भारत-पाकिस्तान के संबंध को दुनिया के किसी भी दो स्वतंत्र राज्यों के बीच सबसे जटिल संबंधों में से एक माना जाता है। दोनों देशों में आपसी संबंधों को प्रभावित करने वाले ऐसे अनेक तत्त्व हैं जो विदेश नीति में निर्णय लेने की प्रक्रिया में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। दोनों देशों में परस्पर अविश्वास है, अनसुलझे मुद्दे हैं। दोनों ही देश परमाणु शक्ति संपन्न हैं जिनमें परस्पर शत्रुता, आतंकवाद, और लगातार संघर्ष की स्थिति बनी रहती है जो दक्षिण एशिया के इन दो देशों की धुँधली तस्वीर बयां करते हैं। दोनों देशों की सीमाओं पर भारी सेनाओं की तैनाती कुछ और ही बात कहती है और ये एक तरह का दो व्यक्तियों के बीच खेला जाने वाला शून्य-शून्य का खेल है जहाँ किसी एक देश के लाभ का मतलब दूसरे देश का उसी अनुपात में नुकसान होना माना जाता है। दोनों देशों में समान सांस्कृतिक विरासत है, सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध हैं और कभी-कभी, भले ही सीमित संदर्भों में सही, राजनीतिक-आर्थिक सहयोग इन संबंधों को एक नया आयाम देते हैं जिससे पारस्परिक शांतिपूर्ण और सहयोगात्मक संबंधों की आशा की जा सकती है।
पिछले सात दशकों में अगर देखा जाए तो दोनों पड़ोसी देशों में संघर्ष अधिक और पारस्परिक सहयोग कम रहा है। कहा जा सकता है कि इनमें कभी एक साथ गहन संघर्ष या सार्थक सहयोग देखने को नहीं मिला। लेकिन अब करतारपुर साहब कॉरिडोर समझौता पर हुए हस्ताक्षर के साथ ही बदलाव देखने को मिल रहा है। भारत के पंजाब में रहने वाले सिक्ख समुदाय की बरसों से ये इच्छा थी कि उन्हें पाक स्थित करतारपुर साहब गुरुद्वारे में जाने की छूट मिले जहाँ सिक्ख संप्रदाय के प्रथम गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के 18 वर्ष उसी गुरुद्वारे में बिताए थे।[1] 1947 में हुए ब्रिटिश भारत बंटवारे के कारण भारतीय सिक्ख समुदाय करतारपुर साहब गुरुद्वारा जाने से वंचित रह गया क्योंकि बंटवारे के बाद ये क्षेत्र पाक के क़ब्ज़े में आ गया था। भारत सरकार और कई नागरिक संगठनों ने इस दिशा में पाकिस्तान से कई बार इस मुद्दे को उठाया; जिसे सही मायने में 2018 तक अमली-जामा नहीं पहनाया जा सका।
करतारपुर के लिए पहल
यह ध्यान रखना भी ख़ासा महत्वपूर्ण है कि इस गलियारे के निर्माण की प्रक्रिया ऐसे समय में शुरू की गई जब दोनों देशों के संबंध अपने सबसे निचले स्तर पर थे। अगस्त 2018 में इमरान खान के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान, पाकिस्तान के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (सीओएएस) जनरल क़मर जावेद बाजवा ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर खोलने के बारे में भारतीय राजनेता नवजोत सिंह सिद्दू को अनौपचारिक संकेत दिया था। नवंबर 2018 में, भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरु नानक देव की 550वीं जयंती मनाने का प्रस्ताव पारित किया और भारत के गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा नानक से अंतरराष्ट्रीय सीमा तक एक गलियारे के निर्माण को मंजूरी दी। साथ ही, भारत ने पाकिस्तान से अपने क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सीमा से करतारपुर साहिब तक एक गलियारा विकसित करने का भी आग्रह किया।
