भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और इस क्षेत्र में कम होती सेना अफगानिस्तान और पाकिस्तान के प्रति अमेरिकी नीतिगत सोच को नया रूप दे रही है। आतंकवाद का मुकाबला करने के साथ-साथ, संयुक्त राज्य अमेरिका की नीति को चीन के साथ अपनी बढ़ती प्रतिस्पर्धा का ध्यान रखने, कोविड-19 महामारी की तात्कालिकता, जलवायु परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करने और क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका जिन आर्थिक चुनौतियों का सामना करता है, उनसे भी निपटना होगा।
अफगान समस्या जारी है
संयुक्त राज्य अमेरिका के पिछले दो प्रशासनों (राष्ट्रपति ओबामा और राष्ट्रपति ट्रम्प) ने अफ़गानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों को वापस लेने और अपने ’सबसे लंबे युद्ध’ को समाप्त करने का प्रयास किया है। इसके लिए फरवरी 2020 में, ट्रम्प प्रशासन ने अफगानिस्तान में शांति लाने के लिए तालिबान के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए[i], जिसमें कहा गया था, "संयुक्त राज्य अमेरिका चौदह (14 महीने) के भीतर अफगानिस्तान से संयुक्त राज्य के सभी सैन्य बलों, उसके सहयोगियों और गठबंधन सहयोगियों के सैन्य बलों जिसमें गैर-राजनयिक असैनिक कर्मियों, निजी सुरक्षा ठेकेदारों, प्रशिक्षकों, सलाहकारों और सहयोगी सेवा कर्मियों को वापस लेने के लिए प्रतिबद्ध है...” [ii] (1 मई, 2021) यदि तालिबान ने अपने वादों पर कायम रहता है, जिसमें अल-क़ायदा या अन्य आतंकवादियों को उनके नियंत्रण वाले क्षेत्रों में संचालन करने की अनुमति नहीं देना, और शांति के लिए अंतर-अफगान वार्ता शुरू करना और अफगान बलों पर हमले कम करना शामिल है। फिर भी, तालिबान और अफगान सरकार के बीच शांति वार्ता बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है और तालिबान उच्च स्तर पर हिंसा कर रहा है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि सरकारी अधिकारियों, नागरिक समाज के नेताओं और पत्रकारों पर लक्षित हमलों, हत्या के प्रयासों की संख्या में वृद्धि हुई है। अफगानिस्तान रीकंस्ट्रक्शन (एसआईजीएआर) के विशेष महानिरीक्षक द्वारा कांग्रेस को प्रस्तुत की गई त्रैमासिक रिपोर्ट के अनुसार “हस्ताक्षर के कुछ ही दिन बाद, हालांकि, तालिबान ने घोषणा की कि उसने सैन्य अभियानों को फिर से शुरू किया है[iii] और अफगान सुरक्षा बलों पर हमले बढ़ा दिए हैं। इन असफलताओं के बावजूद, राष्ट्रपति ट्रम्प ने सेना वापस बुलाना जारी रखा, लगभग 2,500 सैनिकों को छोड़ दिया जो वास्तव में अफगानिस्तान में तैनात थे और यह संख्या 2001 के बाद सबसे कम थी।
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी युद्ध से थके हुए लोगों के लिए अपरिहार्य है। अपने राष्ट्रपति अभियान के दौरान, राष्ट्रपति बिडेन ने तथाकथित चिरकालीन युद्धों को समाप्त करने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि वे आतंकवाद विरोधी मिशनों का संचालन करने के लिए अफगानिस्तान जैसे देशों में कम संख्या में विशेष बल छोड़ेंगे। कई लोगों को आशा है कि बिडेन प्रशासन की दोहा समझौते की समीक्षा 'सबसे लंबे युद्ध' को समाप्त करने का कथन अफगानिस्तान में तैनात सैन्य अधिकारियों की जानकारी के साथ वास्तविक स्थिति को देखने वाले कथन से भिन्न होगा।
पाकिस्तान के साथ एक नई साझेदारी का निर्माण
अफगानिस्तान से वापसी ने संयुक्त राज्य अमेरिका को इस क्षेत्र में अपने हितों को फिर से परिभाषित करने की अनुमति दी है और पाकिस्तान को संयुक्त राज्य के साथ अपने राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने और अफगानिस्तान द्वारा निर्धारित सुरक्षा मापदंडों से परे संबंधों की संभावनाओं के अवसरों की खोज करने का अवसर दिया है। राष्ट्रपति बिडेन को इसका अनुभव है क्योंकि वह केरी-लुगर बिल या 2009 के पाकिस्तान अधिनियम के साथ बढ़ती हुई साझेदारी और पाकिस्तान के साथ सतत दीर्घकालिक संबंधों का समर्थन करने के लिए नागरिक सरकार के साथ संबंध की नीति के मूल वास्तुकारों में से एक हैं।[iv] एक संभावित पुनर्व्यवस्था में, बिडेन प्रशासन सहयोग के गैर-सैन्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर सकता है जैसे जलवायु परिवर्तन, बुनियादी ढांचा विकास, आर्थिक संबंधो में वृद्धि और भागीदारों और गठबंधन के सदस्यों के साथ मजबूत राजनीतिक संवाद। मौजूदा स्वास्थ्य सेवा संकट को देखते हुए, सार्वजनिक स्वास्थ्य एक उभरता हुआ महत्वपूर्ण क्षेत्र है। फिर भी, संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए सुरक्षा कारक बहुत मजबूत रहेगा जो पूरी तरह नज़रंदाज़ नहीं हो सकता है।
