफ की कमान संभाली थी। इसका मिशन अफगान अधिकारियों को देश भर में प्रभावी सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम बनाना और यह सुनिश्चित करना था कि यह फिर कभी आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह नहीं होगा। आईएसएएफ ने अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों के क्षमता निर्माण में मदद की। जैसे-जैसे ये बल मजबूत होते गए, उन्होंने आईएसएएफ मिशन के पूरा होने से पहले धीरे-धीरे देश भर में सुरक्षा की जिम्मेदारी ले ली।3
स्रोत: नाटो, http://www.nato.int/isaf/placemats_archive/2007-12-05-ISAF-Placemat.pdf
आईएसएएफ संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित सबसे बड़े गठबंधनों में से एक था। अपने चरम पर, बल में 51 नाटो और साझेदार राष्ट्रों से 130,000 से अधिक सैनिक थे। आरंभ में, राजधानी काबुल में और उसके आसपास सुरक्षा प्रदान करने के लिए अक्टूबर 2003 में तैनात किए गएआईएसएएफ को,संयुक्त राष्ट्र ने देश भर में मिशन के विस्तार का मार्ग प्रशस्त करते हुए, पूरे अफगानिस्तान (यूएनएससीआर 1510)4 को कवर करने का अधिदेश दिया। जैसे-जैसे आईएसएएफ ने पूर्व और दक्षिण में विस्तार किया, उसके सैनिक अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में मदद करने की कोशिश करते हुए, 2007 और 2008 में बढ़ते विद्रोह से लड़ने में तेजी से लगे रहे। 2009 में, एक नई आतंकवाद-रोधी योजना शुरू की गई और 40,000 अतिरिक्त सैनिक तैनात किए गए। अफगान सरकार के समर्थन में, आईएसएएफ ने पूरे देश में सुरक्षा अभियानों के संचालन में अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बलों की सहायता की, जिससे विद्रोह की क्षमता को कम करने में मदद मिली। आईएसएएफ की एक महत्वपूर्ण प्राथमिकता अफगान बलों की क्षमता और सक्षमता को बढ़ाना था। 2011 के बाद यह मिशन का मुख्य फोकस बन गया, क्योंकि सुरक्षा की जिम्मेदारी उत्तरोत्तर अफगान नेतृत्व के बलों को दे दी गई और आईएसएएफ की लड़ाकू-केंद्रित भूमिका प्रशिक्षण, सलाह और सहायता में बदल गई।5
स्रोत: नाटो, http://www.nato.int/isaf/placemats_archive/2007-12-05-ISAF-Placemat.pdf
जबकि सभी नाटो सदस्यों का उद्देश्य अफगानिस्तान को ऐसे सहायता प्रदान करना जारी रखना है, ताकि वह ठोस आर्थिक आधार स्थापित करने के साथ अपनी राजनीतिक क्षमता हासिल कर सके; अफगान सुरक्षा बलों की क्षमता, देश में कानून और व्यवस्था की स्थिति, बुनियादी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवसर प्रदान करने और पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध बनाने से संबंधित मुद्दे अब भी भ्रामक बने हुए हैं।
आईएसएएफ मिशन को अधिकांश सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा सफलकम और विफलअधिक माना गया है। कुछ लोग बताते हैं कि ओसामा बिन लादेन की मौत और इस तथ्य कि अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में नहीं है, को मिशन की सफलताओं के रूप में देखा जाना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि आईएसएएफ मिशनों ने देश में बुनियादी ढांचे जैसे सड़कों, स्कूलों और बाजार के निर्माण में मदद की है। अन्य लोग बताते हैं कि मिशनों की सफलता के अब उलटने का खतरा है। उनका दावा है कि अल कायदा और तालिबान