इस समय जबकि दुनिया के अधिकांश देश नोवेल कोरोना वायरस से मुकाबला करने के लिए रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं जिससे अब तक वैश्विक रूप से 1,20,0001 से अधिक जानें जा चुकी हैं, युद्धग्रस्त अफगानिस्तान राजनीतिक गतिरोध, कमजोर शांति समझौते, कम होती सहायता और एक वैश्विक महामारी के खतरे जैसे अवरोधों का सामना एक साथ कर रहा है। तेजी से फैल रहे कोविड-19 महामारी को रोकने पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने के बजाय, काबुल इसके बाद के समझौतों और दबावों से निपटने में व्यस्त है। हालांकि इस विश्वव्यापी संकट के सटीक प्रभाव का पूर्वानुमान लगाना जल्दबाजी हो सकती है, फिर भी एक बात निश्चित है, राष्ट्रों की प्राथमिकता बदल जाएगी। यद्यपि रणनीतिक हित समान रहेंगे, परन्तु उनको संबोधित करने की राजनीतिक प्रतिबद्धता और संसाधनों का सहवर्ती आवंटन कम हो सकता है। यह परिदृश्य अफगानिस्तान को काफी हद तक प्रभावित करेगा; देश को निकट भविष्य में सहायता के साथ-साथ कर्मियों की तैनाती में कटौती झेलनी पड़ सकती है। इस जटिल परिदृश्य की पृष्ठभूमि में, यह विशेष रिपोर्ट उन घटनाओं की श्रृंखला के माध्यम से देखने का प्रयास करती है जिन्होंने वर्तमान में अफगानिस्तान को प्रभावित करने वाले कुछ कारकों को आकार दिया है।
राजनीतिक अराजकता
अफगानिस्तान में मौजूदा राजनीतिक गतिरोध की शुरुआत का पता पिछले साल के अंत में लगाया जा सकता है, जब 28 सितंबर, 2019 के चुनावों के प्रारंभिक परिणाम घोषित किए गए थे। आकलन से संकेत मिलता है कि राष्ट्रपति अशरफ गनी चुनाव में 50.64 प्रतिशत वोट हासिल करने के बाद दूसरे कार्यकाल के लिए तैयार थे, जबकि इस चुनाव में 2001 में तालिबान शासन को बाहर करने के बाद से मतदाताओं की भागीदारी सबसे कम, केवल 1.82 मिलियन थी। इस युद्धग्रस्त देश की 35 मिलियन आबादी में से लगभग 9.6 मिलियन नागरिकों ने अफगान राष्ट्रपति चुनाव में मतदान करने के लिए पंजीकरण कराया था।2 ग़नी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी, डॉ अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने 39.52 प्रतिशत वोट जीते- और इस परिणाम को उन्होंने चुनौती दी। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि 2014 के राष्ट्रपति चुनाव के दौरान, यही दोनों नेता लंबे समय से चल रहे विवाद में उलझे हुए थे, जिसके बाद अंततः राष्ट्रपति पद के दोनों प्रतिद्वंद्वियों के बीच सत्ता साझाकरण के एक समझौते पर सहमति बनी जिसके तहत 'नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट' के अंतर्गत गनी को राष्ट्रपति घोषित किया गया था, जबकि अब्दुल्ला को मुख्य कार्यकारी नियुक्त किया गया था। लेकिन वह पूरा कार्यकाल इन दोनों शक्ति केंद्रों के बीच सत्ता-संघर्ष के कारण लड़खड़ाता रहा। तब अमेरिकी विदेश मंत्री, जॉन केरी, जिन्होंने राजनीतिक गतिरोध को निपटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, ने इसे "राजनीतिज्ञता और समझौते” की जीत कहा।3
दो मुख्य प्रतिद्वंद्वियों के आरोप-प्रत्यारोपों के बीच, स्वतंत्र चुनाव आयोग ने फरवरी 2020 में गनी को 2019 के राष्ट्रपति चुनाव का विजेता घोषित किया- इस फैसले को अब्दुल्ला ने धोखाधड़ी का हवाला देते हुए स्वीकार करने से इनकार कर दिया और घोषणा की कि वह एक समानांतर सरकार बनाएंगे। समझौते की कोई गुंजाइश नहीं रही जब प्रतिद्वंद्वियों ने एक ही समय में अपने-अपने समर्थकों के साथ विजय समारोहों का आयोजन किया, राष्ट्रपति महल में गनी और उसके बगल के ही सपेडर पैलेस4 में अब्दुल्ला ने, और इसने देश को एक राजनीतिक संकट की ओर धकेल दिया। दो सत्ता केंद्रों की मौजूदगी ने एक राजनीतिक सर्वसम्मति के निर्माण को विफल कर दिया और काबुल में सरकार की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह पैदा कर दिया। विश्वसनीयता से इतर, ग़नी-अब्दुल्ला राजनीतिक दरार का जातीय रंग इस मुद्दे को और जटिल बनाता है। ऐसे समय में जब पश्चिमी सेना अफगानिस्तान से अपने पैर खींच रही है, अफगानी सेना और सुरक्षा बलों की एकजुटता पर इसका असर कैसे पड़ सकता है, यह अभी देखा जाना बाकी है। ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के सेंटर फ़ॉर अफ़गानिस्तान स्टडीज के निदेशक प्रो राघव शर्मा के अनुसार- “2009 के त्रुटिपूर्ण राष्ट्रपति चुनावों के बाद से, अफ़ग़ानिस्तान के नवजात लोकतंत्र ने एक के बाद एक राजनीतिक संकटों का सामना किया है। हालाँकि, वर्तमान में चल रही राजनीतिक जटिलता का महत्व इस तथ्य से बढ़ जाता है कि यह तालिबान के लाभ के लिहाज से सैन्य और राजनीतिक मोर्चे पर ‘सत्ता संतुलन’ की पृष्ठभूमि के विरुद्ध दिखाई देता है। ये घटनाक्रम निस्संदेह अफगान राज्य और इसके संस्थानों के सामंजस्य पर एक छाप छोड़ेंगे। इसलिए अफगान कुलीनों के लिए यह अनिवार्य है कि वे आंतरिक रूप से एक राजनीतिक सहमति बनाएं जो गणतंत्र की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को गंभीरता प्रदान करेगा”।5
कमजोर शांति समझौता