ख़ुशी की बात ये रही कि पाकिस्तान ने भारत की इस लंबित मांग को स्वीकार करके कई लोगों को सुखद आश्चर्य में डाल दिया और गुरु नानकदेव की 550वीं जयंती के लिए करतारपुर कॉरिडोर को तीर्थयात्रियों के लिए खोलने की घोषणा की। नवंबर 2018 में, भारत और पाकिस्तान ने संयुक्त रूप से कॉरिडोर के निर्माण के लिए ज़मीनी स्तर पर काम आरंभ कर दिया। हालांकि पाकिस्तानी नेतृत्व, विशेष रूप से प्रधान मंत्री इमरान खान ने पारस्परिक विकास के मुद्दे पर द्विपक्षीय वार्ता को फिर से शुरू करने का आग्रह किया; लेकिन भारत ने इसमें कोई उत्साह नहीं दिखाया तथा इस प्रक्रिया को करतारपुर पहल तक ही सीमित रखा। ऐसे समय जबकि दोनों पक्षों के अधिकारी गलियारे के संबंध में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कर रहे थे, 14 फरवरी, 2019 को आतंकवादियों ने पुलवामा में भारतीय सुरक्षा बलों के एक काफिले को निशाना बनाया। इस हमले में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 40 जवान मारे गए। इस भीषण आतंकी हमले के जवाब में, भारत ने बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम) के एक आतंकी प्रशिक्षण शिविर पर सीमित सैन्य कार्रवाई से उसे नेस्तनाबूद कर अधिक तनाव की ओर अग्रसर दिया। इन घटनाओं के बावजूद, करतारपुर साहिब कॉरिडोर पर बेरोकटोक बातचीत जारी रही और आखिरकार 24 अक्टूबर, 2019 को एक समझौते में इसका समापन हुआ।
समझौता ज्ञापन/समझौता
यह समझौता एक औपचारिक ढाँचा प्रदान करता है जिसके तहत भारत के तीर्थयात्रियों को पाक के करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब जाने के लिए साढ़े चार किलोमीटर लंबे गलियारे का उपयोग करने की अनुमति दी जाएगी। ये गलियारा सार्वजनिक अवकाशों, या किन्हीं आपातस्थितियों को छोड़कर पूरे वर्ष सुबह से शाम तक खुला रहेगा।[2] समझौते के प्रावधानों के अनुसार, वैध पासपोर्ट या इंडियन ओवरसीज सिटिजनशिप (आईओसी) कार्ड के साथ तीर्थयात्री या तो व्यक्ति या समूह के रूप में पाकिस्तानी वीजा प्राप्त किए बिना करतारपुर साहिब की यात्रा कर सकते हैं। करतारपुर आने वाले तीर्थयात्रियों को उसी दिन भारत वापस लौटना होगा। हालांकि, प्रति दिन 5,000 तीर्थयात्रियों की सीमा है, इसे विशेष अवसरों पर बढ़ाया जा सकता है।
1 नवंबर, 2019 को इमरान खान ने भारतीय पासपोर्ट / आईओसी कार्ड की आवश्यकता को रद्द करने तथा सिक्ख यात्रियों के लिए 10 दिन पूर्व किए जाने वाले पंजीकरण को समाप्त करने की विशेष घोषणा की। इमरान ने अपने ट्वीट में लिखाः
¢भारत से करतारपुर की तीर्थयात्रा के लिए आने वाले सिक्खों के लिए, मैंने 2 आवश्यकताओं को माफ कर दिया है: i) उन्हें पासपोर्ट की जरूरत नहीं है-बस एक वैध आईडी चाहिए; ii) उन्हें अब 10 दिन पहले पंजीकरण नहीं करना होगा। उद्घाटन के दिन और गुरुजी के 550वें जन्मदिन पर भी कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।¢[3]
इसे भारतीय सिख समुदाय के लिए एक और सद्भावना संकेत माना गया। 6 नवंबर, 2019 को इस्लामाबाद में विदेशी राजनयिकों को जानकारी देते हुए, पाकिस्तान के विदेश सचिव डॉ. मोहम्मद फैज़ल ने बताया कि "नानक नाम लेवा (गुरु नानक देव के समर्थकों) के दुनिया भर में और विशेष रूप से भारत में सिख समुदाय द्वारा लंबे समय से इस बारे में अनुरोध किया जा रहा था। इसी उद्देश्य से ये कदम उठाया गया था।[4] उन्होंने आगे कहा कि गुरु नानक की 550वीं जयंती मनाने के लिए पाकिस्तान एक विशेष सिक्का और स्मारक डाक टिकट जारी कर रहा है।[5]
