रूस-भारत सामरिक भागीदारी : समझ का संकट?
भाग I
डॉ. वासिली शिकिन, आर.आई.ए.सी. विशेषज्ञ
मास्को और दिल्ली के बीच मैत्री तथा सहयोग का इतिहास 1971 में रूस-भारत साझेदारी हेतु पहली संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के समय से वर्तमान तक चला आ रहा है। हालांकि शीत युद्ध के दौर में भारत ने गुट निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया था, लेकिन यह चीन या यूगोस्लाविया जैसे कुछ कम्युनिस्ट ब्लॉक के सदस्यों की तुलना में सोवियत संघ के काफी करीब था। अशांति भरे 1990 के दशक में, जब रूस अपने आंतरिक मुद्दों से जुझ रहा था, तब दोनों देशों के बीच सहयोग लगभग बंद हो गया था। इसे 2000 के दशक में, सामरिक भागीदारी की घोषणा पर हस्ताक्षर करने के साथ पुनर्जीवित किया गया, और दस साल बाद यह एक “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” के रुप में विकसित हुआ।
संक्षिप्त में 2018 के परिणाम
2000 के बाद से, दोनों देशों के नेता रूस-भारत सम्मेलन में वार्षिक रूप से द्विपक्षीय सहयोग में प्रगति का आकलन करने तथा अपनी साझेदारी के स्थायित्व को प्रदर्शित करने हेतु एक-दूसरे से मिलते हैं। दिल्ली में अक्टूबर 2018 में आयोजित 19वीं शिखर बैठक राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच हाई-प्रोफाइल बैठकों की कोई अपवाद बैठक नहीं थी। दोनों नेताओं ने ‘बदलती दुनिया में स्थायी भागीदारी’ (जैसा कि आधिकारिक संयुक्त वक्तव्य का शीर्षक दिया गया था) के लिए अपनी पारंपरिक प्रतिबद्धता को फिर से दोहराया। राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी ने जलवायु परिवर्तन से निपटने और आतंकवाद से जूझने हेतु मुक्त व्यापार सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय संघर्षों और अन्य मुद्दों को सुलझाने के लिए वैश्विक मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए अपना सामान्य दृष्टिकोण दर्शाया।
वार्षिक शिखर सम्मेलन में मीडिया को संयुक्त वक्तव्य द्वारा राष्ट्रीय नेताओं का संबोधन रूस-भारत द्विपक्षीय संबंधों का एक बैरोमीटर और वार्षिक रूप से सबसे उल्लेखनीय साझेदारी की उपलब्धियों को रिपोर्ट करने का एक आधिकारिक तरीका बन गया है। पुतिन और मोदी ने गर्व से इस बात कि घोषणा की थी कि 2017 में द्विपक्षीय व्यापार का कारोबार 20% से अधिक बढ़ गया था और यह 2025 तक $25 बिलियन के लक्ष्य को छूने वाला है। दुनिया के सामने प्रस्तुत अन्य उपलब्धियों में भारतीय सशस्त्र बलों को आपूर्ति की जाने वाली एस-400 वायु रक्षा प्रणाली के लंबे समय से प्रतीक्षित $ 5.5 बिलियन के अनुबंध पर आधिकारिक हस्ताक्षर था।
दोनों देशों के नेताओं ने गज़प्रोम और गेल के बीच अनुबंध के तहत मार्च 2018 में रूस से भारत में आपूर्ति होने वाले पहले एलएनजी शिपमेंट के बारे में भी बात की, और कुंदनकुलम एनपीपी इकाइयों के निर्माण पर प्रगति के बारे में बताया गया, जो सबसे लंबे-समय की और महत्वाकांक्षी संयुक्त परियोजनाएं हैं।1
नई स्थितियों के तहत पुरानी भागीदारी
हर साल रूस-भारत शिखर सम्मेलन में अपने सभी मौसम रणनीतिक साझेदारी हेतु अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा करने वाले दलों और नए छह अंकों के हथियारों एवं ऊर्जा सौदों पर सहमत होने के साथ इसी परिदृश्य का पालन करते हैं। लगभग दो दशकों में रूस-भारत रणनीतिक सहयोग का सार में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं हुआ है, और रूस-भारत साझेदारी का सामंजस्य अभी भी सभी सवालों से परे है। पिछले 20 वर्षों में नाटकीय रूप से जो बदलाव आया है उसका कारण वह वैश्विक रणनीतिक वातावरण है जिसमें मॉस्को और दिल्ली खुद को देखते हैं और जिसमें उनके रणनीतिक सहयोग के लिए एक 'विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त' साझेदारी की विशिष्ट भूमिका का दावा करना बहुत कठिन होगा।
