अफगानिस्तान
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी ने 19 सितंबर 2017 को संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के 72वें सत्र को संबोधित किया। अपने भाषण के दौरान अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू मामलों पर बात की । शुरू में गनी ने संयुक्त राष्ट्र संघ, विकास बैंक और आईएमएफ़ आदि सहित उन अंतर्राष्ट्रीय संस्थानो की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला जिनकी स्थापना अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना करने और मानवता के विरुद्ध अपराधों से लड़ने के लिए किया गया था । उन्होंने यह भी कहा कि एक प्रभावी, सुचारु और सम्मानित संयुक्त राष्ट्र संघ आज के समय की जरूरत है ।
उनके द्वारा दिए गए भाषण के मुख्य अंशों का विवरण निम्नुसार है।
मुद्दे |
विवरण |
अर्थव्यवस्था |
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आतंकवाद |
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रोहिंग्या |
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अफगानिस्तान पर राष्ट्रपति ट्रम्प की नीति |
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स्थानीय सहयोग |
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सुशासन |
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बंग्लादेश
बंग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सितंबर 2017 को संयुक्त राष्ट्र संघ की 72वीं महासभा को संबोधित किया । अपने भाषण में उन्होंने जिन मुद्दों पर ज़ोर दिया वे म्यांमार के रेखाइन राज्य में चल रहे मौजूदा संकट, आतंकवाद, 1971 में हुए नरसंहार के खिलाफ न्याय देने के निमित गठित अंतर्राष्ट्रीय अपराधिक न्यायाधिकरण से संबंधित थे । उन्होंने प्रवास, शरणार्थियों, जलवायु परिवर्तन और संयुक्त राष्ट्र संघ में बंग्लादेश की भूमिका पर भी बात की ।
रोहिंग्या से संबंधित मामला
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने रोहिंग्या मामले को पूरी नस्ल का सफाया करने जैसा कार्य बताया । उन्होंने कहा कि म्यांमार रेखाइन राज्य में मानव अधिकारों का हनन करने के साथ-साथ वहाँ पर अत्यधिक अत्याचार कर रहा है । इस समय बंग्लादेश में म्यांमार से ज़बरदस्ती विस्थापित किए गए 8 लाख शरणार्थी मौजूद हैं और हिंसा से बचने के लिए लाखों शरणार्थी रोजाना बंग्लादेश में प्रवेश कर रहे हैं ।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय पर ज़ोर देते हुए कहा कि वे इस संकट का समाधान करने के लिए तत्काल आवश्यक कदम उठाएँ । इस संबंध में उन्होंने एक 5 सूत्रीय कार्यक्रम का प्रस्ताव रखा । प्रस्तावित कार्यक्रम के अनुसार म्यांमार को रेखाइन राज्य में तत्काल नरसंहार को रोक देना चाहिए, संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव को वहाँ एक छान बीन मिशन रवाना करना चाहिए, म्यांमार में सभी नागरिकों के रक्षार्थ संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यवेक्षण में एक सुरक्शित क्षेत्र बनाना चाहिए, म्यांमार से ज़बरदस्ती विस्थापित किए गए रोहिंग्याओं की सतत वापसी और कॉफी अन्नान आयोग रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को कार्यान्वित करना चाहिए ।
आतंकवाद
उन्होंने सभी प्रकार के आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि बंग्लादेश ऐसे मामलों से निपटने के लिए किसी भी प्रकार की ढील देने का समर्थक नहीं है । उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि विश्व के देशों को चाहिए कि वे आतंकवादियों को हथियार न दें, उनका वित्तपोषण न करें और सभी अंतर्राष्ट्रीय विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाएँ । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ पर ज़ोर देते हुए कहा कि वह हवाला कार्रवाई को रोककर साइबर स्पेस से उत्पन्न खतरो का समाधान करे । उन्होंने यह भी कहा कि इस संबंध में आतंकवादियों और अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराधों का वित्तपोषण न किया जाए ।
1971 का स्वतंत्रता युद्ध
उन्होंने कहा कि 1971 के दौरान पाकिस्तान द्वारा कुख्यात ऑपरेशन सर्च लाइट शुरू करने के दौरान इस प्रकार 30 लाख लोगों की हत्याएँ की गई थी और 2 लाख से भी अधिक महिलाओं का शील भंग किया गया था । उन्होंने कहा कि बंग्लादेश ने नरसंहार की इस अत्यधिक पराकाष्ठा को बर्दाश्त किया । उन्होंने यह भी कहा कि अंतर्राष्ट्रीय अपराध अधिकरण द्वारा नरसंहार करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए ।
पलायन और शरणार्थी
बंग्लादेश की प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्व के किसी भी देश में बाध्यकारी पलायन सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित होना चाहिए । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की इस भूमिका पर संतोष व्यक्त किया कि वह लोगों के सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित पलायन की दिशा में सारगर्भित कदम उठा रहा है ।
जलवायु