गनी-अब्दुल्ला के झगड़े का समय बेहद महत्वपूर्ण है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) और तालिबान द्वारा अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से 29 फरवरी 2020 को दोहा की कतरी राजधानी में "अफगानिस्तान में शांति लाने के लिए समझौते" (Mowafeqatnamah-e awardan-e saleh be Afghanistan½ (मोवाफेकातनाम-ए-अवारदान-ए-सालेह बी अफगानिस्तान), पर हस्ताक्षर किए जाने के करीब एक सप्ताह से अधिक समय के बाद सामने आता है।6 पूरे अफगानिस्तान में "सप्ताह भर तक हिंसा में कमी" के बाद, प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे जिसमें घोषणा की गई थी "अफगानिस्तान से सभी विदेशी ताकतों की वापसी के लिए समयसीमा: तालिबान से इस गारंटी के बदले में कि यह अफगान क्षेत्र को “अमेरिका और उसके सहयोगियों की सुरक्षा” के लिए खतरा उत्पन्न करने वाला लॉन्च पैड बनने से रोकेगा।" यह अफगान के भीतर होने वाली वार्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण चरण माना जाने वाला था, जो अंततः अफगानिस्तान में दशकों से जारी युद्ध और संघर्ष को समाप्त करने वाले राजनीतिक समझौते के लिए आदर्श होता। समझौते के प्रमुख घटकों में, सद्भावना के संकेत के रूप में 1000 अफगान सुरक्षा बलों के बदले में 5000 तालिबान कैदियों की रिहाई का मुद्दा एक बड़ी रुकावट बन गया। अफगान सरकार, जो समझौते में शामिल नहीं थी, लड़ाकों को रिहा करने के लिए अनिच्छुक थी, क्योंकि वे दोबारा हिंसा में शामिल हो सकते थे, और इसके कारण तालिबान ने बातचीत शुरू करने से इनकार कर दिया। इस बीच, कोविड-19 के प्रसार ने भी बातचीत को बाधित कर दिया क्योंकि यात्रा और बैठकों से कोरोना वायरस के फैलने का जोखिम था। ऐसे समय में जब लगा कि दोनों पक्षों के बीच कैदियों की रिहाई को लेकर मतभेद की स्थिति के कारण समझौते में गतिरोध आ गया है, यह बताया गया7 कि दोनों पक्षों ने 22 मार्च को एक स्काइप बैठक आयोजित की, जहां उन्होंने दो घंटे से अधिक समय तक बातचीत की, और शांति समझौते के कार्यान्वयन को लेकर उम्मीद जगाई। हालांकि यह उम्मीद अल्पकालिक ही थी, क्योंकि जब अफगान सरकार ने 27 मार्च को अंतर-अफगान वार्ता के लिए अपने 21 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल की घोषणा की, तो तालिबान ने स्पष्ट कर दिया कि वह काबुल द्वारा घोषित टीम के साथ बातचीत नहीं करेगा क्योंकि इसका चयन उस तरह से नहीं किया गया था जिसमें "सभी अफगान गुट" शामिल हो सकें।8 तालिबान ने दावा किया कि "अधिकांश अन्य पक्षों ने भी वर्तमान घोषित टीम को अस्वीकार कर दिया है।"9
इसमें कोई हैरत नहीं है कि ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़गानिस्तान’ के विचार का समर्थन करने वाले गठबंधन के प्रतिनिधित्व का प्रश्न जटिल हो रहा है। यह समझा जा सकता है कि ग़नी की सरकार इस प्रक्रिया का नेतृत्व करना चाहेगी और उसके विरोधी व्यापक प्रतिनिधिमंडल की माँग करेंगे। सरकार की वैधता को नामंजूर करने के अपने रुख को अधिक दृढ़ता प्रदान करने के लिए और इसे किसी भी अन्य समूह की तुलना में विशेष दर्जा दिए जाने से इनकार करते हुए तालिबान समझौतों के संदर्भ की व्याख्या करते हुए अन्य अफगानों को "पक्षों" के रूप में देखता है।10 फिर भी, वाशिंगटन ने प्रतिनिधिमंडल को कसौटी पर खरा पाया। एक कूटनीतिक चाल में, गनी ने सार्वजनिक रूप से यह भी प्रस्ताव दिया कि शांति परिषद का नेतृत्व अब्दुल्ला द्वारा किया जाएगा।11 इस बीच, कैदी रिहाई की प्रक्रिया में देरी हो रही है। काफी अमेरिकी दबाव के बाद, 20 सैनिकों के बदले 100 तालिबानियों के आदान-प्रदान के द्वारा बातचीत की प्रक्रिया को शुरू करने का फैसला किया गया था।12 7 अप्रैल को तालिबान के प्रवक्ता सुहेल शाहीन ने ट्वीट किया कि तालिबान ने कैदियों की अदला-बदली को लेकर सरकार के साथ बातचीत को रोकने का फैसला किया है - “उनकी (अफगान सरकार) रिहाई किसी न किसी बहाने से अब तक टलती आ रही है। इसलिए, हमारी तकनीकी टीम कल से प्रासंगिक पक्षों के साथ शुरू होने वाले फलहीन बैठकों में भाग नहीं लेगी”13- शांति समझौते के आभासी पतन का संकेत है। तालिबान उन 15 बड़े कमांडरों की रिहाई की मांग कर रहा है जो “बड़े हमलों” में शामिल थे - प्रक्रिया में देरी का यह भी एक कारण था।14 आखिरकार 8 अप्रैल को, अफगान सरकार ने स्वास्थ्य स्थिति, आयु और सजा की बची हुई अवधि के आधार पर तथा शांति स्थापित करने एवं कोविड-19 का प्रसार रोकने के प्रयास के रूप में 100 तालिबान कैदियों की रिहाई की पुष्टि की।"15
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़गानिस्तान के शिक्षा मंत्री डॉ. मोहम्मद मीरवाइज़ बाल्की के अनुसार, अंतर-अफगान वार्ता ही एकमात्र समाधान है। उन्होंने कहा, “शांति समझौते के लिए बड़े प्रयासों की आवश्यकता होती है लेकिन सबसे कठिन काम शांति समझौते को बनाए रखना है। इसलिए, अंतर-अफगान वार्ता के लिए एक मजबूत ज़मीन तैयार किया जाना चाहिए।” उन्होंने आगे कहा, “विभिन्न दलों और नागरिक समाज के परामर्श के माध्यम से अफगान सरकार की ओर से वार्ता टीम के गठन का प्रयास किया गया है। बातचीत को आगे बढ़ाना एक जटिल मसला होगा और इसके लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता होगी, लेकिन यह कोई असंभव काम नहीं है।”16
