1971 में एक स्वतंत्र देश के रूप में अपनी स्थापना के बाद से बांग्लादेश ने एक लंबा सफर तय किया है। हालांकि, शेख मुजीबुर्रहमान की अवामी लीग (AL) ने मार्च 1973 में पहले आम चुनावों में एक शानदार जीत दर्ज की, किंतु एक स्वस्थ और प्रतिस्पर्धी लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना काफी लंबे समय तक दूर का सपना बनी रही। लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित अवामी लीग शासन जल्द ही एक गंभीर घरेलू साजिश का शिकार हो गया। एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना में, बांग्लादेश ने 15 अगस्त, 1975 को अपने महान नेता शेख मुजीबुर्रहमान को खो दिया और लोकतांत्रिक प्रयोग में एक ठहराव आ गया। अगले डेढ़ दशक में, बांग्लादेश ने खांडकर मुश्ताक अहमद (अगस्त-नवंबर 1975), न्यायमूर्ति अबू सादात मोहम्मद सईम (नवंबर 1975-अप्रैल 1977), मेजर जनरल जियाउर्रहमान (अप्रैल 1977-मई 1981) और लेफ्टिनेंट जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद (मार्च 1982-दिसंबर 1990) के चार सत्तावादी शासन देखे।
1990 तक, लोग तत्कालीन राष्ट्रपति हुसैन मुहम्मद इरशाद के तानाशाही शासन से तंग आ गए। विपक्षी राजनीतिक पार्टियां और समूह राष्ट्रपति के खिलाफ बढ़ते सार्वजनिक गुस्से का उपयोग करना चाहते थे। इस प्रकार, उन्होंने स्वयं को पुनर्गठित और इरशाद शासन को गिराने के अपने प्रयासों को एकजुट किया। इसके बाद सत्तावादी शासन के खिलाफ सामान्य हमले, बढ़ते विरोध और जनवादी रैलियों ने अंतत: राष्ट्रपति इरशाद को लोकतांत्रिक राजनीति अपनाने के लिए मजबूर किया। उनके इस्तीफे के बाद, मुख्य न्यायाधीश शहाबुद्दीन अहमद के अधीन एक तटस्थ अस्थाई सरकार ने तीन महीने के लिए कार्यभार संभाला। इसने नागरिक स्वतंत्रता बहाल की और फरवरी 1991 में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए।
दर्जनों छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने 1991 का चुनाव लड़ा, लेकिन शेख हसीना के नेतृत्व में अवामी लीग (AL) और खालिदा जिया के नेतृत्व में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) दो प्रमुख दावेदार रही। 1991 का चुनाव बांग्लादेश की राजनीति में एक ऐतिहासिक घटना साबित हुआ क्योंकि इसने न केवल संसदीय प्रणाली को बहाल किया, बल्कि विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का मार्ग प्रशस्त किया। तब से मुख्यधारा की ये दोनों पार्टियां राजनीतिक मोर्चे पर एक-दूसरे से गलाकाट प्रतिस्पर्धा में लगी हैं। स्वस्थ लोकतंत्रों के विपरीत, बांग्लादेश में राजनीतिक शक्ति के लिए खुली प्रतिस्पर्धा ने समाज का अत्यधिक राजनीतिकरण किया और पार्टी की तर्ज पर समाज में विभाजन को जन्म दिया। यह तब और जटिल हो गया जब इस्लामिक पार्टियों ने पांव पसारना शुरू कर दिया।
चुनाव मोड में मुख्यधारा की पार्टियां
