सार
जलवायु परिवर्तन से उभरने वाली संकटों को पहचानते हुए, भारत और यूरोपीय संघ जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में प्रमुख हितधारक बन गए हैं। भारत और यूरोपीय संघ ने न केवल अपने एजेंडा में आम सहमति बनाई है, बल्कि जलवायु परिवर्तन पर भी समान चिंताओं को साझा करते हैं। बहुपक्षीय स्तर पर महत्वाकांक्षी एजेंडों को आगे बढ़ाने में भागीदार बनकर उभरे हैं, और द्विपक्षीय स्तर पर अपने सहयोग को गहन बनाते और घरेलू स्तर पर खुद के लिए लक्ष्य निर्धारित करते हैं। यह पत्र भारत और यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तुत नीतियों और पहलों के व्यापक उद्देश्य का अध्ययन करता है और दोनों भागीदारों के बीच सहयोग के क्षेत्रों का विश्लेषण करता है।
मुख्य शब्द: जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा दक्षता, जीएचजी, सतत विकास
परिचय
जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक को दर्शाता है। नासा के अनुसार, पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 19 वीं सदी के बाद से लगभग 1.63 डिग्री फ़ारेनहाइट तक बढ़ गया है, जो वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा बढ़ने के कारण हुआ है। हालांकि, पिछले 35 वर्षों में ग्रह का तापमान सबसे अधिक बढ़ा है, और 2010 के बाद के पांच वर्षों में पृथ्वी सबसे ज्यादा गर्म हुई है।[i] भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) ने जलवायु परिवर्तन से उभर रही संकटों को पहचाना है और इस परिघटना के प्रभावों के शमन के लिए महत्वाकांक्षी योजनाएं प्रस्तुत की है। यह पत्र भारत और यूरोपीय संघ द्वारा प्रस्तुत नीतियों और पहलों के व्यापक उद्देश्यों का अध्ययन करता है। यह दोनों भागीदारों के बीच सहयोग के क्षेत्रों का भी विश्लेषण करता है।
नीति की पहलें
यूरोपीय संघ जलवायु परिवर्तन नीति के विकास और कार्यान्वयन में एक अग्रसक्रिय खिलाड़ी रहा है और संघ को एक निम्न कार्बन और ऊर्जा-कुशल क्षेत्र में बदलने के लिए प्रतिबद्ध किया है। यूरोपीय संघ ने 2007 में जलवायु और ऊर्जा पर उपायों का पहला पैकेज तैयार किया, जिसे 2009 में कानूनी तौर पर अपनाया गया। पैकेज में तीन मुख्य उद्देश्य तय किए गए थे, जिसे 20-20-20 का नाम दिया गया था और जो वर्ष 2020 तक प्राप्त करना है[ii]: पहला, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जीएचजी) को 20% घटाना - यह यूरोपीय संघ उत्सर्जन व्यापार प्रणाली (ईटीएस) पर बल देता है जो 2005 में जीएचजी उत्सर्जन को लागत-प्रभावी ढंग से घटाने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। इसके अधीन, औद्योगिक संयंत्रों, बिजलीघरों, विमानन क्षेत्र जैसे भारी ऊर्जा उपयोग करने वाले प्रतिष्ठानों से होने वाले उत्सर्जन को सीमित करने की अवधारणा रखी गई थी और इसमें यूरोपीय संघ के जीएचजी उत्सर्जन का लगभग 45% उत्सर्जन शामिल है।[iii] पैकेज के अंतर्गत, 2005 की तुलना में इन क्षेत्रों से होने वाले उत्सर्जन को 21% तक घटाने का लक्ष्य है।[iv] पैकेज का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू राष्ट्रीय उत्सर्जन न्यूनीकरण लक्ष्य है, जिसमें कृषि, अपशिष्ट, आवास, अन्य परिवहन साधनों से होने वाला कुल 55% उत्सर्जन शामिल है। सदस्य राज्यों ने विभिन्न लक्ष्य रखे हैं, और राष्ट्रीय उत्सर्जन लक्ष्य 2005 के स्तर की तुलना में 2020 तक उत्सर्जन में 20% घटाव करना है।[v] दूसरा, नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को 20% तक बढ़ाना - उत्सर्जन घटाने के लक्ष्य के साथ, सदस्य राज्यों ने नवीकरणीय ऊर्जा निर्देश (आरईडी) के तहत अपनी ऊर्जा जरूरतों में नवीकरणीय संसाधनों का हिस्सा बढ़ाने के लिए बाध्यकारी राष्ट्रीय लक्ष्य निर्धारित किए हैं। इसमें 2010 में 9.8% से बढ़ाकर 2020 तक कुल 20% लक्ष्य प्राप्त करने की अवधारणा रखी गई है। तीसरा, ऊर्जा दक्षता में 20% सुधार करना – ऊर्जा दक्षता पहल के अधीन, यूरोपीय संघ ने 2020 तक 20% ऊर्जा बचत का लक्ष्य रखा है। इसका मतलब है कि यूरोपीय संघ की ऊर्जा की खपत को कम करके "अधिकतम 1,086 मिलियन टन तेल समकक्ष (Mtoe) और प्राथमिक ऊर्जा की खपत को अधिकतम 1,483 Mtoe तक घटाना है”।[vi] यूरोस्टेट के आंकड़ों के अनुसार, 2017 में प्राथमिक ऊर्जा की खपत 2020 के लक्ष्य से 5.3% अधिक थी और अंतिम ऊर्जा की खपत लक्ष्य से 3% अधिक थी,[vii] जो ऊर्जा दक्षता के लम्बे सफ़र को उजागर करता है।