अफगानिस्तान की तरह ही, संयुक्त राज्य अमेरिका के भीतर एक विचार है कि पाकिस्तान के साथ संबंधों की समीक्षा की आवश्यकता है। अफगानिस्तान में शांति के लिए पाकिस्तान महत्वपूर्ण बना हुआ है और यहां बिडेन प्रशासन को इस बात पर जोर देने की आवश्यकता है कि गठबंधन सहायता कोष के माध्यम से पाकिस्तान को सहायता समाप्त करने की समीक्षा सहित सकारात्मक द्विपक्षीय संबंध पाकिस्तान के अधिकारियों पर निर्भर रहेंगे जो तालिबान को हिंसा को कम करने और एक राजनीतिक समाधान तक पहुँचने के लिए प्रभावित करने के लिए अपने अच्छे संबंधों का उपयोग करेंगे। । इसे आगे भी आतंकवादी संगठनों की गतिविधियों का मुकाबला करने के लिए पाकिस्तानी सरकार और सुरक्षा बलों द्वारा की गई कार्रवाइयों पर निर्भर बनाया जा सकता है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के मोर्चे पर बिडेन प्रशासन को यह ज्ञात है कि फोरम से दबाव के कारण महत्वपूर्ण लाभ हुआ है और इस्लामाबाद से अधिक रियायतें प्राप्त करने के लिए एक प्रमुख महत्वपूर्ण लाभ है।
सहायता और प्रतिबंधों के बीच विकल्प करने की संयुक्त राज्य की नीति ने पाकिस्तान को सहयोगी बनाने में मदद नहीं की और न ही इससे पाकिस्तान के व्यवहार में परिवर्तन आया है। ‘दाम और दंड की नीति’ ने भागीदारी को पुराने भरोसे में कमी ओर अग्रसर किया है। जबकि अफगानिस्तान में शांति सुनिश्चित करने में पाकिस्तान का महत्व संदेह से परे है, यह भी सच है कि पाकिस्तान के भीतर आतंकवादी संगठन क्षेत्र में बहुत अस्थिरता और तनाव का कारण बने हुए हैं। वर्ष 2017 में राष्ट्रपति ट्रम्प की दक्षिण एशिया की रणनीति का अनावरण करते हुए द्वंद्व दिखाई दे रहा था, उन्होंने अफगानिस्तान-पाकिस्तान क्षेत्र में इस्लामी उग्रवाद द्वारा उत्पन्न खतरों पर जोर देते हुए कहा कि, "हम अब आतंकवादी संगठनों, तालिबान, और अन्य समूह जो इस क्षेत्र और उससे आगे के क्षेत्रों के लिए खतरा पैदा करते हैं, के लिए पाकिस्तान के सुरक्षित ठिकानों के बारे में चुप नहीं रह सकते हैं।"”[v] फिर भी, दिसंबर 2018 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने तालिबान के साथ एक शांति समझौते पर बातचीत करने के लिए पाकिस्तान से सहायता करने का अनुरोध किया था । जहां सुरक्षा संबंधों में एक कारक रहेगी, वहीं बढ़ती चीन-पाकिस्तान साझेदारी को ध्यान में रखते हुए बिडेन प्रशासन पाकिस्तान के साथ आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण निवेश करते हुए भली-भांति संबद्ध हो सकता है ।
निष्कर्ष
बिडेन प्रशासन के पास दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को फिर से व्यवस्थित करने का अवसर है जिसके संयुक्त राज्य अमेरिका की सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक परिणाम होंगे। यह स्पष्ट नहीं है कि बिडेन प्रशासन अफगान शांति समझौते की समीक्षा में कैसे करेगा । संयुक्त राज्य अमेरिका इस समय कुछ सैन्य बलों की उपस्थिति पर जोर दे सकता है, हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि शांति के मुद्दे को स्थायी अंतर-अफगान राजनीतिक वार्ता के माध्यम से हल किया जाए, सेना वापस बुलाने की आवश्यकता को संतुलित करने के लिए विवेकपूर्ण होना चाहिए। पाकिस्तान के साथ संबंधों में वृद्धि होने की आशा है। क्षेत्र के बारे में और पाकिस्तान के नागरिक और सैन्य प्रतिष्ठानों के उनके ज्ञान को देखते हुए, राष्ट्रपति बिडेन संबंधों को दोनों देशों के लिए अधिक लाभदायक बना सकते हैं।
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*डॉ.स्तुति बनर्जी, शोधकर्ता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली ।
व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं ।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां
[i] The text of the agreement is available at https://www.state.gov/wp-content/uploads/2020/02/Agreement-For-Bringing-Peace-to-Afghanistan-02.29.20.pdf
[ii] The US Department of State, “Agreement for Bringing Peace to Afghanistan between the Islamic Emirate of Afghanistan which is not recognized by the United States as a state and is known as the Taliban and the United States of America February 29, 2020,” https://www.state.gov/wp-content/uploads/2020/02/Agreement-For-Bringing-Peace-to-Afghanistan-02.29.20.pdf, Accessed on 11 Feb. 2021
[iii] The report is available at https://www.sigar.mil/pdf/quarterlyreports/2020-04-30qr.pdf
[iv] The bill laid down a programme for USD 7.5 billion non-military aid to Pakistan for a period of five years that tripled American aid to the country.
[v] Congressional Research Service, “Pakistan-U.S. Relations,” https://fas.org/sgp/crs/row/IF11270.pdf, Accessed on 03 March 2021.