यह समझना जरूरी है कि देरी एकतरफा नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त, अपने लड़ाकों को तालिबान के संदेश किसी भी प्रतिद्वंद्वी के लिए अपने सदस्यों से मिलना कठिन बना रहे हैं। 25 मार्च, 2020 को बलूचिस्तान के पाकिस्तानी प्रांत में अपने समर्थकों को दिए गए भाषण में, पूर्व शीर्ष तालिबान सैन्य कमांडर और दोहा में बातचीत करने वाली तालिबान टीम के वरिष्ठ सदस्य मुल्ला फज़ल ने तीन मुद्दों पर समझौते से साफ़ इनकार कर दिया: भविष्य की किसी भी सरकार कोआमिर या नेता मानना, या; सरकार का इस्लामिक अमीरात रूप; और पूरी व्यवस्था को शरिया [इस्लामिक कानून] पर आधारित रखना।17 उनके भाषण में तालिबान के पिछले कुछ कार्यों की आलोचना थी और उन्होंने अल-कायदा के साथ टूट को भी सही ठहराया, हालांकि भाषण में उसका नाम लिए बिना उन्होंने कट्टरपंथियों को आश्वस्त करने की कोशिश की। क्वीन विश्वविद्यालय, बेलफ़ास्ट के एक प्रोफेसर माइकल सेम्पल (अफगानिस्तान में यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र के पूर्व सलाहकार), ने एक साक्षात्कार में पाया कि तालिबान की वर्तमान गणना के मुताबिक उन्हें वास्तव में अन्य अफ़गानों के साथ शांति वार्ता करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने उल्लेख किया कि “तालिबान ने यह स्पष्ट किया है कि जो सौदा उन्होंने अमेरिकियों के साथ किया है वे उसके लिए बहुत उत्सुक हैं, लेकिन केवल अमेरिकी सेनाओं को देश छोड़ने की अनुमति देने के मकसद से। वे खुद को अमेरिका पर विजयी मानते हैं और उनका मानना है कि उन्हें इस आधार पर पूरे देश का नियंत्रण अपने हाथ में लेने का अधिकार है कि उन्होंने अमेरिकियों को हरा दिया है।"18
शांति समझौता भविष्य की अफगान सरकार, देश के संविधान, मानव अधिकार पर आश्चर्यजनक रूप से मौन है और यह वाशिंगटन की तीन पूर्व शर्तों (किसी राजनीतिक समझौते के लिए तालिबान के साथ सार्थक संबंध) से भी भिन्न है: अर्थात्: अफगान संविधान का सम्मान, हथियारों का त्याग और अल-कायदा की निंदा। हस्ताक्षरित शांति समझौते में पहले ही दो शर्तों को मिटा दिया गया है, जबकि तीसरे के लिए तालिबान की प्रतिबद्धता अत्यंत संदिग्ध है।
शांति समझौते की नियति को छोड़ दें, तो केवल तालिबान ही एकमात्र पक्ष है जिसने लाभ हासिल किया है। वे स्पष्ट रूप से अफगानिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में एक वैध अभिनेता के रूप में उभरे हैं, जिनके साथ जुड़ने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने बड़े पैमाने पर अपनी उत्सुकता दिखाई है। इसने अफगानिस्तान में पूर्व भारतीय राजदूत राकेश सूद को यह देखने के लिए प्रेरित किया कि 1990 के दशक के विपरीत; जब तालिबान पहली बार परिदृश्य में उभरा था और उसे केवल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और पाकिस्तान द्वारा मान्यता प्राप्त थी, "आज के तालिबान की अपनी वैधता के लिए पाकिस्तान पर उतनी निर्भरता नहीं है जितनी कि 1990 के दशक में थी।"19 इससे भी अधिक, यह उस अमेरिका के साथ सौदा करने में कामयाब रहा, जिसने पहले इसे संघर्ष में एक हितधारक के रूप में देखने से भी इनकार कर दिया था। उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि "इस्लामिक अमीरात ऑफ़ अफ़गानिस्तान" के उनके लंबे समय के पोषित विचार को शांति समझौते के पाठ में जगह मिले- जो कि अफ़गानिस्तान से वापसी के बाद तालिबान की भूमिका के बारे में अस्पष्ट रह गई थी। प्रोफेसर राघव शर्मा ने इस संबंध में कुछ जायज प्रश्न किए: “तालिबानी लड़ाकों का क्या होगा? क्या वे विघटन और निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया से गुजरेंगे या उन्हें अफगान नेशनल आर्मी में एकीकृत किया जा सकता है, जिस सेना के साथ वे अब तक लड़ते आए हैं? यदि हां, तो ऐसा करने की युक्ति क्या होगी?”20 उन्होंने आगे शांति समझौते के लिए विवादास्पद प्रस्तावों का उल्लेख किया, जिसमें एक संयुक्त सैन्य कमान और नियंत्रण संरचना के निर्माण के बारे में बात की गई थी, कि जब तक बलों को एक इकाई में एकीकृत नहीं किया जाता है, प्रत्येक पक्ष उन क्षेत्रों में सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होगा जिनपर वे इस बीच नियंत्रण करते रहे हैं। फिर भी, प्राप्त वैधता के साथ, तालिबान बातचीत के लिए नियम और शर्तें तय कर रहा है, और सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर आक्रामक रुख जारी रखते हुए, कैदियों की रिहाई के लिए और भविष्य की राजनीतिक प्रणाली की प्रकृति पर दबाव डाल रहा है। दूसरी तरफ, अमेरिका आगे बढ़ने की जल्दी में है, और काबुल को अंतर-अफगान संवाद शुरू करने के लिए धमकी दे रहा है, जो जल्दी ही उसके बाहर निकल जाने के लिए मंच तैयार कर सकता है।
सहायता कटौती की धमकी
अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के ब्यूरो में प्रधान उप सहायक सचिव एलिस वेल्स, ने 5 अप्रैल 2020 को एक ट्वीट में अफगानिस्तान को दी जा रही सभी सहायताओं को काबुल में एक समावेशी सरकार के गठन से जोड़ दिया। देश के राजनीतिक अभिजात वर्ग के लिए एक कड़े लेकिन स्पष्ट संदेश में साफ़ कहा गया, “अफगानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं के लिए सामान्य रूप से व्यापार नहीं हो सकता है। अंतर्राष्ट्रीय सहायता के लिए एक समावेशी सरकार के साथ भागीदारी की आवश्यकता होती है और हम सभी को एक शासन व्यवस्था पर सहमत होने के लिए अफगान नेताओं को जवाबदेह ठहराना चाहिए।"21 काबुल में राजनीतिक अव्यवस्था के अलावा, इस बात की पूरी संभावना है कि इसने भी अफगानिस्तान को लेकर सभी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय दाताओं को आश्चर्यचकित कर दिया है।
