सार
सीओपी25 प्रमुख प्रदेयों और 2020 तक नवीनीकृत जलवायु प्रतिज्ञाओं की अपेक्षा के साथ शुरू हुई; हालाँकि, इस दौरान सहमतियां कम और असहमतियां ज्यादा थीं। इन असहमतियों के मध्य, यूरोपीय संघ ने 11 दिसंबर 2019 को अपनी ग्रीन डील जारी कर दी। इस समझौते का उद्देश्य एक व्यापक रणनीति के लिए एक खाका प्रदान करना है जो यूरोपीय संघ को ग्रीनहाउस गैसों के शून्य उत्सर्जन के मार्ग पर रखेगा। यह पेपर मैड्रिड में आयोजित सीओपी25 के परिणाम का विश्लेषण करता है और नई यूरोपीय जलवायु रणनीति के प्रमुख तत्वों पर भी प्रकाश डालता है, साथ ही यह विश्लेषण करता है कि क्या इसे एक टेम्पलेट माना जा सकता है या नहीं जिसका अन्य देश अनुसरण कर सकेंगे।
परिचय
दिसंबर 2019 में मैड्रिड में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन [जिसे पक्षों का सम्मेलन (सीओपी) भी कहा जाता है] से अपेक्षा थी कि यह कार्बन बाजारों के लिए दिशानिर्देश सुदृढ़ कर विश्व की प्रथम सार्वभौमिक जलवायु संधि की खामियों को दूर करेगा, और इसके द्वारा “पैरिस समझौता नियम पुस्तिका” को पूरा कर सकेगा। इस शिखर सम्मेलन के परिणाम अपेक्षाकृत परिणामों से बिलकुल भिन्न थे। 12-दिवसीय वार्ता को दो दिन और बढ़ाया गया, ताकि सरकारें न्यूनतम-सहमत लक्ष्यों पर सहमत हो सकें - हालांकि, कोई बड़ी प्रतिबद्धता नहीं की गई थी। शिखर सम्मेलन चलने के दौरान, यूरोपीय संघ (ईयू) ने अपने नए ‘यूरोपीय ग्रीन डील’ में कार्बन-तटस्थ बनने के अपने महत्वाकांक्षी 2050 लक्ष्यों को प्रस्तुत किया। यह पेपर सीओपी25 की विफलता के कारणों का विश्लेषण करने की कोशिश करता है। यह नई यूरोपीय जलवायु रणनीति को भी संज्ञान में लेता है और यह विश्लेषण करने का प्रयास करता है कि क्या यह एक टेम्पलेट के रूप में काम कर सकेगा जिसका अन्य देश अनुसरण कर सकेंगे।
सीओपी25 में क्या दांव पर लगा था?
सीओपी25 तक की दौड़ में, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने सितंबर 2019 में बदलती जलवायु में महासागर और क्रायोस्फीयर एवं जलवायु परिवर्तन और भूमि नामक दो महत्वपूर्ण रिपोर्ट प्रकाशित कीं। दोनों रिपोर्टों में भविष्य के लिए एक धूमिल तस्वीर पेश की गई थी। जलवायु परिवर्तन और भूमि में प्रकाश डाला गया कि “जलवायु परिवर्तन, जिसमें अतिविषम जलवायु की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि शामिल है, ने खाद्य सुरक्षा और स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है और साथ ही दुनिया के कई क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण और भूमि क्षरण का कारण बना है”। इसके प्रबंधन की अनुशंसाओं में पुन: वनीकरण, सतत भूमि विकास और नए विनाशों से निपटने के लिए नई प्रथाओं का अनुकूलन शामिल है।i हिम नदियों और बर्फ की चादरों सहित पृथ्वी के महासागरों और जमे हुए क्षेत्रों पर आईपीसीसी की रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि “1980 के दशक से महासागर मानवों द्वारा उत्सर्जित 20-30% कार्बन अवशोषित कर रहे हैं, जिससे उनका पीएच स्तर घट गया है और महासागर की अम्लता बढ़ गई है”।