हालांकि सोची घोषणा एक विस्तृत दस्तावेज है जिसमें दो राज्यों या क्षेत्रों के बीच सहयोग के लगभग सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, लेकिन इसके पीछे एकठोस राजनीतिक मकसद भी है। मुद्दों का चयन और "चालबाजी" और "आर्थिक ब्लैकमेल" जैसे प्रबल शब्दों का उपयोग, जो अमेरिका और यूरोपीय देशों के कार्य पद्धति की ओर इशारा करते हैं,इस घोषणा का राजनीतिक मकसद निर्धारित करते हैं।
तस्वीर सौजन्य: स्पुतनिक/आर्टर लेबेदेव
पहला रूस-अफ्रीका शिखर सम्मेलन 23-24 अक्टूबर, 2019 को रूस के सोची में आयोजित किया गया था। इसमें अफ्रीका के सभी 54 देशों ने भाग लिया था, और प्रतिनिधियों में राज्यों और सरकारों के 43 प्रमुख शामिल थे। हालाँकि, रूस अफ्रीका के लिए नया नहीं है और वर्तमान में अफ्रीकी महाद्वीप के साथ 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का व्यापार करता है। यह अफ्रीकी देशों में हथियारों के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में से एक है। रूस-अफ्रीका के जुड़ाव की बढ़ती तीव्रता इस तथ्य से स्पष्ट है कि पिछले पांच वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार का मूल्य दोगुना हो गया है।[1] शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने उद्घाटन भाषण में अफ्रीकी महाद्वीप के साथ दीर्घकालिक जुड़ाव पर एक विशद और समग्र दृष्टि का खुलासा किया और "सामान्य और अविभाज्य सुरक्षा सुनिश्चित करने" और साथ ही साथ “आधुनिक दुनिया का एक आदर्श मॉडल" बनाने पर जोर दिया।मिस्र के राष्ट्रपति, शिखर सम्मेलन के सह अध्यक्ष और साथ ही अफ्रीकी संघ (एयू) के तत्कालीन अध्यक्ष अब्देल फतेह अल-सिसीने अफ्रीकी उपनिवेशवाद-विरोधी स्वतंत्रता संग्राम में रूस के ऐतिहासिक योगदान की सराहना की। अफ्रीकी विशद मुक्त व्यापार क्षेत्र (एएफसीएफटीए) के माध्यम से अफ्रीकी एकीकरण की चल रही प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने आशा व्यक्त की कि रूस उद्योग, ऊर्जा, कृषि और आईसीटी क्षेत्रों में; और साथ ही अफ्रीका का लक्ष्य,वर्ष 2020 के अंत तक सभी संघर्षों को समाप्त करना, प्राप्त करने में अफ्रीकी महाद्वीप की मदद कर सकता है। दोनों पक्षों की भावनाएं बहुत सकारात्मक और भविष्य के लिए आशावादी थीं। हालांकि, जुड़ाव के नए स्तर की घोषणा के भी कुछ राजनीतिक आयाम हैं।
घोषणा का समय
अफ्रीका, अपने विशाल प्राकृतिक संसाधनों, विशाल युवा शक्ति और सुरक्षा तथा राजनीतिक स्थिरता में सुधार के साथ, दुनिया के भविष्य का आर्थिक केंद्र है। औपनिवेशिक विरासत और द्वितीय विश्व युद्ध की गतिशीलता के कारण, अफ्रीका के पारंपरिक रूप से संयुक्त राज्य और यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ करीबी वित्तीय, व्यापार और राजनीतिक संबंध थे। वे संचयी रूप से महाद्वीप के सबसे बड़े व्यापारी और निवेशक भी रहे हैं। हालाँकि, हाल ही में, जापान, दक्षिण कोरिया, चीन, भारत, तुर्की, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे एशियाई देश भी अफ्रीका में व्यापार, निवेश और विकासात्मक गतिविधियों में संलग्न रहे हैं। वास्तव में, एशिया, महाद्वीप के पश्चिमी प्रभुत्व को बदलने के लिए उत्सुक प्रतीत होता है, क्योंकि चीन अपनी नई प्राप्त संपत्ति के साथ इसकासबसे बड़ा निवेशकबन कर उभरा है। अमेरिका, यूरोपीय संघ, जापान, चीन और भारत के पास अफ्रीका के साथ अपनी साझेदारी को गहरा करने के लिए पहले से ही एक संस्थागत तंत्र मौजूद है।इसलिए, महाद्वीप के साथ रूस कीवार्ताके संस्थागतकरण की घोषणा को शीत युद्ध के बाद के एक नए खिलाड़ी के आगमन के रूप में देखा जा रहा है, जो अफ्रीकी प्राकृतिक और आर्थिक संसाधनों को मुट्ठी में करने के लिए पर-क्षेत्रीय शक्तियों की दूसरी छीना-झपटी जैसी लग रही है। हालांकि, सभी अफ्रीकी देश,1884-85 में अफ्रीका को बांटने वाले औपनिवेशिक देशों के बर्लिन सम्मेलन के कारण अफ्रीका के लिए हुई पहलीछीना-झपटी के इतिहास और परिणामों से अवगत हैं। इसलिए, संप्रभु अफ्रीकी देश सावधानीपूर्वक और रणनीतिक रूप से उन सभी शक्तियों का स्वागत कर रहे हैं जो उनके वृद्धि और विकास में निवेश करने के इच्छुक हैं। अफ्रीकी राज्यों के अनुसार इससे अफ्रीका में एक संतुलन बना रहेगा।
2014 में क्रीमिया के राज्यारोहण के बाद से नवीनीकृतअमेरिकी-यूरोपीय आर्थिक और राजनीतिक दबावों के साथ, रूस आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बनाने के नए रास्ते तलाश रहा है। इसने राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता दिलाने में मदद करके और इसके अधिकांश क्षेत्र से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया (आईएसआईएस) को हटाकर, सीरियाई मार्ग के माध्यम से पश्चिम एशिया में हस्तक्षेप किया है। रूस ने हाल ही में पूर्वोत्तर सीरिया पर तुर्की के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया है, जो क्षेत्र में शांति और स्थिरता स्थापित करने में इसकी भूमिका बढ़ाता है।[2]यह क्षेत्र इस देश के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि तुर्की के साथइसका बहुत गहरा संबंध रहा है और सीरिया में इसका समुद्री और हवाई केंद्र स्थित है।[3] रूस इस क्षेत्र में अपने हस्तक्षेप और तुर्की के साथ एमओयू को इस्लामी चरमपंथियों को काबू में करने और भौगोलिक रूप से सीमित करने के साथ-साथ भूमध्य सागर मार्ग के ज़रिए अफ्रीका पर एक मजबूत पकड़ बनाने के नज़रिए से देखता है।इसलिए, अफ्रीका के साथ वार्ताबढ़ाने हेतु रूस द्वारा किए गए संस्थागत तीव्रीकरणको अपने हित विस्तार के लिए रूस द्वारा सोच-समझकर चला गया चाल समझा जा रहा है। राष्ट्रपति पुतिन के अधीन‘संस्थागत आगमन’का समय अफ्रीकी देशों की आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक आवश्यकताओं और बदलती विश्व व्यवस्था के परिवर्तनशील भू-राजनीतिक गतिशीलता का पूरक है।
मुख्य प्रस्ताव