वेल्स के ट्वीट को प्रासंगिक बनाना महत्वपूर्ण है। राष्ट्रपति गनी और अब्दुल्ला अब्दुल्ला के बीच चुनावी विवाद अनसुलझा है। मार्च 2019 में कोरोना फैलने के बीच अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ की अफ़गानिस्तान यात्रा के दौरान दोनों नेताओं के साथ मिलने और एक समावेशी सरकार बनाने के लिए उन्हें मनाने के बाद भी दोनों पक्ष किसी समझौते पर पहुंचने में विफल रहे। परिणामस्वरूप, अमेरिका ने अपनी वार्षिक सहायता के रूप में इस वर्ष 1 बिलियन डॉलर और अगले वर्ष एक और 1 बिलियन डॉलर की कटौती की घोषणा की और साथ ही अतिरिक्त कटौती की पहचान करने के लिए उस देश में सभी सहायता प्राप्त कार्यक्रमों और परियोजनाओं की समीक्षा शुरू करने तथा अफगानिस्तान को दिए जाने वाले भविष्य के सभी दान कार्यक्रमों पर पुनर्विचार करने की भी घोषणा की।22 कुछ रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया है कि अगर दोनों नेता अपने मतभेदों को सुलझाने में असफल रहे और तालिबान के साथ सौदा किया तो पोम्पेओ ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को पूरी तरह से बाहर निकालने की संभावना का भी उल्लेख किया था।23 गनी ने अपने देशवासियों को संबोधित करते हुए बहादुरी दिखाने की कोशिश की और उन्हें आश्वासन दिया कि "अमेरिकी सहायता में कटौती का हमारे (अफगान) प्रमुख क्षेत्रों पर सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा और हम तपस्या करके एवं वैकल्पिक स्रोतों की तलाश के जरिये इस खाई को भरने के प्रयास करेंगे।"24 हालांकि, इस देश के लिए वास्तविकता काफी भिन्न है, जहां बजट का 71 प्रतिशत विदेशी सहायता से वित्तपोषित है। 2002-2015 की अवधि के दौरान, अमेरिका और अन्य अंतर्राष्ट्रीय दाताओं ने लगभग 130 बिलियन डॉलर अफगानिस्तान में खर्च किए, जिनमें से अधिकांश धन (लगभग 115 बिलियन डॉलर) अमेरिका से आया - हालांकि इसका आधा से अधिक हिस्सा सुरक्षा पर खर्च किया गया था। इस समय यह अपने प्रमुख दाता को जाने नहीं दे सकता है। अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत के गवर्नर शाह महमूद मियाखेल के अनुसार, '' सहायता में कमी का प्रभाव निश्चित रूप से पड़ता है। उम्मीद है कि अमेरिका अपनी नीति को वापस ले देगा क्योंकि कटौती सशर्त है।” उन्होंने महसूस किया कि सहायता में कटौती का तत्काल प्रभाव नहीं भी हो सकता है, "लेकिन इसका लोगों और इस वर्तमान राजनीतिक वातावरण पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है।"25
बहरहाल, शिक्षा मंत्री डॉ बाल्खी आशावादी हैं और उम्मीद करते हैं कि अफगानिस्तान को सहायता राशि में कोई कटौती नहीं होगी और इस मुद्दे को बातचीत के माध्यम से हल कर लिया जाएगा- “इस महत्वपूर्ण मोड़ पर, अफगानिस्तान को कोविड-19 से लड़ने के लिए अतिरिक्त सहायता पैकेज की आवश्यकता है, ग्रामीण गरीबों के लिए तथा शांति और एकीकरण की तैयारी के लिए अर्थव्यवस्था में पैसा लगाना महत्वपूर्ण है।"26 “अमेरिकी सहायता में कठोर कटौती लोकतांत्रिक मानदंडों को स्थापित करने, देश की एकता को बनाए रखने एवं संरक्षित करने, तथा सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति और नागरिकों के अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक अफगान संस्थानों के निर्माण में किए गए निवेशों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।"27 2021 एक अत्यंत महत्वपूर्ण वर्ष होगा, क्योंकि अफगानिस्तान को दी जाने वाली अंतर्राष्ट्रीय सहायता 2020 में समाप्त हो जाएगी। कोविड-19 के कारण उत्पन्न वित्तीय स्थिति को देखते हुए यूके, फ्रांस, इटली और जर्मनी जैसे अन्य गठबंधन सहयोगी, जो अपने यहाँ भीषण महामारी से जूझ रहे हैं, अफगानिस्तान को लेकर अपनी आर्थिक प्रतिज्ञाओं पर पुनर्विचार कर सकते हैं। दी गई स्थिति के तहत, वाशिंगटन के खतरे ने काम किया हो सकता है- सैन्य सुरक्षा में योगदान करने वाले देशों के राजदूतों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हमदुल्ला मोहिब ने कहा कि देश "कैदियों और शांति पर आगे बढ़ने के लिए" तैयार है, साथ ही उन्होंने कहा कि "तकनीकी टीमों ने मुश्किल मुद्दों पर प्रगति की है।”28 यह कोविड-19 के कारण अमेरिका के सबसे लंबे के युद्ध को बंद करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण विकास है।
कोविड-19 से मुकाबला
दुनिया भर में एक अभूतपूर्व स्थिति विकसित हो रही है जब नोवेल कोरोनो वायरस महामारी वैश्विक मृत्यु और विनाश के स्रोत के रूप में सशस्त्र संघर्षों को भी पीछे छोड़ रही है। इस तरह के परिदृश्य का अनुमान तब नहीं लगाया गया था जब फरवरी 2020 के अंत में दोहा में शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। जिस समय पड़ोसी ईरान में कोरोना वायरस हताहतों की संख्या बढ़ रही थी, उस समय अफगान राजनीतिक महामारी में डूबे हुए थे। ईरान से बड़ी तादाद में अफ़गानों की वापसी और कोविड-19 के वैश्विक प्रसार की ख़बरों के बाद अफ़गानिस्तान ने आगे की चुनौती पर ध्यान दिया। अफगानिस्तान में महामारी के बढ़ते मामलों के बीच, सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की भविष्यवाणी को उद्धृत किया, "16 मिलियन लोगों के इस वायरस से संक्रमित होने की संभावना है" और चेतावनी दी कि इससे "अफगानिस्तान में 1,10,000 लोगों की मौत हो सकती है।"29
14 अप्रैल 2020 तक, अधिकारियों ने महामारी के 665 पॉजिटिव मामलों और 21 मौतों की पुष्टि की है। जांच की सीमित सुविधा को देखते हुए- उपलब्ध आंकड़ा भ्रामक हो सकता है। अफ़गानिस्तान के दूसरे उपराष्ट्रपति और स्वास्थ्य सलाहकार की टीम के साथ काम कर रहीं सुश्री आटेफ़ा तकावी मानती हैं कि "एक बड़ी तबाही अफ़ग़ानिस्तान का इंतजार कर रही है ... हमारे यहाँ कैरियर बहुत अधिक हैं, उपलब्ध आंकड़ा केवल तबाही का नमूना भर हो सकता है।" उन्हें डर है कि "पर्याप्त सुविधाओं, सक्षम कर्मियों, उपकरणों और बुनियादी ढाँचे की कमी तथा सार्वजनिक जागरूकता का निम्न स्तर, ऐसे कारक हैं जो अफ़ग़ानिस्तान में कोविड-19 के साथ मुकाबले को मुश्किल बनाएंगे।"30 जनस्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि कोरोना वायरस की परीक्षण क्षमता एक दिन में 1,000 तक है। काबुल में दो परीक्षण केंद्र हैं, एक बल्ख में, एक हेरात में और एक कंधार में है।31