बांग्लादेश में ग्यारहवीं संसद के लिए अगले आम चुनाव अक्टूबर 2018 से जनवरी 2019 के बीच होने की उम्मीद है। चुनाव आयोग में पंजीकृत कई छोटी राजनीतिक पार्टियों के अलावा, मुख्यधारा की तीन राजनीतिक पार्टियां — सत्तारूढ़ अवामी लीग, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP), और जातीय पार्टी (JP)— पहले से ही चुनाव मोड में लगती हैं। अन्य महत्वपूर्ण और सबसे बड़ी दक्षिणपंथी राजनीतिक पार्टी- बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी-अब मैदान में नहीं है, क्योंकि 2013 में अदालत द्वारा उसका पंजीकरण रद्द करने के आदेश के बाद चुनाव आयोग ने पार्टी को अपंजीकृत कर दिया। यह नहीं कहा जा सकता कि दक्षिणपंथी पार्टी आगामी आम चुनावों में कुछ नहीं करेगी। बीएनपी की यह दीर्घकालिक सहयोगी वर्तमान में बीएनपी के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा नहीं है, किंतु पार्टी संभवतः अपने पूर्ववर्ती साथी के लिए गुप्त रूप से कार्य करेगी।
अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के बीच संघर्ष दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है और यह अक्सर इनके नेताओं के भाषणों और बयानों से स्पष्ट होता है। दोनों ही पार्टियां आरोपों और प्रत्यारोपों की एकजुट श्रृंखला में संलग्न हैं। दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के बीच संघर्ष के बिना मुश्किल से कोई दिन गुजरता है। चाहे आबादी के बड़े भाग को प्रभावित करने वाले मुद्दे हों या विदेश नीति के मामले हों, दोनों पार्टियां अक्सर विपरीत स्थिति में रहती हैं। भारत के साथ संबंधों पर, बीएनपी अवामी लीग और प्रधानमंत्री शेख हसीना की काफी आलोचना करती है। इसने शेख हसीना की हालिया भारत यात्रा, जिसके दौरान रक्षा क्षेत्र में बहुचर्चित एमओयू सहित 11 समझौतों और 24 समझौता ज्ञापनों (MoUs) पर हस्ताक्षर किए गए, पर शोर-शराबा किया था। बीएनपी की अध्यक्ष ने न केवल यात्रा को "विफल" बताया, बल्कि कहा कि शेख हसीना भारत से "खाली हाथ" लौटी हैं। उन्होंने सत्ता में वापस आने के बाद भारत के साथ सभी "देश-विरोधी" सौदों की समीक्षा करने का भी वादा किया।
यूनाइटेड नेशनल अलायंस का गठन
मार्च 2017 में, जातीय पार्टी ने जातीय इस्लामिक महाजोत के बैनर तले अबू नासिर वाहिद के संयोजकत्व में एक नए राजनीतिक गठबंधन की घोषणा की। गठबंधन में 34 पार्टियां शामिल हैं। जातीय इस्लामिक महाजोत की शुरूआत के समय, जातीय पार्टी के अध्यक्ष, हुसैन मुहम्मद इरशाद ने अगले आम चुनावों से पहले एक महागठबंधन शुरू करने और इसे नेतृत्व प्रदान करने की भी इच्छा व्यक्त की। अपने इस कदम से, इरशाद अवामी लीग के महागठबंधन से बाहर आ गए, जो 2014 में पिछले आम चुनावों के लिए बनाया गया था। इसके बाद 7 मई, 2017 को हुसैन मुहम्मद इरशाद, अध्यक्ष और रूहुल अमीन, मुख्य प्रवक्ता के रूप में58 पार्टी यूनाइटेड नेशनल अलायंस (UNA) की घोषणा की गई।