इमरान खान द्वारा सिख श्रद्धालुओं को बढ़ी हुई रियायत प्रदान किए जाने के संबंध में पाकिस्तान और भारत के कुछ वर्गों के बीच उत्सुकता अल्पकालिक साबित हुई जैसा कि इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के महानिदेशक, मेजर जनरल आसिफ गफ्फूर ने बाद में इस बात पर जोर दिया कि करतारपुर का दौरा करने के लिए पासपोर्ट/आईओसी कार्ड अनिवार्य है। 6 नवंबर को एक निजी समाचार चैनल से बात करते हुए, आसिफ़ गफ़ूर ने स्पष्ट किया कि यह सिक्ख तीर्थयात्रियों के लिए एक कानूनी प्रविष्टि होगी जिसमें एक प्रकार के परमिट या पासपोर्ट-आधारित पहचान की आवश्यकता होती है।[6] इसने इमरान खान के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी[7], जिससे भारत में भी कुछ भ्रम पैदा हो गया। ऐसे में भारत के लिए समझौते के अनुसार चलना स्वाभाविक था न कि ट्वीट के अनुसार। इसी प्रकार, विदेश मंत्रालय (एमईए) के प्रवक्ता रवीश कुमार ने भी कहा कि करतारपुर जने के लिए पासपोर्ट की आवश्यकता होगी।
विवादास्पद वीडियो और बम का प्रदर्शन
ऐसे समय में जबकि दोनों ही पक्ष आगामी कार्यक्रम की तैयारी कर रहे थे, पाकिस्तान द्वारा जारी एक संगीत वीडियो पर विवाद छिड़ गया। पाकिस्तान के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा निर्मित वीडियो को लंदन में पाकिस्तानी उच्चायोग में लॉन्च किया गया था।[8] वीडियो में, ख़ालिस्तानी अलगाववादी आतंकवादी जरनैल सिंह भिंडरावाला, अमरीक सिंह खालसा और (बर्ख़ास्त) मेजर जनरल शाबेग सिंह की तस्वीरें दिखाई गईं थीं, इन आतंकवादियों को जून 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान मार गिराया गया था जो भारत में अच्छा नहीं हुआ। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने इस वीडियो पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए करतारपुर भावना को कम करने के पाकिस्तानी प्रयास की निंदा की। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि "हम उस भावना को कम करने की पाकिस्तान की कोशिश की निंदा करते हैं जिसके तहत तीर्थ यात्रा शुरू की जानी है। हमने कड़ा विरोध दर्ज कराया है।”[9] उन्होंने आगे कहा कि “हमें अपनी चर्चा के दौरान पाकिस्तानी पक्ष द्वारा बार-बार आश्वासन दिया गया है कि वे तीर्थयात्रा और आयोजन के दौरान किसी भी भारत विरोधी तत्वों और प्रचार की अनुमति नहीं देंगे। हम मांग करते हैं कि वे आपत्तिजनक वीडियो और मुद्रित सामग्री को हटा दें जिसे प्रसारित किया जा रहा है।”[10] वीडियो विवाद अभी सुलझा भी नहीं था कि गुरूद्वारा दरबार साहिब की साइट पर एक बम के बारे में बताया गया जिसमें दावा किया गया था कि 1971 के युद्ध में इस बम को भारतीय सेना द्वारा गुरुद्वारे पर गिराया गया था लेकिन ये बम फट नहीं पाया।[11] साइट के अनुसार, गुरुद्वारे के समीप बने बोर्ड में इसे “वाहेगुरुजी के चमत्कार” के रूप में बताया गया है। बोर्ड के अनुसार-