2000 के दशक की शुरुआत में, जब दोनों राष्ट्रों के बीच संवाद रणनीतिक सहयोग के रूप में उभरा, तो अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में भारत के विशिष्ट साझेदार के रूप में रूस की भूमिका पर कोई भी संदेह नहीं था। उस समय, भारत को परमाणु परीक्षणों के बाद लगाए गए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा था और जिसके कारण इसके आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण निवेशों तथा आधुनिक तकनीकों की आमद की कमी थी, तो वहीं पाकिस्तान अमेरिका और चीन से उदार वित्तीय एवं सैन्य समर्थन प्राप्त करते हुए पड़ोसी देशों की ओर अपने क्षेत्रीय दावों में बहुत अधिक मुखर हो रहा था। उन परिस्थितियों में, भारत को रूस की आवश्यकता थी, जो भारत के लिए अत्याधुनिक रक्षा आपूर्ति, परमाणु और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों का अमूल्य स्रोत बन गया। इसके अलावा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और जी-8 का भागीदार होने के नाते, मास्को भारत का समर्थन करने और पश्चिमी दुनिया तथा उसके क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों के साथ अपने संबंधों की मध्यस्थता हेतु पूरी तरह से तैयार और सक्षम था।
अब रूस अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का सामना कर रहा है और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में समर्थन में कमी उसे परेशान कर रही है, जबकि भारत वैश्विक राजनीति में एक बड़ी भूमिका में है, जिसमें दावोस में विश्व आर्थिक मंच या जी 20 शिखर सम्मेलन जैसे मंच पर भारतीय प्रधानमंत्री मोदी का वैश्विक स्तर पर प्रमुख के रूप में स्वागत किया जाता है। कोई आश्चर्य नहीं कि नई परिस्थितियों ने द्विपक्षीय साझेदारी के महत्वपूर्ण क्षेत्रों को प्रभावित किया है।
पहले के दो दशकों के विपरीत, अब रूस को 'विशेषाधिकार प्राप्त सहयोगी' की स्थिति के लिए तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है, जबकि भारत को एक चयनकर्ता के रुप में माना जाता है। रक्षा तथा ऊर्जा सहयोग जैसे द्विपक्षीय सहयोग के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में दिल्ली का नया दृष्टिकोण अब ज्यादातर स्पष्ट है।
विशेषाधिकार प्राप्त भागीदारी से एक भागीदारी होने का विशेषाधिकार
अक्टूबर 2018 में, भारत ने रूस की सबसे उन्नत वायु-रक्षा प्रणाली एस-400 ट्रायम्फ खरीदने हेतु $5.5 बिलियन के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए, जो दोनों देशों के बीच सबसे बड़े हथियारों के सौदे में से एक है। यह सौदा एक महत्वपूर्ण सफलता थी।
1India-Russia Joint Statement during the visit of President of Russia to India (October 5, 2018), Press Information Bureau, Government of India, Prime Minister’s Office
रूस के लिए, यह हाल के वर्षों में हथियारों का सबसे बड़ा सौदा है और सोवियत युग के बाद रूसी रूबल में होने वाला पहला हथियार निर्यात अनुबंध है। इसी दौरान, भारतीय सशस्त्र बलों ने सबसे अधिक परिष्कृत वायु रक्षा प्रणालियों में से एक को अपनाने तथा काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सेक्शंस एक्ट (काट्सा) को नाकाम करने में सफल रहे जिसको लेकर सौदा होने पर ट्रम्प प्रशासन ने भारत के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की धमकी दी थी। सौदा शुरू होने से कुछ महीने पहले, अमेरिका ने चीन पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) उपकरण विकास विभाग (ई.डी.डी.) पर प्रतिबंध लगाए थे, जो एस-400 का पहला विदेशी खरीदार था।2 हाल ही में घोषित अन्य हथियारों के सौदों में 4 प्रोजेक्ट 11356 मिसाइल फ्रिगेट3 के लिए 1.9 बिलियन डॉलर का समझौता है और रूसी अकुला-1 श्रेणी की न्यूक्लियर सबमरीन के लिए 3.3 बिलियन डॉलर का समझौता है, जिसे भारतीय नौसेना द्वारा 2025 के बाद से 10 साल की लीज पर लिया जाएगा।4