यूएनए को देश का सबसे बड़ा राजनीतिक गठबंधन माना जाता है, क्योंकि सत्तारूढ़ अवामी लीग के नेतृत्व वाले गठबंधन में 14 पार्टियां शामिल हैं, जबकि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन में 19 पार्टियां हैं। यूएनए वास्तव में दो राजनीतिक पार्टियों — जातीय पार्टी और बांग्लादेश इस्लामी फ्रंट —और दो राजनीतिक गठबंधनों — जातीय इस्लामी महाजोत और बांग्लादेश नेशनल एलायंस का एक संयोजन है। यूएनए अध्यक्ष ने अपने भाषण में कहा कि “हम एक साथ आए हैं क्योंकि हमारी एक ही राजनीतिक विचारधारा, इस्लामी मूल्य, राष्ट्रीयता की भावना और देश के सभी धार्मिक समुदायों के लिए सम्मान है। हम स्वतंत्र बांग्लादेश के खिलाफ खड़े होने वाली किसी पार्टी या समूह को शामिल नहीं होने देंगे।"1 उन्होंने आगे कहा कि "गठबंधन का मुख्य उद्देश्य कानून और लोगों के बुनियादी अधिकारों को सुनिश्चित करते हुए एक आधुनिक बांग्लादेश का निर्माण करना है।‘’2 सत्तारूढ़ अवामी लीग ने इस बात पर चुप्पी साध रखी है, जबकि बीएनपी ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। बीएनपी के वरिष्ठ संयुक्त सचिव रूहुल कबीर ने यूएनए को सत्तारूढ़ पार्टी की बी-टीम करार दिया और कहा कि यह गठबंधन बांग्लादेश के लोगों को गुमराह करने के लिए महज एक ढकोसला है।3
अवामी लीग की रणनीति
सत्तारूढ़ गठबंधन मुख्य रूप से सरकार की उपलब्धियों और प्रधानमंत्री शेख हसीना की लोकप्रियता पर निर्भर रहकर, अपने कार्य के उचित प्रचार के लिए रणनीति पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। सत्तारूढ़ अवामी लीग मौका नहीं चूकना चाहती है और आगामी आम चुनावों की तैयारी में पूरी सावधानी के साथ आगे बढ़ रही है। जनवरी 2017 में, शेख हसीना ने अवामी लीग की सलाहकार परिषद को सेक्टर-वार इकाई बनाने का निर्देश दिया, ताकि चुनाव घोषणा पत्र समय पर तैयार किया जा सके। पार्टी के विभिन्न गुटों के बीच जमीनी स्तर पर मतभेदों को सुलझाने का प्रयास किया गया है। यह भी पता चला है कि निष्कासित नेताओं को सामान्य माफी की घोषणा के बाद, 2 मार्च, 2017 को विभिन्न जिला स्तरीय नेताओं को पत्र भेजकर उन्हें सूचित किया गया कि भविष्य में निष्कासन केवल पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा किया जाएगा।4अवामी लीग ने बीएनपी और जमात के प्रभुत्व वाले/प्रभावित क्षेत्रों की पहचान भी की है जहां शेख हसीना चुनाव से पहले खुद आएंगी। मार्च 2017 में प्रधानमंत्री की बोगरा, लक्ष्मीपुर, मगुरा, और फरीदपुर की यात्रा के साथ लक्षित क्षेत्रों से संपर्क करने का अभियान शुरू हुआ।
देर से ही, अवामी लीग ने अपना वोट शेयर बढ़ाने के लिए इस्लामी संगठनों और दबाव समूहों को लुभाने के प्रयास भी किए हैं। 11 अप्रैल को, शेख हसीना ने हिफ़ाज़त-ए-इस्लामी प्रमुख अल्लामा शाह अहमद शफी और दबाव समूह के कई अन्य प्रतिनिधियों से ढाका में अपने निवास पर मुलाकात की। बैठक के दौरान उन्होंने देश की शीर्ष अदालत के परिसर में स्थापित थीमिस नामक न्याय की ग्रीक देवी की मूर्ति को हटाने की उनकी मांग का लगभग समर्थन किया। कहा जाता है कि, प्रधानमंत्री ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से उच्चतम न्यायालय परिसर में प्रतिमा स्थापित करना पसंद नहीं करती थी। हसीना तो समूह द्वारा संचालित हज़ारों कौमी मदरसों की डिग्री को मान्यता देने पर सहमत हो गई। ये कोरे वादे नहीं थे। जल्द ही, राष्ट्र में मूर्ति5 हटाई और कौमी मदरसों की डिग्रियों को मान्यता दी गई।
बीएनपी की तैयारियां