ईरान से बड़ी तादाद में अफ़गानों की वापसी के साथ ही स्थिति गंभीर रूप से अनिश्चित होती जा रही है। 6 अप्रैल तक, 200,00032 से अधिक अफगान कोरोना वायरस के प्रकोप से त्रस्त ईरान से भागकर आ चुके थे; सीमा पार करने पर प्रतिबंध लगाने की अफगान सरकार की दलील के बावजूद।33 कथित तौर पर, तेहरान द्वारा अपने अस्पतालों में अफगान शरणार्थियों का इलाज करने से इनकार ने सीमा पार की गतिविधियों के लिए ट्रिगर का काम किया।34 वैश्विक महामारी के दौरान सीमा पार करने की सबसे बड़ी गतिविधियों में से एक, ईरान की छिद्रयुक्त सीमा से आने वाले अफगानियों की बड़ी संख्या ने नए संक्रमणों के संभावित प्रभाव को लेकर मानवतावादियों में डर को बढ़ा दिया है, क्योंकि ईरान वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से है।35 एमनेस्टी इंटरनेशनल को आशंका है कि जेलों में, जहाँ अक्सर एक सिंगल सेल में 5-5 कैदियों को बिना किसी स्वच्छता के अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं के बीच रखा जाता है, संक्रमण के उच्च जोखिम में होते हैं। संगठन ने सरकार से कोविड-19 से निपटने के प्रयासों के तहत महिला कैदियों, जिनमें से कई के साथ बच्चे हैं, की रिहाई को प्राथमिकता देने का आग्रह किया है।36 मार्च के अंत में, नॉर्वेयन रिफ्यूजी काउंसिल37 ने आगाह किया था कि: "ईरान में कोविड-19 की व्यापकता को देखते हुए, मानवतावादी समुदाय का मुख्य ध्यान अब प्रांतों और जिलों पर है जो सीमा पार से आने वालों के कारण अब सबसे अधिक जोखिम में हैं। "इनमें वे 25 जिले शामिल हैं जो ईरान से लौटने वालों के प्राथमिक गंतव्य रहे हैं, साथ ही ईरान के महामारीग्रस्त प्रांतों से अधिक कनेक्टिविटी के कारण हेरात, निमरोज़, काबुल, बल्ख, फ़रयब भी सर्वाधिक जोखिम वाले प्रान्तों में हैं।"
अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत की तोरखम सीमा से लगभग 36,000 अफगानी पड़ोसी पाकिस्तान से लौटे हैं।38 इस प्रांत के गवर्नर शाह महमूद मिआखेल ने बताया कि पाकिस्तान ने 16 मार्च 2020 को सीमा को सील कर दिया था, हालांकि तोरखम के बंद होने के कारण कई अफगानों के पाकिस्तान में फंसे होने की सूचना के बाद यह निर्णय लिया गया कि 7-9 अप्रैल के बीच सीमा खोली जाएगी। विशेष रूप से उन लोगों के लिए जिनपर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। - "उन्होंने हमें बताया कि लगभग 3000 लोग वापस लौट आएंगे। इसलिए उसके मुताबिक हमने तोरखम में 3000 लोगों की कोरोना वायरस की जांच सुविधाओं के लिए शिविर स्थापित किए। 7 तारीख को लगभग 1100 लोग आए, इसलिए हम उनकी जांच ठीक से कर सके और बाद में उन्हें छोड़ दिया। अगले दिन, पाकिस्तान की सरकार ने लगभग 10,000 लोगों को जमा किया, मुख्य पारगमन गेट खोला और बिना किसी एग्जिट वीजा के उन्हें क्रॉसिंग पॉइंट के इस तरफ प्रवेश करने दिया। यह अच्छा नहीं था लेकिन फिर भी किसी तरह, हमने भीड़ को प्रबंधित करने की पूरी कोशिश की और लगभग 80% की जाँच की जा सकी।”39
कई प्रांतों ने निवासियों में कोविड-19 के संक्रमण को सीमित करने के लिए उपाय शुरू किए हैं। काबुल और हेरात ने "क्रमबद्ध लॉकडाउन" के साथ शुरुआत की जिसके तहत शहर के प्रत्येक सेक्शन को बंद किया गया और / या यात्रा करने वाले लोगों की संख्या को सीमित किया गया। अन्य जगहों- जैसे फराह सिटी, जलालाबाद, कंधार प्रांत, उरुजगान प्रांत, ज़ाबुल प्रांत, हेलमंद प्रांत, मज़ार सिटी, खोस्त, गजनी सिटी, पंजशीर और निमरोज़ प्रांत में- बचाव के उपाय मुख्य रूप से भीड़ को सीमित करने और उन बड़े स्थानों को बंद करने पर केंद्रित हैं जहाँ लोग इकट्ठा होते हैं। हालाँकि रिपोर्ट बताती है कि इसके लागू किये जाने में अंतर है।40 डॉ बाल्की ने जानकारी दी कि “देश के स्कूलों को अभी एक महीने के लिए बंद किया गया है और इसे स्थिति के आधार पर एक तिमाही के लिए बढ़ाया जा सकता है। शिक्षा मंत्रालय ने वैकल्पिक उपायों के माध्यम से बच्चों की शिक्षा जारी रखने के लिए एक योजना तैयार की है।"41 28 मार्च से, सरकार ने काबुल और हेरात प्रांत में 21 दिनों के लॉकडाउन का आदेश जारी किया- जो अफगानिस्तान में महामारी के मुख्य केंद्र के रूप में उभरे थे। हालाँकि लॉकडाउन आवश्यक लग रहा था, फिर भी कई लोगों को यह डर था कि इससे कमजोर, युद्धग्रस्त देश में जीवित रहने के लिए लोगों को और कठिन संघर्ष करना पड़ सकता है। स्वास्थ्य मंत्री फ़िरोज़ुद्दी फ़िरोज़ ने कहा "अनुमान बताते हैं कि अफगानिस्तान में कम से कम 16 मिलियन लोगों में लक्षण दिखने के साथ ही करीब 25 मिलियन से अधिक लोग संक्रमित हो सकते हैं। लेकिन अगर उपायों को लागू किया जाता है तो प्रसार को रोका जा सकता है।”42