यूरोपीय संघ ने 2014 में, 2020 के बाद के जलवायु और ऊर्जा रूपरेखा के लिए अपने लक्ष्यों को संशोधित किया। 2030 के रूपरेखा में तीन लक्ष्य शामिल हैं: जीएचजी उत्सर्जन (1990 के स्तर से) में कम से कम 40% कटौती, नवीकरणीय ऊर्जा में कम से कम 27% हिस्सेदारी और ऊर्जा दक्षता में अधिक सुधार। इसी तरह, 2018 में, यूरोपीय संघ ने अपने आरईडी को भी संशोधित किया और नवीकरणीय ऊर्जा में अपने संबंधित लक्ष्यों को न्यूनतम 32% हिस्सेदारी और ऊर्जा दक्षता में 32.5% सुधार के लक्ष्य द्वारा अपने ऊर्जा दक्षता निर्देश को संशोधित किया।[viii] यूरोपीय संघ ने 2050 के लिए अपनी डीकार्बोनाइजेशन रणनीति पेश की है, जिसका उद्देश्य 1990 के स्तर की तुलना में CO2 उत्सर्जन में 80-95% की कटौती करना और 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करना है।[ix] 2019 के यूरोस्टेट के आंकड़ों के अनुसार, यूरोपीय संघ अपने 2020 के जीएचजी उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग पर है, यूरोपीय संघ ने 1990 के स्तर की तुलना में समग्र रूप से जीएचजी उत्सर्जन में 21.7% की कटौती की है। अक्षय ऊर्जा के संदर्भ में, 2004 और 2017 के बीच अक्षय ऊर्जा का हिस्सा सकल अंतिम ऊर्जा खपत के 17.5% तक पहुंच गया। यह काफी हद तक प्रौद्योगिकी के विकास, नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों की घटती कीमत, नवीकरणीय ऊर्जा के लिए समर्थन योजनाओं इत्यादि द्वारा संचालित हुआ था।[x] ऊर्जा दक्षता के संदर्भ में, जैसा कि पहले कहा गया है, यूरोपीय संघ को अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए एक लंबा सफ़र तय करना होगा।
भारत सरकार की ओर से एक ठोस जलवायु नीति बनाने की प्रथम पहल 2007 में आरम्भ हुई जब जलवायु परिवर्तन पर प्रधान मंत्री परिषद की स्थापना की गई थी, जिसका उद्देश्य "जलवायु परिवर्तन के मूल्यांकन, अनुकूलन और शमन के लिए एक राष्ट्रीय कार्य योजना तैयार करना और समन्वय करना था”।[xi] परिषद 2008 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना को सामने लेकर आई। इसने आठ लक्ष्यों की पहचान की[xii]: पहला, सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय सौर अभियान। 2021-22 तक 20,000 मेगावाट सौर ऊर्जा प्राप्त करने का प्रारंभिक लक्ष्य 2015 में संशोधित करके 2021-22 तक 100 गीगावाट कर दिया गया था। संशोधित लक्ष्य में 60 गीगावाट की मध्यम और बड़ी भूमि-आधारित सौर-ऊर्जा परियोजनाएं, साथ ही 40 गीगावाट की ग्रिड से जुड़ी छत परियोजनाओं शामिल होंगी। दूसरा, घरेलू, वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए संवर्धित ऊर्जा दक्षता के लिए राष्ट्रीय अभियान - यह ऊर्जा दक्षता ब्यूरो के अंतर्गत आता है और “अपने पूर्ण कार्यान्वयन चरण में 19,598 मेगावाट की कुल परिहार क्षमता संयोजन, प्रति वर्ष लगभग 23 मिलियन टन ईंधन की बचत और प्रति वर्ष 98.55 मिलियन टन जीएचजी घटाव प्राप्त करने का इरादा रखता है”। यह चार प्रमुख पहलों - प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (पीएटी), ऊर्जा दक्षता के लिए बाजार परिवर्तन (एमटीईई), ऊर्जा दक्षता वित्तपोषण मंच (ईईएफपी) और ऊर्जा कुशल आर्थिक विकास के लिए रूपरेखा (एफईईडीई) के माध्यम से हासिल किया जाना है।[xiii]
तीसरा, स्थायी निवास के लिए राष्ट्रीय अभियान - "इमारतों, अपशिष्ट प्रबंधन, जल संसाधनों और परिवहन जैसे क्षेत्रों में नीति, अवसंरचनात्मक और अनुसंधान हस्तक्षेपों की मदद से सतत शहरी योजना को प्रोत्साहित करना"। इसमें नई और बड़ी व्यावसायिक इमारतों के लिए डिज़ाइनों को अपडेट करके ऊर्जा मांगों को अनुकूलित करने; शहरी नियोजन को सुधारने; और सामग्री और शहरी अपशिष्ट प्रबंधन का पुनर्चक्रण जैसे पहलुओं को शामिल किया गया है। इसमें अपशिष्ट जल के उपयोग, सीवेज उपयोग, जैव-रासायनिक रूपांतरण और पुनर्चक्रण विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करने वाले अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) कार्यक्रम भी शामिल हैं।[xiv] इस पहल में भारत सरकार की कई प्रमुख योजनाएं शामिल हैं जैसे कि कायाकल्प और शहरी रूपांतरण के लिए अटल मिशन (अमृत), स्मार्ट सिटी पहल, विरासत शहर विकास और विस्तार योजना (ह्रदय), स्वच्छ भारत और राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम), इत्यादि। चौथा, राष्ट्रीय जल अभियान - इसका उद्देश्य जल संरक्षण, अपशिष्ट न्यूनीकरण और जल संसाधनों के समान वितरण को सुनिश्चित करके पूरे भारत में सतत जल आपूर्ति प्रदान करना है। इसके अंतर्गत, नवीन जल सर्वेक्षण अवलोकन केन्द्रों की स्थापना, भूजल निगरानी कुओं, भारत-डब्ल्यूआरआईएस वेबजीआईएस इत्यादि जैसे कई पहल की गई हैं।[1] पांचवां, जलवायु परिवर्तन पर रणनीतिक ज्ञान के लिए राष्ट्रीय अभियान - इसमें एक ऐसा ज्ञान प्रणाली बनाने की अवधारणा रखी गई है जो भारत में जलवायु परिवर्तन कार्रवाई में सहायता करेगा। चलाई गई मुख्य पहल में वैश्विक प्रौद्योगिकी अनुवीक्षण समूह (जीटीडब्ल्यूजी) शामिल है, जिसका उद्देश्य आठ क्षेत्रों - कोयला, नवीकरणीय ऊर्जा, कृषि, जल, स्थायी आवास, विनिर्माण, ऊर्जा दक्षता और वानिकी में विश्व स्तर पर उभर रही अत्याधुनिक तकनीकों पर नज़र रखना है। अभियान का लक्ष्य 2030 तक व्यावसायिक रूप से उपयुक्त तकनीक उपलब्ध कराना है।