इस कार्यक्रम के अंत में की गई संयुक्त घोषणा ने इस शिखर सम्मेलन के माध्यम से रूस-अफ्रीका के जुड़ाव को औपचारिक रूप से "सर्वोच्च निकाय" का दर्जा दिया और यह हर तीन सालों में एक बार बुलाया जाएगा। अफ्रीकी संघ (एयू) के तत्कालीन, पूर्व और भविष्य के अध्यक्षों को शामिल करते हुएआयोजित होने वाली दोनों पक्षों की वार्षिक विदेश मंत्री स्तर की बैठक मेंइस जुड़ाव पर नज़र रखा जाएगा और नए विचारों के लिए मंथन किया जाएगा।हालांकि यह पहली शिखर घोषणा है, पर फिर भी जुड़ाव की रूपरेखा और प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं। इसने रूस और अफ्रीकी राज्यों के बीच राजनीतिक, सुरक्षा, व्यापार, आर्थिक, कानूनी, वैज्ञानिक, तकनीकी, मानवीय, सूचना और पर्यावरण सहयोग के लिए विस्तृत नियम प्रदानकिए हैं। घोषणा में अलग-अलग उपशीर्षकों के अधीन कानूनी सहयोग और पर्यावरण संरक्षण के एक अजीबोगरीब उल्लेख के साथ राजनीतिक और सुरक्षा सहयोग पर जोर दिया गया है।
तस्वीर सौजन्य: गेट्टी इमेजेस के ज़रिए सेरगईचिरिकोव पूल/एएफपी
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में विभिन्न मुद्दों पर सहयोग और एक बहुध्रुवीय विश्व प्रणाली के लिए "वैश्विक शासन के सामूहिक तंत्र" को मजबूत करने के लिए ब्रिक्स मंच का उपयोग करना, रूस-अफ्रीका के इस विशद वार्ताका एक लक्ष्य है। दोनों पक्षों ने अपनी संसदों और अन्य राजनीतिक अभिकरणों के मध्य नियमित वार्ताकरने के लिए प्रतिबद्धता ली ताकि वैश्विक राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर एक आम समझ बनाई जा सके। परमाणु और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के शांतिपूर्ण उपयोग पर सहयोग के साथ-साथ आतंकवाद, परमाणु और अंतरिक्ष सुरक्षा पर विशेष जोर दिया गया। अंतरिक्ष में हथियारों के उपयोग को भविष्य का एक गंभीर मुद्दा बताया गया। इसलिए, उन्होंने एक हथियार मुक्त अंतरिक्ष बनाने का अनुरोध किया और रूसी और अफ्रीकी अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच तकनीकी सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।
दोनों पक्षों ने रासायनिक और जैविक हथियार संधि (सीडब्ल्यूसी और बीडब्ल्यूसी) को शसक्त करने के साथ-साथ अपना सत्यापन तंत्र अपनाने की प्रतिबद्धता ली। उन्होंने बल देकर कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को दरकिनार करने वाले अन्य तंत्रों के माध्यम से संधि का कोई भी दोहराव करना "अस्वीकार्य" है; और रासायनिक और जैविक आतंकवाद के खतरे के "दमन" के लिए एक वृहदअंतर्राष्ट्रीयसंधि की आवश्यकता है। उन्होंने अन्य देशों को लक्षित करने और उन पर दबाव डालने के आशय से "वैश्विक अप्रसार शासन की आवश्यकताओं में चालबाजी" करने की प्रवृत्ति की भी निंदा की।
कानूनी सहयोग खंड "संप्रभु समानता" के सिद्धांत के पालन पर जोर देता है, तथा "राष्ट्रीय कानूनों के पर-क्षेत्रीयअनुप्रयोग" को अन्य राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानता है। यह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों पर आधारित ना होने वाले “एकपक्षीय प्रतिबंधों” की प्रथा का खंडन करता है।
प्रतीत होता है कि पर्यावरण संरक्षण में उनका यह सहयोग काफी हद तक अफ्रीकी समस्याओं को संबोधित करता है क्योंकि अफ्रीका बड़ी ही संकट की स्थिति में है जहाँ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए बहुत कम क्षमता या हरित प्रौद्योगिकी उपलब्ध है। ये घोषणा अफ्रीकी देशों को "आवश्यक प्रौद्योगिकियां" स्थानांतरित करने के मुद्दे को संबोधित करता है और इसके माध्यम से "ग्रीन क्लाइमेट फंड में बड़े पैमाने पर पुनःपूर्ति" का आह्वान किया गया है। हालाँकि, यह निधि प्राप्त करने वाले राज्यों को अपनी संप्रभुता को खतरे में डालने से भी सावधान करता है।