इस बीच, अफगान सरकार ने बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए "corona.asan.gov.af" सॉफ्टवेयर को जारी किया है।43 इंटरनेट तक पहुंच रखने वाले अफगान सॉफ्टवेयर की मदद से अपनी स्वास्थ्य स्थिति का आंतरिक मूल्यांकन कर सकते हैं। हाल ही में, कंधार प्रांत में एक कोरोनो वायरस परीक्षण सुविधा का उद्घाटन किया गया था।44 वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए उससे जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेने के लिए नंगरहार प्रांत में एक "एंटी-कोरोना वायरस कमिटी" को स्थापित किया गया, और उनकी सिफारिशों के आधार पर, जलालाबाद सहित प्रांत के प्रमुख शहरों ने आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर सभी दुकानें बंद कर दी हैं। नंगरहार प्रशासन द्वारा शुरू की गई कुछ अन्य पहलों में नंगरहार कोरोना फंड खाता, एक फ़ूड बैंक का निर्माण तथा 200 लोगों के लिए एक आइसोलेशन केंद्र खोलना शामिल है।45
काबुल में सार्वजनिक नीति और सुशासन विशेषज्ञ सुश्री मसूदा ज़ाफरी ने जन स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ मिलकर दूसरे उप राष्ट्रपति की अध्यक्षता में गठित "कोरोना वायरस मुकाबला कमिटी" का उल्लेख करते हुए बताया कि ये “वायरस के प्रसार को रोकने के उपायों को अपना रहे हैं और इस मुश्किल समय में अफगानों को महत्वपूर्ण सुविधाएं देने की कोशिश कर रहे हैं।" ज़ाफ़री को लगता है कि अफ़गानिस्तान की कमजोर स्वास्थ्य संरचना इस स्तर की महामारी का मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं है- "हमें इस समय अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी संगठनों से व्यापक मार्गदर्शन और सामग्री की जरूरत है, लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि हम इसे प्राप्त करेंगे।"46 कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए केवल 300 वेंटिलेटर की मौजूदगी के बारे में रिपोर्ट उनकी बात को बल देती है।47 कथित तौर पर, सरकार को काबुल में अमीरी मेडिकल कॉम्प्लेक्स को बंद करना पड़ा था, क्योंकि अस्पताल में एक डॉक्टर की मृत्यु कोरोना वायरस से हुई थी।48 सीमित संसाधनों और कमजोर स्वास्थ्य एवं बुनियादी ढांचे के साथ, सरकार इस संकट का जवाब देने की कोशिश कर रही है; लेकिन देश में राजनीतिक गतिरोध से इस प्रतिक्रिया की गति धीमी है। राजनीतिक और नागरिक समाज के कई आंकड़े चेतावनी देते हैं कि अगर कोरोना वायरस की लड़ाई का राजनीतिकरण किया जाता है, तो देश को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।49
निष्कर्ष
राजनीतिक संकट, कमजोर शांति समझौता, सहायता में कटौती और कोरोना वायरस- उन कारकों में हैं जो अफगानिस्तान में "शांति" के अनुकरण को जटिल बनाने के लिए जिम्मेदार हैं। वैश्विक महामारी के बीच चल रही हिंसा केवल उसी को पुष्ट करती है। अफगानिस्तान में विभिन्न हितधारकों के लिए अनिवार्य है कि वे कुछ समय के लिए शत्रुता छोड़कर उन चुनौतियों का सामना करने के लिए मिलकर काम करें जिनका सामना इस समय देश कर रहा है। यदि इस समय कमजोर शांति समझौता ध्वस्त हो जाता है, तो अन्य राज्य कोविड-19 के संकट से निपटने में सक्षम नहीं हो सकते हैं। इस तरह के परिदृश्य से उभर रही आशंकाएं हताश करने वाली हैं। अन्य बातों के अलावा, यह पूरे क्षेत्र और उससे बाहर भी कोरोना वायरस को अपने साथ ले जाने वाले अफगान प्रवासियों की एक और खेप पैदा कर सकती है। यदि अमेरिका अफगानिस्तान को छोड़ने वाला है, तो पिछले दो दशकों की उपलब्धियों को नष्ट करने से तालिबान को रोकने के लिए केवल एक ही विकल्प बचा है: एक मजबूत एकीकृत अफगान मोर्चा, जो अंतर-अफगान वार्ता में अफगान समाज के सभी वर्गों के हितों की रक्षा कर सकता है। इससे भी अधिक, ‘शांति समझौते’ का पक्षकार होने के नाते, तालिबान को अफगान सुरक्षा बलों पर हमलों को रोकना चाहिए। इसके लड़ाके दर्जनों अफ़गानों को मार रहे हैं, जबकि दसियों हज़ार लोग जल्द ही महामारी से मर जाएंगे। अफगानिस्तान में वर्तमान परिदृश्य के आलोक में, प्रख्यात विशेषज्ञ सुल्तान बराकत और बर्नेट आर रुबिन ने लिखा है कि "हिंसा और विवाद जितनी अधिक देर तक वार्ता को लंबित रखेंगे, संभावना इस बात की अधिक होगी कि यह संघर्ष गद्दी पर बैठने की बजाय लाशों को दफनाने की लड़ाई में बदल जाएगा।"50
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*डॉ. अन्वेषा घोष, विश्व मामलों की भारतीय परिषद की शोधकर्ता |
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
अंत टिप्पण:
[1]COVID -19 Coronavirus Pandemic, Live Updates.Worldometer. Available at:https://www.worldometers.info/coronavirus/? (Accessed on 14.4.2020)
2“Voter turnout falls sharply in the Afghan Presidential Election”.Aljazeera, September 29, 2019. Available at:https://www.aljazeera.com/news/2019/09/voter-turnout-falls-sharply-afghan-presidential-election-190929073943812.html (Accessed on 19.4.2020)
3“John Kerry praises Abdullah and Ghani as Afghanistan’s struggles continue”.TheGuardian,September 27, 2014. Available at:https://www.theguardian.com/world/2014/sep/27/john-kerry-afghanistan-abdullah-ghani-power-money (Accessed on 6.4.2020)
4 “Dueling Afghan leaders both declare themselves President”.TheDiplomat,March 10, 2020. Available at:https://thediplomat.com/2020/03/dueling-afghan-leaders-both-declare-themselves-president/ (Accessed on 6.4.2020)
5Raghav Sharma, Associate Professor and Director of the Centre for Afghanistan Studies at the School of International Affairs, O.P. Jindal Global University, in discussion with the author, April 10,2020.
