किसी भी देश में होने वाला राजनीतिक परिवर्तन हमेशा से एक कठिन प्रक्रिया रहा है और इसके लिए एक दूरदर्शी नेतृत्व की आवश्यकता होती है। राजनीतिक परिवर्तनों की प्रकृति व गति से आमतौर पर कुछ लोगों को लाभ होता है और कुछ लोगों से सत्ता भी छीन जाती है। यदि परिवर्तनों की यह गति तेज है, तो इससे राजनीतिक परिवर्तन की पूरी प्रक्रिया कमजोर, अनिश्चितता भरी और देश आगे बढ़ने के बजाय दुर्बल हो सकता है। यह ऐसा समय होता है जिसमें राजनीतिक नेतृत्व की भूमिका और राजनीतिक दृष्टिकोण महत्वपूर्ण हो जाता है। परिवर्तन के ऐसे समय में देश का नेतृत्व करने को लेकर असहमति हो सकती है या इससे दलों के बीच शत्रुता बढ़ सकती है। राजनीतिक मतभेदों को दूर करना और परिवर्तन की गति को उचित बनाये रखना परिवर्तन के समय निर्णायक कारक हैं। दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद पर आधारित राजनीतिक व्यवस्था से एक बहुदलीय लोकतांत्रिक शासन के परिवर्तन के दौरान, नेल्सन मंडेला अपनी कार्यप्रणाली पर डटे रहे, बार-बार होने वाले उकसावे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की और परिवर्तन को इस दौर को अच्छी तरह संभाला। इथियोपिया की वर्तमान सरकार मंडेला से इस बात की सीख ले सकता है। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। विगत कुछ दिनों में, प्रधानमंत्री (पीएम) अबी अहमद के नेतृत्व वाली इथियोपियाई सरकार ने टाइग्रेयन लड़ाकों पर हवाई हमले सहित सैन्य अभियान शुरू कर दिए हैं। जिससे इस बात का संकेत मिलता है कि, यदि दोनों पक्षों के सैन्य अभियानों पर नियंत्रण नहीं लगाया गया, तो देश में गृहयुद्ध शुरु होने की संभावना है।
सुधार
हालांकि, अबी अहमद ने 2018 में पदभार संभाला और राजनीतिक सुधारों की अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू की, जिससे देश की घरेलू राजनीति के साथ-साथ विदेश नीति में भी बड़े बदलाव हुए। सेना के पूर्व अधिकारी रहे अहमद ने इथियोपिया और इरिट्रिया के बीच 20 साल के संघर्ष को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दोनों पड़ोसियों के बीच संबंधों को सामान्य बनाने हेतु कई कदम उठाए।[1] इससे, इस रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र के भू-राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया, जिसके लिए अहमद को 2019 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। नोबेल समिति के प्रशस्ति पत्र में उद्धृत किया गया: 'शांति एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग हेतु उनके प्रयासों, और विशेष रूप से इरिट्रिया के साथ सीमा संघर्ष को हल करने की उनकी निर्णायक पहल के लिए...'।[2] अहमद ने सूडान और दक्षिण सूडान में संघर्षों को समाप्त करने, जिबूती और इरीट्रिया के बीच संबंधों को सामान्य करने और साथ ही समुद्री सीमा के संबंध में केन्या और सोमालिया के बीच मध्यस्थता में भी सक्रिय भूमिका निभाई।[3] इसलिए, अहमद का कार्यकाल हॉर्न ऑफ अफ्रीका में शांति लाने के उनके प्रयासों के लिए जाना जाता है।
हालांकि, दूसरे सबसे बड़े अफ्रीकी राज्य (जनसंख्या के लिहाज से) की घरेलू राजनीति में सुधार के उनके प्रयास विवादास्पद रहे हैं और उन्हें काफी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है। अहमद ने राष्ट्र को ठीक करने और बहुत जरूरी राजनीतिक सुधार लाने का वादा किया था। वह ओरोमो समुदाय से आने वाले इथियोपिया के पहले प्रधानमंत्री हैं और 44 साल की उम्र के अफ्रीका में सबसे कम उम्र के नेता हैं। उन्होंने हजारों राजनीतिक कैदियों को मुक्त किया, राजनीतिक स्पेस को खोला, उनकी कैबिनेट में आधी महिलाएं हैं, इथियोपिया में पहली बार कोई महिला राष्ट्रपति बनी और उन्होंने इथियोपिया पीपुल्स रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट (ईपीआरडीएफ) के रूप में ज्ञात सत्तारूढ़ गठबंधन में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाए हैं।[4]