छठा, सतत कृषि के लिए राष्ट्रीय अभियान - इसका उद्देश्य भारत में कृषि की स्थिरता, उत्पादकता, पारिश्रमिक और जलवायु लचीलापन में सुधार करना है। अभियान के चार तत्वों में शामिल हैं - वर्षा संचित क्षेत्र विकास; खेत जल प्रबंधन; मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन; और जलवायु परिवर्तन और सतत कृषि अनुवीक्षण, मॉडलिंग और नेटवर्किंग। इन्हें कई अन्य पहलों जैसे कि मनरेगा, एकीकृत जलग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी), त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम), प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना, इत्यादि से जोड़ा गया है। सातवां, वनों की रक्षा, संवर्द्धन और पुनर्स्थापन करने के लिए हरित भारत के लिए राष्ट्रीय अभियान। इसका उद्देश्य 2.5 मिलियन-हेक्टेयर क्षेत्र (mha) पर वन आवरण बढ़ाना और अतिरिक्त 2.5 mha पर वन आवरण की गुणवत्ता को सुधारना है। और आठवां, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय अभियान - हिमालय के पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि प्राकृतिक और भूवैज्ञानिक धन, वन संसाधन, हिम नदियाँ इत्यादि पर नज़र रखने के लिए छह कार्य बलों की स्थापना की गई है ताकि हिमालय पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझा जा सके।[xv]
इसके अलावा, प्रधानमंत्री (पीएम) नरेंद्रमोदी ने 15 अगस्त 2019 को अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण के दौरान, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए दो बड़ी पहल की घोषणा की। पहला, जलजीवन अभियान जिसका लक्ष्य 2024 तक देश के हर घर में कार्यात्मक नल-जल उपलब्ध कराना और एक अलग जल शक्ति मंत्रालय की स्थापना करना है। दूसरा, उन्होंने भारतीय नागरिकों से एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक का उपयोग बंद करने का भी आग्रह किया।[xvi] अंतर्राष्ट्रीय मंच पर, भारत और फ्रांस ने 2015 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन शुरू किया, जिसमें लगभग 80 देशों ने अपने प्रयासों को शामिल किया है। इसके पीछे की अवधारणा "सौर संसाधन संपन्न देशों के बीच सहयोग के लिए समर्पित मंच प्रदान करना है, जहां द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संगठनों, उद्योग और अन्य हितधारकों समेत वैश्विक समुदाय एक सुरक्षित, सुविधाजनक, किफायती, न्यायसंगत और सतत तरीके से भावी आईएसए सदस्य देशों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सौर ऊर्जा उपयोग बढ़ाने के सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता और मदद करने के लिए एक सकारात्मक योगदान दे सकते हैं।"[xvii] प्रधान मंत्री मोदी ने 23 सितंबर 2019 को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु कार्य शिखर सम्मेलन में अपने भाषण के दौरान आपदा लचीलापन अवसंरचनाओं के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन बनाने का विचार भी प्रकट किया। इस गठबंधन से "आपदा के विभिन्न पहलुओं और अवसंरचनाओं की जलवायु लचीलापन के लिए ज्ञान सृजन और विचारों के आदान-प्रदान” के एक मंच के रूप में काम करने की अपेक्षा है। यह देशों को अपने जोखिम संदर्भ और आर्थिक जरूरतों के अनुसार अवसंरचनाओं के विकास में अपनी क्षमताएं और प्रथाओं का उन्नयन करने के लिए एक तंत्र बनाने की दिशा में बहुल हितधारकों से तकनीकी विशेषज्ञता प्राप्त करेगा।[xviii]
जलवायु परिवर्तन में भारत-यूरोपीय संघ का सहयोग
भारत और यूरोपीय संघ ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को पहचाना और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए व्यापक रूप से अंतर्राष्ट्रीय मानक स्थापित करने की दिशा में काम कर रहे हैं। हालाँकि, मुद्दे के प्रति उनके दृष्टिकोण में हमेशा अभिसरण नहीं हुआ है क्योंकि इनके दृष्टिकोण में मूलभूत अंतर रहे हैं।
दृष्टिकोण में विचलन
जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा है। भारत और यूरोपीय संघ के लिए, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के शमन के लिए उनके विचारों और कार्यों के अभिसरण का मार्ग सुगम नहीं रहा है। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर उनके दृष्टिकोण में सबसे बुनियादी विचलन विकासशील और विकसित दुनिया के बीच जिम्मेदारियों के बंटवारे पर रहा है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन संधि रूपरेखा (यूएनएफसीसी) और क्योटो प्रोटोकॉल में तापमान वृद्धि को लेकर जिम्मेदारी के इन मतभेदों को भी स्वीकार किया गया था, जिसमें बल दिया गया था कि "पक्षों को समानता के आधार पर जलवायु प्रणाली की रक्षा करने के लिए अपनी आम लेकिन पृथक जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के साथ कार्य करना चाहिए।"[xix] प्रोटोकॉल ने आदेश दिया कि 37 औद्योगिक देशों और यूरोपीय समुदाय को अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करनी होगी। विकासशील देशों को स्वेच्छा से अनुपालन करने के लिए कहा गया। चीन और भारत सहित 100 से अधिक विकासशील देशों को संधि से छूट दी गई थी।
क्योटो समझौता प्रभाव में आने के बाद से, अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन की राजनीति इस सवाल से निपट रही है कि किसे सबसे अधिक भुगतान करना चाहिए और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के वित्तपोषण के लिए पारंपरिक उत्सर्जनकर्ताओं और बड़े उभरते विकासशील देशों को क्या जिम्मेदारी लेनी चाहिए। यूएनएफसीसी और क्योटो प्रोटोकॉल में निहित "आम लेकिन पृथक जिम्मेदारियों" के सिद्धांत की व्याख्या करने के तरीके पर बढ़ती असहमति ने विकसित देशों को विशेष रूप से "सार्थक शमन लक्ष्यों" को स्थापित करने और प्राप्त करने के मामले में विकासशील देशों के खिलाफ कर दिया है। क्योटो प्रोटोकॉल में केवल विकसित देशों में होने वाले उत्सर्जनों पर अंकुश कसने की प्रतिबद्धता शामिल है जिसका गैर-अनुपालन करने पर देशों को कोई परिणाम नहीं भुगतना होगा, जबकि यह विकासशील देशों के लिए जीएचजी से संबंधित कई छूट देता है, लेकिन इन देशों को अपने उत्सर्जन पर अंकुश लगाने में कोई प्रोत्साहन प्रदान करने में विफल रहता है। भारत और चीन जैसे देशों ने कानूनी रूप से बाध्यकारी लक्ष्यों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया क्योंकि विकसित देशों द्वारा लक्ष्यों को पूरा ना कर पाने पर भी उन्हें कोई परिणाम नहीं भुगतना पड़ेगा, इस मुद्दे से भी समस्या उभरी है।
भारत के लिए, क्योटो प्रोटोकॉल ने दो पहलुओं पर बल दिया - जलवायु कार्यों के लिए जिम्मेदारी वहन के सन्दर्भ में विकसित देशों और विकासशील देशों के मध्य भेदभाव और दूसरा, यह अपने स्वयं के आर्थिक विकास पर बल देने में सक्षम रहा "विकसित देशों द्वारा कड़ी कार्रवाई करने के लिए बल देते हुए समता के सिद्धांतों का उल्लेख दिया"। यह कई वर्षों में स्थिर रहा और प्रमुख कारण है कि भारत को जलवायु वार्ता में एक कठिन भागीदार होने की प्रतिष्ठा क्यों प्राप्त है।[xx] भारत का रुख 2007 के बाद से बदलने लगा जब भारत ने 2007 में बाली में आयोजित सीओपी13 के दौरान जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए विकासशील देशों को वैश्विक प्रयासों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद भारत ने 2008 में जलवायु परिवर्तन पर अपनी पहली राष्ट्रीय कार्य योजना (एनएपीसीसी) जारी की। इसके अलावा, 2009 में कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन के दौरान, बेसिक देशों (चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील) का एक हिस्सा होने के नाते भारत ने पहली बार अपनी स्वेच्छा से “2005 के स्तर की तुलना में 2020 तक जीडीपी उत्सर्जन तीव्रता को 20-25% तक घटाने” की घोषणा की।[xxi]
जलवायु परिवर्तन सहयोग में अभिसरण
जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में भारत और यूरोपीय संघ दोनों प्रमुख हितधारक बनकर उभरे हैं। जैसा कि पहले बताया गया है, दोनों भागीदारों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को घटाने के लिए कई नीतिगत कदम उठाए हैं और प्रमुख नीतिगत रूपरेखाएँ शुरू की हैं। भारत और यूरोपीय संघ दोनों ही पेरिस जलवायु समझौते पर बातचीत और हस्ताक्षर करने के दौरान सबसे आगे रहे थे और साथ ही उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी प्रत्याशित राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (आईएनडीसी) की घोषणा भी की थी।[2] इसके अलावा, अमेरिका जलवायु परिवर्तन के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने के साथ, यूरोपीय संघ और भारत के लिए अपनी प्रतिबद्धताओं को सुदृढ़ करना और भी महत्वपूर्ण बन गया।
स्रोत: लाइवमिंट, 1 सितम्बर 2019, https://www.livemint.com/news/india/the-four-big-climate-challenges-for-india-1567354297958.html
जब भारत और यूरोपीय संघ ने 2004 में अपनी रणनीतिक साझेदारी पर हस्ताक्षर किया, तब उन्होंने जलवायु परिवर्तन को एक महत्वपूर्ण मुद्दे के रूप में बताया, परिणामस्वरूप 2005 की संयुक्त कार्य योजना के मध्यम से दोनों भागीदार जलवायु परिवर्तन पर भविष्य में होने वाली समस्त वैश्विक वार्ता पर एक साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध हुए। 2008 के मार्सिले शिखर सम्मेलन के दौरान, सतत विकास और स्वच्छ प्रौद्योगिकी को सहयोग के प्राथमिक क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया था। तब से, प्रत्येक संयुक्त घोषणा ने उन्होंने सतत प्रथाओं, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु नीति के विकास का सन्दर्भ दिया है। 2017 के भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के दौरान स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन साझेदारी की स्थापना ने "जलवायु कार्रवाई और स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण को हमारे समाजों के भविष्य के विकास के लिए एक अनिवार्य पहलू के रूप में पहचाना"।[xxiii] इस रूपरेखा के तहत "यूरोपीय संघ और भारत जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए अगुआई करेंगे और सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करेंगे, सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा को लागू करेंगे और विश्व में ग्रीनहाउस गैस के निम्न उत्सर्जन, जलवायु लचीलापन और सतत विकास को प्रोत्साहित करेंगे।"[xxiv] इसने नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के मंच के रूप में अंतर्राष्ट्रीय सौर एलायंस पर बल दिया और भारत-यूरोपीय संघ की साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए सौर पार्कों, स्मार्ट ग्रिड प्रदर्शनों इत्यादि जैसे सौर पहल के उपयोग और तैनाती में सर्वोत्तम प्रथाओं की तलाश करने पर बल दिया। एक अन्य महत्वपूर्ण पहल है जिस पर प्रकाश डाला गया, वह स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण पर सहयोग था, भारत और यूरोपीय संघ ने "ऊर्जा सुरक्षा पर यूरोपीय संघ-भारत संयुक्त कार्य समूह की बैठकों की रूपरेखा में निम्न कार्बन ऊर्जा सुरक्षा पर अपने संवाद को बढ़ाने का फैसला किया।"[xxv]
