श्रीलंकाई प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंहे अपनी पांच दिवसीय यात्रा में 25 से 29 अप्रैल, 2017 तक भारत में थे। अपने आधिकारिक दौरे के भाग के रूप में उन्होंने 26 अप्रैल को भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और अन्य मंत्रियों यथा विदेश मेंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज, गृह मंत्री श्री राजनाथ सिंह और सड़क परिवहन और नौवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी से मुलाकात की।
इस बातचीत के दौरान दोनों प्रधानमंत्रियों ने भारत-श्रीलंका के द्विपक्षीय संबंधों विशेषकर आर्थिक सहयोग को और मजबूत बनाए जाने की आवश्यकता को दुहराया। ‘आर्थिक परियोजनाओं में सहयोग के लिए भारत और श्रीलंका के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर हुए जिसमें प्रत्याशित भविष्य में द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग के लिए कार्यसूची को रेखांकित किया गया है। दोनों ही नेताओं ने आशा व्यक्त की कि वे आर्थिक और तकनीकी सहयोग समझौता (ईटीसीए) संबंधी चल रही बातचीत को अंतिम रूप देंगे तथा भारत ने अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) पार करने वाले भारतीय मछुआरों के साथ बर्ताव करते समय श्रीलंका की ओर से सतत सहयोग का अनुरोध किया। द्विपक्षीय बातचीत में श्रीलंका को सहायता देने हेतु भारत की प्रतिबद्धता को भी दुहराया ताकि वे एक शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध श्रीलंका का सपना साकार कर सकें।
इस यात्रा के दौरान विशेषकर आर्थिक परियोजनाओं में सहयोग हेतु लिए गए निर्णय के कार्यान्वयन हेतु भारत और श्रीलंका की सरकारें रास्ते में आने वाली विभिन्न बाधाओं को दूर करने के लिए कार्य करेंगी।इनमें श्रीलंका में भारत की भूमिका के बारे में नकारात्मक अवधारणा, आर्थिक परियोजनाओं में पणधारकों की चिंताओं को दूर कराना तथा शांति व सामंजस्य प्रक्रिया सहित श्रीलंका सरकार के विकास कार्यसूची को संबद्ध करना शामिल है।श्रीलंका में विदेशी निवेश के बारे में वर्तमान नाराजगी और आशंकाओं तथा घरेलु राजनीति को देखते हुए कतिपय आर्थिक परियोजनाओं यथा त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म के संयुक्त निर्माण, ईटीसीए और मछुआरे से संबंधित मुद्दे के समाधान में बहुत अधिक समय लग सकता है।इन तीनों मुद्दों और प्रतिक्रियाओं की चर्चा नीचे की गयी है।
त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म
हाल ही में श्रीलंका में वहां अवस्थित त्रिंकोमाली पत्तन क्षेत्र और तेल फार्म को विकसित करने में भारतीय निवेश की संभावना और निरंतरता का विरोध देखने में आया है। त्रिंकोमाली बंदरगाह को 1957 में ब्रिटेन द्वारा श्रीलंका को सौंपा गया था और इसका उपयोग कम हीं हुआ। जनू, 2002 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री के रूप में रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा के दौरान भारतीय तेल निगम (आईओसी) और सिलोन पेट्रोलियम निगम (सीपीसी) ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया जिसके तहत श्रीलंका आईओसी (एलआईओसी) को सीपीसी के 100 खुदरा पेट्रोलियम बिक्री केन्द्रों को हासिल करने का प्रावधान किया गया।उसके बाद से, श्रीलंका में भारत की तेल अनुषंगी कंपनी एलआईओसी राज्य स्वाधिकृत सीपीसी के अतिरिक्त एकमात्र निजी तेल कंपनी है जो श्रीलंका में परिचालन करने वाला खुदरा डीजल बिक्री केन्द्र है।