हालांकि, इथियोपिया के कई हिस्सों में उनके तेज बदलावों की ज्यादा सराहना नहीं हुई और परेशानी बढ़ी। वास्तव में, इथियोपिया के पहरेदार देश को लेकर चिंताजनक लग रहे थे। उदाहरण के लिए, जून 2019 में, अमहारा में तख्तापलट की कोशिश की गई जिसमें इथियोपिया के सेना प्रमुख व अमहारा क्षेत्र के गवर्नर मारे गए। इससे पहले, सितंबर 2018 में अहमद पर ग्रेनेड से हमला हुआ, जिससे वो बच गये थे।[5] इसलिए, शत्रुता का नवीनतम दौर और टाइग्रे क्षेत्र में अशांति को अहमद द्वारा शुरू किए गए राजनीतिक परिवर्तनों पर प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए। कुछ समूह प्रधानमंत्री की राजनीतिक सुधारों की शैली और परिणामों से परेशान हैं।
घरेलू जटिलताएं
इथियोपिया में कई जातियां पाईं जाती हैं और इसकी एकता को बनाए रखने हेतु एक अच्छी संघीय व्यवस्था का होना आवश्यक है। इथियोपिया की 34% जनसंख्या के साथ ओरोमो सबसे बड़ा जातीय समूह है, जबकि अम्हरारस 27% और सोमालिस व तिग्रेअन में से प्रत्येक लगभग 6% आबादी का हिस्सा हैं।[6] यह जातीय विविधता संघीय व्यवस्था के इथियोपियाई मॉडल में मान्यता प्राप्त है। बड़े समूह अपने-अपने क्षेत्रों पर प्रशासन करते हैं और संविधान भी प्रत्येक प्रांत को पृथक रहने का अधिकार देता है।[7] प्रधानमंत्री अहमद के राजनीतिक परिवर्तन के प्रयासों को कुछ लोग देश के संघीय ढांचे को कमजोर करने व अदिस अबाबा में सत्ता को केंद्रीकृत करने के प्रयास के रूप में देखते हैं।
शीत युद्ध के दौरान, 1970 के दशक में द डर्ग के नाम से जानी जाने वाली मिलिट्री जुंटा ने सम्राट हैली सेलासी को पछाड़ कर सत्ता हासिल की थी। उनके शासन के दौरान, डर्ग ने मार्क्सवाद की ओर रुख किया और उदार सोवियत सैन्य व राजनीतिक समर्थन हासिल किया।[8] कर्नल मेंगिस्टु हैली मारियम (1977-1991) के नेतृत्व में हजारों असंतुष्टों को बेरहमी से मार डाला और उत्तरी प्रांत टाइग्रे पर लगातार बमबारी की। साल 1988 में इनमें से एक हवाई हमले में कहा गया था कि 1800 लोगों की मौत हो गई थी।[9] इसके बाद 1980 के दशक में, इथियोपिया के मार्क्सवादी-सैन्य व्यवस्था को दो मोर्चों पर विद्रोह का सामना करना पड़ा: इथियोपिया से अलग होने के लिए विद्रोह करने वाले इरिट्रिया, जिसमें टाइग्रे पीपुल्स लिबरल फ्रंट (टीपीएलएफ) के नेतृत्व वाला गठबंधन, ईपीआरडीएफ, कर्नल मेंगिस्टू के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए लड़ा। साल 1991 में, ईपीआरडीएफ शासन को उखाड़ फेंकने में सफल रहा और इरीट्रियन भी इथियोपिया से अलग होने में सफल रहे।[10] इसलिए, शीत युद्ध के बाद के दौर में इथियोपिया में एक नया राजनीतिक विस्तार हुआ और क्षेत्र का राजनीतिक परिदृश्य भी बदल गया।