को अब अफगानिस्तान में शरण नहीं मिल रही, पड़ोसी पाकिस्तान में उनका शरण पाना जारी है। ये समूह सत्ता में भले ही न हों, लेकिन वे जमीन हासिल कर रहे हैं। बम हमलों के कारण बड़े पैमाने पर नागरिक हताहतों की संख्या के कारण अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति अस्थिर बनी हुई है। आज अफगानिस्तान की जिम्मेदारी अफगान सेनाओं पर है। हालांकि अफगान सेनाओं को अच्छी तरह से प्रशिक्षित किया जाता है, फिर भी अफगान सुरक्षा व्यवस्था में अंतराल हैं, जिससे कई लोग अंतर्राष्ट्रीय सहायता के बिना देश में दीर्घकालिक सुरक्षा की स्थिरता पर सवाल उठा सकते हैं। अफ़गान बलों की प्रभावशीलता और उनके संचालन के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहायता पर अफ़गान सरकार की निर्भरता चिंता का एक अन्य क्षेत्र है। अफगान स्थानीय पुलिस उन नागरिकों का विश्वास जीतने में सक्षम नहीं है जो इसे अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहे एक भ्रष्ट संस्थान के रूप में देखते हैं। सुरक्षा बलों को हताहतों की अधिक संख्या से भी जूझना पड़ता है। बलों का पलायन, मुकाबले संबंधित अक्षमताओं, मादक द्रव्यों के सेवन और भ्रष्टाचार से ग्रस्त रहना जारी है। राजनीतिक क्षेत्र में, अफगान सरकार और तालिबान के विभिन्न गुटों के बीच शांति के लिए बातचीत भी सफल नहीं रही, जिससे गृहयुद्ध में वापसी की आशंका बढ़ गई। इस नाजुक माहौल में, अफगानिस्तान 2018 में राष्ट्रपति चुनाव कराएगा। अफगान सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक होगा कि राष्ट्र में स्थिरता के संकेत के रूप में अधिक से अधिक नागरिक इन चुनावों में भाग लें। इसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लोकतंत्र और चुनावी प्रक्रिया की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए सत्ता का सुचारू हस्तांतरण हो। अफगान अर्थव्यवस्था के विकसित होने की प्रक्रिया धीमी रहेगी। इसमें तभी मदद मिलेगी यदि अफगानिस्तान अपने सभी पड़ोसियों के साथ बेहतर संबंध बनाने में सक्षम हो सके जिससे भूबद्ध देश के सभी पड़ोसी अन्य राष्ट्रों के साथ व्यापार स्थापित करने सहायता करें। हालांकि, पिछले मतभेदों विशेष रूप से पाकिस्तान के साथ, के परिणामस्वरूप इसमें समय लगेगा।
शायद इसी को ध्यान में रखते हुए, अफगान बलों और संस्थानों की सहायता के लिए नाटो के नेतृत्व वाला नया मिशन, सुनिश्चित सहयोगमिशन, जनवरी 2015 में शुरू किया गया।
सुनिश्चित सहयोग मिशन
सुनिश्चित सहयोग मिशन अफगान सुरक्षा बलों और संस्थानों को प्रशिक्षित करने, सलाह देने और उनकी सहायता करने के लिए नाटो के नेतृत्व वाला नया मिशन है। आरएसएम का कानूनी ढांचा 30 सितंबर 2014 को काबुल में हस्ताक्षर और 27 नवंबर 2014 को अफगान संसद द्वारा अनुसमर्थन किए गए बलों की स्थिति समझौते द्वारा प्रदान किया गया है। सोफा उन नियमों और शर्तों को परिभाषित करता है जिनके तहत नाटो बलों की तैनाती की जाती है और जिन गतिविधियों को करने के लिए वे अधिकृत हैं। मिशन को 12 दिसंबर 2014 को सर्वसम्मति से अंगीकार किए गए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2189 द्वारा भी समर्थन प्राप्त है।6