उपर्युक्त खुदरा बिक्री केन्द्रों के अतिरिक्त, एलआईओसी ने वर्ष 2003 में आईओसी, सीपीसी और श्रीलंका सरकार के बीच हुए समझौते के एक भाग के रूप में द्वितीय विश्व युद्ध की अवधि के चाइना बे टैंक फार्म को अधिगृहीत किया। एलआईओसी ने 850 एकड़ फार्म को विकसित करने के लिए 35 वर्ष का पट्टा हासिल किया जिसमें कुल 99 टैंक हैं, और प्रत्येक की क्षमता 12,000 किलोलीटर है। वर्तमान में, इन टैंकों में से पंद्रह टैंक परिचालन कर रहे हैं। इस टैंक फार्म को 100,000 अमेरिकी डॉलर प्रतिवर्ष की लागत पर हासिल किया गया था और वर्ष 2003 के बाद भारत ने इसका भुगतान कर दिया था। तथापि, इस पट्टा समझौते को विभिन्न आंतरिक राजनीतिक कारणों, गृह युद्ध और श्रीलंकाई राजनीतिक नेताओं व दलों से इस समझौते के विरोध व प्रक्रियागत मुद्दों के कारण पूर्णरूपेण लागू नहीं किया गया था। उदाहरण के लिए, वर्ष 2003 में महिंद्रा राजपक्षे की सरकार ने भारत को बताया था कि यदि भारत एलआईओसी और सीपीसी के बीच एक संयुक्त उद्यम स्थापित करने पर सहमत हो तो इस पट्टे को अंतिम रूप प्रदान किया जा सकता है। जब मार्च 2013 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में श्रीलंका के विरूद्ध मतदान किया तो भारत को सरकार के रूख से अवगत कराया गया। केन्द्र में राष्ट्रीय एकता दल की सरकार का गठन और सत्ता में यूएनपी की वापसी ने इस समझौते को पुनर्जीवित करने में सहायता की है। वर्तमान में, श्रीलंका सरकार 99 टैंकों में से 10 टैंकों को अधिगृहीत करने की योजना बना रही है जबकि शेष टैंक एलआईओसी और सीपीसी के बीच साझा रूप में होगा।
भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मार्च, 2015 में श्रीलंका में अपनी यात्रा के दौरान कहा कि भारत त्रिंकोमाली को एक क्षेत्रीय पेट्रोलियम केन्द्र के रूप में विकसित करने को इच्छुक है। चीनी खाड़ी में टैंक फार्म को विकसित करने की भारत की उत्कट इच्छा का भू राजनैतिक और रणनीतिक महत्व है क्योंकि यह मध्य पूर्व और सिंगापुर के बीच अवस्थित सबसे बड़ा टैंक फार्म है। यह टैंक फार्म त्रिंकोमाली बंदरगाह को जोड़ता है जो विश्व का सार्वकालिक पांचवां सबसे बड़ा ज्वारीय धारा हीन प्राकृतिक बंदरगाह है और जिसकी तट रेखा 56 किलोमीटर लंबी है। यह टैंक फार्म को ईंधन प्राप्ति, भंडारण और आपूर्ति के लिए सबसे प्रभावी बनाता है। भारत ने इसके महत्व को समझा और इसलिए भारत-श्रीलंका के 1987 में हुए समझौते में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि त्रिंकोमाली अथवा श्रीलंका का अन्य कोई पत्तन भारत के हितों के दुर्भावना से किसी देश द्वारा सैन्य उपयोग के लिए उपलब्ध नहीं होगा और त्रिंकोमाली तेल फार्म का परिचालन भारत और श्रीलंका के बीच संयुक्त उद्यम के रूप में किया जाएगा।
एलआईओसी और सीपीसी के माध्यम से संयुक्त उद्यम के रूप में त्रिंकोमाली टैंक के परिचालन में भारत और श्रीलंका सरकार के हितों के विपरित 25 अप्रैल को सीपीसी के सभी ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाई गयी अनिश्चितकालीन हड़ताल ने इस मुद्दे को धरातल पर ला दिया है।यह हड़ताल यह संकेत देता है कि देश में भारत की राजनीतिक और आर्थिक भूमिका के बारे में श्रीलंकाई समाज में अभी भी आशंका विद्यमान है। ट्रेड यूनियन ने सरकार से त्रिंकोमाली तेल टैंक को बनाए रखने के लिए भारत के साथ प्रस्तावित समझौता को संशोधित करने लिए कहा है और सरकार से कहा है कि वह सीपीसी को तेल भंडारण का अधिकार दे। पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षा नीत संयुक्त विपक्षी दल और जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) जैसी पार्टियों ने भी इस हड़ताल का समर्थन किया है। पीविथुरू हेला उरूम्या (पीएचयू) ने सरकार से कहा कि त्रिंकोमाली बंदरगाह को भारत को सौंपने के लिए किसी भी समझौते पर हस्ताक्षर करने से पूर्व लोगों की सहमति लेने के लिए जनमत संग्रह कराएं।