साल 1991 से 2018 तक, ईपीआरडीएफ ने इथियोपिया पर शासन किया। ईपीआरडीएफ राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ शासन का संचालक था। तिगरायन रहे ईपीआरडीएफ नेता मेलेस ज़नावी ने 21 वर्षों तक इस देश पर शासन किया। अपने शासन के दौरान (1991-2012), इथियोपिया ने सामाजिक और आर्थिक मोर्चे पर उल्लेखनीय प्रगति की। विनाशकारी अकालों के लिए जाना जाने वाला यह देश इस समस्या को दूर करने में कामयाब रहा और बाल मृत्यु दर को भी पांच में से एक से बीस में एक तक कम करने में सफल रहा।[11]उनकी जगह हैलीमारियम देसालेगन ने ले लिया। अपने समय (2012-18) के दौरान, इथियोपिया का तेजी से आर्थिक विकास होना जारी रहा और देश सबसे तेजी से बढ़ती अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा। हालांकि, ईपीआरडीएफ के 27 वर्षों के शासन से भी इथियोपिया में लोकतंत्र स्थापित नहीं हो सका। इसलिए, प्रधानमंत्री अहमद, जो ईपीआरडीएफ के रैंक से ऊपर उठे, और उनके अनुयायियों ने ईपीआरडीएफ के इन 27 वर्षों के शासन को 'अंधकार' भरा माना।[12] आलोचकों का मानना है कि ईपीआरडीएफ के शासन के दौरान, टाइग्रेन्स को सत्ता में अनुपातहीन हिस्सेदारी मिली और अहमद इससे दूर होना चाहते थे। 2018 में सत्ता संभालने के बाद, अहमद ने देश में राजनीति में सुधार करने की तैयारी की। उन्होंने ईपीआरडीएफ को भंग कर एक नई राजनीतिक पार्टी, प्रास्पेरटी पार्टी का गठन किया।[13] हालांकि इसे सत्ता को केंद्रीकृत करने के कदम के रूप में भी देखा गया और इसकी प्रतिक्रिया में, विवादास्पद जातीय राष्ट्रवाद फिर से शुरू हो गया।
हालिया संकट
इस साल सितंबर में, टीपीएलएफ ने टाइग्रे में क्षेत्रीय चुनाव कराए और इसे भारी अंतर से जीता। 98.2% लोगों ने टीपीएलएफ को वोट दिया और क्षेत्रीय संसद की सभी (152) सीटों पर टीपीएलएफ की जीत हुई। हालाँकि, ये चुनाव केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत नहीं थे और इसलिए, इस दौरान तनाव बहुत अधिक था। टीपीएलएफ ने यह कहकर केंद्र सरकार के दावों को खारिज कर दिया कि राष्ट्रीय चुनाव इस साल की शुरुआत में होने थे लेकिन कोविड-19 के कारण स्थगित कर दिए गए थे।[14] इसलिए, टीपीएलएफ का तर्क है कि वह एकमात्र पार्टी है जिससे लोगों का जनादेश मिला है।[15] इसी बीच, नवंबर में कथित तौर पर टाइग्रे में इथियोपियाई रक्षा बलों पर हमला हुआ और पीएम अहमद के अनुसार, इससे धैर्य की सभी सीमाएं पार हो गईं।[16] तब से दोनों पक्ष सैन्य अभियानों में लगे हुए हैं। शांति और मध्यस्थता का अब तक कोई जवाब नहीं आया है। टाइग्रेन्स को डर है, अगर इसमें सुधार नहीं हुआ तो उनको फिर से अनदेखा कर दिया जायेगे और पिछले तीन दशकों से उनके द्वारा की गई प्रगति का कोई अस्तित्व नहीं रह जायेगा।
टाइग्रे सूडान, इरिट्रिया और इथियोपिया के संगम पर स्थित है। इरीट्रिया के साथ नए संबंधों की शुरुआत के बाद से इथियोपिया की सेनाएं इरीट्रिया बलों के साथ मिलकर टीपीएलएफ के खिलाफ हमले कर रही हैं। पूर्ववर्ती ईपीआरडीएफ के कई घटक, विशेष रूप से टीपीएलएफ, इरिट्रिया और इथियोपिया के संबंधों के विरोध में थे। इसलिए, टीपीएलएफ के खिलाफ शुरू किए गए सैन्य अभियानों का समर्थन करने में इरिट्रिया को कई पछतावा नहीं है। जवाबी कार्रवाई में टीपीएलएफ ने इरिट्रिया में मिसाइलें दागी।[17] हालांकि, क्योंकि पिछले कुछ दिनों में संकट बढ़ा है, शरणार्थी पड़ोसी सूडान में घुस रहे हैं।[18] टाइग्रे में नागरिक नरसंहारों की खबरें आ रही थीं, जबकि पूरे क्षेत्र में संचार बंद है।[19]
यह स्पष्ट है कि भले ही अगले कुछ दिनों या हफ्तों में युद्ध विराम हो जाए, लेकिन इथियोपिया में घरेलू मोर्चे पर गंभीर राजनीतिक चुनौतियां जारी रहेंगी। कुछ विश्लेषक इसे इथियोपिया के नेशन-स्टेट का अंत भी कह रहे हैं जैसा कि हम इसे कभी जानते हैं। आगे बढ़ते हुए, अहमद को देश के कुछ हिस्सों में बढ़ती असमानता पर विचार करना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि जातीय राष्ट्रवाद हमेशा दबी हुई रहे। अन्यथा, लोकतंत्र और राजनीतिक सुधारों की तलाश में, इथियोपिया की राजनीति से देश की एकता खतरे में आ जायेगी। इथियोपिया पहले से ही कोविड-19 और टिड्डियों के आक्रमण जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। यह घरेलू शांति और सुरक्षा की नाजुक स्थिति को और बदतर कर सकता है।