"स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन" के तहत, यूरोपीय संघ भारत की अपतटीय पवन विकास योजनाओं के विकास का समर्थन करता है - भारत में अपतटीय पवन सुकर बनाने (फोविंड) की परियोजना, जिसे वैश्विक ऊर्जा परिषद द्वारा संचालित एक महासंघ से सहायता प्राप्त हो रही है।[3] यूरोपीय संघ ने परियोजना के कार्यान्वयन के लिए महासंघ को € 4 मिलियन प्रदान किए हैं। इसके पीछे भारत में अपतटीय पवन विकास के लिए एक रोडमैप विकसित करने की अवधारणा है, जिसके लिए गुजरात और तमिलनाडु के कुछ स्थानों को पायलट परियोजनाओं के रूप में पहचाना गया है। भारत की पहली अपतटीय पवन परियोजना "गुजरात की खंबात की खाड़ी के पास, गुजरात तट से लगभग 25 किलोमीटर दूर 200 मेगावाट की एक अस्थायी क्षमता के साथ 70 वर्ग किलोमीटर (वर्ग किमी) के समुद्र तल क्षेत्र पर” कार्यान्वयन के प्रारंभिक चरण में है।[xxvi] यह परियोजना भारत को अपतटीय पवन के लिए राष्ट्रीय नीतियों और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन द्वारा “निम्न-कार्बन विकास की ओर संक्रमण करने में मदद करेगी,"[xxvii] जिससे ऊर्जा दक्षता में योगदान और भारत को नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की 2022 तक 5 गिगावाट और 2030 तक 30 गिगावाट की लंबी और मध्यम अवधि की अपतटीय पवन ऊर्जा लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।[xxviii]
सहयोग का एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र भारत के सोलर पार्क कार्यक्रमों में यूरोपीय संघ द्वारा प्रदान की गई सहायता है। 2016-19 के दौरान, भारत के सौर पार्कों की संख्या 345 मेगावाट के 12 पार्क से बढ़कर 6500 मेगावाट के 12 पार्कों तक हो गई है, जिसके अलावा अतिरिक्त 10 पार्क विकास के विभिन्न चरणों के अधीन हैं।[xxix] इसके अलावा, 2018 में, यूरोपीय निवेश बैंक ने भारत में स्वच्छ ऊर्जा निवेश के लिए € 800 मिलियन के पैकेज पर हस्ताक्षर किया, जिनमें से € 640 मिलियन विभिन्न सौर परियोजनाओं के लिए रखे गए थे, जिससे भारत यूरोपीय संघ के बाहर सौर ऊर्जा में वित्तपोषण प्राप्त करने वाला एक अग्रणी प्राप्तकर्ता बन गया है।[xxx] यूरोपीय संघ तकनीकी सहायता का उद्देश्य सौर पार्कों का प्रबंधन और कार्यान्वयन करना है, जिससे जलवायु परिवर्तन प्रभाव के शमन में योगदान होता है।
भारत और यूरोपीय संघ मिशन इनोवेशन (एमआई) की वैश्विक पहल के माध्यम से सक्रिय रूप से जुड़ रहा है, जिसका लक्ष्य "स्वच्छ ऊर्जा को व्यापक रूप से किफायती बनाने के उद्देश्य से वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा नवाचार को सुदृढ़ और तेज करना है"। 2015 में पेरिस जलवायु वार्ता के दौरान एमआई की घोषणा की गई थी। इस पहल के तहत, भारत अपने विकास, अनुसंधान और प्रदर्शन निवेश को 2015 में € 64 मिलियन से बढ़ाकर 2020 में € 130 मिलियन करने के लिए प्रतिबद्ध हुआ। साथ ही आठ में से तीन एमआई चुनौतियों में सह-अग्रणी है - स्मार्ट ग्रिड, सतत जैव ईंधन और बिजली तक ऑफ-ग्रिड पहुँच।[xxxi] भारत ने होराइजन 2020[4] की कई परियोजनाओं में भी भाग लिया, उदाहरण के लिए आईइलेक्ट्रिक्स, जो दिल्ली में 1 मेगावाट का प्रदर्शन संयंत्र स्थापित करने के लिए स्मार्ट ग्रिड सहयोग परियोजना समझौता है। इस परियोजना का मूल्य € 11 मिलियन है, जिसमें से € 8 मिलियन होराइजन 2020 कार्यक्रम के तहत प्रदान किए गए हैं, और बाकी एन्डिस (फ्रांस) और टाटा पॉवर्स द्वारा वित्तपोषित किया गया है।[xxxii] भारत-यूरोपीय संघ जल साझेदारी, जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा पर उनके सहयोग की आधारशिला है। यह जल पर संयुक्त घोषणा का परिणाम था, जिसे 2016 में 13 वें भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के दौरान अपनाया गया था। इसका उद्देश्य जल प्रबंधन में भारत और यूरोपीय संघ दोनों की वैज्ञानिक, तकनीकी और प्रबंधन क्षमताओं को मजबूत करना है। इस साझेदारी के तहत पहचानी गईं प्राथमिकताएं गंगा कायाकल्प, क्षमता निर्माण, अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग और अनुसंधान, सतत नदी क्षेत्र प्रबंधन, इत्यादि हैं। दोनों भागीदारों ने 2019-23 के लिए सात परियोजनाओं में संयुक्त रूप से € 40 मिलियन का निवेश करने पर सहमति व्यक्त की है। इन परियोजनाओं में शामिल हैं - “इंडिया-एच 20: जैव-अनुकरणिक और पादप-तकनीकें जिन्हें कम लागत में पानी के शुद्धिकरण और पुनर्चक्रण के लिए डिज़ाइन किया गया है; लोटस: भारत में शहरी और ग्रामीण जल प्रणालियों के लिए पानी की गुणवत्ता की निगरानी और जल संसाधन प्रबंधन के लिए कम लागत वाली नवीन तकनीक; पानी वाटर: जल-उपचार के लिए पादप-विकिरण और अवशोषण आधारित नवीन नवाचार; पवित्र: जल के लिए स्थायी प्राकृतिक और उन्नत प्रौद्योगिकियों की संभावना और सत्यापन एवं भारत में अपशिष्ट जल उपचार, निगरानी और जल का सुरक्षित पुन: उपयोग; पवित्र गंगा: भारत के शहरी और उप-शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट जल उपचार, जल पुन: उपयोग और संसाधन बहाली के अवसरों का पता लगाना; सरस्वती 2.0: विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार और भारत के लिए संसाधन बहाली के लिए उपलब्ध सर्वोत्तम तकनीकों की पहचान; स्प्रिंग: जल संसाधनों के लिए रणनीतिक योजना और नवीन जैव-प्रौद्योगिकीय उपचार समाधान और अच्छी प्रथाओं का कार्यान्वयन”।[xxxiii]