बंग्लादेश पेरिस जलवायु करार को संतुलित जलवायु के लिए आशा की किरण मानता है । बंग्लादेश को बदलती हुई हलवायु के प्रकोप का कई प्रकार से सामना करना पड़ा है जिससे उसके स्वास्थ्य और खाद्यान सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है । उन्होंने महासागरों और समुद्रों के संधारणीय उपयोग से संबंधित अर्थव्यवस्था की अहमियत का भी जिक्र किया। उन्होंने उन सफलताओं का भी उल्लेख किया जो बंग्लादेश ने बाढ़ और अन्य आपदाओं से निपटने में प्राप्त की । उन्होंने आगे कहा कि फसल सघनीकरण और जल प्रतिरोध फसल ईजाद के कारण बंग्लादेश खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है । बंग्लादेश ने वर्ष 2015 तक अपने 87% लोगों के लिए सुरक्षित जल प्राप्त कर लिया है । बंग्लादेश का उद्देश्य यह भी है कि वर्ष 2030 तक वह इस दायरे में अपनी पूरी आबादी को शामिल कर ले ।
संयुक्त राष्ट्र संघ और बंग्लादेश
बंग्लादेश द्वारा विवादास्पद क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा के स्थापनार्थ महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है । उल्लेखनीय है कि बंग्लादेश ने इन अभियानो में अधिकतर महिला शांति सैनिक तैनात किए थे । उन्होंने यह भी बताया कि लैंगिक शोषण और दुरुपयोग से संबंधित वस्तु स्थिति से निपटने के लिए स्थापित सहायता कोष में बंग्लादेश ने 1 लाख अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया है ।
सतत विकास लक्ष्य और बंग्लादेश
बंग्लादेश की प्रधानमंत्री ने सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) के कार्यान्वयन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को जताते हुए कहा कि सतत विकास लक्ष्य के तहत 2021 तक देश को मध्यमवर्गीय आमदनी वाला देश बना दिया जाएगा और 2041 तक बंग्लादेश विकसित देश हो जाएगा । आर्थिक प्रगति और विकास पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने ज़ोर देते हुए कहा कि बंग्लादेश की अर्थव्यवस्था ने 2016-2017 के दौरान 7.24% से भी अधिक जीडीपी प्राप्त की है तथा देश के पास 32.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आरक्षित मुद्रा मौजूद है । उन्होंने गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में भी बंग्लादेश की उपलब्धियों को गिनवाया जो 1991 में 56.7% से घटकर 2017 में 23.2% हो गई है ।
भूटान
भूटान के प्रधानमंत्री डासो सेरिंग तोबगे ने 22 सितंबर 2017 को संयुक्त राष्ट्र संघ की 72वीं महासभा को संबोधित किया । अपने भाषण में प्रधानमंत्री तोबगे ने कुछ अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने में संयुक्त राष्ट्र संघ की महत्वपूर्ण भूमिका का जिक्र करते हुए कहा कि भूटान यह सुनिश्चित करने के लिए सभी सदस्य देशों के साथ मिलकर कार्य करेगा ताकि संयुक्त राष्ट्र संघ वैश्विक समस्याओं को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करे । इस संबंध में उन्होंने, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के कई मुद्दों यथा जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, निर्धनता, सुरक्षा परिषद में सुधार और भूटान आदि में प्रजातन्त्र की स्थिति का भी जिक्र किया ।
जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन पर बात करते हुए प्रधानमंत्री डासो सेरिंग तोबगे ने कहा कि एक अथवा अन्य देश में आने वाली आपदाओं से दूसरे देश भी अछूते नहीं रहते हैं । ये जलवायु परिवर्तन से जुड़ी हुई हैं जिससे हम सब चिंतित हो गए हैं चूंकि हमारी भलाई और भविष्य की पीढ़ियों का अस्तित्व खतरे में है इसलिए हमें संकोच, बहानो, दोषारोपण जैसे मामलों को छोड़कर निष्पक्ष रूप से इस समस्या का समाधान करना चाहिए । उन्होंने कहा कि शताब्दियों से की गई उपेक्षा के कारण जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई पेचीदा और जटिल हो गई है । उन्होंने 170 देशों में पर्यावरण संबंधी 4 हजार से भी अधिक परियोजनाओं को वित्तपोषित करने में वैश्विक पर्यावरण सुविधा द्वारा किए जा रहे योगदान की प्रशंसा की । उन्होंने वैश्विक पर्यावरण सुविधा और हरित जलवायु कोष जैसे संगठनों को दी जाने वाली सहायता में वृद्धि करने का आह्वान करते हुए कहा कि इसके जरिए विश्व के देशों को युद्ध स्तर पर जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद मिलेगी ।
प्रधानमंत्री तोबगे ने ज़ोर देते हुए कहा कि भूटान एक ऐसा देश है जो चारों ओर से पहाड़ो से घिरा हुआ है और उस पर जलवायु परिवर्तन का बहुत जल्दी असर होता है इसलिए भूटान को गैर बाधित पर्यावरण अवनति से बड़ी चिंता हो रही है । उन्होंने कहा कि उनका देश पेरिस करार का समर्थन करते हुए उस पर अमल करने के लिए प्रतिबद्ध है उन्होंने कहा कि भूटान दुनिया का वह पहला देश है जहां कार्बन का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ रहा है ऐसा इसलिए है कि भूटान का 72% से भी अधिक भाग जंगलों से घिरा हुआ है । इसके अलावा देश की आधे से भी अधिक भूमि पर राष्ट्रीय पार्क, वन्य जीव आश्रय स्थल और प्राकृतिक स्थान बने हुए हैं ।
गरीबी