भारतीय वायु सेना ने इस बम को 1971 के दौरान गुरुद्वारा दरबार साहिब श्री करतारपुर साहिब को नष्ट करने के उद्देश्य से गिराया था। हालांकि, वाहेगुरू जी (सर्वशक्तिमान अल्लाह) के आशीर्वाद के कारण वे कामयाब न हो सके। वो बम श्री खूह साहिब (पवित्र कुएँ) में गिरा और दरबार साहिब को कोई नुकसान नहीं पहुँचा। यह उल्लेख करना आवश्यक है कि यह वही पवित्र कुआँ है जिसके जल से श्री गुरु नानक देवजी को अपने खेतों की सिंचाई किया करते थे।[12]
हालांकि करतारपुर आने वाले तीर्थयात्री गलियारे को खोले जाने के कदम की सराहना करते हैं, लेकिन पाकिस्तानी पक्ष द्वारा "गंदी राजनीति" की निंदा भी करते हैं।[13] तीर्थयात्रियों ने पाक द्वारा भारत की छवि धूमिल किए जाने के दुष्प्रचार को सिरे से ख़ारिज कर दिया। सिक्ख पंथ के एक अनुयायी पृथ्वी सिंह ने कहा - “हम यहाँ गुरु के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में तीर्थ यात्रा पर आए हैं । हमें किसी भी तरह के प्रचार की कोई इच्छा नहीं है और न ही हम किसी को बर्दाश्त करेंगे।” [14] इस तरह की घटनाएं भारत में पाकिस्तान के असली उद्देश्यों को लेकर संदेह पैदा करती हैं। भारतीय पंजाब में अलगाववादी तत्वों को पाकिस्तान का समर्थन दिया जाना अब गुप्त नहीं रहा है। अगस्त 2015 में, जनरल हमीद गुल,
पाकिस्तान की प्रमुख खुफिया एजेंसी- इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) का 1987-1989 तक नेतृत्व कर चुके जनरल हमीदगुल ने अगस्त 2015 में, एक टीवी चैनल पर बड़ा खुलासा किया, न्यूज़ वन (पाकिस्तानी टीवी चैनल) में डॉ.शाहीद मसूद को दिए एक साक्षात्कार में हमीदगुल ने बताया कि सिक्ख आतंकवादी पाक ठेकेदारों से हथियार खरीदते थे।[15]
ज़ीबा टी हाशमी ने 2015 में एक पाक अंग्रेज़ी दैनिक, डेली टाइम्स में प्रकाशित अपने एक लेख में, भारत में सिक्ख अलगाववाद में पाकिस्तान की भूमिका के बारे में कुछ सवाल उठाए थे और यह रेखांकित किया था कि कुछ अलगाववादी तत्व “पाक बिचौलियों की मदद से अपने आंदोलन को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे थे। पाकिस्तान में आज भी खालिस्तान आतंकवादियों के लिए हमदर्दी है। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ पाक कोई कार्रवाई भी नहीं करता।”[16] कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में रहने वाले अलगाववादी समर्थकों द्वारा अक्सर आईएसआई से समर्थन प्राप्त करने का आरोप लगाया जाता है। भारत के ख़िलाफ़ कार्रवाई के लिए अधिकतर धन, कनाडा और यूके से अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए जुटाया जाता है।[17] दिसंबर 2018 में, एक अल्पज्ञात अमेरिका-आधारित संगठन सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने इमरान खान को एक पत्र लिखा था कि वह राजनीतिक रूप से "पंजाब को आजाद कराने के लिए चलाए जा रहे जनमत संग्रह 2020 आंदोलन का समर्थन करें" ताकि 1971 में पाकिस्तान के विघटन का बदला लिया जा सके।[18] इमरान खान को पत्र लिखने वाला गुरपतवंत सिंह पन्नून, एसएफ़जे का क़ानूनी सलाहकार है जिसे आईएसआई का एजेंट माना जाता है।[19]
उद्घाटन समारोह