आंकलन
चरम जलवायु परिस्थितियों - गंभीर वर्षा, सूखा, आकस्मिक बाढ़, हिम टोपियों का पिघलना - की ओर इशारा करते हुए, कई रिपोर्टों में जलवायु परिवर्तन को तेजी से एक "खतरा गुणक" के रूप में पहचाना जा रहा है।[xxxiv] भारत और यूरोपीय संघ ऐसी नीतियों और पहलों के निर्माण की दिशा में काम कर रहे हैं जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का शमन करना है। दोनों बहुपक्षीय स्तर पर महत्वाकांक्षी एजेंडा को आगे बढ़ाने में भागीदार बन कर उभरे हैं, द्विपक्षीय स्तर पर अपने सहयोग को गहन किया और घरेलू स्तर पर खुद के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं।
अमेरिका द्वारा अपने जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने के साथ, भारत, यूरोपीय संघ और चीन जैसे देशों ने जलवायु परिवर्तन का शमन करने के लिए महत्वाकांक्षी योजनाओं को आगे बढ़ाया है। चीन पेरिस समझौते के तहत एनडीसी के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर एक सक्रिय जलवायु नीति का पालन कर रहा है। इनमें - “2030 तक कुल प्राथमिक ऊर्जा आपूर्ति में गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी को 20% तक बढ़ाना; 2005 के स्तरों की तुलना में 2030 तक जीडीपी की कार्बन तीव्रता को 60% से 65% घटाना; 2005 के स्तरों की तुलना में वन वस्तु मात्रा में लगभग 4.5 बिलियन क्यूबिक मीटर की बढ़त लाना” शामिल हैं। इसने 2020 की शपथ भी ली है, जिसमें – 2020 तक 2005 की स्तरों की तुलना में जीडीपी के प्रति इकाई के लिए CO2 उत्सर्जन को 40–45% घटाना; 2020 तक प्राथमिक ऊर्जा खपत में गैर-जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी को लगभग 15% तक बढ़ाना; 2005 के स्तरों की तुलना में 2020 तक वनीय क्षेत्र को 40 मिलियन हेक्टेयर और वन वस्तु मात्रा को 1.3 बिलियन क्यूबिक मीटर तक बढ़ाना शामिल हैं।[xxxv] चीन ने अपने ग्रिड में विशाल मात्रा में पवन और सौर इंस्टालेशन को भी शामिल किया है और सौर पैनलों, बैटरी और बिजली से चलने वाली वाहनों के निर्माण के लिए बड़े घरेलू उद्योगों का विकास किया है। 2017 में, इसने एक राष्ट्रीय उत्सर्जन व्यापार प्रणाली शुरू की, जो कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन भत्ते को खरीदने और बेचने के लिए एक बाजार बनाती है।
भारत और यूरोपीय संघ जलवायु एजेंडा को आगे बढ़ाने हेतु अगुआई करने के लिए अच्छी तरह तैयार है। चूंकि भारत और यूरोपीय संघ ने 2016 के भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के दौरान कार्य एजेंडा 2020 को अपनाया है, इसलिए इसने जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर सहयोग को तेज करने का मार्ग प्रशस्त किया। भारत और यूरोपीय संघ दोनों आईएनडीसी को प्राप्त करने की दिशा में काम कर रहे हैं जो उन्होंने पेरिस जलवायु समझौते से पहले प्रस्तुत किया था। वे ऊर्जा दक्षता में भी एक-दूसरे के साथ साझेदारी कर रहे हैं, जिसमें उनका सहयोग स्मार्ट ग्रिड, अपतटीय पवन परियोजनाओं, सौर पार्कों, ऊर्जा अनुसंधान और नवाचार पर केंद्रित है। यूरोपीय संघ स्वच्छ भारत और स्वच्छ गंगा के भारत के प्रमुख कार्यक्रमों में एक सक्रिय भागीदार है, जबकि भारत-यूरोपीय संघ जल भागीदारी सबसे अधिक व्यापक है, क्योंकि इसमें न केवल राष्ट्रीय प्राधिकरण शामिल हैं, बल्कि व्यापार, नागरिक समाज और भारतीय और यूरोपीय संघ के जल प्राधिकरणों के हितधारक भी शामिल हैं। भारत पर यूरोपीय संघ की रणनीति, दोनों साझेदारों द्वारा विश्व स्तर पर निभाई जाने वाली भूमिका को भी उजागर करता है, "यूरोपीय संघ-भारत सहयोग संसाधन पर दबाव और प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाने में योगदान देगा।"[xxxvi] यह "एक संयुक्त दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर भी ध्यान देता है, जिसका उद्देश्य जलवायु कार्रवाई को बाजार पर कब्ज़ा जमाने में प्रोत्साहन और अन्य समर्थन उपायों के साथ नवाचार समर्थन के साथ जोड़ना, जलवायु कार्रवाई और संबंधित मुद्दों जैसे कि वायु प्रदूषण और जल-ऊर्जा सांठगांठ के बीच तालमेल को पहचानना और दोहन करना तथा आपदा जोखिम प्रबंधन में जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और विकास योजना को एकीकृत करना है।"[xxxvii]
जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभाव से बचने के लिए वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में तेजी से कटौती; गैर-नवीकरणीय संसाधनों के बदले सौर, पवन इत्यादि जैसे अक्षय संसाधनों का उपयोग; और ऊर्जा दक्षता पहल को आगे बढ़ाने के लिए नई प्रौद्योगिकियों का विकास करने की आवश्यकता होगी। भारत और यूरोपीय संघ ने न केवल अपने एजेंडा में आम सहमति बनाई है, बल्कि जलवायु परिवर्तन पर भी समान चिंताओं को साझा करते हैं। जलवायु परिवर्तन पर सहयोग भारत और यूरोपीय संघ को संयुक्त जिम्मेदारी के साथ समान भागीदार के रूप में प्रस्तुत करता है। इसलिए, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का शमन करने के लिए अनुसंधान और नवाचार, प्रौद्योगिकी-हस्तांतरण, ऊर्जा दक्षता, स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण में आगे के अवसरों को तलाशने की आवश्यकता है।