ii रिपोर्ट में मूल रूप से ये बात कही गई थी कि महासागरों के गर्म होने का दर 1993 की तुलना में दोगुना हो गया है, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी और पारिस्थितिक तंत्र पर अत्यधिक प्रभाव पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप समुद्री जीवों की प्रजातियां और मूंगे जैसी मूलभूत प्रजातियां कम हो रही हैं। ग्रीनलैंड में पर्माफ्रॉस्ट, अंटार्कटिका में बर्फ की चादरों और दुनिया भर के हिम नदियों के पिघलने कारण पिछले दशकों में समुद्र का स्तर बढ़ गया है। “आर्कटिक सागर की बर्फ की मात्रा में 13% प्रति दशक की गिरावट आई है और आर्कटिक की पुरानी, मोटी समुद्री बर्फ, जो अन्य समुद्री बर्फ को पिघलने से बचाती है, लगभग पूरी तरह से गायब हो चुकी है। केवल ऐसे 10% समुद्री बर्फ रह गए हैं जो कम से कम पांच साल पुराने हैं”।iii
उपरोक्त रिपोर्टों को ध्यान में रखते हुए, सीओपी25 दो प्रमुख प्रदेयों और 2020 तक नवीनीकृत जलवायु प्रतिज्ञाओं की अपेक्षा के साथ शुरू हुई, इन दो प्रदेयों में से पहला, पेरिस समझौते1 के अनुच्छेद 6 के तहत नियमों पर सहमत होना और दूसरा, हानि और क्षति पर एक वित्तीय तंत्र बनाना है। शिखर सम्मेलन दोनों आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहा। 2020 की प्रतिज्ञा - पेरिस समझौते के तहत, राष्ट्रों से 2020 में अपने लक्ष्यों को नवीनीकृत करने की अपेक्षा है। सीओपी25 से अपेक्षा थी कि जलवायु परिवर्तन की विषमता को देखते हुए इस शिखर सम्मेलन से राष्ट्र इन लक्ष्यों को अधिक महत्वाकांक्षी बनाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। हालांकि, चीन और भारत जैसे देशों ने इन नियमों को मानने से इनकार कर दिया, जब तक कि विकसित देशों पर भी इसे लागू नहीं किया जाता। इन देशों ने प्री-2020 स्टॉकटेकिंग सेशन में विकसित देशों से “2020-पूर्व कार्यान्वयन अंतरालों को बंद करने पर कार्यकारी कार्यक्रम” आरम्भ करने का अनुरोध कियाiv, जिसका यूरोपीय संघ ने विरोध किया था। यूरोपीय संघ ने इस आधार पर अपने विरोध को उचित ठहराया कि “पेरिस समझौते के तहत भविष्य की महत्वाकांक्षा पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जो सभी पर लागू होना चाहिए”v। अंतिम पाठ में, केवल 2020 में अपनी प्रतिबद्धताओं को संप्रेषित करने के लिए पक्षों पर जोर दिया गया था।
कार्बन बाजार के नियमों की स्थापना को लेकर पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 पर सहमति जुटाना सीओपी25 के लिए एक महत्वपूर्ण चर्चा बिंदु था। हालाँकि, चर्चाओं का रुख दूसरी दिशाओं की ओर मुड़ जाने के कारण इस मुद्दे पर कोई सहमति नहीं बन पाई कि नियम क्या-क्या होने चाहिए। क्योटो प्रोटोकॉल के तहत स्थापित स्वच्छ विकास तंत्र के अधीन ऑस्ट्रेलिया, भारत और ब्राजील आदि जैसे देशों को आवंटित कार्बन इकाइयों2 को नए तंत्र में जारी रखने पर बल देने के साथ बहस शुरू हुई। इसमें दो प्रमुख समस्याएं सामने आईं - पहला, कार्बन बाजारों में अत्यधिक मात्रा में सस्ती इकाइयां लाना, जो अनिवार्य रूप से वास्तविक उत्सर्जन उपशमन का प्रतिनिधित्व नहीं करता है और दूसरा, वे पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान लक्ष्य के पक्ष में नहीं थे, जिससे पूरी प्रणाली कमजोर हो जाती है। चूंकि कोई सर्वसम्मति नहीं हो पाई, इसलिए अपेक्षा है कि 2020 में ग्लासगो में सीओपी26 के अवसर पर चर्चा जारी रहेगी। हालांकि, कोस्टा रिका के नेतृत्व में 31 देशों के एक समूह ने सैन होसे सिद्धांतों पर हस्ताक्षर किया, जिसने “वैश्विक कार्बन बाजार का एकीकरण सुनिश्चित करने के लिए न्यूनतम मानकों का एक सेट बनाया है”।vi
