29 फरवरी 2020 को, संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे लगभग दो दशकों के युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किया। इसे अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति की दिशा में पहला कदम कहा जा रहा है और इसे तालिबान के प्रतिनिधियों और अमेरिकी अधिकारियों के बीच अठारह महीनों तक चली विस्तृत बातचीत के परिणाम के रूप में देखा जा सकता है। क़तर की राजधानी दोहा में अमेरिकी राजदूत ज़ल्मय खलीलज़ाद और तालिबान के डेपुटी लीडर मुल्लाह अब्दुल गनी बेरादर द्वारा पाकिस्तान, तुर्की, इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, ताज़िकिस्तान और भारत समेत कई देशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में “अफ़ग़ानिस्तान में शांति लाने के लिए समझौता” (मोवाफेकतनामा-ए-अवार्दन-ए सालेह बी अफ़ग़ानिस्तान)1 पर हस्ताक्षर किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि ट्रम्प प्रशासन और उसके समझौता साथी के बीच अजीब गतिशीलता का संकेत देते हुए तालिबान को “अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी अमीरात कहा गया, जिसे अमेरिका ने एक राज्य के रूप में मान्यता नहीं दी है और जिसे तालिबान के नाम से जाना जाता है”।
अफ़ग़ानिस्तान में “पूरे सप्ताह हिंसा में आई कमी”2 ने एक प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर करने का मार्ग प्रशस्त किया, जिसमें तालिबान से यह गारंटी ली गई थी कि यह ऐसे हमलों के लिए अफ़ग़ान क्षेत्र का उपयोग एक लांच पैड के रूप में होने से रोकेगा जिससे “अमेरिका और उसके सहयोगियों की सुरक्षा” को खतरा है और उसके बदले में “अफ़ग़ानिस्तान से सभी विदेशी बलों को वापस लाने की समयसीमा” की घोषणा की गई थी। इसके बाद अंतः-अफ़ग़ानिस्तान वार्ता का एक महत्वपूर्ण चरण होने की अपेक्षा है जो आदर्श रूप से एक राजनीतिक समझौते का रूप लेगा जिसके परिणामस्वरूप अफ़ग़ानिस्तान में दशकों से चल रहा युद्ध और संघर्ष अंततः समाप्त हो जाएगा।
जब दोहा में समझौते पर हस्ताक्षर किया जा रहा था, तब अमेरिका ने अफ़ग़ान सरकार के प्रति अपना समर्थन जताते हुए राष्ट्रपति अशरफ़ गनी के नेतृत्व में चल रही अफ़ग़ान सरकार के साथ एक संयुक्त घोषणा पर हस्ताक्षर करने के लिए अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पेर और नाटो के महासचिव स्टिल्टेनबर्ग को काबुल भेजकर एक संतुलक कार्य किया। यह कवायद अफ़ग़ानियों को आगामी वार्ताओं के लिए प्रतिबद्ध कराने और यह महत्वपूर्ण संदेश देने के लिए था कि “अफ़ग़ानिस्तान में स्थायी शांति प्राप्त करने के लिए सभी पक्षों को धैर्य रखने और आपस में समझौता करने की आवश्यकता होगी।”3
शांति समझौते के प्रमुख घटक
शांति समझौते की सामग्री के अनुसार,4 अमेरिका ने समझौते की घोषणा के बाद 14 महीनों के भीतर अपने और अपने सहयोगियों के सभी सैन्य बलों और सहायक सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने का वादा किया। सैन्य पदचिह्न को घटाने की शुरुआत पहले 135 दिनों में अमेरिकी टुकड़ी को 8,600 के स्तर तक घटाने और पांच ठिकानों से अपने बलों को वापस बुलाने से होगी। शेष बल अगले साढ़े नौ महीने में लौट जाएंगे। समझौते में आगे कहा गया है, सद्भाव दिखाते हुए, अफ़ग़ान सरकार और तालिबान के बीच पहली वार्ता से पहले