9 नवंबर, 2019 को करतारपुर साहिब कॉरिडोर के उद्घाटन के अवसर पर भारत और पाकिस्तान में समारोह आयोजित किए गए। इस अवसर पर अपने संबोधन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि गलियारे के खुलने से दोहरी खुशी मिली है और अब करतारपुर में दरबार साहिब का दर्शन करना आसान होगा। साथ ही प्रधानमंत्री ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष इमरान खान नियाज़ी को भारतीय भावनाओं को समझने, उनका सम्मान करने और उस दिशा में काम करने के लिए धन्यवाद दिया।[20] बाद में, उन्होंने कॉरिडोर के औपचारिक उद्घाटन के लिए तीर्थयात्रियों के पहले बैच को हरी झंडी दिखाई। कुल 562 तीर्थयात्रियों ने करतारपुर का दौरा किया, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू और सनी देओल शामिल थे।[21]
मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान जाने वाले सिख तीर्थयात्रियों के पहले जत्थे का नेतृत्व किया। उन्होंने इसे एक "बड़ा दिन" करार दिया और कहा कि "मुझे उम्मीद है कि भारत और पाकिस्तान के संबंध इस शुरुआत के परिणामस्वरूप काफी हद तक सुधरेंगे।"[22] कैप्टन अमरिंदर सिंह ने टिप्पणी की कि "यह एक शुरुआत है, मुझे आशा है कि यह जारी रहेगी और कई और गुरुद्वारों में प्रवेश की अनुमति भी शुरू होगी।"[23] पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने श्री गुरु नानक देव की 550 वीं जयंती के लिए सभी आने वाले श्रद्धालुओं का स्वागत किया और उन्हें बधाई दी। करतारपुर में अपने भाषण के दौरान, उन्होंने तर्क दिया कि भगवान के दूतों ने हमेशा दो संदेश दिए- मानवता और न्याय। हम गुरु नानक की शिक्षाओं में मौजूद इन दो गुणों को देख सकते हैं, जिन्होंने लोगों को एक साथ लाने की बात की है, न कि उन्हें विभाजित करने की।[24] इमरान खान ने कहा कि करतारपुर के प्रति सिक्खों में वही भाव है जैसा कि मुसलमानों के लिए मदीना के प्रति है।[25] अंत में उन्होंने सिख समुदाय के लिए गलियारा खोले जाने पर खुशी व्यक्त की।
एक कुशल रणनीति
जब से नागरिक-सैन्य अभिजात वर्ग के लोग भारतीय सिख तीर्थयात्रियों को करतारपुर साहिब में आसानी से जाने की अनुमति देने के लिए सहमत हुए, तब से पाकिस्तान विश्व के लिए विशेष रूप से सामान्य और क्षेत्र विशेष अपनी एक अलग छवि[26] पेश करने का प्रयास कर रहा है। बहुत से लोगों का मानना है कि यह इमरान खान के सत्ता में आने के बाद अचानक आया बदलाव है। हालांकि, कुछ अन्य इसे तेजी से बदलते भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक वातावरण के अनुसार इसे एक बड़ी योजनाबद्ध रणनीति के हिस्से के रूप में देखते हैं। वास्तव में, यह अनुभवी राजनेता और पूर्व प्रधानमंत्री मियाँ मुहम्मद नवाज शरीफ थे जिन्होंने भारत के साथ संबंधों को सुधारने की ख़ास जरूरत महसूस की थी। उन्होंने न केवल दोनों देशों के बीच बढ़ती विषमता को महसूस किया, खासकर आर्थिक विकास और तकनीकी-वैज्ञानिक प्रगति के संदर्भ में, बल्कि आगामी भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक परिवर्तनों को सही ढंग से समझा। ये अविस्मरणीय रहा कि 2013 में चुनाव अभियान के दौरान, नवाज़ शरीफ द्विपक्षीय संबंधों में सुधार के लिए गए और चुनावी जीत के बाद उन्होंने उस काम को आगे बढ़ाया जिसे 1999 में छोड़ दिया गया था। पाक में नागरिकों और सेना के बीच संतुलन साधते हुए उन्होंने भारत के साथ संतुलन साधने का भरपूर प्रयास किया । उन्होंने सामान्यीकरण प्रक्रिया को बढ़ाने की भरपूर कोशिश की। सभी बाधाओं से निपटते हुए, उन्होंने मई 2014 में श्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत का दौरा भी किया। हालांकि, उनके प्रयासों और परिस्थितियों के सुपरिणाम सामने न आ सके।