आरएसएम बढ़ते तालिबान विद्रोह का मुकाबला करने के लिए क्षमताओं का निर्माण करने में अफगान सुरक्षा बलों के विकास को समर्थन जारी रखने के वाला एक गैर-लड़ाकू मिशन है। आरएसएम देश भर में सुरक्षा मंत्रालयों और राष्ट्रीय संस्थागत स्तरों और सेना और पुलिस के उच्च स्तर पर प्रशिक्षण, सलाह और सहायता गतिविधियां प्रदान कर रहा है। जुलाई 2016 तक, इसमें नाटो सहयोगी और साझेदार देशों के लगभग 13,000 कर्मी, एक मुख्य केंद्र (काबुल/बागराम) और चार शाखाओं (उत्तर में मजार-ए शरीफ, पश्चिम में हेरात, दक्षिण में कंधार, और पूर्व में लगमन) में कार्यरत हैं।7
मिशन के प्रमुख कार्यों में शामिल हैं:
स्रोत: नाटो, http://www.nato.int/cps/in/natohq/topics_113694.htm
नाटो द्वारा घोषित किए नए मिशनों और अफगानिस्तान में अमेरिका की भूमिका का विस्तार करने की राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा व्यक्त प्रतिबद्धता के बावजूद, यह कहना उचित होगा कि लगभग दो दशकों की विदेशी सैन्य उपस्थिति में अफगानिस्तान की स्थिति अधिक नहीं सुधरी है। नागरिकों और सुरक्षा बलों पर हमलों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, अफीम की खेती ने रिकॉर्ड ऊंचाई हासिल की है, पुनर्निर्माण के प्रयास लड़खड़ा गए हैं और अफगान लोग उस दिशा के प्रति तेजी से सावधान हो रहे हैं जिस ओर उनका देश बढ़ रहा है। सुरक्षा चुनौतियों से निपटने के अलावा, राष्ट्रीय एकता सरकार अफगान जनता और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का विश्वास हासिल करने के उद्देश्य से चुनावी निकाय में सुधार और भ्रष्टाचार से निपटने सहित कई अन्य शीर्ष प्राथमिकताओं पर सहमत होती लगती है। सरकार को ऐसी अर्थव्यवस्था के निर्माण की दिशा में भी कार्य करना होगा जो विदेशी सहायता पर कम निर्भर रहे। दूसरी बड़ी चुनौती अवैध मादक पदार्थों का व्यापार है जो तालिबान के वित्तपोषण का करीब 60 प्रतिशत है। जहां अफगान राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा बल (ANDSF) ने तालिबान को किसी भी प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा करने और रखने से रोका है, सुरक्षा की घटनाओं और सशस्त्र झड़पों में वृद्धि हुई है, नागरिक हताहतों की संख्या अधिक हुई, और विद्रोहियों ने कुछ ग्रामीण क्षेत्रों पर नियंत्रण कायम रखा।10अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी बल (USFOR-A) के अनुसार, अफ़गानिस्तान सरकार और विद्रोही नियंत्रण दोनों के अधीन जिलों में जनवरी-अप्रैल 2017 के बीच बढ़ोत्तरी हुई। यूएसफॉर-ए ने बताया कि20 फरवरी 2017 के अनुसार देश के 407 जिलों में से लगभग 59.7% जिले अफगान सरकार के नियंत्रण या प्रभाव में हैं। विद्रोही नियंत्रण या प्रभाव वाले जिलों की संख्या भी बढ़कर 45 (15 प्रांतों में) हो गई।11अमेरिकी सेना का दावा है कि विद्रोही नियंत्रित क्षेत्रों में वृद्धि एएनडीएसएफ का महत्वपूर्ण क्षेत्रों की रक्षा करने और कम महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर जोर नहीं देने के सामरिक दृष्टिकोण का परिणाम है।
निष्कर्ष