प्रधानमंत्री तोबगे ने महासभा का ध्यान विश्व बैंक द्वारा किए गए वैश्विक निर्धनता सर्वेक्षण की ओर आकर्षित किया जिसके अनुसार विश्व के 800 मिलियन से भी अधिक लोग निर्धनता का जीवन जी रहे हैं । उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि इस समय अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के पास अभूतपूर्व दौलत, ज्ञान और प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसका इस्तेमाल पृथ्वी की सतह से गरीबी को समाप्त करने के लिए किया जा सकता है । उन्होंने आगे कहा कि सभी 17 सतत विकास लक्ष्य हमें आशा की किरण दिखते हुए यह याद दिलाते हैं कि इस दिशा में यथार्थवादी कार्य निष्पादन समय की सबसे बड़ी जरूरत है । भूटान की आंतरिक स्थिति का वर्णन करते हुए प्रधानमंत्री ने एकल राष्ट्रीय खुशहाली से संबंधित अवधारणा का जिक्र किया । उन्होंने कहा कि इसके जरिए सभी नागरिकों को मुफ्त शिक्षा और मुफ्त स्वास्थ्य परिचर्चा हासिल होगी । उन्होंने कहा कि इस दिशा में भूटान द्वारा किए गए सार्थक प्रयासों का उपयोगी नतीजा सामने आ रहा है । उन्होंने कहा कि भूटान की बहुआयामी गरीबी आधे से भी अधिक कम हो गई है और उम्मीद की जाती है कि अगले कुछ वर्षों के भीतर यह ग्राफ 5% और नीचे गिर जाएगा । उन्होंने इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र संघ और अन्य विकासगत भागीदारों विशेष रूप से भारत, जापान, यूरोपीय संघ, एडीबी और विश्व बैंक से प्राप्त सहायता का भी जिक्र किया ।
आतंकवाद
प्रधानमंत्री तोबगे ने कहा कि विश्व में हाल ही में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों से अनगिनत लोगों को पीड़ा पहुंची है । उन्होंने कहा कि आतंकवादी कार्रवाई से वैश्विक शांति और सुरक्षा समाप्त होती जा रही है । उन्होंने आतंकवाद से संयुक्त रूप से लड़ने का आह्वान किया । इस संबंध में उन्होंने बहुपक्षीयवाद, वैश्विक सहयोग पर ज़ोर देते हुए, संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद में सुधार लाने का आह्वान किया ताकि विश्व की बदलती हुई परिस्थितियों को समझा जा सके । उन्होंने विशेष रूप से कहा कि भारत, जापान, ब्राज़ील और जर्मनी को सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाना चाहिए । उन्होंने यह भी कहा कि इस दिशा में अफ्रीका को भी यथोचित रूप में प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए ।
भूटान में प्रजातंत्र
भूटान में प्रजातांत्रिक परिवर्तन के बारे में बात करते हुए प्रधानमंत्री तोबगे ने कहा कि भूटान ने 9 वर्ष पहले प्रजातंत्र के क्षेत्र में पदार्पण किया जो मानवता के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना थी क्योंकि भूटान के राजा ने जो उस समय अपनी लोकप्रियता की पराकाष्ठा पर थे उन्होंने स्वयं इस दिशा की ओर मार्ग प्रशस्त किया । इस समय भूटान में प्रजातांत्रिक मूल्य गहराई के साथ जड़ पकड़ चुके हैं । भूटान में प्रजातांत्रिक सुशासन के सभी संगठन स्थापित हो गए हैं और भलीभाँति कार्य कर रहे हैं । वर्तमान में भूटान में सिविल सोसाइटी और मीडिया का कार्यक्षेत्र बढ़ता जा रहा है । देश में 2008 और 2013 में दो सफल चुनाव हो चुके हैं तथा 2018 में तीसरे चुनाव की तैयारियां की जा रही हैं ।
मालद्वीप
डॉक्टर मोहम्मद आसिम, विदेशमंत्री, मालद्वीप सरकार ने आजादी, शांति और संधारणीयग्रह में संयुक्त राष्ट्र संघ के योगदान का उल्लेख करने के साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विभिन्न मुद्दों यथा आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन के बारे में बातचीत की । उन्होंने फिलिस्तीन, सीरिया, म्यांमार और उत्तर कोरिया के विषय पर भी बात की और आशा व्यक्त की कि मालद्वीप को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य देश बनाया जाएगा ।
अंतर्राष्ट्रीय मामलों में मालद्वीप की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र संघ में श्री आसिम ने बताया कि फिलिस्तीन की समस्या का समाधान तभी हो सकता है कि 1967 में निर्धारित सीमाओं के साथ पूर्वी येरूशलम को फिलिस्तीन की राजधानी बनाते हुए उसे एक आजाद और संप्रभु राष्ट्र घोषित किया जाए । सीरिया का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सीरिया के नागरिकों की पीड़ा का अब अंत हो जाना चाहिए । उन्होंने सीरिया के शरणार्थियों और प्रवासियों से संबंधित समस्या को दीर्घकालिक अवधि के लिए हल करने की बात कही । उन्होंने उत्तर कोरिया पर ज़ोर देते हुए कहा कि वह बातचीत के जरिए समस्या का समाधान करते हुए युद्ध करने से बचे ।
रेखाइन राज्य की स्थिति के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि बेगुनाह नागरिकों की हत्याओं और बड़े पैमाने पर पलायन जो एआरएसए और म्यांमार के सैनिकों द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण 25 अगस्त को घटित हुआ था उसमें रोहिंग्या मुसलमान दुनिया के सबसे अधिक सताए गए लोगों में से थे । उन्होंने कहा कि म्यांमार में रोहिंग्या लोगों का नस्ली सफाया एक बहुत चिंता का विषय है । उन्होंने कहा कि इस जघन्य अपराध के जिम्मेदार लोगों को शीघ्र ही सजा दी जानी चाहे ।
आतंकवाद
उन्होंने कहा कि डाइश एक अलग प्रकार का आतंक फैला रहा है । वे धर्म की गलत रूप में मीमांसा कर रहे हैं और भय फैलाकर जघन्य अपराध कर रहे हैं । श्री आसिम ने कहा कि आतंकवाद से लड़ना, हिंसक उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई करना तथा बुनियादपरस्ती को दबाना मालद्वीप की राष्ट्रीय प्राथमिकता हो गई है । उन्होंने कहा कि इस संबंध में मालद्वीप द्वारा राष्ट्रीय कानून और वृहद राष्ट्रीय नीति बनाई गई है ताकि हिंसक उग्रवाद से लड़ने के साथ-साथ आतंकवाद विरोधी राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना की जा सके । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा स्थापित आतंकवाद रोधी कार्यालय की स्थापना पर अपने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा कि आतंकवाद का कोई एक चेहरा नहीं, कोई एक पहचान नहीं है, कोई एक देश नहीं है और कोई कार्यनीति नहीं है ।
विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियां
डॉक्टर आसिम ने विभिन्न क्षेत्रों तथा स्वास्थ्य, स्त्री पुरुष समानता सुरक्षित और मुनासिब कीमत वाले आवासों के बारे में मालद्वीप सरकार की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि मालद्वीप अपने कुल बजट की 9% धनराशि स्वास्थ्य से संबंधित क्षेत्र पर खर्च करता है जो कि दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है ।
श्री आसिम ने संयुक्त राष्ट्र संघ से अनुरोध किया कि वे मालद्वीप में बड़े पैमाने पर निवेश कराने में मदद करें इससे न केवल मालद्वीप की अर्थव्यवस्था सुधरेगी बल्कि उसका सामाजिक ताना बाना भी मजबूत होगा । उन्होंने इस अनुक्रम में आगे कहा कि मालद्वीप अपनी विकासगत परियोजनाओं के लिए रियायती दरों पर कर्ज प्राप्त नहीं कर पा रहा है ।
जलवायु परिवर्तन
श्री आसिम ने राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन की दिशा में मालद्वीप द्वारा किए गए प्रयासों पर प्रकाश डाला । उन्होंने कहा कि उनका देश पेरिस करार का पूर्ण समर्थन करता है । उन्होंने कहा कि मालद्वीप में एओएसआईएस के अध्यक्ष की हैसियत आईआरईएनए के सहयोग से नवीकरणीय, द्वीपीय ऊर्जा (आईआरआईई) के लिए एक पहल शुरू की है जिससे इससे छोटे द्वीपीय देशों को नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में सहायता प्राप्त होने के साथ-साथ तर्क संबंधी कौशल भी हासिल होगा । उन्होंने कहा कि मालद्वीप मछ्ली पकड़ने के पारंपरिक तरीकों और परिस्थितिकीय रूप से महत्वपूर्ण समुद्रीय जीवों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है । उन्होंने कहा कि मालद्वीप वर्ष 2010 से समुद्री शार्कों को बचाने संबंधी गठबंधन का एक हिस्सा है । मालद्वीप ने सम्पूर्ण ईईज़ेड को शार्कों के लिए सुरक्षित स्थान घोषित किया है । यह क्षेत्र दस लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है ।
संयुक्त राष्ट्र संघ से अपेक्षाएँ
श्री आसिम ने बहुपक्षीय शक्ति संतुलन में विश्वास प्रकट करते हुए कहा कि मालद्वीप अपनी विदेश नीति के तहत यह चाहता है कि वह एक आजाद देश के रूप में यथाशीघ्र संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता प्राप्त करे । उन्होंने कहा कि उनका देश पिछले 42 वर्षों से संयुक्त राष्ट्र संघ के सेवार्थ समर्पित है । उन्होंने कहा कि छोटे और बड़े प्रत्येक देश को संयुक्त राष्ट्र संघ में एक समान प्रतिनिधित्व प्राप्त होना चाहिए । उन्होंने पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ से अनुरोध किया कि मालद्वीप को वर्ष 2019-2020 के लिए सुरक्षा परिषद की सदस्यता प्राप्त होनी चाहिए ।
निष्कर्ष
श्री आसिम द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में दिए गए भाषण से यह स्पष्ट हुआ कि उनका देश जलवायु परिवर्तन और डाइश द्वारा संचालित आतंकवाद नेटवर्क से बहुत ज्यादा प्रभावित है क्योंकि इससे उनके देश का विकास अवरुद्ध हो रहा है तथापि उन्होंने उन बातों पर कोई प्रकाश नहीं डाला जिनके जरिए मालद्वीप में मानव अधिकारों का हनन और राजनीतिक बेचैनी फैली हुई है । उन्होंने ऐसा कोई जिक्र नहीं किया कि मालद्वीप सरकार इसके समाधान के लिए क्या कदम उठा रही है ।
म्यांमार
अपने भाषण में म्यांमार के उपराष्ट्रपति ने वैश्विक जलवायु परिवर्तन, रेखाइन राज्य की समस्या, सरकार द्वारा इस समस्या के निदानार्थ उठाए गए कदम, बंग्लादेश के साथ द्विपक्षीय संबंध और आतंकवाद का उल्लेख किया ।
जलवायु परिवर्तन
म्यांमार के उपराष्ट्रपति ने मैक्सिको और अमेरिका की सरकारों के प्रति अपनी गहरी सहानुभूति जताई क्योंकि इन देशों में हाल ही में जबरदस्त भूकंप और समुद्री तूफान आए थे । उन्होंने कहा कि म्यांमार भी शीघ्र ही जलवायु परिवर्तन से संबंधित पेरिस करार का स्वागत करते हुए महासभा को सूचित किया कि म्यांमार ने उनके द्वारा की गई जलवायु परिवर्तन से संबंधित रिपोर्ट महासचिव को सौंप दी है जो पेरिस करार के अनुरूप है । इस अनुक्रम में उन्होंने क्यूटो नवाचार से संबंधित दोहा संशोधन का भी उल्लेख किया ।
रेखाइन राज्य से संबंधित स्थिति
लोगों द्वारा बेहतर जीवन और शांति स्थापना के प्रयास संबंधी विषय का हवाला देते हुए उन्होंने डाओंग सान सुई सरकार द्वारा किए गए प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने 10 वर्षीय सशस्त्र संघर्ष को समाप्त किया । उन्होंने रेखाइन राज्य की स्थिति के बारे में स्टेट कौंसलर द्वारा की गई कोशिशों का भी जिक्र किया । उन्होंने कहा कि सान सुई हाल ही में हुए आतंकवादी हमलों के कारण सभी समुदायों के कष्ट और विस्थापन के बारे में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंता से अवगत हैं । उन्होंने कहा कि वे मानवीय अधिकारों के हनन और गैर कानूनी हिंसा का विरोध करती हैं ।
उन्होंने रेखाइन राज्य में म्यांमार सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का जिक्र करते हुए निम्नलिखित बाते कही हैं।