6“Agreement for Bringing Peace to Afghanistan”. US Department of State, February 29,2020. Available at:https://www.state.gov/agreement-for-bringing-peace-to-afghanistan/?fbclid=IwAR07KIQXZ_-hL_34ppgpUGHIOyLgqithW7HXpXvq3DV0gDHZBia7grnB7vk (Accessed on 7.4.2020)
7“Skype call reconnects Taliban and the Afghan Officials”. The Arab News, March 24, 2020. Available at:https://www.arabnews.com/node/1646236/world (Accessed on 14.4.2020)
8“Taliban refuses to talk to newly-formed Afghan government team”. Al Jazeera, March 28, 2020.Avialble at: https://www.aljazeera.com/news/2020/03/taliban-refuses-talk-newly-formed-afghan-government-team-200328141120875.html (Accessed on 29.3.2020)
9TahirKhan,”Taliban delegation reaches Kabul for prisoners’ release”. Daily Times, April 1, 2020. Available at:https://dailytimes.com.pk/586703/taliban-delegation-reaches-kabul-for-prisoners-release/ (Accessed on 7.4.2020)
10Sultan Barakat and Barnett Rubin, “Start the negotiations, end the Afghan War now”.Texas National Security Review, March 31, 2020. Available at:https://warontherocks.com/2020/03/start-the-negotiations-end-the-afghan-war-now/?fbclid=IwAR0z2eVv5TTHayNfD688o4USmJX23mBc_CuguyiEvSAFCIhr7NQXzh6Cwtc (Accessed on 7.4.2020)
11 “Ghani proposes Abdullah leads the Peace Process”. Tolo News, April 4, 2020. Available at:https://tolonews.com/afghanistan/ghani-proposes-abdullah-leads-peace-process?fbclid=IwAR2t1CJnSOx_4FPllgwgjdPul0B83Kc6ES6dpI0H2A-Or1o6CXucEhA4cSs
12 Afghan Govt, Taliban set to swap the first batch of prisoners.”Tolo News, April1, 2020. Available at: https://tolonews.com/afghanistan/afghan-govt-taliban-set-swap-first-batch-prisoners(Accessed on 6.4.2020)
13“Taliban to end talks with Afghan government over prisoner swap”.Al Jazeera, April 7, 2020. Available at:https://www.aljazeera.com/news/2020/04/taliban-talks-afghan-government-prisoner-swap-200407042703850.html (Accessed on 7.4.2020)
14Ibid
15MassoudAnsar, “Afghan Government releases 100 Taliban prisoners”. Tolo News, April 8, 2020. Available at:https://tolonews.com/index.php/afghanistan/afghan-govt-releases-100-taliban-prisoners
16Dr. Mohammad MirwaisBalkhi, Minister of Education, Islamic Republic of Afghanistan, in a interview with the author,12th April 2020.
17Sultan Barakat and Barnett Rubin, “Start the negotiations, end the Afghan War now”.Op.cit
18AbubakarSiddique,”Are the Taliban committed to negotiating Peace in Afghanistan?”Gandhara, March 31, 2020. Available at:https://gandhara.rferl.org/a/are-the-taliban-committed-to-negotiating-peace-in-afghanistan-/30520521.html
19 “The real reason behind Trump’s Afghan Bombshell” Interview with Amb. RakeshSood and Amb.GautamMukhopadhayabyThe Wire, Sep 13, 2019. Available at: https://www.youtube.com/watch?v=DrN8CWD34Zc&t=531s (Accessed on 10th February 2020)
20Raghav Sharma, Associate Professor and Director of the Centre for Afghanistan Studies at the School of International Affairs, O.P. Jindal Global University.indiscussion with the author, April 10,2020.
21Alice Wells, the Principal Deputy Assistant Secretary at the Bureau of South and Central Asian Affairs in the US State Department, Tweeted on April 5, 2020. Available at:https://twitter.com/State_SCA/status/1246617694553747460?ref_src=twsrc%5Egoogle%7Ctwcamp%5Eserp%7Ctwgr%5Etweet (Accessed on 6.4.2020)
22“US cuts Afghan aid by $1bn after Pompeo fails to end impasse.”Al Jazeera, March 24,2020. Available at:https://www.aljazeera.com/news/2020/03/cuts-afghan-aid-1bn-pompeo-fails-impasse-200324015906774.html(Accessed on 6.4.2020).