जेवीपी के अनुसार, श्रीलंका सरकार का भारत के लिए एलआईओसी का लाभ देने के का प्रयास देश के हितों में लिया गया निर्णय सही नहीं है। जेवीपी इस बात पर जोर देता रहा है कि अनुराधापुरा, जाफना, बट्टीकलोआ, वावुनिया के पूर्वी और उत्तरी जिलों व अन्य स्थानों को तेल के संवितरण के लिए त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म का इस्तेमाल किया जा सकता है। जेवीपी ने इस पर जोर दिया कि इससे वार्षिक रूप से 618 मिलियन रूपए की बचत होगी और सीपीसी श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी भाग में अवस्थित कोलोनवा और मुथुराज्वेला तेल भंडार टैंकों से तेल के वितरण की अपेक्षा टैंकों का प्रबंधन कर सकता है।
यद्यपि एलआईओसी और सीपीसी ने वर्ष 2003 में इस समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया था, इस एमओयू का कार्यान्वयन इसके कई प्रक्रियागत पहलुओं से संबंधित सीपीसी द्वारा जतायी गयी आशंकाओं तथा तेल टैंक फार्म चलाने के लिए एलआईओसी को विशेष अधिकार दिए जाने के विरोध के कारण नहीं हो पाया। उदाहरण के लिए, पूर्व में केवल 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर के डाउन पेमेंट देकर एलआईओसी द्वारा 100 से अधिक पेट्रोलियम केन्द्रों का अधिग्रहण किए जाने पर प्रश्न उठाया गया, क्योंकि श्रीलंका में ईम्स्ट एंड यंग की सहायता से किए गए मूल्यांकन अध्ययन के बाद इन केन्द्रों का वास्तविक मूल्य लगभग 100 मिलियन डॉलर था। सीपीसी ने श्रीलंका सरकार के एलआईओसी को दिए गए छह महीने के शुरूआती लाइसेंस के बदले 100 फिलिंग स्टेशनों में पेट्रोलियम उत्पादों के आयात, बिक्री और आपूर्ति व संवितरण हेतु एलआईओसी को लाइसेंस जारी रखने के पूर्व के निर्णय पर भी आपत्ति जतायी थी। सीपीसी और विपक्ष द्वारा जतायी गयी विभिन्न आशंकाओं के बावजूद एलआईओसी ने श्रीलंका में परिचालन करना जारी रखा है और इसकी बाजार हिस्सेदारी लगभग 43 प्रतिशत है। पिछले 14 वर्षों में इसने विभिन्न सुविधाओं को विकसित करने के लिए 4400 मिलियन एलकेआर निवेश किया है और लगभग 7000 मिलियन खर्च किया है। एलआईओसी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2015-16 के लिए इसका टर्नओवर 71.306 बिलियन एलकेआर है।
हाल के महीनों में श्रीलंका में विदेशी निवेश का विरोध होता रहा है। इस वर्ष जनवरी में हम्बन्टोटा में औद्योगिक जोन, जिसमें मुख्य रूप से चीनी वित्तपोषण हुआ है, की आधारशिला समारोह में विरोध देखा गया। यह विरोध विशेषकर छोटे कारोबारी समुदायों के विस्थापन तथा चीनी कंपनी को भूमि आबंटन के कारण भड़का। सरकार इस पर जोर देती रही है कि चीनी कंपनियां अगले कुछ वर्षों में 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर निवेश करने के लिए तैयार हैं। सरकार इस औद्योगिक क्षेत्र के लिए 1255 एकड़ भूमि के आबंटन की योजना बना रही है जिससे आशा की जाती है कि भविष्य में 100,000 नौकरियां सृजित होंगी। श्रीलंका सरकार द्वारा चीनी निवेश के लिए द्वार खोलना उसके चीनी ऋण से भी संबंधित है जो लगभग 