घोषणा में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के आधार पर स्वतंत्र और निष्पक्ष व्यापार प्रथाएं अपनाने की आवश्यकताओं, अफ्रीका के भीतर क्षेत्रीय एकीकरण और अफ्रीका तथा यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (ईईयू) के मध्य अंतर-क्षेत्रीय सहयोग के सामान्य मुद्दों को दोहराया गया है और इसके साथ ही घोषणा में व्यापार और आर्थिक संबंधों में "तानाशाही" और "ब्लैकमेल" की प्रवृत्ति के खिलाफ कार्य करने का अनुरोध किया गया है।
जुड़ाव का मूल्यांकन
रूस पहले ही अफ्रीकी देशों को हथियार प्रदान करने वाला सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, खासकर उत्तरी अफ्रीका के देशों के लिए, जो इसे महाद्वीप में रणनीति के पक्ष से एक बड़ा खिलाड़ी बनाता है। रूस और पश्चिमी देशों के बीच पारंपरिक रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए, हाल ही में रूस-अफ्रीका जुड़ावके तीव्रीकरण को अफ्रीका में भी इसके विस्तार के रूप में देखा जा सकता है। इसलिए, महाद्वीप के साथ रूसके जुड़ाव को एशिया के उदय और बदलती विश्व व्यवस्था के बड़े प्रकरण में देखा जा सकता है।
रूस और चीन करीब आए हैं और पश्चिम के खिलाफ विभिन्न रणनीतिक और आर्थिक मुद्दों पर सहयोग कर रहे हैं। इस सहकारी संबंध की एक रेखीय समझ, अफ्रीकी महाद्वीप पर रूस-चीन सहयोग की भविष्यवाणी होगी। हालांकि, ब्रिक्स के अन्य भागीदारों की तुलना में अफ्रीकी महाद्वीप पर रूस कीज़बर्दस्त वित्तीय उपस्थिति को देखते हुए, चीन संयुक्त या बहुपक्षीय वार्ताके बदले द्विपक्षीयता पसंद करेगा। इसी तरह, रूस भी आज़ादी के साथ आगे बढ़ सकता है क्योंकि इस क्षेत्र के सैन्य बाजार का एक बड़ा हिस्सा रूस के कब्जे में है, जबकि चीन एक उभरता हुआ प्रतियोगी है। फिर भी, दोनों देश अफ्रीका से जुड़े वैश्विक बहुपक्षीय मुद्दों पर सहयोग कर सकते हैं।
तस्वीर सौजन्य: ऑथेंटिक नाइजीरिया
हालाँकि, वर्तमान में, प्रतिष्ठित और साथ ही साथ उभरती हुई शक्तियाँ स्वतंत्र रूप से अपने अधिकारों में अफ्रीका के साथ जुड़ रही हैं, पर ये लंबे समय तक नहीं चलेगा। ब्रिक्स के माध्यम से ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका पहले ही दुनिया की तात्कालिक वास्तविकताओं को दर्शाते हुए विश्व आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था पर पुनः वार्ता करने का प्रयासकर रहे हैं। यह समूह अफ्रीका के न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) के साथ मिलकर अच्छा काम कर सकता है क्योंकि इस क्षेत्र के राज्य, बाध्यकारी राजनीतिक और आर्थिक शर्तों के साथ वित्तीय सहायता प्रदान करने वाले अमेरिका और यूरोपपर निर्भर नहीं रहना चाहते और इसके लिए एक अलग विकल्प तलाश रहे हैं।
