जी7 देशों के नेता 26-27 मई, 2017 को आयोजित 43वें जी7 शिखर सम्मेलन के लिए इटली के तूरमिना में एकत्रित हुए। दो-दिवसीय बैठक के दौरान, जी7 देशों के नेताओं ने गंभीर वैश्विक चुनौतियों वाले आर्थिक और राजनीतिक दोनों तरह के मुद्दों पर चर्चा की। शिखर सम्मेलन दो पहलुओं से महत्वपूर्ण था: पहला, शिखर सम्मेलन ट्रम्प प्रशासन के तहत उनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’नीति से उत्पन्न मुद्दों पर नीतिगत परिवर्तनों और उनके यूरोपीय संघ के अपने समकक्षों के साथ व्यापार, प्रवासन और जलवायु परिवर्तन पर मतभेद के मद्देनजर संपन्न हुआ। दूसरे, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और अमेरिका के चार नेताओं ने सदस्यों ने समूह के अन्य सदस्यों — जर्मनी, कनाडा और जापान के साथ अपनी पहली जी7 उपस्थिति दर्ज की।1
शिखर सम्मेलन के अंत में, जी7 देशों के नेताओं ने बैठक में चर्चा किए गए कई मुद्दों पर अपनी प्रतिबद्धताओं का उल्लेख करते हुए टोरमिना लीडर्स विज्ञप्ति को अपनाया। जहां आतंकवाद, सुरक्षा, व्यापार और विकास के मुद्दों पर अलग स्तरों के समझौते किए गए, जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका और जी7 देशों के बाकी देशों के बीच विभाजन दिखाई दिए। उल्लेखनीय है कि, शिखर सम्मेलन की शुरुआत अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा जर्मनी पर व्यापार अधिशेष और नाटो को कम अंशदान देने के आरोपों के साथ हुई।2
वैश्विक अर्थव्यवस्था की बहाली
वैश्विक अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में, विकास के संबंध में वैश्विक सुधार को सुविधाजनक बनाने के लिए, विशेष रूप से तीन-आयामी दृष्टिकोण — राजकोषीय, मौद्रिक और संरचनात्मक नीतियों — को मजबूत करना जारी रखने के लिए पहली प्रतिबद्धताओं का अधिकतर पुनर्मूल्यांकन था। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रतिबद्धताएं निम्नलिखित हैं:
मुक्त व्यापार बनाम संरक्षणवाद
वैश्विक व्यापार पर, संरक्षणवाद से लड़ने की जी7 नेताओं, खास तौर से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की प्रतिबद्धता को महत्वपूर्ण माना जा सकता है। संरक्षणवाद को, खास तौर से अमेरिकी प्रशासन द्वारा मार्च 2017में जी20 वित्त मंत्रियों की बैठक में मुक्त व्यापार प्रतिज्ञा को शामिल करने से रोकने के बाद, जी7 शिखर सम्मेलन की प्रमुख चिंताओं में से एक माना गया।4
नेताओं ने विकास और रोजगार सृजन के लिए प्रमुख यंत्र के रूप में, ‘स्वतंत्र, उचित और पारस्परिक रूप से लाभकारी निवेशों और पारस्परिक लाभों’पर सहमति व्यक्त की। जी7 के नेताओं ने, ट्रम्प प्रशासन की ‘अमेरिका पहले’ नीति और जर्मनी की इसके भारी व्यापार अधिशेष के लिए लगातार आलोचना की परवाह किए बिना ‘बाजार खुला रखने की प्रतिबद्धता’ दोहराते हुए, संरक्षणवाद से लड़ने का वादा किया। नियम-आधारित व्यापार प्रणाली के महत्व को पहचानते हुए, नेताओं ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) के कामकाज में सुधार लाने की दिशा में काम करने और अपने सभी सदस्यों द्वारा सभी डब्ल्यूटीओ नियमों का पूर्ण, पारदर्शी, प्रभावी और समयबद्ध प्रवर्तन सुनिश्चित करने पर सहमति जताई। हालांकि, संयुक्त विज्ञप्ति में यह भी माना कि 'व्यापार ने हमेशा सबके फायदे का काम नहीं किया है।5
ऐसी प्रतिबद्धताओं के बावजूद, व्यापार पर संवाद की भाषा नकारात्मक व्यापार संतुलनों से अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रक्षा करने में राष्ट्रपति ट्रम्प के चिर-कथित दृष्टिकोण से सामंजस्य स्थापित करने के लिए सावधानीपूर्वक स्वर देती हुई लगी। उदाहरण के लिए, यह संवाद, पिछले घोषणा के विपरीत, क्षेत्रीय व्यापार समझौतों के माध्यम से व्यापार-उदारीकरण के प्रति प्रतिबद्धता का उल्लेख नहीं करता था। इसके अलावा, इस संवाद ने सरकारों और अन्य संबंधित संस्थानों को डंपिंग, भेदभावपूर्ण गैर-टैरिफ बाधाओं, सब्सिडी सहित व्यापार-विकृत करने वाली पद्धतियों को दूर करने और समान अवसरों के सृजन के साथ ही 'वैश्विक अर्थव्यवस्था और इसकी आपूर्ति श्रृंखला में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य सामाजिक, श्रम, सुरक्षा, कर सहयोग और पर्यावरण मानकों को बढ़ावा देने' के लिए ऐसे अन्य सहयोग के लिए उपयुक्त नीतियां अपनाने को कहा।6इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति ट्रम्प जनवरी 20177में ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) से हट गए हैं और उन्होंने मई 2017 में उत्तर-अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते (NAFTA) की ऐसे आधार पर फिर से बातचीत करने के अपने इरादे से कांग्रेस को अधिसूचित किया है।8
आतंकवाद और सुरक्षा-संबंधित अन्य मामले
आतंकवाद, विशेष रूप से 22 मई, 2017 को मैनचेस्टर आत्मघाती बम विस्फोट, के बढ़ते खतरे के मद्देनजर, जी7 नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को हराने के प्रयासों को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। सीरिया, इराक और लीबिया में आईएसआईएल/आईएसआईएस/दाएश का मुकाबला करने में प्रगति पर ध्यान देते हुए, जी7 नेताओं ने ऐसे आतंकवादी समूहों के कब्जे वाले इलाकों की पूर्ण मुक्ति के प्रयास जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई।9
प्रौद्योगिकी को आतंकवादी गतिविधियों के लिए एक शक्तिशाली उपकरण मानते हुए, जी7 नेताओं ने संचार सेवा प्रदाताओं और सोशल मीडिया को चरमपंथी सामग्री के समाधान के प्रयासों को बढ़ाने का आह्वान किया। इस आशय से, नेताओं ने उद्योग को आतंकवादी के साथ ही चरमपंथी सामग्री का स्वत: पता लगाने के लिए नई तकनीक विकसित और साझा करने में तत्काल कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया। आतंकवाद और हिंसक अतिवाद के खिलाफ लड़ाई पर एक संयुक्त वक्तव्य में, नेताओं ने ‘आतंकवादियों के वित्तपोषण के साथ ही हिंसक चरमपंथ के वित्तपोषण के स्रोतों और माध्यमों में कटौती करने’ के लिए कार्रवाई करने पर सहमति जताई'।उन्होंने ‘जी7 वित्तीय खुफिया इकाइयों के बीच सूचना के साझाकरण में सुधार और अन्य सक्षम प्राधिकरण और निजी क्षेत्र के बीच बेहतर सहयोग’ की आवश्यकता पर भी जोर दिया।10यहां यह उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन ने मैनचेस्टर आतंकी घटना के तुरंत बाद अमेरिका के साथ खुफिया साझा करने पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया। प्रतिबंध का कारण अमेरिकी मीडिया में आतंकी घटना के बारे में जानकारी, जिसमें आत्मघाती हमलावर द्वारा पहने गए विस्फोटक उपकरण और जैकेट के हिस्सों के साथ ही हमलावर की पहचान दर्शाने वाले चित्र शामिल थे, का लीक हो जाना था।11
जी7 के नेताओं के बीच अप्रसार और निरस्त्रीकरण, यूक्रेन संकट और प्रवासन पर रूस पर प्रतिबंधों सहित, अन्य सुरक्षा मुद्दों पर भी व्यापक समझौता हुआ। अप्रसार और निरस्त्रीकरण पर, जी7 नेताओं ने उत्तर कोरिया को अंतर्राष्ट्रीय शांति और स्थिरता को खतरे का शीर्ष स्रोत माना और इसके परमाणु परीक्षणों और बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की निंदा की। यूक्रेन संकट पर, नेताओं ने ‘क्रीमिया प्रायद्वीप के अवैध समामेलन’ की निंदा करते हुए अपनी पूर्व स्थिति को दोहराया, और समामेलन को मान्यता न देने और यूक्रेन की स्वतंत्रता, क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के समर्थन की अपनी नीति की पुष्टि की। वे इस पर भी सहमत हुए कि रूस पर प्रतिबंधों की अवधि मिन्स्क समझौते के कार्यान्वयन पर निर्भर करेगी।12
प्रवासन और विकास — अफ्रीका