अफ़ग़ान सरकार तालिबान की कैद में मौजूद 1000 अफ़ग़ानी सुरक्षा बलों के बदले में 5000 तालिबानी कैदियों को रिहा करेगी। अंतः-अफ़ग़ानिस्तान वार्ता की शुरुआत के बाद, अमेरिका “तालिबान के सदस्यों को प्रतिबन्ध की सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने का इरादा रखता है और 29 मई, 2020 तक इस उद्देश्य को प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है।” आख़िरकार, जब अफ़ग़ानिस्तान सरकार तालिबान के साथ बातचीत करना शुरू करेगी, तब अफ़ग़ानिस्तान में दीर्घ युद्धविराम प्राप्त करना और साथ ही एक ऐसा राजनीतिक समझौता तैयार करना सर्व प्रथम उद्देश्य होगा जो अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य में तालिबान द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका को रेखांकित करेगा।
समझौते के बारे में दो विचित्र पहलू हैं - पाकिस्तान में तालिबान के अभयारण्य और देश में स्थायी और व्यापक युद्धविराम के किसी भी प्रावधान की अनुपस्थिति के मुद्दे को लेकर चुप्पी होना। युद्धविराम को केवल भविष्य की वार्ता के लिए एक एजेंडा आइटम के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जिसे अस्पष्ट रूप से “अफ़ग़ान पक्षों के साथ अंतः-अफ़ग़ान वार्ता” के रूप में संदर्भित किया गया है। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि समझौते में सैन्य वापसी का प्रावधान, लोकतांत्रिक प्रक्रिया की रक्षा के लिए तालिबान की ओर से किसी भी प्रतिबद्धता या उस मामले में अंतः-अफ़ग़ान वार्ता में किसी प्रगति की शर्त के साथ नहीं हैl यह यकीनन तालिबान को अफ़ग़ान सरकार के साथ अपनी वार्ता के दौरान हिंसा को सौदेबाजी की एक चाल के रूप में उपयोग करने के लिए प्रेरित करता है। जैसा कि अपेक्षित था, समझौते पर हस्ताक्षर होने के केवल कुछ ही दिनों बाद अफ़ग़ानिस्तान के कुछ हिस्सों में हमलों की नई लहर की खबरें आनी शुरू हो गईं, जिसने अंतः-अफ़ग़ान वार्ता की शुरुआत पर इसके प्रतिकूल प्रभाव का तनाव बढ़ा दिया।
शांति का रास्ता
शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के एक दिन बाद, पहली बाधा एक सवाल के रूप में सामने आई कि क्या राष्ट्रपति गनी की सरकार को तालिबानी कैदियों को रिहा करना चाहिए जैसा कि शांति समझौते में उल्लेख किया गया है। अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी समझौते के अनुसार,5 “10 मार्च, 2020 तक अफ़ग़ान सरकार की कैद में मौजूद 5000 तालिबानी युद्ध और राजनीतिक कैदियों को रिहा किया जाएगा”, जो कि अंतः-अफ़ग़ान वार्ता की शुरुआत की अस्थायी तारीख है। दस्तावेज़ में आगे कहा गया है कि “अमेरिका अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है”। काबुल में, राष्ट्रपति गनी ने जोर देकर कहा कि “तालिबानी कैदियों को रिहा करने के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं है”6 - एक ऐसा रुख जो अफ़ग़ान सरकार ने अमेरिका के साथ बारम्बार साझा किया है। उन्होंने आगे कहा कि “केवल अफ़ग़ान सरकार को तालिबानी कैदियों को रिहा करने का अधिकार है, न कि अमेरिका को।”7 हालांकि, बाद में उन्होंने अपनी बात बदली और संकेत दिया कि वे शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए कैदियों को रिहा करने के विचार के खिलाफ नहीं थे। हाल की रिपोर्टों से पता चलता है कि 1,500 तालिबानी कैदियों को रिहा करने के लिए एक व्यवस्था पर हस्ताक्षर किया गया है “इस लिखित गारंटी पर कि वे युद्धभूमि में वापस नहीं लौटेंगे”।8 कहने की जरूरत नहीं है कि कैदियों की रिहाई के मुद्दे ने शुरू की गई प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में एक बड़ी चुनौती खड़ी की है, हाल के घटनाक्रमों से पता चलता है कि गतिरोध से बाहर निकलने का एक रास्ता मिल गया है।