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास है। श्रीलंका की राजनीतिक पार्टियां यथा जेवीपी और संयुक्त विपक्ष लोगों को इस आधार पर एकजुट कर रही है कि सरकार देश को चीन के हाथों बेच रही है। राजपक्षे के अनुसार उनकी सरकार ने हम्बनटोटा पत्तन के साथ समझौता करते समय भिन्न दृष्टिकोण अपनाया है। उनके अनुसार यह पत्तन आपूर्ति-परिचालन-स्थानांतरण (एसओटी) आधार पर केवल टर्मिनल के लिए दिया गया था। इस टर्मिनल के लिए भी चीनी कंपनी को इस भूमि के लिए भुगतान करना था। यह दृष्टिकोण उस दृष्टिकोण के विपरित था जिसे वर्तमान सरकार अपना रही है क्योंकि उसने चीन को हम्बनटोटा पत्तन के निकट भूमि दिया था। श्रीलंका सरकार ने चीनी कंपनी चाइना मर्चेंट पोर्ट होल्डिंग को 99 वर्ष के लिए पत्तन के पट्टा संबंधी समझौता के औपचारिक सहमति को लोगों के विरोध के कारण रोक दिया है तथा वर्तमान में सरकार चीन के साथ पुन: समझौता कर रही है।
इस संदर्भ में श्रीलंका सरकार ने यह आश्वासन दिया है कि श्रीलंका के प्रधानमंत्री के भारत दौरे के दौरान त्रिंकोमाली में चीनी खाड़ी तेल टैंक के संबंध में किसी समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया जाएगा। इस अपनाए गए रूख के अनुसार त्रिंकोमाली तेल फार्म के संबंध में इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया गया तथा आर्थिक परियोजनाओं के संबंध में सहयोग संबंधी व्यापक समझौते पर भारत और श्रीलंका के बीच हस्ताक्षर किया गया था। श्रीलंका सरकार ने ट्रेड यूनियनों को एक आवश्वासन दिया था कि इस एमओयू के कानूनी दस्तावेज बनाने के लिए सरकार सभी संगत पक्षों के साथ संपर्क करेंगे। श्रीलंका के पेट्रोलियम मंत्री चांडीमा विराकोडी ने भी ट्रेड यूनियनों को आश्वासन दिया कि वह मंत्रिमंडल समिति को त्रिंकोमाली तेल टैंक की घटनाक्रम के संबंध में एक रिपोर्ट सौंपेंगा। इन आश्वासनों के बाद इन ट्रेड यूनियनों ने 25 अप्रैल को हड़ताल वापस ले ली। उपर्युक्त घटनाक्रम यह बताता है कि श्रीलंका और भारत सभी को स्वीकार्य आर्थिक समझौताओं को अंतिम रूप देने में एक दूसरे के लिए समय देने को इच्छुक है। इस द्विपक्षीय संबंध में अंतर्ग्रस्त संवेदनाओं को देखते हुए यह एक महत्वपूर्ण कदम है।
ईटीसीए
अन्य मुद्दा ईटीसीए पर हस्ताक्षर करने का है। यहां पुन: श्रीलंका में बहुत विरोध हो रहा है तथा ये विपक्षी पार्टियां यह दावा कर रहीं हैं कि भारत के लिए ईटीसीए के माध्यम से सेवा क्षेत्र को खोलने से सेवा क्षेत्र और देश के भीतर रोजगार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। ईटीसीए रूपरेखा संबंधी समझौता प्रक्रियाधीन है तथा नेताओं ने आशा व्यक्त की है कि इससे वर्तमान भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता (आईएसएलएफटीए) जो 2000 से ही परिचालन में है, उन्नत होगा। जनवरी में ईटीसीए के संबंध में तीसरे और चौथे दौर का समझौता हुआ तथा हाल ही में श्रीलंका के प्रधानमंत्री के दौरे के पूर्व नई दिल्ली में ईटीसीए समझौते हुए। ये समझौते अनिर्णायक रहे।