शिखर सम्मेलन में अफ्रीका प्रवास और विकास पर चर्चा के केंद्र में रहा। इस संबंध में, मेजबान देश, इटली ने महाद्वीप में बड़े पैमाने पर निवेश करने का आह्वान किया, ताकि यूरोप महाद्वीप से प्रवासियों के प्रवाह को रोका जा सके। ट्यूनीशिया, केन्या, इथियोपिया, नाइजर और नाइजीरिया के नेताओं ने शिखर सम्मेलन में भाग लिया।13हालांकि, जी7 नेताओं के पास इन मुद्दों पर कोई गंभीर प्रतिबद्धता जताने के संकल्प का अभाव रहा। प्रवासन पर, यह संवाद, पिछले संवाद के विपरीत, शरणार्थियों और प्रवासियों के सहयोग और सुरक्षा’का केवल टोकन संदर्भ था।' दिलचस्प बात है कि, संवाद में नेताओं द्वारा ‘व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से, अपनी सीमाओं को नियंत्रित करने के राज्यों के संप्रभु अधिकारोंको सुनिश्चित करनेऔर अपने स्वयं के राष्ट्रीय हित और सुरक्षा के लिए नीतियां स्थापित करने के लिए’ के नेताओं की अभिपुष्टियों को जोड़ा गया।14 यह आव्रजन नीतियों को सख्त बनाकर प्रवासन और शरणार्थियों की आमद का प्रबंधन करने के लिए ब्रिटेन, अमेरिका और जर्मनी सहित जी7 के सदस्य देशों द्वारा उठाई गई चिंताओं का प्रतिबिंब हो सकता है।15
अफ्रीका पर एकमात्र प्रतिबद्धता जी7 नेताओं द्वारा अफ्रीकी संघ सहित, अफ्रीकी देशों और क्षेत्रीय संगठनों के साथ, सतत विकास लक्ष्य 2030 और अफ्रीका संघ एजेंडा 2063की प्राप्ति में सहयोग और बातचीत को मजबूत करने के लिए पुन: पुष्टि थी। विकास के हेतु को बढ़ावा देने में, नेताओं ने आधिकारिक विकास सहायता में वृद्धि के माध्यम से उप-सहारा अफ्रीका में खाद्य सुरक्षा, पोषण और टिकाऊ कृषि के लिए सामूहिक समर्थन पर सहमति जताई।16
जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रपति ट्रम्प के पेरिस जलवायु समझौते पर पुनर्विचार करने के अपने चुनावी अभियान के वादे से टिके रहने के चलते, जी7 नेताओं के बीच विवाद का मुख्य आधार बना रहा। शिखर सम्मेलन के अंत में जारी संयुक्त वक्तव्य में स्पष्ट किया गया कि अमेरिका को छोड़कर, सात जी7 राष्ट्रों में से छह ने ग्लोबल वार्मिंग का समाधान करने के उद्देश्य से 2015 के जलवायु समझौते के प्रति प्रतिबद्ध रहने की सहमति जताई। जी7 के छह नेताओं के आशान्वित होने के बावजूद, राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा कि उन्हें यह तय करने के लिए और समय चाहिए कि क्या अमेरिका समझौते को छोड़ देगा। उनके प्रशासन द्वारा प्रदान किया गया काल्पनिक कारण यह था कि अमेरिकी उत्सर्जन मानक चीन, भारत और अन्य द्वारा निर्धारित की अपेक्षा अधिक कठिन थे, और इसलिए उन्होंने अमेरिकी कारोबारों का नुकसान किया है।17ट्रम्प प्रशासन द्वारा 1 जून 2017 को जलवायु संधि से हटने की घोषणासे, मतभेदों का और व्यापक होना प्रतीत होता है।18
निष्कर्ष
शिखर सम्मेलन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और जी7 के अन्य नेताओं के बीच व्यापार, प्रवासन और जलवायु परिवर्तन पर उनके दृष्टिकोण पर मतभेदों के कारण सर्वसम्मति बनाने की एक बड़ी परीक्षा थी। हालांकि अंतिम घोषणा ने ट्रम्प के कुछ दृष्टिकोणों जिन्होंने अन्य जी7 नेताओं को भ्रमित कर दिया था,को स्पष्ट किया; फिर भी, शिखर सम्मेलन अधिक तो नहीं, बहुत कम सफल कहा जाता है। इसके अलावा, शिखर सम्मेलन के बाद के घटनाक्रम आंतरिक मतभेदों के व्यापक होने का संकेत देते हैं। पेरिस जलवायु समझौते से हटने की राष्ट्रपति ट्रम्प की घोषणा के साथ ही जर्मन चांसलर, एंजेला मर्केल द्वारा यूरोपीय संघ के राष्ट्रों से 'अपनी किस्मत अपने हाथों में लेने' का आह्वान19 यह दर्शाते हैं कि जी7 देश महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर उनका समाधान करने के लिए ‘निकट’ आने की बजाय अधिक विभाजित हैं। इस समय यह स्पष्ट होता है कि अमेरिका को छोड़कर, छह जी7 नेता, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर एकजुट हैं, जैसा कि ट्रम्प के जलवायु समझौते से हटने के फैसले पर इन सदस्यों द्वारा व्यक्त की गई निराशा से स्पष्ट है।
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*डॉ. अरुंधती शर्मा, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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अस्वीकरण: व्यक्त मंतव्य लेखक के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।