उन्होंने कहा कि उनका देश रेखाइन राज्य के लोगों की कठिनाइयों से अवगत है । वहाँ व्याप्त हिंसा के कारण बहुत से लोग अपने घर छोड़कर चले गए हैं । उनमें केवल मुस्लिम ही नहीं बल्कि डेंगनेट, मुरों, थेट, मरमागी और हिन्दू लोग भी शामिल हैं । विश्व के अधिकांश लोग उनके अस्तित्व और दुर्दशा से अवगत रहे हैं । उन्होंने कहा कि म्यांमार सरकार उन खबरों से विचलित है जिनके तहत बड़ी संख्या में मुसलमान लगातार बंग्लादेश की ओर जा रहे हैं । म्यांमार सरकार इस पलायन के कारण तलाश रही है । उन्होंने कहा कि उन्हें बताया गया है कि मुसलमानो की बहुसंख्या अपने ही गांवो में रहना चाहती है ।
बंग्लादेश और म्यांमार के बीच द्विपक्षीय संबंध
उन्होंने कहा कि म्यांमार सरकार बंग्लादेश के साथ संबंधों को आगे बढ़ने के लिए कड़े प्रयास कर रही है । उन्होंने ये भी कहा कि जनवरी और जुलाई 2017 में विदेश राज्यमंत्री तथा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने बंग्लादेश की यात्रा की ।
विस्थापित लोगों को पुनः म्यांमार में बसाने की बाबत उन्होंने कहा कि इस स्थिति से स्टेट कौंसलर को अवगत करा दिया गया है और म्यांमार किसी भी समय सत्यापन प्रक्रिया शुरू करने के लिए तैयार है । उन्होंने कहा कि दोनों देश प्रत्यरपन प्रक्रिया के कार्यान्वयन के लिए संयुक्त कार्य समूह की स्थापना करके 1993 में ऐसे ही अनुभवों से दो चार हो चुके हैं । उन्होंने यह भी कहा कि म्यांमार 1993 के अनुभवों पर आधारित प्रक्रिया को विकसित करना चाहता है ।
आतंकवाद
उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि आज आतंकवाद अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए सर्वाधिक गंभीर खतरा है तथा म्यांमार आतंकवाद का सामना करने के लिए दृढ़संकल्प है । इस मामले से निपटने के लिए रेखाइन सलाहकार कमीशन ने सरकार को एक स्पष्ट कार्यक्रम सौंपा है ।
राष्ट्रीय सद्भावना और शांति
उपराष्ट्रपति ने कहा कि राष्ट्रीय सद्भावना और शांति म्यांमार सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है । उन्होंने कहा कि म्यांमार स्वतंत्रता, न्याय, समान अधिकारों और आत्म निर्णय पर आधारित एक प्रजातांत्रिक एवं परिसंघीय सरकार बनाना चाहता है इस लक्ष्य को प्राप्त करने के प्रयोजनार्थ म्यांमार ने संघीय शांति सम्मेलन का दूसरा सत्र आयोजित किया । उन्होंने संघीय और प्रजातांत्रिक संघ बनाने संबंधी कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों का भी उल्लेख किया ।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र संघ में उपराष्ट्रपति द्वारा दिया गया भाषण मुख्यतः म्यांमार के रेखाइन राज्य के बारे में था । उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच से विश्व को यह बताने का प्रयास किया कि उनकी सरकार रेखाइन राज्य की स्थिति को सुधारने के लिए क्या कार्रवाई कर रही है ।
इस अवसर पर मॉरीशस, बंग्लादेश, इंडोनेशिया, डेनमार्क, कोमोरोस, पाकिस्तान, मालद्वीप, थाईलैंड, मलेशिया, सऊदी अरब और सिंगापुर ने म्यांमार सरकार से कहा कि वे समस्या का शीघ्र समाधान करते हुए कॉफी अन्नान रिपोर्ट की सिफ़ारिशों को कार्यान्वित करें ।
नेपाल
प्रधानमंत्री देउबा ने सर्वप्रथम नेपाल की सरकार, भगवान बुद्ध और माउंट एवरेस्ट की भूमि की तरफ से इस सत्र की सफलता के लिए शुभकामनाये दी. देउबा ने संयुक्त राष्ट्र की महासभा के 72 वें सत्र की सभा के अध्यक्षता के लिए चुने जाने पर अध्यक्ष को बधाईयाँ दी.
देउबा ने सभा के अध्यक्ष को संबोधित करते हुए विभिन्न वैश्विक मुद्दों को उठाया. उन्होंने कहा कि बीते दशकों में विश्व विभिन्न व्यापक परिवर्तनों से गुजरा है. इसी दौरान उल्लेखनीय उपलब्धियां भी हासिल की है, जैसे गरीबी उन्मूलन, स्कूलों में नामांकन, लैंगिक समानता और संक्रामक रोगों पर रोक. लेकिन यह बहुत सारी पेचीदा चुनौतियों से लड़ने के बाद प्राप्त हुआ. वैश्विक समुदाय धुर्वीकृत माहौल में कई वृहद स्तर की चुनौतियों से लड़ रहा है, जैसे आतकवाद, जलवायु परिवर्तन, उर्जा की अपर्याप्तता, खाद्य असुरक्षा और बड़े स्तर पर शरणार्थी और कट्टरवाद की समस्या. संजातीय संघर्ष अंतर राज्यीय झगड़ों से लाखो लोगो की जान जा चुकी है. सीरिया, ईराक, लीबिया और यमन में लोग इस समस्या से जूझ रहे है. दुर्भाग्य से इस दिशा में हमारे प्रयास काफी कम है और इनमे काफी बार देर भी हो जाती है. ये सभी चुनौतियां संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और जिम्मेदारियों को सुदृढ़ करती है.
देउबा ने मानव अधिकारों की बात करते हुए नेपाल के संविधान का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा नेपाल का संविधान सभी नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करता है. यह संविधान सभी नागरिको को अंतर्राष्ट्रीय रूप से माय मानव अधिकारों और मूलभूत अधिकारों की गारटी देता है. संविधान के तहत एक ऐसे आयोग की स्थापना की गयी है जो कि महिलाओ, दलितों, मुस्लिमों, मधेशियों, मूल निवासियों और अन्य वंचित समूहों के अधिकारों और हितो का संवर्द्धन और संरक्षण करता है. नेपाल ने पृथक से एक सुदृढ़ मानव अधिकार आयोग की स्थापना की है और हम जीवन के अधिकार के प्रति काफी संवेदशील है.
देउबा ने नेपाल की विदेश नीति पर बोलते हुए कहा कि हमारी विदेश नीति पंचशील के सिद्धांतो पर आधारित है जो कि भगवान बुद्ध की देन है. हम गुटनिरपेक्षता में विश्वास रखते है. स्वतंत्र विदेश नीति का अवलंबन करते हुए हम प्रत्येक मुद्दे को बिना भय और पक्षपात उसके महत्त्व के आधार पर परखते है.