क्षेत्रीय भू-राजनीति
इसके अलावा, इथियोपिया बाहरी मोर्चे पर भी चुनौतियों का सामना कर रहा है। अफ्रीका के सबसे बड़े बांध ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां बांध ने इथियोपिया के निचले द्वीपीय राज्यों यानि मिस्र व सूडान के रूप में कूटनीतिक चुनौतियां पैदा कर दी हैं, जो बांध और नील जल बंटवारे पर इसके प्रभाव को लेकर चिंतित हैं। मिस्र ने इथियोपिया को चेतावनी दी है और दोनों देश अभी तक अपने मतभेदों को नहीं सुलझा सके हैं।[20] इसके अलावा, पड़ोसी सूडान खुद सेना के प्रभुत्व वाले सत्तावादी शासन से लेकर 39 महीने की अवधि के असैन्य-सैन्य हाइब्रिड शासन तक एक कठिन एवं चुनौती भरे राजनीतिक परिवर्तन से गुज़र रहा है।[21] इस अस्थिर क्षेत्रीय वातावरण और पड़ोसी इथियोपिया में संकट का सूडानी संक्रमण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। राजनीतिक अस्थिरता और शरणार्थी आंदोलनों के संदर्भ में, सूडानी सेना को देश की राजनीति पर नियंत्रण करने का यह आसान और उपयुक्त समय लग सकता है। हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका के इन दो प्रमुख राष्ट्रों में मची उथल-पुथल से संभावना है कि यह सोमालिया, दक्षिण सूडान और लीबिया जैसे अन्य पड़ोसी राष्ट्रों तक फैल जाएगा। इन सभी राष्ट्रों में सामंजस्यपूर्ण और अच्छी तरह से काम करने वाले केंद्रीय प्राधिकरण की कमी है और क्षेत्रीय अस्थिरता के कारण उनकी समस्याएं और बढ़ सकती हैं।
1970 और 1980 के दशक में डर्ग के शासन की संक्षिप्त अवधि को छोड़कर, इथियोपिया पारंपरिक रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) का करीबी रहा है और विगत कुछ वर्षों में अमेरिका ने हॉर्न ऑफ अफ्रीका में शांति स्थापित करने में सक्रिय भूमिका निभाई है। हालांकि, अमेरिका के लिए राजनीतिक अनिश्चितता एवं अध्यक्षीय संक्रमण के बीच, इथियोपिया में शांति व स्थिरता स्थापित करना मुश्किल होगा। अफ्रीकी संघ (एयू) और इंटर-गवर्नमेंट अथॉरिटी फॉर डेवलपमेंट (आईजीएडी) जैसे क्षेत्रीय संगठनों की भूमिका भी शांति स्थापित करने में महत्वपूर्ण होगी। हालाँकि, यह तय नहीं है कि इथियोपिया एयू और / या आईजीएडी की मध्यस्थता को स्वीकार करने हेतु तैयार होगा या नहीं। इसलिए, जब तक टीपीएलएफ और इथियोपियाई सरकार अपने कदम पीछे नहीं हटते, हिंसा को खत्म करने का प्रयास नहीं करते, और अपनी स्थिति पर फिर से विचार नहीं करते, देश में राष्ट्रीय एकता और क्षेत्रीय अखंडता बनाए रखने में चुनौतियां आने की संभावना है।
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*डॉ. फज़ूर रहमान सिद्दीकी, विश्व मामलों की भारतीय परिषद में शोधकर्ता हैं ।
व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
अंत टिप्पण
[1] Alexia Underwood, “The sudden end of Ethiopia-Eritrea war, explained”, Vox, July 31, 2020 at: https://www.vox.com/2018/7/31/17595988/ethiopia-eritrea-peace-abiy-ahmed (Accessed November 19, 2020)
[2]The Nobel Prize, “The Nobel Peace Prize for 2019”, October 11, 2019, at: https://www.nobelprize.org/prizes/peace/2019/press-release/ (Accessed November 19, 2020)