इसके अलावा, “हानि और क्षति” सिद्धांत पर बहुत कम प्रगति हुई थी, जिसके तहत जलवायु परिवर्तन के अपरिवर्तनीय प्रभावों से प्रभावित कमजोर देशों की मदद करने के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण योजना प्रस्तुत की जानी थी। उम्मीद थी कि 2013 वॉरसॉ इंटरनेशनल मैकेनिज्म (डब्ल्यूआईएम)vii - यूएन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के अंतर्गत - समीक्षा की जाएगी। इसका कारण यह था कि संवेदनशील देश डब्ल्यूआईएम के तहत एक नए वित्तीय तंत्र की स्थापना के लिए बल दे रहे हैं ताकि “जलवायु संकट का सामना कर रहे देशों को हानि और क्षति के प्रति नया और अतिरिक्त वित्त पोषण प्रदान किया जाए”।viii कोई ठोस निर्णय नहीं हो पाने के कारण, वित्त पोषण का मुद्दा अनसुलझा रहा, हालांकि, देशों ने “हानि और क्षति में सहायता प्रदान करने हेतु विचार के लिए एक विशेषज्ञ पैनल के गठन और तकनीकी सहायता सुगम बनाने के लिए एक सैंटियागो नेटवर्क3 के गठन......(देशों) पर सहमति व्यक्त की, विकसित देशों के पक्षों से ऐसे विकासशील देशों के लिए वित्त पोषण, प्रौद्योगिकी और क्षमता निर्माण में कार्य प्रयास और समर्थन बढ़ाने, जैसा उचित हो, के लिए प्रोत्साहित किया, जो विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं”।ix
यूरोपीय ग्रीन डील के मुख्य तत्व
इन सभी असहमतियों के बीच, यूरोपीय संघ ने 11 दिसंबर 2019 को अपनी ग्रीन डील जारी कर दी। इस समझौते का उद्देश्य एक व्यापक रणनीति के लिए एक खाका प्रदान करना है जो यूरोपीय संघ को “2050 में और जहाँ आर्थिक विकास को संसाधन उपयोग से अलग कर दिया गया है, वहां ग्रीन हाउस गैसों के शून्य उत्सर्जन” के पथ पर रखेगा”।x यूरोपीय ग्रीन डील नौ-चरणीय योजना पर आधारित है - पहला, यूरोपीय संघ की जलवायु महत्वाकांक्षाओं 2030-2050 को आगे बढ़ाना, जिसके तहत आयोग ने मार्च 2020 तक प्रथम जलवायु कानून का प्रस्ताव रखने की प्रतिबद्धता ली है। वे अपने 40% के पिछले लक्ष्य की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन में 50-55% घटाव के लक्ष्य को अद्यतन करने की भी योजना बना रहे हैं।xi
दूसरा, एक आवर्ती अर्थव्यवस्था योजना “पुनर्चक्रण से पहले सामग्री के पुनरुपयोग और अपघटन”xii को प्राथमिकता देता है, जो सामग्रियों और उत्पादों की बर्बादी को कम करने और इनके उपयोग को इष्टतम बनाएगा। यह योजना रसायनों, स्टील आदि जैसे ऊर्जा तीव्र उद्योगों को कार्बन मुक्त करने और आधुनिक बनाने पर ध्यान देता है। तीसरा, ऊर्जा दक्षता और किफ़ायत के दोहरे चुनौती को संबोधित करने के लिए, निजी एवं सार्वजनिक भवनों के सतत निर्माण एवं नवीनीकरण को अधिमान्यता प्रदान की जाएगी। यह सुनिश्चित करने पर ध्यान दिया गया है कि नए और नवीनीकृत भवनों की डिज़ाइन आवर्ती अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप हों, और इसके परिणामस्वरूप भवन स्टॉक का डिजिटलीकरण और जलवायु-अभेद्यता भी बढ़ता हो। चौथा, परिवहन क्षेत्र है, जो ग्रीन डील के मुताबिक ईयू के उत्सर्जन में एक-चौथाई का कारण बनता है। इसलिए कार्बन तटस्थता प्राप्त करने के लिए, 2050 तक इस क्षेत्र में कम से कम 90% घटाव करने की आवश्यकता है। “2050 तक उत्पादन बढ़ाना और सतत वैकल्पिक ईंधन मुहैया करवाना......13 मिलियन के लिए लगभग 1 मिलियन पब्लिक रिचार्जिंग और रिफ्यूलिंग स्टेशन और निम्न-उत्सर्जन वाहन जो यूरोप की सड़कों पर दौड़ेंगी” पर बल दिया गया है।