देउबा ने नेपाल के वर्तमान विकास की भी बात की, उन्होंने कहा कि नेपाल में एक दशक से संघर्ष चल रहा था लेकिन हमने बातचीत के जरिये शांति स्थापित की, जो कि हमारी राजनीतिक शक्ति को बताती है. यह शांति प्रक्रिया 2006 से शुरू हुई और 2015 में समावेशी संविधान की घोषणा के बाद समाप्त हुई. हमारे समाज का समानुपातिक प्रतिनिधित्व नेपाल के समावेशी लोकतंत्र का मूल है. अभी हाल ही के स्थानीय चुनावों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित दिखती है जैसा कि संविधान महिलाओ को 40 प्रतिशत प्रतिनिधित्व की गारटी देता है. 20 साल बाद स्थानीय चुनाव की सफलता के बाद अगले दो महीनों में संघीय और प्रांतीय चुनाव की तिथि घोषित की गयी है.
पाकिस्तान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने 21 सितंबर 2017 को आम बहस में हिस्सा लेते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा के 72वें सत्र को संबोधित किया । राष्ट्रपति ट्रम्प की दक्षिण एशिया नीति के कारण उत्पन्न होने वाली नई चुनौतियों का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री अब्बासी ने भारत और अफगानिस्तान पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे पाकिस्तान को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं । अपने आंतरिक खतरों और विप्लवों का जिक्र करते हए उन्होंने जम्मू कश्मीर का मसला उठाया । कुछ एकपक्षीय शक्तियों द्वारा अंगीकृत नीतियों और दूसरे देशों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाई से अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए उत्पन्न खतरों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि एशिया में यह स्थिति बड़ी शक्तियों के परस्पर टकराव, दक्षिण पूर्व तथा पश्चिम एशिया में उत्पन्न तनाव के कारण जन्म ले रही है । मानवता के खतरा बने विभिन्न कारकों का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री अब्बासी ने एक मजबूत और एकीकृत संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना पर ज़ोर दिया ।
संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार
संयुक्त राष्ट्र संघ की मौजूदगी के कारण विश्व के अधिकांश देश वैश्विक टकराव से बचने में सफल रहे हैं हालांकि संयुक्त राष्ट्र संघ अधिकार पत्र में निहित सिद्धान्त धीरे-धीरे नया रूप धारण करते जा रहे हैं । हाल ही में कुछ देशों ने एकपक्षीय शक्तियों का समर्थन करने और दूसरे देशों के खिलाफ दखलंअदाजी जैसे मामलों का समर्थन किया है । दक्षिण, पूर्वी, पश्चिम, एशिया और मध्यपूर्व (सीरिया, यमन और डाइश से उत्पन्न खतरा ) अफ्रीका में उत्पन्न तनाव, इज़राइल का नाजायज कब्जा, जम्मू और कश्मीर का झगड़ा, बढ़ता हुआ जैनोफोबिया और इस्लामोफोबिया और रोहिंग्या लोगों का नसली सफाया आदि ऐसे विषय हैं जिनसे समस्त संसार चिंतित है । उन्होंने कहा कि एक शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र संघ समय की आवश्यकता है जिससे वैश्विक सहयोग के लिए बेहतर मानदंड, प्रक्रिया और मंच उपलब्ध हो सकें । उन्होंने कहा कि शांति, सुरक्षा और विकास से संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की क्षमताओं को पुनर्जीवित किया जाए ताकि शांति, सुरक्षा और विकास का सुचारु मार्ग प्रशस्त हो सके । पाकिस्तान चाहता है कि सुरक्षा परिषद को और अधिक प्रजातांत्रिक और जबावदेह निकाय बनाया जाए । उन्होंने यह भी कहा कि सुरक्षा परिषद शक्तिशाली और विशेषाधिकार प्राप्त लोगों का क्लब नहीं होना चाहिए । प्रधानमंत्री अब्बासी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के तहत पाकिस्तान द्वारा औपनिवेशवाद के खिलाफ लड़ने, विकास, व्यापार, अंतर्राष्ट्रीय कानून, मानव अधिकार, शरणार्थी, शांति स्थापना, सुरक्षा, निरस्तरीकरण, संयुक्त राष्ट्र संघ के बजट और प्रबंधन के परिप्रेक्ष्य में पाकिस्तान की भूमिका का उल्लेख किया । उन्होंने कहा कि पाकिस्तान उन देशों में शामिल है जिसने संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति स्थापना सेना में अपने सबसे अधिक सैनिक भेजे ।
जम्मू एवं कश्मीर और भारत का मामला
प्रधानमंत्री अब्बासी ने कहा कि भारत जम्मू और कश्मीर के मामले में लगातार संयुक्त राष्ट्र संघ की याचिकाओं की उपेक्षा कर रहा है । जम्मू कश्मीर में मिलिटेंसी को विधिसम्मत करार देते हुए प्रधानमंत्री अब्बासी ने उस तरीके की आलोचना की जिसके जरिए भारत के विधि प्रवर्तन अभिकरण ऐसे मिलिटेंसी और विधि प्रवर्तन समस्याओं का सामना करने के लिए शक्ति (पैलेट गन सहित) का इस्तेमाल कर रहे हैं । उन्होंने कहा कि भारत निरंतर नियंत्रण सीमा पर युद्धबंदी का उल्लंघन कर रहा है और पाकिस्तान के विरुद्ध सीमित युद्ध करना चाहता है जिसका पाकिस्तान तदनुरूप जबाव देगा । अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह ऐसी स्थिति को रोकने का प्रयास करें । उन्होंने कहा कि पाकिस्तान भारत के साथ विस्तृत चर्चा करना चाहता है ताकि सभी शेष समस्याओं विशेष रूप से कश्मीर का मामला हल किया जा सके । उन्होंने कहा कि पाकिस्तान शांति और सुरक्षा कायम रखने के लिए परस्पर बातचीत का मार्ग अपनाना चाहता है । उन्होंने कहा कि इस परस्पर बातचीत के तहत भारत द्वारा पाकिस्तान की पश्चिमी सीमा सहित उसके द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ प्रायोजित आतंकवाद को भी समाप्त होने की भी बातचीत होनी चाहिए । हालांकि उन्हींने सीमापार के आतंकवाद को पाकिस्तान द्वारा बढ़ावा देने के बारे में कोई बात नहीं की।
अफगानिस्तान
उन्होंने अफगानिस्तान में पिछले 4 दशकों से व्याप्त राजनीतिक अस्थिरता का उल्लेख करते हुए कहा कि इसके कारण उग्रवादी, आतंकवादी, हथियार, नशीली दवाई और लाखों शरणार्थी अफगानिस्तान से पाकिस्तान आ रहे हैं । उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में सैनिक शक्ति के द्वारा सैनिक शक्ति स्थापित नहीं की जा सकती और पाकिस्तान दूसरों की गलती छुपाने के लिए बलि का बकरा नहीं बन सकता है । उन्होंने कहा कि तालिबान का सुरक्षित ठिकाना पाकिस्तान में नहीं है बल्कि ये लोग अफगानिस्तान में तालिबन द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों को अपना ठिकाना बनाए हुए हैं । उन्होंने कहा कि वह पाकिस्तान की जमीन पर अफगान युद्ध लड़ने की इजाजत नहीं देंगे क्योंकि पाकिस्तान पहले से ही मिलिटेंसी और आतंकवाद से काफी नुकसान उठा चुका है । उन्होंने कहा कि इस अनुक्रम में सबसे महत्वपूर्ण कार्य यह होगा कि सभी देश मिलकर अफगानिस्तान से डाइश और उसके साथी आतंकवादी संगठनो को निकालकर बाहर खड़ा करें ।
आतंकवाद और पाकिस्तान
अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा पाकिस्तान के विरुद्ध लगाए गए हाल के आरोपों का जबाव देते हुए श्री अब्बासी ने कहा कि अमेरिका ने पाकिस्तान के जरिए ही अलकायदा और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में सफलता प्राप्त की थी । उन्होंने कहा कि आतंकवादियों के खिलाफ पाकिस्तान को हजारों लोगों की कुर्बानी देने के साथ-साथ भारी कीमत अदा करनी पड़ी । प्रधानमंत्री अब्बासी ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने से उसे 120 बिलियन अमेरिकी डॉलर से भी अधिक का नुकसान हुआ है उन्होंने कहा कि इस लड़ाई 6500 पाकिस्तानी सैनिकों सहित 27000 पाकिस्तानियों को अपनी जान देनी पड़ी । 15 हजार सैनिकों सहित 50 हजार पाकिस्तानी नागरिक घायल हो गए । उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय राज्य द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करने में असफल रहा है । उन्होंने कहा कि आतंकवाद समाप्त करने के लिए विदेशी हस्तक्षेप, दमनकारी चक्र और अन्य विशेष कारकों के रूप में कार्य कर रहे हैं । पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की सैनिक शक्ति बढ़ने और नाभिकीय हथियारों के रख रखाव को औचित्यल्ल्पूर्ण सिद्ध करते हुए कहा कि ऐसा सब कुछ भारत के वजह से किया जा रहा है । उन्होंने कहा कि उनके नाभिकीय हथियार हमेशा नियंत्रित अवस्था में रहते हैं । उन्होंने कहा कि वैश्विक नेताओं को चाहिए कि वे पाकिस्तान को वैश्विक गैर ध्रुवीकरण यथा गैर भेदभाव मूलक आधार पर नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह में प्रवेश दिलाएँ ।
बेल्ट और सड़क पहल तथा सीपीईसी
संयुक्त राष्ट्र संघ का संधारणीय विकास लक्ष्य इतिहास में सर्वाधिक महत्वाकांक्षी विकासगत कार्यसूची का प्रतिनिधित्व करता है । जलवायु परिवर्तन, उत्तरोत्तर बढ़ते संरक्षावाद, विवादास्पद अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ध्रुवीकरण से संबंधित विवादों से उत्पन्न संयुक्त अवरोधों के कारण विकास की गति रुक गई है । चीन के राष्ट्रपति जी जिनपिंग द्वारा प्रस्तुत बेल्ट और सड़क पहल से खुशहाली का मार्ग प्रशस्त होने के साथ-साथ दक्षिण-दक्षिण सहयोग की भी राहें खुली हैं । पाकिस्तान की भी अर्थव्यवस्था में पिछले 4 वर्षों के दौरान उल्लेखनीय प्रगति हुई है । चीन और पाकिस्तान आर्थिक कॉरीडोर (सीपीईसी) से हमारी आर्थिक व्यवस्था में और अधिक सुधार आएगा । पाकिस्तान और चीन की परस्पर अर्थव्यवस्था तेजी से आगे की ओर बढ़ रही है । अब यह सहयोग ऊर्जा और परिवहन के क्षेत्र में भी शामिल हो गया है । पाकिस्तान द्वारा यूरेशियन बेल्ट और सड़क नेटवर्क में दाखिल होने से पाकिस्तान की आर्थिक व्यवस्था तेजी से आगे बढ़ेगी ।
अन्य देशों द्वारा दिए गए भाषणों के विरोध में पाकिस्तान का जबाव
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति, बंग्लादेश की प्रधानमंत्री और भारत की विदेश मंत्री द्वारा जबाव देने के विकल्प के उपयोग के तहत दिए गए भाषणो का विरोध करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में पाकिस्तानी प्रतिनिधि ने कहा कि पाकिस्तान भारत को क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित नहीं करने देगा । पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से कहा कि वह पाकिस्तान पर आतंकवाद का आरोप लगाने से पहले अपने घर को सुधारे । पाकिस्तान ने बंग्लादेश से कहा कि वह अपने आजादी के आंदोलन में पाकिस्तान की भूमिका को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत न करे । उन्होंने कहा कि बंग्लादेश से संबंधित मामला 1971 में सर्व सम्मति से निपटाया जा चुका है ।
दूसरा जबाव देने संबंधी अधिकार का प्रयोग करते हुए किसी का नाम लिए बिना पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए आरोप लगाया गया कि उसने जम्मू और कश्मीर पर नाजायज कब्जा कर रखा है और यह कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है ।
25 सितंबर को जबाव देने के तीसरे अधिकार का प्रयोग करते हुए पुनः भारत पर आरोप लगाया कि वह जम्मू और कश्मीर में अवांछित कार्य कर रहा है । उन्होंने कहा कि भारत कश्मीर में न्याय के विरुद्ध कार्य कर रहा है ।