[3] Ibid
[4]BBC News, “Abiy Ahmed: Ethiopia’s prime minister”, October 11, 2019, at: https://www.bbc.com/news/world-africa-43567007 (Accessed November 19, 2020)
[5]BBC News, “Ethiopia PM Abiy Ahmed weeps for general killed in ‘coup bid’”, June 25, 2019, at: https://www.bbc.com/news/world-africa-48758490 (Accessed on November 19, 2020)
[6]Reuters, “Factbox: Ethiopia’s main ethnic groups”, February 16, 2018, at: https://www.reuters.com/article/us-ethiopia-politics-factbox-idUSKCN1G01HZ (Accessed November 19, 2020)
[8]Global Security, “The Derg/Dergue”, November 23, 2015, at: https://www.globalsecurity.org/military/world/ethiopia/history-dergue.htm (Accessed November 19, 2020)
[9] Alex De Waal, “Tigray crisis viewpoint: Why Ethiopia is spiraling out of control”, BBC News, November 16, 2020, at: https://www.bbc.com/news/world-africa-54932333 (Accessed November 19, 2020)
[10] Terrence Lyons, “The Ethiopia-Eritrea Conflict and the Search for Peace in the Horn of Africa”, Review of African Political Economy, 36 (120), 2009, pp. 167-180
[11] De Waal, no. 8
[12] De Waal, no. 8
[13]Yohannes Gedamu, “Why Abiy Ahmed’s Prosperity Party is good news for Ethiopia”, Al Jazeera, December 18, 2019, at: https://www.aljazeera.com/opinions/2019/12/18/why-abiy-ahmeds-prosperity-party-is-good-news-for-ethiopia/ (Accessed November 19, 2020)
[14] Martina Schwkowski, “Crisis looms in Ethiopia as elections are postponed”, Deutsch Welle, June 16, 2020 at: https://www.dw.com/en/crisis-looms-in-ethiopia-as-elections-are-postponed/a-53829389 (Accessed November 19, 2020)
[15] De Waal, no.8
[16] Giulia Paravicini and Dawit Endeshaw, “Ethiopia sends army into Tigray region, heavy fighting reported”, Reuters, November 4, 2020, at: https://www.reuters.com/article/us-ethiopia-conflict-idUSKBN27K0ZS (Accessed November 19, 2020)
[17]Al Jazeera, “Ethiopia: Tigray leader confirms bombing Eritrean capital”, November 15, 2020, at: https://www.aljazeera.com/news/2020/11/15/rockets-fired-from-ethiopias-tigray-region-hit-eritrean-capital (Accessed November 19, 2020)
[18]Samy Magdy, “Over 25,300 fleeing Ethiopia fighting have reached Sudan”, Associated Press, November 17, 2020, at: https://apnews.com/article/sudan-abiy-ahmed-africa-ethiopia-united-nations-0a37839e6b61e523fcaf9345a1a48583 (Accessed November 19, 2020)
[19] Jason Burke and Zeinab Mohammed Salih, “Both sides in Ethiopian conflict are killing civilians, refuges say”, The Guardian, November 13, 2020, at: https://www.theguardian.com/world/2020/nov/13/civilians-knife-massacre-ethiopia-say-reports (Accessed November 19, 2020)
[20] Damian Zane, “Nile Dam row: Egypt and Ethiopia generate heat but no power”, BBC News, July 9, 2020, at: https://www.bbc.com/news/world-africa-53327668 (Accessed November 19, 2020)
[21] United Institute of Peace, “Sudan, One Year after Bashir”, May 1, 2020, at: https://www.usip.org/publications/2020/05/sudan-one-year-after-bashir (Accessed November 19, 2020)