xiii पांचवां, फार्म टू फॉर्क पहल है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण अनुकूल खाद्य संरचना को बढ़ावा देना है। इसका ध्यान कृषि और मत्स्यपालन प्रथाओं पर है ताकि जैव-विविधता की संरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों को सुदृढ़ बनाया जा सके। “आयोग 2021-2027 के लिए सामान्य कृषि नीति का प्रस्ताव निर्दिष्ट करता है कि सामान्य कृषि नीति के समग्र बजट का कम से कम 40% और समुद्री मत्स्यपालन कोष का कम से कम 30% जलवायु कार्य में लगेगा”।xiv
छठा, वित्त पोषण है। आयोग ने अनुमान लगाया है कि 2030 के लिए तय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए €260 बिलियन का अतिरिक्त वार्षिक निवेश आवश्यक होगा। यह तीन स्तरों में किया जाएगा – पहला, यूरोपीय आयोग (ईसी) अपना सतत यूरोप निवेश योजना प्रस्तुत करेगा जो “सतत निवेश में सहायता के लिए वित्त पोषण और एक उन्नत सक्षमकारी रूपरेखा का प्रस्ताव भी शामिल करेगा जो ग्रीन निवेश के लिए अत्यंत सहायक है”। इन्वेस्टईयू फंड जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कम से कम 30% का योगदान करेगा। दूसरा, यूरोपीय निवेश बैंक ने जलवायु परिवर्तन पहल में अपना निवेश “25% से 2025 के लिए 50% तक बढ़ाकर” दोगुना कर दिया है। तीसरा, जस्ट ट्रांजीशन मैकेनिज्म जो “किसी को भी पीछे न छोड़ने” के लिए सर्व-समावेशी नीति पर ध्यान देगा। इसमें उन क्षेत्रों और अंचलों पर मुख्य रूप से ध्यान दिया गया है जो पारगमन से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं क्योंकि वे जीवाश्म-ईंधन और या कार्बन-गहन प्रक्रियाओं पर निर्भर करते हैं। यह आवश्यक निजी एवं सार्वजनिक संसाधनों का लाभ उठाने के लिए ईयू बजट और ईआईबी ग्रुप के वित्त पोषण के स्रोतों का दोहन करेगा। सातवाँ, अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान देना है ताकि नई प्रौद्योगिकियां और स्थायी समाधानों का विकास किया जा सके और उन्हें बढ़ावा दिया जा सके। होराइजन यूरोप का 30% बजट जलवायु परिवर्तन के उपशमन के लिए इन नए समाधानों के लिए वित्त पोषण करेगा।xv
आठवां, ईयू को जलवायु परिवर्तन में एक विश्व अग्रणी के रूप में दिखाना है। ईयू “ग्रीन डील राजनय विकसित करेगा जिसका लक्ष्य अन्य देशों को मनाना और सहायता प्रदान करना होगा कि वे अधिक सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए अपने हिस्से का योगदान दें। एक विश्वसनीय मिसाल कायम करके, और राजनय, व्यापार नीति, विकास सहायता और अन्य विदेशी नीतियों का अनुवर्तन करके, ईयू एक प्रभावकारी अधिवक्ता बन सकता है”।xvi नौवां, एक यूरोपीय जलवायु संधि है जो मार्च 2020 तक आरम्भ किया जाना है। यह संधि तीन तरह के जुड़ावों पर केन्द्रित है – पहला, जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों पर जानकारी साझाकरण और सार्वजनिक समझ को प्रोत्साहित करना। दूसरा, लोगों और हितधारकों को एक मंच प्रदान करना है ताकि वे इस बात पर अपना विचार व्यक्त कर सकें कि आगे कैसे बढ़ना चाहिए। तीसरा, उत्तम प्रथाओं का विनिमय करना और सुनिश्चित करना कि ग्रीन पारगमन की विशेषताओं पर चर्चा और बहस की जाएं।
क्या यूरोपीय ग्रीन डील पथ प्रदर्शक बन सकता है?