*डॉ. अंकिता दत्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली में शोधकर्ता हैं।
अस्वीकरण: इसमें व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं, परिषद के नहीं।
अंत टिप्पण
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[1]India-WRIS WebGIS –It is designed to generate a database and implementation of web enabled water resources information system in the country. It is a joint venture of the Central Water Commission (CWC), Ministry of Water Resources, Central government and Indian Space Research Organization (ISRO). (https://www.esri.in/esri-news/publication/vol7-issue3/articles/india-wris-webgis)
[2] In the run-up to the Paris conference, Indian government announced an INDC of reducing emission intensity by 33 to 35 per cent of 2005 levels, and to produce 40% of electricity from non-fossil fuel-based sources by 2030. EU’s commitments included reduction of greenhouse gas emissions by at least 40% by 2030 compared to 1990, under its wider 2030 climate and energy framework.
[3] Consortium partners include the Centre for Study of Science, Technology and Policy (CSTEP), DNV GL, the Gujarat Power Corporation Limited (GPCL) and the World Institute of Sustainable Energy (WISE). National Institute of Wind Energy (NIWE) joined the consortium as knowledge partner in 2015. (http://fowind.in/)
[4]Horizon 2020 is EU’s research and innovation programme with a funding of 80 billion Euros available over 7 years (2014-2020). It is seen as means of driving economic growth and creation of jobs, and ensure that Europe produces world-class science, remove barriers to innovation and enhance public-private partnership in innovation. (https://ec.europa.eu/programmes/horizon2020/what-horizon-2020)
[i]Climate Change: How do we know?, Global Climate Change, NASA, https://climate.nasa.gov/evidence/, Accessed on 5 November 2019
[ii]European Council, Tackling climate change in the EU, 25 April 2019, https://www.consilium.europa.eu/en/policies/climate-change/, Accessed on 5 November 2019
[iii]EU Emissions Trading System (EU ETS), European Commission, https://ec.europa.eu/clima/policies/ets_en, Accessed on 5 November 2019
[iv]2020 climate & energy package, Climate Action, European Commission, https://ec.europa.eu/clima/policies/strategies/2020_en#tab-0-0, Accessed on 5 November 2019
[v]Effort sharing: Member States' emission targets, Climate Action, European Commission, https://ec.europa.eu/clima/policies/effort_en, Accessed on 6 November 2019
[vi]EU 2020 target for energy efficiency, Energy Efficiency, European Commission, https://ec.europa.eu/energy/en/topics/energy-efficiency/targets-directive-and-rules/eu-targets-energy-efficiency#content-heading-1, Accessed on 6 November 2019
[vii]Energy Saving Statistics, Eurostat, January 2019, https://ec.europa.eu/eurostat/statistics-explained/index.php/Energy_saving_statistics, Accessed on 6 November 2019
[viii]Europe 2020 Indicators- Climate Change and Energy, Eurostat, August 2019, https://ec.europa.eu/eurostat/statistics-explained/index.php?title=Europe_2020_indicators_-_climate_change_and_energy#General_overview, Accessed on 6 November 2019
[ix]Louise Guillot, Cop24 In Katowice: What Is Europe Doing To Fight Climate Change?, The New Federalist, 15 December 2018, https://www.thenewfederalist.eu/cop24-in-katowice-what-is-europe-doing-to-fight-climate-change, Accessed on 7 November 2019
[x]Eurostat, n.viii
[xi]Prime Minister’s Council on Climate Change, Archives - Former Prime Minister of India Dr. Manmohan Singh, Government of India,https://archivepmo.nic.in/drmanmohansingh/committeescouncils_details.php?nodeid=7, Accessed on 7 November 2019
[xii]HarshalPandve, India’s National Action Plan on Climate Change, Indian Journal of Occupational and Environmental Medicine, 13(1), 2009, pp.17-19, https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2822162/, Accessed on 7 November 2019
[xiii]Twelfth Five year Plan (2012-2017), Faster, More Inclusive and Sustainable Growth – Volume 1, Planning Commission, 2013, http://planningcommission.gov.in/plans/planrel/12thplan/pdf/12fyp_vol1.pdf, Accessed on 7 November 2019