दिसम्बर, 2015 में हुई ईटीसीए बातचीत के दौरान श्रीलंका के प्रस्तावित रूपरेखा में दो उप क्षेत्रों यथा जहाज निर्माण और आईटी पेशेवरों को छोड़कर श्रीलंका द्वारा पेशेवर श्रम उदारीकरण को अलग करने का उल्लेख था। और भारतीय बाजार के लिए बेहतर बाजार पहुंच हेतु श्रीलंका पक्ष ने कई मुद्दों को उद्धृत किया जिनका सामना स्थानीय निर्यातक भारतीय बाजार में करते हैं। ईटीसीए के बारे में इस जागरूकता को बढ़ाने के लिए भारतीय मानक और विनियमों के बारे में तथा श्रीलंका के निर्यातकों के विरूद्ध भारत द्वारा गैर प्रशुल्क उपायों के अनुप्रयोग के बारे में इस दृष्टिकोण के समाधान के लिए 4 मार्च, 2016 को कोलंबों में भारत द्वारा एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। व्यापार और पेशेवार संगठनों की आशंकाओं को दूर करने के लिए श्रीलंका की सरकार ने वर्ष 2016 में ईटीसीए समझौतों में इन संगठनों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का आफर दिया था। ईटीसीए के संबंध में अधिकारी स्तर की बातचीत कोलंबो में 24 और 25 अप्रैल को हुई। ईटीसीए समझौते से दोनों ही देशों को विश्वास है कि आईटी क्षेत्र और जहाज निर्माण क्षेत्र में क्षमता वर्धन होगा। रिपोर्टों के अनुसार इस ईटीसीए समझौते में वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करने तथा जनशक्ति प्रशिक्षण व मानव संसाधन विकास हेतु अवसरों के सुधार में तकनीकी क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने, वैज्ञानिक विशेषज्ञता हासिल करने और सस्थाओं में अनुसंधान को बढ़ाने, वस्तु और सेवाओं के मानकों को बढ़ाने की बात कही गयी है। तथापि, राजनीतिक पार्टियों यथा जेवीपी और संयुक्त विपक्षी पार्टी इस आधार पर इस समझौते का लगातार विरोध कर रही हैं कि यह श्रीलंका के हित में नहीं है।
तथापि, यह आंकड़ा दर्शाता है कि आईएसएफटीए श्रीलंका के पक्ष में रहा है। वाणिज्य मंत्रालय, श्रीलंका सरकार के अनुसार वर्ष 2011-15 के दौरान श्रीलंका का प्रमुख आयात गंतव्य भारत था। और उसी अवधि में भारत, अमेरिका और यूके के बाद श्रीलंका के लिए तीसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य था। रणनीतिक विकास और अंतरराष्ट्रीय व्यापार मंत्रालय, श्रीलंका सरकार के अनुसार भारत को श्रीलंका का लगभग 70 प्रतिशत निर्यात एफटीए के तहत होता है। इस प्रकार, भारत द्वारा प्रदत्त शून्य प्रशुल्क से उन्हें लाभ होता है तथा श्रीलंका एफटीए को भारत से अधिक इस्तेमाल करता रहा है। निम्न सारणी में भारत के साथ भारत-श्रीलंका मुक्त व्यापार समझौता (आईएसएफटीए) के तहत श्रीलंका के निर्यात और आयात के संबंध में सूचना दी गयी है:-
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निर्यात (मिलियन अमेरिकी डॉलर) |
आयात (मिलियन अमेरिकी डॉलर) |
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वर्ष |
भारत को कुल निर्यात |
आईएसएफटीए के अंतर्गत |
भारत से कुल आयात |
आईएसएफटीए के अंतर्गत |
2011 |
521.59 |
391.5 |
4349.43 |
579.6 |
2012 |
566.37 |
379.5 |
3517.23 |
156.4 |
2013 |
543.37 |
368.77 |
3092.67 |
393.4 |
2014 |
624.81 |
375.8 |
3977.76 |
540.1 |
2015 |
643.03 |
407.2 |
4273.30 |
253.3 |
(स्रोत: वाणिज्य मंत्रालय, श्रीलंका सरकार)
मछुआरे से संबंधित मुद्दा
अन्य मुद्दा मछुआरे का मुद्दा है और बहुत समय से दोनों ही पक्ष किसी व्यावहारिक समाधान को प्राप्त करने में असफल रहे हैं। विभिन्न हितधारकों वाले मछुआरे से संबंधित संयुक्त कार्य समूह सभी को स्वीकार्य समाधान लेकर आने की कोशिश कर रहा है। भारत-श्रीलंका मंत्री स्तरीय बातचीत जनवरी, 2017 में हुई थी। और दोनों ही पक्ष एक दूसरे के कैद में रहे मछुआरे को रिहा करने और सौंपने के कार्य में गति प्रदान करने के लिए मानक परिचालन प्रक्रिया (एसओपी) के निर्धारण के लिए सहमत हुए। इस बैठक में लिए गए निर्णय की तर्ज पर 77 भारतीय मछुआरे