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दिसंबर 2019 में दुनिया के सामने खड़ी शीर्ष 23 मुद्दों पर एक सर्वेक्षण किया। 41% उत्तरदाताओं ने कहा कि आज दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा मुद्दा है, इसके बाद प्रदूषण (36%) और आतंकवाद (31%) है।xvii जलवायु प्रभाव के उपशमन की नीतियों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता के बावजूद, सीओपी25 अपने प्रमुख प्रदेयों में विफल रहा। कार्बन बाजार के नियमों या लगाए जाने वाले वित्तीय संसाधनों के संदर्भ में कोई प्रतिबद्धता नहीं ली गई।
नवंबर 2019 में यूरोपीय संसद द्वारा जलवायु और पर्यावरणीय आपातकाल4 की घोषणा किए जाने के बाद, ईसी ने 2030 तक अपने शुद्ध उत्सर्जन को 50% तक घटाने और 2050 तक 100% घटाने की प्रतिबद्धता के साथ अपनी यूरोपीय ग्रीन डील पेश की। यह समझौता किसी भी सरकार द्वारा अब तक जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए प्रस्तुत सबसे महत्वाकांक्षी योजना प्रतीत होता है। यह समझौता अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र - परिवहन, कृषि, उद्योग और नवाचार - का निरीक्षण करने का आह्वान करता है और प्रस्तावित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए वित्तीय तंत्र आवंटित करके उन्हें सतत बनाने का भी आशय रखता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह नया समझौता महत्वाकांक्षी है और अगले तीन दशकों में दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को कार्बन मुक्त करने का लक्ष्य रखता है। यूरोपीय संघ ने पहले ही साबित कर दिया है कि उत्सर्जन घटाव और जीडीपी में सुधार एक-साथ किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, “1990 से 2018 तक, यूरोपीय संघ में उत्सर्जन 23 प्रतिशत तक कम हुआ है और इसकी जीडीपी में 61 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो इस तथ्य को उजागर करता है कि पर्यावरण को संकट डाले बिना भी आर्थिक विकास करना संभव है”।xviii
समझौते के लक्ष्य चाहे कितने भी महत्वाकांक्षी हों, पर फिर भी यूरोपीय संघ के अंतर्गत ऐसी कई चुनौतियां हैं जिनका निपटान करना बाकी है। यूरोप ने अपने लिए, नवंबर 2020 में ग्लासगो में आयोजित होने वाले सीओपी26 से पहले नवीनीकृत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) पेश करने के लिए बहुत ही कम समय रखा है। पेरिस समझौते के अन्य सभी हस्ताक्षरकर्ताओं की तरह, सदस्य राज्यों पर न केवल अपनी पिछली प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की बल्कि अपना अगला लक्ष्य तय करने का दबाव है। यह देखना बाकी है कि यूरोपीय संघ, व्यक्तिगत सदस्य राज्यों द्वारा अपना लक्ष्य प्रस्तुत करने और ईयू द्वारा एक आम रुख को स्वीकृति देने के दोहरे लक्ष्य को पूरा करने के लिए किस तरह एक समेकित नीति लेकर आता है। इसके अलावा, पोलैंड ने यह तर्क देते हुए कार्बन तटस्थता को बढ़ावा देने से इनकार किया है कि यह किफायती नहीं है और यह विचार और कुछ नहीं मात्र एक “कल्पना” है और इसी के साथ “(पोलैंड को) जलवायु तटस्थता नीति से वर्जित किया जाता है। हम अपने दम पर इसे प्राप्त कर सकते हैं”।xix
कार्बन तटस्थ बनने की दिशा में आयोग की अतिव्यापी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए क्षेत्र और उसके बाहर के क्षेत्रों से व्यापक सहयोग और जुड़ाव की आवश्यकता होगी। इस बात को ध्यान में रखने की जरूरत है कि वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में चीन से 30% उत्सर्जन, अमेरिका से 14% और भारत से 7% उत्सर्जन की तुलना में यूरोप लगभग 9.1% का भागी है।xx भले ही यूरोपीय संघ समझौते के कार्यान्वयन में सक्षम है, पर फिर भी जब तक अन्य देशों और क्षेत्रों द्वारा ठोस कदम नहीं उठाए जाते तब तक यह अधिक कारगर नहीं बनेगा। इसलिए ईयू के लिए आवश्यक है कि वह बड़ी तस्वीर देखे और विश्व स्तर पर साझेदारी स्थापित करने के लिए महाद्वीप से निकल कर आगे बढ़े। पेरिस समझौते से अमेरिका के बाहर हो जाने से ऐसी अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक वैश्विक जलवायु नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त हुआ है जिन्होंने मजबूत और प्रतिबद्ध जलवायु कार्रवाई के क्षेत्र में अपना नाम दर्ज करवाया है।
यूरोपीय संघ और भारत ने कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सकारात्मक कार्रवाई करके अपनी प्रतिबद्धता और नेतृत्व क्षमता प्रदर्शित की है। भारत ने अपने जीडीपी5 में 21% तक उत्सर्जन घटाया है और पेरिस समझौते के तहत जैसा वादा किया था, 2030 तक उत्सर्जन में 35% घटाव लाने के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर है। भारत ने पहले ही 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन क्षमता में से 83 गीगावॉट प्राप्त कर लिया है, जिसे संशोधित कर 450 गीगावॉट कर दिया गया है।xxi विश्व स्तर पर भारत पवन ऊर्जा में 4 वें, सौर ऊर्जा में 5 वें और समग्र नवीकरणीय ऊर्जा स्थापना क्षमता में 5 वें स्थान पर है।xxii यह यूरोपीय संघ को भारत के साथ सहयोग करने और ऊर्जा दक्षता से संबंधित मुद्दों पर अपनी विशेषज्ञता साझा करने का अवसर प्रदान करता है जहां इनका ये सहयोग स्मार्ट ग्रिड, अपतटीय पवन परियोजनाओं, सौर पार्कों, ऊर्जा अनुसंधान और नवाचार पर केंद्रित है। जैसा कि ग्रीन डील में कहा गया है – “यूरोपीय संघ अपने राजनय और वित्तीय साधनों का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए करेगा कि ग्रीन गठबंधन उसके संबंधों का हिस्सा बने रहें”, जो एक ऐसा क्षेत्र है जहां दोनों साझेदार न्यून कार्बन उत्सर्जन योजनाओं पर अपनी साझेदारी को बढ़ा सकते हैं, जिसके द्वारा यूरोपीय संघ ग्रीन इंडिया मिशन, स्वच्छ गंगा अभियान जैसे भारत के पहलों का समर्थन कर सकता है जिनका उद्देश्य भारत में कार्बन पदचिह्न को घटाना है।xxiii इसके अलावा, चूंकि भारत सौर और पवन ऊर्जा के लिए अपने ग्रिड-एकीकरण मुद्दों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है, यूरोपीय संघ इस प्रणाली के विकास पर अपनी विशेषज्ञता साझा कर सकता है और तकनीकी सहयोग प्रदान कर सकता है जो बड़ी मात्रा में अक्षय ऊर्जा को मज़बूती से एकीकृत कर सकता है।
वर्ष 2020, जलवायु की महत्वाकांक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, जबकि अनेक देशों ने अपनी दूसरी पारी की एनडीसी जमा की है और अपना ठोस उत्सर्जन उपशमन लक्ष्य प्रस्तुत किया है इस योजना के साथ कि इन्हें कैसे प्राप्त किया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए सभी स्तरों के सभी हितधारकों को शामिल करते हुए एक वैश्विक सामूहिक कार्रवाई करने की आवश्यकता है। पेरिस जलवायु समझौते को पांच साल हो गए हैं, जिसमें लगभग 200 देशों ने ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए काम करने पर सहमति व्यक्त की थी, हालांकि आज केवल कुछ ही राष्ट्र अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह पर हैं। विकसित देशों में जलवायु को लेकर संशयवाद बना हुआ है जो बड़े पैमाने पर अपने राष्ट्रीय आर्थिक हित से प्रेरित है और इसकी वजह से मुद्दे को संबोधित करने में हर बहुपक्षीय राजनय का प्रयास धीमा पड़ रहा है। साथ ही पेरिस समझौते से अमेरिका के पीछे हटने के कारण न केवल समझौता कमजोर पड़ गया है, बल्कि इसनें अपनी प्रतिबद्धताओं से पीछे हटने में अन्य देशों के लिए भी एक मिसाल कायम कर दी है।