अफगानिस्तान आतंकवाद को हराने की अमेरिकी लड़ाई में अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बना हुआ है। मौजूदा संबंध मई 2012 में राष्ट्रपति ओबामा और प्रधानमंत्री करज़ई के बीच संपन्न स्थायी सामरिक साझेदारी समझौते पर आधारित है। समझौता क्रमशः अमेरिका और अफगानिस्तान की आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को निर्धारित करता है। जुलाई 2012 में समझौता लागू होने के साथ, अमेरिका ने अफगानिस्तान को एक गैर-नाटो सहयोगी घोषित किया। दोनों राष्ट्रों ने सितंबर 2014 में द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। सुरक्षा समझौते ने दोनों के बीच आपसी सुरक्षा समझ को निर्धारित किया।
राष्ट्रपति ट्रम्प के अधीन अमेरिका ने अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति को प्राप्त करने के लिए अफगानिस्तान जुड़ाव पर अपनी पूर्ववर्ती नीति का पालन करने का निर्णय लिया और तालिबान की बढ़ती ताकत के साथ शांति पर बातचीत की। फिर भी, इन लक्ष्यों को हासिल करने के तरीके में कुछ संशोधन हैं। अफगानिस्तान में सेना को कैसे आगे बढ़ना है इसका निर्णय रक्षा विभाग के सचिव लेफ्टिनेंट जनरल जेम्स मैटिस द्वारा किया जाएगा, व्हाइट हाउस द्वारा नहीं। यह निर्णय अमेरिका द्वारा आईएसआईएल जैसे आतंकवादी समूहों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली सुरंग और गुफा नेटवर्क को नष्ट करने के लिए अफगानिस्तान में (अप्रैल 2017 में) अपना सबसे बड़ा गैर-परमाणु बम गिराने के लगभग तीन महीने बाद आया है। इस दृष्टिकोण के साथ व्हाइट हाउस अफगान स्थिरता के लिए एक बड़ा क्षेत्रीय दृष्टिकोण भी बना रहा है। यह अपनी दक्षिण एशिया नीति के नीतिगत भाग को अफगान-पाक नीति से विशिष्ट बता रहा है जिसका पालन ओबामा प्रशासन द्वारा किया गया। अमेरिका रूस या ईरान को अफगानिस्तान या अधिक बड़े दक्षिण एशिया क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की जगह देना पसंद नहीं करेगा। क्षेत्रीय दृष्टिकोण में पाकिस्तान और भारत भी शामिल हैं और संभवत: यह सचिव मैटिस और एनएसए लेफ्टिनेंट जनरल एच.आर.मैकमास्टर दोनों की कुछ महीने पहले दोनों देशों की यात्रा का प्रमुख कारण था।
इस समय अमेरिका के भीतर,यह सुनिश्चित करते हुए कि अफगान सरकार और सुरक्षा बल ऐसे राष्ट्र के निर्माण के लिए पर्याप्त तौर पर सुसज्जित हैं जो आतंकवादी समूहों और गृहयुद्ध पर नियंत्रण करने में सक्षम रहेगा, अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को सफलतापूर्वक वापस बुलाने के लिए कोई स्पष्ट दिशा नहीं प्रतीत होती।
एक नागरिक के तौर पर राष्ट्रपति ट्रम्प ने अफगानिस्तान में युद्ध का समर्थन नहीं किया, लेकिन अब सर्वोच्च सेनापति जिनका मुख्य अभियान एजेंडा अमेरिका और अमेरिकी नागरिकों को आतंकी हमलों से बचाना है, के तौर पर उन्हें सैन्य के साथ ही वित्तीय सहायता दोनों ही माध्यमों से अफगानिस्तान कासमर्थन जारी रखना होगा। अमेरिका के लिए अफगानिस्तान के बारे में कोई स्पष्ट मार्ग नहीं हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प को एक जटिल समस्या विरासत में मिली है। यह इंतजार करना और देखना होगा कि क्या अफगानिस्तान के प्रति राष्ट्रपति ट्रम्प की नीति पिछले दो राष्ट्रपतियों की कोशिशों से अलग परिणाम दे पाएगी।
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*डॉ.स्तुति बनर्जी , भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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अस्वीकरण: व्यक्त मंतव्य लेखक के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।