हाल के मल्टी-बिलियन हथियारों के सौदे के बावजूद, आंकड़े बताते हैं कि रूस भारतीय हथियारों के बाजार में अपनी जमीन खो रहा है। 2000 के दशक में, रूस से हथियारों की खरीद कुल भारतीय हथियारों के आयात का 75% तक थी। 2018 तक, रूसी हिस्सेदारी 58% तक गिर गई है, इसके बावजूद वो अभी भी प्रमुख आपूर्तिकर्ता की भूमिका में है लेकिन यह आकड़े मॉस्को की चिंताएं बढ़ाते हैं।5 पिछले एक दशक के भीतर रूस और भारत के बीच रक्षा सहयोग एडमिरल गोर्शकोव (आईएनएस विक्रमादित्य) का समय पर नवीकरण, पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान (एफ.जी.एफ.ए.) की लंबी संयुक्त परियोजना पर असहमति, साथ ही रक्षा प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण, और रूसी रक्षा उपकरणों की सर्विसिंग को लेकर भारत के असंतोष कई मुद्दों से जुड़ा हुआ था। इस प्रकार, भारतीय सशस्त्र बल अपनी हथियारों की आपूर्ति में विविधता ला रहे हैं।
नतीजतन, रूसी कंपनियां बड़े रक्षा निविदाओं की संख्या में यू.एस., फ्रांस और इज़राइल जैसे प्रतियोगियों से पीछे हो गईं। 2011 में, आई.ए.एफ. ने रूसी Mi-28N बोइंग से $2.5 बिलियन के लिए 22 AH-64D अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर खरीदना पसंद किया। उसी वर्ष रूसी यूनाइटेड एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन (यू.ए.सी.) ने मिग-35 के साथ बोली लगाकर फ्रेंच डसॉल्ट एविएशन को 126 मल्टीरोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट्स की आपूर्ति करने के लिए 8 बिलियन डॉलर की प्रतियोगिता खो दी, जो भारत में सबसे बड़ा एकल रक्षा सौदा बन गया और सबसे विवादास्पद सौदों में से एक बन गया। 2012 में, एयरबस A-330 मल्टीरोल टैंकर ट्रांसपोर्ट 6 विमानों की आपूर्ति के लिए $2 बिलियन का अनुबंध हासिल करने की प्रतियोगिता में रूसी ll-78 MKI से आगे (बाद में निविदा के परिणाम रद्द कर दिए गए थे) था।
ऊर्जा क्षेत्र में रूस-भारत साझेदारी के लिए ऐतिहासिक घटना जून 2018 में रूस से भारत में एलएनजी की पहली खेप थी। मॉस्को ने अंततः भारतीय गैस बाजार में प्रवेश किया है और यूएसएस से एलएनजी आपूर्तिकर्ताओं की तुलना में मॉस्को ने अधिक आकर्षक शर्तों की पेशकश की। मॉस्को के दृष्टिकोण से, यह सौदा यह दर्शाने का एक बड़ा अवसर है कि वाशिंगटन द्वारा रूसी तेल एवं गैस कंपनियों के खिलाफ लगाए गए अंतर्राष्ट्रीय नाकाबंदी काम नहीं करेगी, और यूरोपीय संघ के कुछ राजनीतिक राज्यों द्वारा रूसी पारंपरिक गैस से स्विच कर अमेरिका एलएनजी आपूर्ति करने के प्रेरित निर्णयों से होने वाले नुकसानों की भरपाई करने का एक अवसर थी।
हालांकि, दिल्ली के लिए फिर से यह विविधता का विषय था। गजप्रोम और गेल के बीच सौदा पहली बार 2012 में घोषित किया गया था।
2Mattis on $5.5.Billion India-Russia S-400 Deal: 'We will Work Everything Out,' // The Diplomat. December 6, 2018
URL: https://thediplomat.com/2018/12/mattis-on-5-5-billion-india-russia-s-400-deal-well-work-everything-out/
3 The Construction of Frigates for Indian Navy to be finished by 2023 // TASS. April 23, 2019. URL:https://tass.ru/armiya-i-opk/6381736
5Trends in International Arms Transfers (2018).SIPRI. March 2019.