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) ने एक तटस्थ, चुनाव के समय कार्यवाहक सरकार के मुद्दे पर पिछले चुनाव का बहिष्कार किया, जिससे सत्तारूढ़ अवामी लीग सहमत नहीं थी। इसने 2014 के आम चुनाव को विवादास्पद बना दिया और शेख हसीना के नेतृत्व में गठित नई सरकार की वैधता पर सवाल उठे। बीएनपी के लिए, बाद में यह जातीय संसद में स्वर का पूर्ण नुकसान साबित हुआ। कई बीएनपी नेता निजी तौर पर स्वीकार करते हैं कि चुनाव नहीं लड़ना एक गलती थी। हालांकि, बीएनपी ने कार्यवाहक सरकार प्रणाली की फिर-शुरूआत करने की अपनी मांग को से हटने का कभी भी संकेत नहीं दिया, लेकिन इस बार पार्टी व्यावहारिक रूप से भी सोचती लग रही है। हालिया घटनाक्रम बताते हैं कि पार्टी अगले संसदीय चुनाव लड़ने के लिए तैयार हो रही है। पार्टी वर्तमान में अपना पुनर्गठन करने और घोषणा पत्र तैयार करने के महत्वपूर्ण कार्य में व्यस्त है। इसके साथ ही, यह अपनी मांग के पक्ष में जनता की राय जुटा रही है और अवामी लीग पर चुनाव के समय कार्यवाहक सरकार की अपनी मांग को स्वीकार करने के लिए दबाव डाल रही है।
बीएनपी रणनीति, जैसे यह प्रतीत होती है, कार्यवाहक सरकार प्रणाली की बहाली और अपना चुनावी अभियान एक साथ शुरू करने की है। इस बार चुनावी कवायद का बहिष्कार करने की बात नहीं है। अप्रैल 2017 के मध्य में, बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा कि “हमने चुनाव के लिए जमीनी कार्य पहले ही पूरा करना शुरू कर दिया है। हमारी पार्टी की अनुसंधान इकाई संबंधित क्षेत्रों के विशेषज्ञों के सुझावों के साथ इसके लिए योजना और रणनीति बनाने का कार्य कर रही है।”6इस खुली स्वीकृति के तुरंत बाद, 3 मई को बीएनपी की अध्यक्ष खालिदा जिया ने खुद कहा कि पार्टी एक तटस्थ सरकार के तहत अगला चुनाव लड़ेगी। इसके बाद 10 मई को विज़न 2030 दस्तावेज़ जारी किया गया। विज़न 2030 दस्तावेज़ के माध्यम से, बीएनपी ने “लोगों की प्रतिभा, प्रयास, उत्साह और पहल को विफल करने वाली बाधाओं को उखाड़ फेंकते हुए बांग्लादेश को एक खुशहाल, समृद्ध, आधुनिक और स्वाभिमानी राष्ट्र बनाने के उद्देश्यों की प्राप्ति करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।”दस्तावेज लोकतंत्र, राष्ट्र निर्माण, सुशासन, रक्षा, विदेश नीति, आतंकवाद, अर्थव्यवस्था, शिक्षा, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, मीडिया, स्थानीय सरकार, कृषि, स्वास्थ्य, जलवायु परिवर्तन, जल संसाधन, ऊर्जा, उद्योग और कनेक्टिविटी सहित कई क्षेत्रों में बीएनपी की प्राथमिकताओं को रेखांकित करता है।
लोकतांत्रिक मोर्चे पर, बीएनपी का उद्देश्य "उचित संवैधानिक संशोधन" के माध्यम से संतुलित करते हुए "प्रधानमंत्री के अखंड कार्यकारी अधिकार" को कम करना है। यह जनमत संग्रह के प्रावधान को बहाल करने और "विशेष अधिकार अधिनियम 1974" को रद्द करने के बारे में भी कहता है। आर्थिक मोर्चे पर, बीएनपी ने बांग्लादेश को 5000 डॉलर प्रति व्यक्ति आय वाले एक आधुनिक, लोकतांत्रिक और उच्च-मध्यम आय वाले देश में बदलने का लक्ष्य रखा है। दस्तावेज़ ने बीएनपी अगले चुनाव के बाद सत्ता में आने पर उच्च लक्ष्य निर्धारित किए हैं। कुछ हद तक, विज़न 2030 दस्तावेज़ चुनावों के दौरान पार्टी के वादों को रेखांकित करता एक मिनी-घोषणापत्र प्रतीत होता है। हालांकि, बीएनपी नेताओं ने विजन दस्तावेज की विशिष्टता पर बार-बार जोर दिया है। उन्होंने इसे अगले 13 वर्षों का रोड मैप कहा है।8सत्तारूढ़ अवामी लीग नेतृत्व ने साहित्यिक चोरी सहित कई आधारों पर बीएनपी के विज़न दस्तावेज की आलोचना की है।
बीएनपी के अगले कदम का लक्ष्य चुनाव के समय सरकार के लिए अपना प्रस्ताव जारी करना है। रिपोर्टों के अनुसार, खालिदा जिया ईद-उल-फितर के बाद एक तटस्थ चुनाव-समय सरकार के बारे में विस्तृत प्रस्ताव का खुलासा करेगी। कई अन्य बिंदुओं के बीच, यह पता चला है कि उक्त प्रस्ताव मतदान कालिक प्रशासन के प्रमुख, जो किसी राजनीतिक पार्टी, नागरिक समाज या एक पेशेवर समूह से हो सकता है, के सर्वसम्मति आधारित चयन की सिफारिश करता है।9
निष्कर्ष
बांग्लादेशी राजनीति में दो सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ियों के बीच संघर्ष स्पष्ट है। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की मौजूदा स्थिति और तैयारियों को देखते हुए, मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के बीच होने जा रहा है। जातीय पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन और इस्लामी राजनीतिक पार्टियां और बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी और हेफ़ाज़त-ए-इस्लाम जैसे दबाव समूह भी चुनाव परिणामों का परिणाम निर्धारित करने में भूमिका निभाएंगे। 12 पंजीकृत इस्लामिक पार्टियां और कई दबाव समूह देश में सक्रिय हैं। उनमें से ज्यादातर दक्षिणपंथी बीएनपी का समर्थन करते हैं। हमें अभी तक अवामी लीग की इनमें से कुछ पार्टियों और दबाव समूहों की मान मनौवल के मूर्त परिणामों को देखना है।
बांग्लादेश में बदलती राजनीतिक गतिशीलता के बारे में अच्छी बात यह है कि यह सही दिशा में आगे बढ़ रही है। इस संदर्भ में, बीएनपी की इच्छाशक्ति और अगले आम चुनाव के लिए इसकी तैयारी एक अच्छा कदम है जिसकी सराहना की जानी चाहिए। हालाँकि, बीएनपी के तेजी से बदलते रुख से भी सावधान रहना चाहिए। ऐसा लगता है कि चुनाव के समय तटस्थ सरकार पर धीरे-धीरे अपना रुख कड़ा किया जा रहा है। 18 जून को, खालिदा जिया ने कहा कि ईद-उल-फितर के बाद वह सत्तारूढ़ शासन के खिलाफ शांतिप्रिय विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर सकती हैं। जमात-बीएनपी की सांठगांठ को देखते हुए, यह मानना मुश्किल है कि विरोध प्रदर्शन हिंसक नहीं होगा, यदि सत्ताधारी पार्टी बीएनपी के नेतृत्व वाले गठबंधन की कुछ प्रमुख मांगों पर सहमत नहीं होगी। बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि आने वाले महीनों में सत्तारूढ़ अवामी लीग शासन बीएनपी की गतिविधियों का जवाब कैसे देता है।
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*आशीष शुक्ला, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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