इस परिदृश्य में, यूरोपीय ग्रीन डील 2050 तक यूरोपीय संघ को कार्बन तटस्थ बनाने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना प्रस्तुत करता है। नीति का कार्यान्वयन यूरोपीय संघ के लिए परिक्षा का एक वास्तविक आधार बनने जा रहा है, जहां यह सदस्य राज्यों के हितों में पथांतरण का सामना करेगा, जिनमें से कुछ अभी भी अपने ऊर्जा क्षेत्र के लिए कोयले पर निर्भर हैं। औद्योगिक लॉबी के साथ-साथ बैंकिंग क्षेत्रxxiv ने भी ग्रीन डील के कार्यान्वयन के साथ अपनी प्रतिस्पर्धा और रोजगार बाजारों को लेकर चिंताएं जताई हैं।xxv यह भी याद रखने की जरूरत है कि यह समझौता केवल सदस्य राज्यों तक ही सीमित है, भले ही संघ खुद को कार्बन तटस्थ क्षेत्र में बदलने में सक्षम हो जाए, तब भी यूरोपीय संघ को वास्तविक परिवर्तन लाने के लिए प्रभावी जलवायु कार्रवाई करने हेतु अपने भागीदारों को मनाने की जरूरत होगी। यूरोपीय ग्रीन डील ऐसी कई कार्रवाइयों की एक श्रृंखला को रेखांकित करता है जो की जा सकती हैं और लक्ष्यों को प्राप्त करने में यह कितना सफल रहता है ये देखना अभी बाकी है। बहरहाल, यह ऐसा कोई मिसाल कायम नहीं करता है कि जलवायु आपातकाल का मुकाबला करने के लिए कैसे नेतृत्व किया जाना चाहिए।
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* डॉ. अंकिता दत्ता, शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
टिप्पणियां:
[i]Summary for Policy-makers, Special Report: Special Report On Climate Change And Land, Intergovernmental Panel for Climate Change, https://www.ipcc.ch/srccl/chapter/summary-for-policymakers/, Accessed on 5 January 2020
[ii] Summary for Policy Makers, The Ocean and Cryosphere in a Changing Climate and Climate Change and Land, IPCC, September 2019, https://report.ipcc.ch/srocc/pdf/SROCC_FinalDraft_FullReport.pdf, Accessed on 5 January 2020
[iii]4 Things to Know About the IPCC Special Report on the Ocean and Cryosphere, World Resources Institution, 25 September 2019, https://www.wri.org/blog/2019/09/4-things-know-about-ipcc-special-report-ocean-and-cryosphere, Accessed on 5 January 2020
[iv] The cooperation mechanisms enshrined in Article 6 of the Paris Agreement form the legal framework to allow use of market-based climate change mitigation mechanisms. It enables the countries to cooperate in implementing their nationally determined contributions towards emission reduction. Under this, these reductions can be transferred between countries and can be counted towards NDCs. (For more details: https://unfccc.int/files/meetings/paris_nov_2015/application/pdf/paris_agreement_english_.pdf)
[v]Developing countries call for work programme on closing pre-2020 implementation gaps, Third World Network, 6 December 2019, https://twnetwork.org/climate-change/developing-countries-call-work-programme-closing-pre-2020-implementation-gaps, Accessed on 6 January 2020
[vi]Cop25: What was achieved and where to next?, Climate News, 16 December 2019, https://www.climatechangenews.com/2019/12/16/cop25-achieved-next/, Accessed on 6 January 2020
[vii]Carbon trading – Under the system, the polluter having more emissions is able to purchase the right to emit more and the country with lower emissions sells the right to emit carbon. Under the assigned amount unit of Kyoto Protocol’s Clean Development Mechanism – India has around 100 million ton of credit which it wanted to carry forward to the updated system. Similarly, Australia has 400 million credits.