तब से, रूसी राष्ट्र के स्वामित्व वाली गैस की प्रमुख कंपनी को अनुबंध के तहत अपने दायित्वों को निष्पादित करने हेतु एलएनजी क्षमता की कमी, अन्य आपूर्तिकर्ताओं से प्रतिस्पर्धा और अनुबंध को फिर से शुरू करने के लिए भारत के दबाव का सामना करना पड़ा। अंत में, गजप्रोम अनुबंधित मात्रा और कीमतों में कमी के साथ बहुत कम आकर्षक शर्तों पर सहमत हुआ।
दुनिया में चौथा सबसे बड़ा एलएनजी बाजार होने के नाते, भारत अपने प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं के साथ अनुबंध को फिर से बातचीत करने के लिए अपनी सौदेबाजी की क्षमता का उपयोग करता है। पहले के भारतीय आयातकों ने कतरी रासग्रास और एक्सॉनमोबिल के साथ दीर्घकालिक एलएनजी आपूर्ति अनुबंधों पर फिर से बातचीत की थी। अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के समय उचित प्रतीत होने वाली कीमतें एलएनजी आपूर्ति की हालिया वृद्धि के बाद से काफी कम हो गई हैं। भारत ऊर्जा भागीदारों में विविधता लाने और विभिन्न आपूर्तिकर्ताओं को भारतीय बाजार के लिए सर्वोत्तम संभव शर्तों की पेशकश करने और यहां तककि अनुबंधों पर हस्ताक्षर करने के बाद रियायतें देने की कोशिश कर रहा है। यही कारण है कि गजप्रोम अमेरिकी एलएनजी की जगह लेने में सक्षम नहीं होगा, लेकिन इसका उपयोग भारतीय आयातकों द्वारा अमेरिकी और अन्य विदेशी कंपनियों का लाभ उठाने के लिए किया जाएगा।
रणनीतिक साझेदारी के लिए रणनीतिक चुनौतियां
हालांकि, भारतीय हथियारों तथा ऊर्जा बाजार को लेकर बढ़ती प्रतिस्पर्धा के रूस और भारत के बीच सहयोग के लिए खतरा पैदा करने की संभावना नहीं है। रूस-भारत की साझेदारी में अब तक की सबसे बड़ी चुनौती दोनों देशों के बीच रणनीतिक मुद्दों जैसे कि यूरेशिया में सुरक्षा और राजनीतिक व्यवस्था के लिए बढ़ती खाई है। 2014 के बाद से ये संभावित अंतर स्पष्ट हो गए, जब संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों के खिलाफ मास्को भू-रणनीतिक दृष्टि टकराव की ओर बढ़ी, और क्रेमलिन अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती देने में सक्षम प्रमुख शक्ति के साथ संभावित अलगाव और सहयोगी को दूर करने के अपने प्रयासों में तेजी से बीजिंग की ओर बढ़ने लगा। हालांकि, रूस और चीन के सहयोग में औपचारिक राजनीतिक या सैन्य गठबंधन की विशेषताओं का अभाव है, जिसमें भारत के चीन के साथ अनसुलझे क्षेत्रीय विवाद हैं और दक्षिण एशिया में बीजिंग की मुखर विदेश नीति का सामना कर रहा है, बड़ी चिंता के साथ चीन-रूसी तालमेल का अनुपालन कर रहा है।
इसके अलावा, रूस ने वाशिंगटन के साथ इस्लामाबाद के अलगाव के बाद पाकिस्तान के प्रति अपने दृष्टिकोण की भी समीक्षा की है। 2014 में, रूसी रक्षा मंत्री ने 1969 के बाद पहली बार देश की आधिकारिक यात्रा की। इस ऐतिहासिक यात्रा के प्राथमिक परिणाम में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना को 4 Mi-35M अटैक हेलीकॉप्टर की आपूर्ति, आगे घातक हथियारों की आपूर्ति (T-90 टैंक और सुखोई Su-35 फाइटर्स), और संयुक्त सैन्य अभ्यास द्रुज्बा (मैत्री) में भाग लेने जैसे समझौते हुए।6
मॉस्को और दिल्ली के यूरेशिया में सामरिक सुरक्षा के मुद्दों के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण अफगानिस्तान-सामंजस्य प्रक्रिया में तालिबान को शामिल करने की रूस के नेतृत्व वाली पहल के साथ सामने आए थे, जिसे भारत एक आतंकवादी समूह और पाकिस्तानी प्रॉक्सी के रूप में मानता है।
6 Pakistan, Russia sign landmark defence cooperation agreement // Dawn. November 21, 2014. URL:https://www.dawn.com/news/1145875
Pay Attention to Russia's South Asia Strategy // The Diplomat. June 7, 2018. URL:
https://thediplomat.com/2018/06/pay-attention-to-russias-south-asia-strategy/