श्रीलंका
श्रीलंका के राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित करते हुए कहा कि महासभा का विषय पृथ्वी पर शांति और बेहतर जीवन के लिए प्रयास कर रहे हैं लोगों पर ध्यान संकेन्द्रण पर बात करना सामयिक और युक्तियुक्त है । उनके द्वारा दिए गए भाषण में उन पहलों का विशेष रूप से जिक्र किया गया जो उन्होंने अपने देश में पारदर्शिता और प्रजातांत्रिक संवर्द्धन के लिए जनवरी 2015 में कार्यभार ग्रहण करने के बाद शुरू की थी । उन्होंने कहा ये पहले श्रीलंका की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का श्रेष्ठ उदाहरण हैं । उन्होंने राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियों को संसद में स्थानांतरित करने तथा ऐसे राजनीतिक समूहों को हटाने जो अत्यधिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए मनमाना सुशासन चलाते हैं को हटाने का उदाहरण दिया उन्होंने कहा कि श्रीलंका उनके द्वारा कार्यभार ग्रहण करने के बाद लोगों की आजादी बहाल करने, मानव अधिकारों और मूलभूत अधिकारों की रक्षा करने में सफल रहा है ।
उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ के गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम की तर्ज पर श्रीलंका ने वर्ष 2017 को गरीबी उन्मूलन वर्ष का नाम देते हुए कई विकास परियोजनाएं चलाई हैं जिससे घरेलू व्यवस्थ जैसी परिकल्पनाओं 2015 और ग्राम शक्ति मजबूत होगी ।
राष्ट्रपति ने कहा कि श्रीलंका देश में प्रथकवादी आंदोलन को परास्त करने में सफल रहा है और उनकी सरकार सतत विकास लक्ष्य की ओर बढ़ रही है । उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि पर्यावरण की संरक्षा एक महत्वपूर्ण विषय है तथा जलवायु परिवर्तन से संबंधित समस्याओं को पेरिस करार के अनुसार ही हाल किया जा सकता है । उन्होंने सभा को संबोधित करते हुएबताया कि श्रीलंका बच्चों और महिलाओं के अधिकारों को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध है तथा वह राष्ट्रीय स्तर पर नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोक देना चाहता है । उन्होंने संविधान में नए संशोधनों का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार ने चुनावों में25% महिलाओं को उम्मीदवार की हैसियत से रखने का प्रावधान किया है । नशीली दवाओं को समाप्त करने के लिए उन्होंने सुझाव दिया कि संयुक्त राष्ट्र संघ सर्वसम्मति के जरिए एक अंतर्राष्ट्रीय कार्य योजना बनाने पर विचार कर सकता है ।
युद्ध के बाद की चुनौतियाँ
उन्होंने कहा कि श्रीलंका ने 2009 में युद्ध समाप्त होने के बाद दो मुख्य चुनौतियों का सामना किया । उनमें से एक चुनौती यह थी कि श्रीलंका पर कर्ज का भार अत्यधिक बढ़ गया था और दूसरे मानव अधिकारों के हनन से संबंधित आरोपों के संकल्पों का कार्यान्वयन करना है । कर्ज के बोझ से संबंधित समस्या का समाधान करने के लिए उन्होंने कहा कि श्रीलंका की सरकार ने कर्ज के बोझ सहित लक्ष्य उन्मुखी उपाय करने के लिए कई कदम उठाए हैं । उन्होंने ज़ोर देते हुए कहा कि श्रीलंका घरेलू अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण, कानून के शासन और सतमार्ग के जरिए समग्र रूप में राष्ट्रीय ताने बाने को मजबूत करने के लिए कटिबद्ध है ।
श्रीलंका को संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से आशाएँ
श्रीलंका के राष्ट्रपति ने ज़ोर देते उए कहा कि उनका देश राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में संयुक्त राष्ट्र संघ से सहायता प्राप्त करने की उम्मीद करता है उन्होंने यह भी कहा कि श्रीलंका पिछले 62 वर्षों से संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य है ।
उन्होंने श्रीलंका में मानव अधिकारों से संबंधित आरोपों का समाधान करने और अपेक्षित कार्यव्यवस्था को कार्यान्वित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से सहायता देने का आह्वान किया । उन्होंने कहा कि श्रीलंका की आजादी और संप्रभुता की रक्षा करना उनकी सरकार की प्राथमिकता है । उन्होंने ये भी कहा कि देश के समक्ष प्रस्तुत सभी समस्याओं का तत्काल समाधान करना संभव नहीं है जैसा कि कुल लोग इस बारे में उम्मीद रखे हुए हैं ।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ पर ज़ोर देते हुए कहा कि वह देश में झगड़ों को समाप्त करने, एकता को कायम करने और सभी समुदायों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने में श्रीलंका की मदद करे ।
निष्कर्ष
राष्ट्रपति द्वारा दिया गया भाषण मुख्यतः उनकी सरकार द्वारा सामंजस्य स्थापित करने और संयुक्त राष्ट्र संघ एसडीजी प्राप्त करने के प्रयोजनार्थ उनकी सरकार द्वारा की गई पहलों पर आधारित था ।
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* योगदानकर्ता : डॉ. निहार रंजन दास और डॉ. स्मिता तिवारी (अफ़ग़ानिस्तान), डॉ आशीष शुक्ला और डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्जी (बांग्लादेश), डॉ आशीष शुक्ला (भूटान), डॉ. समता मलमपति (मालदीव्स, म्यांमार और श्रीलंका ), डॉ. राकेश कुमार मीना (नेपाल) और डॉ. ध्रुबज्योति भट्टाचार्जी (पाकिस्तान), भारतीय विश्व मामले परिषद, नई दिल्ली में अध्येता हैं
अस्वीकरण: व्यक्त मंतव्य लेखक के हैं और परिषद के मंतव्यों को परिलक्षित नहीं करते।