भारतीय दृष्टिकोण से, अफ्रीका में रूस का भव्य आगमन एक स्वीकार्य कदम हो सकता है, जो हालांकि, अनजाने ही, इस क्षेत्र में अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन जैसी महान शक्तियों की उपस्थिति को संतुलित करने में मदद कर सकता है।
निष्कर्ष
हालांकि सोची घोषणा एक विशद दस्तावेज है जिसमें दोनों राज्यों या क्षेत्रों के बीच सहयोग के लगभग सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, लेकिन इसके पीछे एक ठोस राजनीतिक मकसद भी है। मुद्दों का चयन और "चालबाजी" और "आर्थिक ब्लैकमेल" जैसे प्रबल शब्दों का उपयोग, जो अमेरिका और यूरोपीय देशों के कार्य पद्धति की ओर इशारा करते हैं,इस घोषणा का राजनीतिक प्रभाव निर्धारित करते हैं। इस दस्तावेज में रूस और पश्चिम के मध्य विवाद का सभी बड़ा मुद्दा शामिल किया गया है। कानूनी सहयोग के उपशीर्षकों के अधीन "राज्यों द्वारा राष्ट्रीय कानूनों का पर-क्षेत्रीय अनुप्रयोग" और "एकपक्षीय प्रतिबंधों" की निंदा, क्रीमिया के संदर्भ में अमेरिका को लक्षित करती है, जो रूस के लिए एक प्रमुख मुद्दा है।यद्यपि यह शिखर सम्मेलन मुख्य रूप से एक आर्थिक और विकासात्मक संदर्भ में आयोजित किया गया है, जैसे कि महाद्वीप में चीनी और भारतीय पहल, फिर भी रूस-अफ्रीका शिखर सम्मेलन की पहल का मकसद आर्थिक सहयोग से भी बढ़ कर है। रूस परमाणु शक्ति और अंतरिक्ष जैसे अपने आला क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है। आतंकवाद के विरोधपर भी जोर दिया गया है। हालांकि, घोषणा के समग्र कार्यान्वयन के साथ, अफ्रीका में रूसी आर्थिक और विकासात्मक क्षेत्र में वृद्धि की प्रबल संभावना है। संयोग से, ब्रिक्स एजेंडा घोषणा की भावना से मेल खाता है जिसमें स्पष्ट रूप से विकासशील देशों की सुरक्षा, विकास और वृद्धि के लिए वैकल्पिक गैर-अनिवार्य व्यवस्था की दिशा में सहयोग लाने का प्रयास किया गया है। रूस, अफ्रीका में अपने द्विपक्षीय एजेंडे के साथ इस सहयोग को प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर सकता है। आखिर में, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय प्रथम रूस-अफ्रीका शिखर सम्मेलन को खोए संबंधों को पुन: प्राप्त करने और जिस तरह भूतपूर्व सोवियत संघ अफ्रीकी महाद्वीप का एक प्रमुख राजनीतिक और सैन्य खिलाड़ी बना था, उसी तरह अफ्रीका में एक दुर्जेय पर-क्षेत्रीय शक्ति का दर्जा वापस पाने हेतु रूस के बड़े प्रयास के रूप में देख रहा है।
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[1] Russia-Africa Summit, Transcripts, President of Russia, October 24, 2019, http://en.kremlin.ru/events/president/transcripts/61893
[2] Full text of Turkey, Russia agreement on northeast Syria, Al Jazeera, October 23, 2019, https://www.aljazeera.com/news/2019/10/full-text-turkey-russia-agreement-northeast-syria-191022180033274.html (Accessed on November 10, 2019)
[3] Russia has its naval base in Tartus, Syria; Moscow’s only such facility outside territory of the erstwhile USSR. It also has its airbases in Hemeimeem and Shayrat in Syria.