[viii]Leading countries set benchmark for carbon markets with San Jose Principles, 14 December 2019, https://cambioclimatico.go.cr/wp-content/uploads/2019/12/Leading-countries-set-benchmark-for-carbon-markets-with-San-Jose-Principles-1.pdf, Accessed on 7 January 2020
[ix]Warsaw International Mechanism for Loss and Damage associated with Climate Change Impacts (WIM), United Nations Climate Change,https://unfccc.int/topics/adaptation-and-resilience/workstreams/loss-and-damage-ld/warsaw-international-mechanism-for-loss-and-damage-associated-with-climate-change-impacts-wim, Accessed on 7 January 2020
[x]Climate News, n.v
[xi] Santiago Network – It was established as a part of the WIM for averting, minimizing and addressing loss and damage associated with the adverse effects of climate change. It is mandated to catalyse the technical assistance of relevant organizations, bodies, networks and experts, for the implementation of relevant approaches at the local, national and regional level, in developing countries that are particularly vulnerable to the adverse effects of climate change. (UNFCC, Warsaw International Mechanism for Loss and Damage associated with Climate Change Impacts, https://unfccc.int/sites/default/files/resource/DT.COP25.i7_CMA2.i6.pdf)
[xii]Warsaw International Mechanism for Loss and Damage associated with Climate Change Impacts and the 2019 review of the Mechanism, UNFCC, 13 December 2019, https://unfccc.int/sites/default/files/resource/DT.COP25.i7_CMA2.i6.pdf, Accessed on 8 January 2020
[xiii]The European Green Deal, European Commission, 11 December 2019, https://ec.europa.eu/info/sites/info/files/european-green-deal-communication_en.pdf, Accessed on 8 January 2020
[xiv]ibid.
[xv]ibid.
[xvi]ibid
[xvii]ibid
[xviii]ibid
[xix]ibid
[xx]Climate Change Ranks Highest as Vital Issue of our Time, Amnesty International, December 2019, https://www.amnesty.org/en/latest/news/2019/12/climate-change-ranks-highest-as-vital-issue-of-our-time/, Accessed on 9 January 2020
[xxi] The Declaration of Climate Emergency by the European Parliament was the symbolic act to put the pressure on the member states and the European Commission to take stronger actions and positions on climate change. Declaring that it was no longer about the politics over the issue rather it a common responsibility, the Parliament voted in favor of the declaration with 429 lawmakers, 225 against and 19 abstaining.
[xxii] Foreign Policy, 17 December 2019, https://foreignpolicy.com/2019/12/17/united-states-democrats-green-new-deal-eu-europe-technically-feasible-environment-progress/, Accessed on 3 February 2020
[xxiii]Euractiv, 13 December 2019, https://www.euractiv.com/section/climate-environment/news/poland-snubs-climate-neutrality-deal-but-eu-leaders-claim-victory/, Accessed on 9 January 2020
[xxiv]Jeffrey Sachs, Europe’s Green Deal, Project Syndicate, 13 December 2019, https://www.project-syndicate.org/commentary/europe-green-deal-is-global-beacon-by-jeffrey-d-sachs-2019-12, Accessed on 9 January 2020
[xxv] Reducing Emission Intensity - Emissions intensity is the level of GHG emissions per unit of economic activity, usually measured at the national level as GDP. This is usually done by tapping into non-fossil fuel energy sources and creating additional carbon sinks to fulfil commitment towards fight against climate change.
[xxvi] The Economic Times, 10 December 2019, https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/india-walking-the-talk-on-climate-change-commitments-prakash-javadekar/articleshow/72460454.cms?from=mdr, Accessed on 3 February 2020
[xxvii] PIB Releases, 4 July 2019, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1577038, Accessed on 3 February 2020
[xxviii] EU-India: A Renewed Strategic Partnership or Business as Usual?, CEPS, 8 November 2019, https://www.ceps.eu/eu-india-a-renewed-strategic-partnership-or-business-as-usual/, Accessed on 3 February 2020
[xxix] Euractiv, https://www.euractiv.com/section/energy-environment/interview/eu-banking-regulator-no-green-economy-if-we-encourage-banks-to-be-insolvent/, Accessed on 10 February 2020
[xxx] Euractiv, https://www.euractiv.com/section/climate-environment/news/revolt-brewing-against-eus-unrealistic-climate-goals/, Accessed on 10 February 2020