[xiv]http://www.indiaenvironmentportal.org.in/content/310003/national-mission-on-sustainable-habitat/, Accessed on 7 November 2019
[xv]Coping with Climate Change: An analysis of India’s National Action Plan on Climate Change – Volume 1, Centre for Science and Environment, New Delhi, 2018
[xvi]Firstpost, 15 August 2019, https://www.firstpost.com/india/on-73rd-independence-day-narendra-modi-announces-creation-of-chief-of-defence-staff-post-commits-to-5-trillion-economy-dream-key-takeaways-7167101.html, Accessed on 8 November 2019
[xvii]Vision and Mission of the ISA, International Solar Alliance, http://isolaralliance.org/AboutISA.aspx, Accessed on 8 November 2019
[xviii]Cabinet approves Establishment of an International Coalition for Disaster Resilient Infrastructure - PM to launch CDRI during UN Climate Summit in New York on 23rd September 2019, Press Information Bureau, 28 August 2019, https://pib.gov.in/newsite/PrintRelease.aspx?relid=192854, Accessed on 8 November 2019
[xix]The Principle of Common But Differentiated Responsibilities: Origins and Scope, CISDL Legal Brief, 2002, https://cisdl.org/public/docs/news/brief_common.pdf, Accessed on 14 December 2019
[xx]From Rio to Paris: India in global climate politics, ORF Occasional paper, December 2017, https://www.orfonline.org/research/rio-to-paris-india-global-climate-politics/, Accessed on 14 December 2019
[xxi]India Records Its Climate Actions by Copenhagen Accord Deadline, Natural Resources Defense Council, February 2010, https://www.nrdc.org/experts/anjali-jaiswal/india-records-its-climate-actions-copenhagen-accord-deadline, Accessed on 14 December 2019
[xxii]The India-EU: Strategic Partnership Joint Action Plan, Ministry of Commerce, Government of India, https://commerce.gov.in/writereaddata/trade/India_EU_jap.pdf, Accessed on 8 November 2019
[xxiii]EU-India Joint Statement on Clean Energy and Climate Change, 2017, European Council, https://www.consilium.europa.eu/media/23517/eu-india-joint-declaration-climate-and-energy.pdf, Accessed on 8 November 2019
[xxiv]Ibid.
[xxv]Ibid.
[xxvi]Overview, First Offshore Wind Project of India, https://www.fowpi.in/, Accessed on 9 November 2019
[xxvii]About Project, FOWIND- Facilitating Offshore Wind in India, Global Wind Energy Council, https://gwec.net/about-winds/fowind/, Accessed on 9 November 2019
[xxviii]The Economic Times, 19 June 2018, https://energy.economictimes.indiatimes.com/news/renewable/india-announces-30-gigawatt-offshore-wind-energy-target-by-2030/64651102, Accessed on 9 November 2019
[xxix]EU India step up cooperation on solar energy, EEAS, 28 June 2019, https://eeas.europa.eu/delegations/india_en/64757/EU%20India%20step%20up%20cooperation%20on%20solar%20energy, Accessed on 11 November 2019
[xxx]Euractiv, 13 March 2018, https://www.euractiv.com/section/energy/news/india-takes-lions-share-of-eu-bank-funding-for-solar-power/, Accessed on 11 November 2019
[xxxi]Objective,Mission Innovation, http://mission-innovation.net/our-work/innovation-challenges/sustainable-biofuels/, Accessed on 11 November 2019
[xxxii]EU-India Partnership on Research and Innovation, Delegation of the European Union to India and Bhutan, https://cdn2.euraxess.org/sites/default/files/eu-india_ri_cooperation_brochure.pdf, Accessed on 13 November 2019
[xxxiii]EU - India to jointly fund seven research and innovation projects to the tune of EUR 40 million to tackle urgent water challenges, EEAS, 14 February 2019, https://eeas.europa.eu/delegations/india/58099/eu-india-jointly-fund-seven-research-and-innovation-projects-tune-eur-40-million-tackle-urgent_en, Accessed on 13 November 2019
[xxxiv]Climate change recognized as ‘threat multiplier’, UN Security Council debates its impact on peace, UN News, 25 January 2019, https://news.un.org/en/story/2019/01/1031322, Accessed on 14 November 2019
[xxxv]China Pledges, Climate Tracker, https://climateactiontracker.org/countries/china/pledges-and-targets/, Accessed on 5 December 2019
[xxxvi]Joint Communication to the European Parliament and the Council - Elements for an EU strategy on India, European Commission, 2018, https://eeas.europa.eu/sites/eeas/files/jc_elements_for_an_eu_strategy_on_india_-_final_adopted.pdf, Accessed on 14 November 2019
[xxxvii]Ibid.