और 12 श्रीलंकाई मछुआरे को मार्च, 2017 में दोनों ही सरकारों द्वारा प्रत्यर्पित किया गया था। अंतरराष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (आईएमबीएल) का उल्लंघन करने वाले भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी लगभग रोजाना जारी है और 25 मार्च, 2017 को श्रीलंकाई नौसेना द्वारा चौबीस भारतीय मछुआरों को गिरफ्तार किया गया था। अप्रैल में लगभग 6 भारतीय मछुआरे गिरफ्तार हुए। लगातार मछुआरों की गिरफ्तारी यह संकेत देता है कि इस समस्या का सौहार्द्रपूर्ण समाधान करने की तत्काल आवश्यकता है। इसलिए, इस दौरे के दौरान दोनों नेताओं ने भारतीय समुद्री हिस्से में गहरे समुद्री मत्स्यन को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस संदर्भ में भारत ने तमिलनाडु के रामनाथपुरम में एक नया मत्स्यन बंदरगाह के निर्माण का निर्णय लिया और चेन्नई व कोच्चि में मछुआरों के लिए क्षमता वर्धन कार्यक्रमों का भी आयोजन किया।
निष्कर्ष
इन द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की गयी और श्रीलंका में ही इन मुद्दों पर प्रतिक्रिया यह दर्शाता है कि किसी आर्थिक समझौता और इसका कार्यान्वयन एक जटिल प्रक्रिया होगी। यद्यपि भारत और श्रीलंका की सरकारें आर्थिक सहयोग को बढ़ाने को इच्छुक है, किंतु भारत-श्रीलंका सबंधों के बारे में बीतेअशांत अवधि के कारण कुछ आशंकाएं हैं, विशेषकर श्रीलंका के समाज में जिन्हें सर्वप्रथम दोनों सरकारों को प्रस्तावित आर्थिक सहयोग परियोजनाओं पर समझौत करने से पहले सुलझाना पड़ेगा। इस तथ्य के बावजूद भी विश्वास की कमी है कि भारत विशेषकर सड़क, रेल, देश में आवास परियोजनाओं और श्रीलंका निर्यात को तरजीही व्यापार पहुंच देने सहित विकास सहायता और अवसंरचना विकास के माध्यम से श्रीलंका के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता रहा है।
साथ ही, आर्थिक परियोजनाओं के संबंध में भारत और श्रीलंका के बीच समझौतों की सफलता दोनों देशों में आंतरिक राजनीतिक घटनाक्रमों पर निर्भर करेगी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने यथा संस्तुत सामंजस्य उपायों को लागू करने के लिए श्रीलंका को दो वर्ष का समय दिया है। आंतरिक शांति और स्थिरता उस प्रगति पर निर्भर करेगी जिसके लिए श्रीलंकाई सरकार संयुक्त राष्ट्र संघ की सिफारिशों के कार्यान्वयन और इन कार्यान्वयन के प्रति घरेलु प्रतिक्रिया को दर्शाने के लिए इच्छुक है। इस प्रक्रिया में आर्थिक मुद्दा सक्रिय विपक्ष के कारण राजनीतिक मुद्दों के साथ उलझ जाएगा।इस संदर्भ में श्रीलंका सरकार को दलीय राजनीति से उभरने वाली स्थितियों से निपटने के लिए एक विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।यह विपक्षी पार्टियों के साथ बातचीत करके, कारोबारी समुदाय के साथ निवेश के लाभों के संबंध में जागरूकता कार्यशाला आयोजित कर संभव हो सकता है तथा सबसे महत्वपूर्ण सरकार को इस भय को दूर करने के लिए अग्र सक्रिय रूप से लोगों तक अधिक से अधिक पहुंच बनाना है।भारतीय प्रधानमंत्री की मई, 2017 की यात्रा श्रीलंका में विपक्षी पार्टियों द्वारा व्यक्त कतिपय आशंकाओं को भी दूर कर सकती है।
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*डॉ. समता मलमपति, भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
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अस्वीकरण: व्यक्त मंतव्य लेखक के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।