वे सभी सर्व-शक्तिशाली सुरक्षा प्रतिष्ठान जिन्होंने नवाज़ शरीफ़ पर भरोसा नहीं किया और समय-समय पर वे भारत के साथ सामान्य संबंध बनाने में बाधाएं पैदा करते रहे, उन्हें इस बात का अहसास बहुत बाद में हुआ जब पाकिस्तान की आर्थिक विसंगतियाँ जग जाहिर होने लगीं। इसके अलावा, आतंकवादियों की पनाहगार के रूप में पाक का नाम सामने आने लगा जिसने उसे क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग कर दिया। तेज़ी से बदलते विश्व परिदृश्य, बदलते राजनीतिक समीकरण और भारत के कड़े रुख ने स्थिति को और जटिल बना दिया, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पाक को सार्वजनिक तौर पर दोषी ठहराया। ज़ाहिर था इन नई वास्तविकताओं और तेजी से बदलते भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक वातावरण के मद्देनजर, पाकिस्तानी नेतृत्व ने गैर-राजनेताओं को सरकारी शरण देने वाले देश के रूप में अपनी पुरानी छवि को बेहतर बनाने की दिशा में विदेशी नीति के उद्देश्यों को प्राप्त करने की जरूरत महसूस की।इस प्रकार, इमरान खान ने भारत के साथ शांति और सामान्य संबंधों की बात करना शुरू कर दिया।
इस प्रकार, इमरान खान ने भारत के साथ शांति और संबंधों के समान्य होने पर बात करना आरंभ कर दिया। भारत ने उनकी बातों पर भरोसा नहीं किया। अपने आप को और अधिक बेहतर दिखाने के लिए और कुछ मात्रा में सद्भावना पैदा करने के लिए उन्होंने भारतीय सिख श्रद्धालुओं हेतु गुरुद्वारा दरबार साहिब तक आसान पहुंच प्रदान करने की दिशा में भारत के लंबे समय से किए जा रहे अनुरोध को स्वीकार करने का फैसला किया। पाकिस्तान को कुछ रियायतें दिलाने हेतु कोरीडोर का इस्तेमाल भविष्य में भारत पर दबाव बनाने के लिए भी किया जा सकता है। कौन जानता है, भारत के ‘‘बातचीत और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते’’ के उत्तर में, पाकिस्तान कह सकता है ‘‘तीर्थयात्रा और अनसुलझे मुद्दे एक साथ नहीं चल सकते’’? और इसके अलावा, जैसा कि भारत में हॉक्स सोचते हैं, तीर्थयात्रा के लिए दरबार साहिब आने वालों के बीच अलगाववादी तत्वों को तैयार करने के लिए पाकिस्तान अपनी ‘‘विशेषज्ञता’’ का इस्तेमाल कर सकता है।
निष्कर्ष
भारत-पाकिस्तान संबंधों के इतिहास और प्रकृति को देखते हुए ऐसी किसी भी सकारात्मक पहल से तनाव कम होता है और सद्भावना पैदा होती है। दोनों देशों के मध्य बढ़े हुए तनाव के बीच करतारपुर साहिब कोरीडोर का खोला जाना भारत-पाकिस्तान संबंध में सबसे दुर्लभ झणों में से एक है। इस तरह की पहल यह सुझाव देती है कि अपने परस्पर विरोधी संबंधों की प्रकृति के बावजूद, भारत और पाकिस्तान एक सार्थक परिणाम के लिए सहयोग कर सकते हैं। इस वजह से भारत-पाक के नागरिक इसे दोनों देशों के बीच एक रजत रेखा मानते हैं। जम्मू-कश्मीर पर भारत द्वारा लिए गए क़दम से अभी ये कहना जल्दबाज़ी होगी कि भविष्य में दोनों देशों के संबंध कैसे रहेंगे लेकिन अगर करतारपुर की पहल से दोनों देशों के बीच जमा बर्फ़ पिघलने लगे तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
संदर्भ
[1] Until November 2019, Sikh pilgrims used to take arduous route to Kartarpur via Lahore. Given the nature of India-Pakistan relations, it was never easy for pilgrims to get Pakistani visa for the purpose.