दूसरा मुद्दा चुनाव संकट से संबंधित है जो वर्तमान काबुल की सरकार को सामना करना पड़ रहा है। राष्ट्रपतीय चुनाव जो काफी विलम्ब से 28 सितम्बर, 2019 में हुई, उसमें राष्ट्रपति गनी को विजेता घोषित किया गया। राष्ट्रपति अभियान में गनी के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी और एकता सरकार के मुख्य कार्यकारी डॉ. अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने परिणामों को मानने से इनकार कर दिया और घोषणा की कि वे अलग से एक “समावेशी सरकार” स्थापित करेंगे और चुनाव में अपनी “जीत” की घोषणा की।9 9 मार्च 2020 को, दोनों नेताओं ने अपना-अपना समारोह आयोजित किया और समानांतर सरकारों का गठन किया, अब्दुल्ला ने गनी के अभिषेक को मानने से इनकार कर दिया, क्योंकि अमेरिका द्वारा संकट को हल करने के प्रयास विफल हो गए थे।10 यह राजनीतिक कलह काबुल में निर्वाचित सरकार की वैधता पर अतिरिक्त सवाल खड़े करेगा, जो कि तालिबान के साथ वार्ता के दौरान निश्चित रूप से एक अवरोध साबित होगा।
अफ़ग़ानिस्तान के लिए आगे आने वाली चुनौतियों को शायद ही कोई बढ़ा सकता है। आज यह दो राजनीतिक विचारों और दृष्टि – ‘अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी गणराज्य’ लोकतंत्र जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समर्थन के साथ 2001 के बाद उभरा था और तालिबान का ‘अफ़ग़ानिस्तान इस्लामी अमीरात’ की प्रतिस्पर्धा का सामना करता है। अफ़ग़ानिस्तान के भावी भविष्य के बारे में इन दो भिन्न और विरोधाभासी धारणाओं को लेकर होने वाली वार्ता बेहद चुनौतीपूर्ण होने की संभावना है। तालिबान शासन का अनुभव करने के बाद, अफ़ग़ानिस्तान के आम लोगों, विशेष रूप से महिलाओं के पास तालिबान के इरादों को लेकर संदेह करने का कारण है। एशिया फाउंडेशन द्वारा 2019 में किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 85.1 प्रतिशत अफ़ग़ानियों के मन में तालिबान के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी।11
पिछले कुछ वर्षों में, विभिन्न दलों ने माना है कि अफ़ग़ानिस्तान के लिए एक सैन्य समाधान करना एक व्यवहार्य विकल्प नहीं है और इस एहसास ने तालिबान के साथ एक समझौता करने के लिए अधिक गंभीर प्रयासों का मार्ग प्रशस्त किया है। इन वार्ताओं की परिणति 18 साल के लंबे अफ़ग़ान युद्ध में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जिसने अमेरिका द्वारा युद्ध और पुनर्निर्माण पर 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का व्यय और दस हजार अफ़ग़ान सैनिकों, नागरिकों केऔर विद्रोहियों सहित लगभग 2,400 अमेरिकी सैनिकों की मौत होते देखा है।