23Carol E. Lee, C.Kune, A. Mitchell and Dan De Luce, “Pompeo to Afghan Leaders: Make a deal with the Taliban or risk full US troop withdrawal. NBC News, April 7, 2020. Available at:https://www.nbcnews.com/news/world/pompeo-afghan-leaders-make-deal-taliban-or-risk-full-u-n1174161?fbclid=IwAR3cuFnjT1or87b3u4QAvQq3Jg-_xGi5KDO0WpFe67fVrUDkxr2moIRsCM0 ( Accessed on 8.4.2020)
24“President Ghani’s message on recent political and global developments”- Islamic Republic of Afghanistan, March 24, 2020. Available at:https://president.gov.af/en/president-ghanis-message-on-recent-political-and-global-developments/( Accessed on 8.4.2020)
25Shah MahmoodMiakhel, Governor of Nangarhar Province, Islamic Republic of Afghanistan, in an interview with the author,11th April 2020.
26Dr. Mohammad MirwaisBalkhi, Minister of Education, Islamic Republic of Afghanistan, in an interview with the author,12th April 2020.
27Joint Declaration between Islamic Republic of Afghanistan and the United States of America for Bringing Peace to Afghanistan”.US Department of State, February 29, 2020. Available at: https://www.state.gov/wp-content/uploads/2020/02/02.29.20-US-Afghanistan-Joint-Declaration.pdf(Accessed on 7.4.2020)
28“Afghan Government releases 100 Taliban prisoners”. Tolo News, Op.cit.
29“Coronavirus could kill 110,000 people in Afghanistan, warns public health minister.”TheKaama Press, March 24,2020 Available at:https://www.khaama.com/coronavirus-could-kill-110000-people-in-afghanistan-warns-public-health-minister-04556/ (Accessed on 8.4.2020).
30Ms.AtefaTaqawi, Assistant to the Health Advisor, Second Vice President’s Office, Islamic Republic of Afghanistan, in an interview with the author, April 8, 2020.
31 “COVID Cases in Afghanistan rise to 521”Tolo News, April 10, 2020. Available at:https://tolonews.com/health/covid-19-cases-afghanistan-reach-521 (Accessed on 10.4.2020)
32“Corona outbreak fears in Afghanistan, amid influx from Iran”. Al Jazeera, April 6, 2020. Available at: https://www.aljazeera.com/news/2020/04/coronavirus-outbreak-fears-afghanistan-influx-iran-200406111308646.html(Accessed on 9.4.2020)
33MujibMashal, AsadullahTimory and Najim Rahim, “In Afghanistan, Coronavirus complicates war and peace”. The NewYork Times, March 16, 2020. Available at: https://www.theguardian.com/global-development/2020/apr/01/afghanistan-braces-for-coronavirus-surge-as-migrants-pour-back-from-iran ((Accessed on 9.4.2020)
34“Hospitals in Iran refuse to treat Afghans amid coronavirus pandemic”. The Khaama Press, March 21, 2020. Available at: https://www.khaama.com/hospitals-in-iran-refuse-to-treat-afghans-amid-coronavirus-pandemic-04533/ (Accessed on 6.4.2020).
35Ibid
36 Afghanistan: Government should prioritise the release of women prisoners in efforts to tackle COVID-19”.Amnesty International, April 10, 2020. Available at:https://www.amnesty.org/en/latest/news/2020/04/afghanistan-should-prioritize-release-of-women-prisoners/ (Accessed on 10.4.2020)
37 Roald Hovring “Displaced people in Kabul at risk”. Norwegian Refugee Council in Afghanistan. March 29, 2020 Available at:https://www.nrc.no/perspectives/2020/displaced-people-in-kabul-are-at-risk/ (Accessed on 9.4.2020)
38Shah MahmoodMiakhel, Governor of Nangarhar Province, Islamic Republic of Afghanistan, in a interview with the author,11th April 2020
39Ibid
40 “Afghanistan Brief-COVID-19” World Health Organization, Report Number 21, March 29, 2020. Available at: https://reliefweb.int/sites/reliefweb.int/files/resources/daily_brief_covid-19_29_march_2020.pdfAccessed on?(Accessed on 9.4.2020)
41Dr. Mohammad MirwaisBalkhi, Minister of Education, Islamic Republic of Afghanistan, in a interview with the author,12th April 2020.
42 Stefanie Glinski, ‘No profit, no food’: lockdown in Kab,ul prompts hunger fears”.The Guardian, April 1, 2020. Available at: https://www.theguardian.com/global-development/2020/apr/01/no-profit-no-food-lockdown-in-kabul-prompts-hunger-fears (Accessed on 9.4.2020)
43“Afghan Ministries Launch Coronavirus Tracking App”,Tolo News, 10.4.2020, Available at:https://tolonews.com/afghanistan/afghan-ministries-launch-coronavirus-tracking-app(Accessed on 10.4.2020)
44 “Cononavisrus Testing Lab opens in Kandahar: Officials”.Tolo News, 8.4.2020, Available at:https://tolonews.com/health/coronavirus-testing-lab-opens-kandahar-officials (Accessed on 10.4.2020)
45Shah MahmoodMiakhel, Governor of Nangarhar Province, Islamic Republic of Afghanistan, in a interview with the author,11th April 2020.
46Ms.MasoudaZafari, Public Policy and Good Governance Expert, Second Vice President’s Office, Islamic Republic of Afghanistan, in an interview with the author, April 7, 2020.
47 Zahra Rahimi, “Only 300 Ventilators in Afghanistan to treat CoVID-19: MoPH”,Tolo News, April 8, 2020. Available at: https://tolonews.com/afghanistan/only-300-ventilators-afghanistan-treat-covid-19-moph (Accessed on 9.4.2020)
48“Kabul Clinic shuts down after doctor dies of COVID-19”, Tolo News, April 8, 2020. Available at: https://tolonews.com/health/amiri-medical-complex%E2%80%99s-activities-suspended-health-ministry (Accessed on 9.4.2020)
49Ali M Latifi&RoyaHeydari, “Cononavirus: Herat emerges as Afghanistan’s epicenter”. Al Jazeera, March 26,2020. Available at: https://www.aljazeera.com/news/2020/03/coronavirus-herat-emerges-afghanistan-epicentre-200325032420910.html (Accessed on 9. 4.2020)
50Sultan Barakat and Bernett R Rubin, “Start the negotiations, end the war now”.Texas National Security Review. March 31, 2020. Available at: https://warontherocks.com/2020/03/start-the-negotiations-end-the-afghan-war-now/?fbclid=IwAR0z2eVv5TTHayNfD688o4USmJX23mBc_CuguyiEvSAFCIhr7NQXzh6Cwtc (Accessed on 9.4.2020)