[2] MOFA (2019), “Pakistan-India sign the Agreement on Kartarpur Sahib Corridor,” Ministry of Foreign Affairs, Islamabad, October 24, 2019.
[3] Tweet by Imran Khan’s official twitter handle on November 1, 2019.
[4] MOFA (2019), “Foreign Secretary Briefs Diplomatic Corps on Kartarpur Sahib Corridor,” Ministry of Foreign Affairs, Islamabad, November 6, 2019.
[5] Ibid.
[6] The Dawn (2019), “Permit or passport-based identity must for Kartarpur, says ISPR chief,” November 7, 2019, https://www.dawn.com/news/1515383/passport-must-for-pilgrims-says-ispr-chief
[7] Such embarrassments are not new for Pakistan. There have been many such instances when a decision of civilian leadership was publicly vetoed by military.
[8] PID (2019), “Tourism Networking Event Pakistan an Attractive Tourism Destination With Huge Investment Potential: Nafees ZakaraiKartarpur Song Launched at the High Commission,” Press Information Department, Ministry of Information and Broadcasting, Islamabad, Press Release, November 8, 2019, http://pid.gov.pk/site/press_detail/12252
[9] “MEA Condemns Pak's Push For Khalistan Separatism In Kartarpur Video,” November 7, 2019, https://www.republicworld.com/india-news/general-news/mea-condemns-paks-push-for-khalistan-separatism-in-kartarpur-video.html
[10] Ibid.
[11] Hindustan Times (2019), “After Bhindranwale poster, Pakistan displays ‘Indian bomb’ at Durbar Sahib in Kartarpur,” November 8, 2019, https://www.hindustantimes.com/india-news/after-bhindranwale-poster-pakistan-displays-indian-bomb-at-durbar-sahib-in-kartarpur/story-kdwy3j2sQUiy0ONCE51NXP.html
[12] Ibid.
[13] The Indian Express (2019), “We have come to pray, won’t tolerate any political propaganda: Sikh pilgrims in Kartarpur,” November 12, 2019, https://indianexpress.com/article/india/we-have-come-to-pray-wont-tolerate-any-political-propaganda-sikh-pilgrims-in-kartarpur-6115425/
[14] Ibid.
[15] News One (2019), “Facts behind Khalistan by Gen Hameed Gul,” August 15, 2015, https://www.youtube.com/watch?v=FSeZCvjfbSU
[16] Hashmi, Zeeba T (2015), “Pakistan’s involvement in the Khalistan movement,” Daily Times, October 15, 2015, https://dailytimes.com.pk/98062/pakistans-involvement-in-the-khalistan-movement/
[17] Business Standard (2019), “Khalistan movement getting support from ISI-backed Muslim community in UK, says expert,” June 6, 2019, https://www.business-standard.com/article/news-ani/khalistan-movement-getting-support-from-isi-backed-muslim-community-in-uk-says-expert-119070600123_1.html
[18] The New Indian Express (2018), “Pakistan's plot to back Khalistan movement exposed,” December 18, 2018, https://www.newindianexpress.com/world/2018/dec/18/pakistans-plot-to-back-khalistan-movement-exposed-1913224.html
[19] Ibid.
[20] Singh, Vijaita (2019), “First batch of 562 pilgrims visits Kartarpur, praises facilities,” The Hindu, November 9, 2019, https://www.thehindu.com/news/national/first-batch-of-562-pilgrims-visits-kartarpur-praises-facilities/article29933005.ece
[21] Ibid.
[22] Siddiqui, Naveed (2019), “‘This is the beginning’: PM Imran inaugurates Kartarpur Corridor on historic day,” The Dawn, November 9, 2019, https://www.dawn.com/news/1515830
[23] Ibid.
[24]Samaa TV (2019), “PM Imran Khan historic speech at Kartarpur Corridor Inauguration Ceremony,” November 9, 2019, https://www.youtube.com/watch?v=NniGlqh5h_I
[25] Ibid.
[26] Pakistan is often portrayed as a state providing safe haven to some of the most dangerous terror outfits and radical ideologies of the world. Its role in cross border terror activities is well known and documented.