12 राष्ट्रपति ट्रम्प के लिए, यह उनके चुनावी वर्ष में एक महत्वपूर्ण विकास है। अफ़ग़ानिस्तान और इराक में अमेरिका के “अंतहीन युद्धों” को लेकर अमेरिका में नाराजगी बढ़ गई है। इसके अलावा, अपने पिछले अभियान में उन्होंने चल रहे युद्धों को समाप्त करने और अमेरिकी सैनिकों को वापस लाने की कसम खाई थी। इस समझौते के बाद, वे अमेरिका में मौजूद अपने समर्थकों को अपना वादा पूरा करने के बारे में समझाने की स्थिति में होंगे। शांति समझौते पर हस्ताक्षर के बाद व्हाइट हाउस में भाषण देते हुए राष्ट्रपति ट्रम्प ने बताया कि तालिबान लंबे समय से अमेरिका के साथ एक समझौते पर पहुंचने की कोशिश कर रहा था और उन्होंने यह कहकर अपनी आशावाद को रेखांकित किया कि “मैं वास्तव में ये मानता हूँ कि तालिबान ये दिखाने के लिए कुछ करना चाहता है कि हम सब अपना समय बर्बाद नहीं कर रहे हैं”।13 तालिबान के डेपुटी लीडर मुल्लाह बेरादर के साथ टेलीफोन पर बात करने के बाद, फॉक्स न्यूज को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने तालिबानियों को ‘योद्धा’ बताया और तालिबान के नेताओं से सामने देश में होने वाले हिंसक हमलों को समाप्त करने के लिए समूह के सेनानियों को मनाने का जो कठिन कार्य है उसके बारे में बात की।14
भारत अफ़ग़ानिस्तान में होने वाले घटनाक्रम को बहुत ध्यान से देखता रहा है। तालिबान के संबंध में इसकी चिंताओं और संदेह के बारे में सब जानते हैं, फिर भी इसने अफ़ग़ानिस्तान में शांति, सुरक्षा और स्थिरता लाने का वादा करने वाले सभी तंत्रों का समर्थन करने की अपनी सुसंगत नीति को बनाए रखा है। भारत ने क़तर सरकार के उस समारोह का हिस्सा बनने का निमंत्रण स्वीकार किया जिसमें अमेरिका-तालिबान द्वारा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था। समझौते पर हस्ताक्षर के मौके पर दोहा में भारतीय राजदूत पी. कुमारन की उपस्थिति एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि भारत अपनी आधिकारिक क्षमता में तालिबान के साथ जुड़ने की इच्छा नहीं रखता था। शांति वार्ता से अपेक्षाओं पर टिप्पणी करते हुए, विदेश मंत्री, एस जयशंकर ने कहा कि यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि होने वाली वार्ता ससंजक होगी या नहीं, यह देखना बाकी है कि “क्या तालिबान एक लोकतांत्रिक माहौल चाहता है या लोकतांत्रिक माहौल तालिबान के मुताबिक बदलता है”। उन्होंने कहा कि “वास्तविक वार्ता अब अंतः-अफ़ग़ान संवाद के साथ शुरू होगी।”15 राष्ट्रपति ट्रम्प के भारत दौरे ने अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य से संबंधित एक दूसरे की चिंताओं और अपेक्षाओं पर चर्चा करने का अवसर प्रदान किया। कुल मिलाकर, अफ़ग़ानिस्तान में तेजी से बदलती जमीनी हक़ीकत के जवाब में भारत को बेहद सतर्क रहना होगा। भारत अफ़ग़ानिस्तान में शांति बहाल करने का मौका देने वाले किसी भी प्रयास का समर्थन करने के लिए तैयार रहेगा, पर फिर भी भारत के नीति निर्माताओं को राजदूत राकेश सूद की “वॉचफुल वेटिंग” - एक शब्द जो उन्होंने आधुनिक चिकित्सा से लिया है, वाली सलाह को अपनाने पर विचार करना चाहिए, जो आमतौर पर तब इस्तेमाल किया जाता है “जब कोई मामला जटिल हो और हस्तक्षेप का निर्णय लेने से पहले डॉक्टर इंतज़ार करके देखते हैं कि परिस्थिति कैसा रुख ले रही है”।16
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* डॉ. अन्वेषा घोष , शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
टिप्पणियां:
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