एक अन्य मामला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) के खिलाफ दिल्ली के मजबूत विरोध की परवाह किए बिना मास्को द्वारा चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का समर्थन है, जो कि कश्मीर के विवादित क्षेत्र से गुजरने वाला है। क्वाड में भारत की भागीदारी, और इसके सदस्यों (यूएसए, जापान और ऑस्ट्रेलिया) के साथ घनिष्ठ रक्षा संबंध, जिन्हें एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन के उद्देश्य से देखा गया है, भी रणनीतिक रूप से मास्को और दिल्ली के बीच आपसी समझ में योगदान नहीं करते हैं।
दिल्ली में नीति निर्माताओं का मानना है कि चीन और पाकिस्तान के प्रति मॉस्को की विदेश नीति से भारतीय सुरक्षा और दक्षिण एशिया में शक्तियों के संतुलन संबंधी नतीजे हो सकते हैं। हालांकि, मॉस्को अभी भी सार्वजनिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय हितों के मुद्दों पर दिल्ली को अपने समर्थन का प्रदर्शन करता है। उदाहरण के लिए, अगस्त 2019 में, रूस पहला स्थायी-5 राष्ट्र था जिसने अनुच्छेद 370 को रद्द करने और जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता को खत्म करने के बाद भारत का समर्थन किया था। रूस ने यू.एन.एस.सी. के लिए चीन द्वारा समर्थित खुले सत्र में कश्मीर में संकट को रोकने के लिए पाकिस्तान के बुलावे को रो दिया था और इस बात पर जोर दिया था कि इसे दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल किया जाना चाहिए।
इसके बावजूद भी, रूस और भारत के कुछ अंतरराष्ट्रीय मुद्दों के दृष्टिकोण में उभरे मतभेद द्विपक्षीय साझेदारी के सकारात्मक प्रभावों को खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसके विपरीत, बढ़ते मतभेद राष्ट्रीय हितों को प्रभावित करने के बजाय मुद्दों के व्यापक दायरे का सहयोग देते हैं। 2000 के दशक की शुरुआत में रूस-भारत की रणनीतिक साझेदारी का विकास दो देशों की राजनीतिक बात थी, क्योंकि उस समय दोनों देशों ने साझा अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के सिद्धांतों की व्यापक दृष्टि और सोवियत काल में तत्कालीन सहयोग के अलावा सहयोग की भावना को साझा किया था। हालांकि, रूस और भारत के बीच सहयोग के रणनीतिक स्वरूप ने द्विपक्षीय वार्ता प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इस प्रकार की साझेदारी की अंतर्निहित समस्या राजनीतिक मुद्दों और बदलते अंतरराष्ट्रीय परिवेश के प्रति उनकी संवेदनशीलता है। इसलिए, दोनों देशों के नेताओं के लिए प्राथमिकता उच्चतम राजनैतिक स्तर पर व्यक्तिगत संपर्कों के माध्यम से रूस और भारत के बीच विश्वास सुनिश्चित करना है जैसे कि वार्षिक शिखर सम्मेलन और जी -20, ब्रिक्स और एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंचों पर किया गया है।
रूस और भारत के बीच बढ़ती राजनीतिक खाई के जोखिम को दूर करने का एक अन्य तरीका दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों को फिर से मजबूत करना और दोनों अर्थव्यवस्थाओं को परस्पर जोड़ना है। दोनों देशों में बड़े निर्णय निर्माताओं ने स्टैंड-अलोन मल्टी-बिलियन रणनीतिक परियोजनाओं से अपना ध्यान केंद्रित किया है, जो अधिक व्यावहारिक आर्थिक गतिविधियों पर नई ऊंचाइयों को छू रहे हैं। इस परिप्रेक्ष्य से, रूस जाने वाले भारतीय व्यापारियों के लिए वीजा कार्यवाही को सरल बनाना, भारत से रूस में एसएमई निवेश को आकर्षित करना और ऐसा ही रुस द्वारा किया जाना, नजदीकी अंतर-क्षेत्रीय आर्थिक संबंधों को विकसित करना और वस्तुओं एवं सेवाओं के आदान-प्रदान के लिए बाधाओं को दूर करना, उदाहरण के लिए यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन और भारत के बीच नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर या एफटीए विकसित करने जैसे कार्य रूस-भारत के द्विपक्षीय सहयोग के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं।