बीते कुछ महीनों में भारत-श्रीलंका के संबंधों में असमानता देखने को मिली है। भारत और श्रीलंका के बीच के संयुक्त उद्यमों के भविष्य को लेकर अनिश्चितता ने द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित किया है, जिन्हें विगत कुछ सालों में सुरक्षा एवं आर्थिक जुड़ाव के परिपेक्ष्य में बेहद सावधानी से पोषित किया गया था।
कोलंबो ईस्ट कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) को न बनाने के श्रीलंका सरकार के फैसले[1] से पारस्परिक रूप से सहमत क्षेत्रों में संयुक्त निवेश बढ़ाने के प्रयास को एक बड़ा झटका लगा है। भारत चाहेगा कि भारत, श्रीलंका और जापान के बीच 2019 में ईसीएल (500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुमानित लागत) को विकसित करने के त्रिपक्षीय समझौते को लागू किया जाए। लेकिन, इसकी संभावना बहुत की कम है कि श्रीलंकाई सरकार अपना फैसला बदलेगी। इसके बजाय, श्रीलंका ने भारत और जापान को वेस्ट कंटेनर टर्मिनल की पेशकश की है। श्रीलंका सरकार के इस फैसले के कई वजहें हैं। पहला, अगस्त 2020 में श्रीलंका की पोडुजाना पेरुमना (एसएलपीपी) सरकार के गठन के बाद समझौते को लागू करने के आश्वासन के बावजूद, देश के दक्षिणी हिस्से में भारत के निवेश और इससे जुड़े राजनीतिक तथ्यों को लेकर गहरे संदेह की वजह से रणनीतिक बिंदुओं पर भारत के निवेश में बाधा उत्पन्न होना।
दूसरा, श्रीलंका सरकार द्वारा इस परियोजना को आगे न बढ़ाने का फैसला एक बड़ी विदेश नीति अवसंरचना के कारण लिया गया हो सकता है। 2019 के राष्ट्रपति चुनावों के बाद, एसएलपीपी सरकार की विदेश नीति का उल्लेख सरकार के राष्ट्रीय नीति ढांचे के दस्तावेज में किया गया था, जिसका शीर्षक 'समृद्धि एवं वैभव का विस्तार' था, जिसे दिसंबर 2019 में जारी किया गया था। इस नीति दस्तावेज में कहा गया था कि श्रीलंका 'सामरिक एवं आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों के स्वामित्व को सुनिश्चित करने हेतु अनुकूल और गैर-संरेखित विदेश नीति का अनुसरण करेगा।'[2] इसमें "विगत पांच सालों में हस्ताक्षर किये गए हानिकारक द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर फिर से गौर करने और घरेलू अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक किसी भी समझौते को रोकने की जरुरत पर भी प्रकाश डाला गया था।"[3]
तीसरा, भारत का रणनीतिक एवं आर्थिक रुप से श्रीलंका के साथ मजबूत विकास सहयोग ढांचे के साथ जुड़ने की गहरी दिलचस्पी में भू-राजनीतिक और भू-रणनीतिक हितों के कारण बाधा आ रही है।
भारत के साथ आर्थिक एवं रणनीतिक संयुक्त उपक्रम के संदर्भ में श्रीलंका की पहले और वर्तमान स्थितियों को उपरोक्त संदर्भ में देखा जा सकता है।
अप्रैल 2017 में, श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा के दौरान, दोनों देशों के बीच 'आर्थिक परियोजनाओं में सहयोग' पर सहमति बनी थी।[4] सहयोग के कुछ क्षेत्र जिनपर एमओयू की कल्पना की गई थी : रिगैसिफाइड लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) की 500 मेगावाट क्षमता वाले एलएनजी पावर प्लांट का विकास; कोलंबो / केरावलपिटिया में फ्लोटिंग स्टोरेज रिगैसिफिकेशन यूनिट (एफएसआरयू); सामपुर में 50 मेगावाट का सौर ऊर्जा संयंत्र; संयुक्त उद्यम के रूप में अपर टैंक फार्म का विकास; त्रिंकोमाली में पोर्ट, पेट्रोलियम रिफाइनरी और अन्य उद्योग; श्रीलंका के चिह्नित स्थानों पर औद्योगिक / विशेष आर्थिक क्षेत्र; संयुक्त उद्यम के रूप में कोलंबो पोर्ट में कंटेनर टर्मिनल; सड़क एवं रेलवे क्षेत्र का विकास, कृषि व पशुधन का विकास।[5] इसमें सामने आये कुछ मुद्दों पर नीचे चर्चा की गई है।
निवेश से जुड़े पिछले मुद्दे
2018 में मटाला राजपक्षे अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के उन्नयन और संचालन तथा रामपुर परियोजना को विकसित करने के प्रस्ताव इस बात के उदाहरण हैं कि भारत के प्रस्तावित निवेश राजनीतिक नीतिगत फैसलों से किस तरह प्रभावित हुए। श्रीलंका ने 2019 में दक्षिणी श्रीलंका में हम्बनटोटा पोर्ट (चीन द्वारा विकसित किया जा रहा बंदरगाह) के पास स्थित मटाला हवाई अड्डे का भारत द्वारा किए गए निवेश से नहीं बल्कि खुद से उन्नयन करने का फैसला किया। जुलाई 2020 में, श्रीलंका के प्रधानमंत्री, महिंदा राजपक्षे ने कहा कि भारत ने एयरपोर्ट को संयुक्त उद्यम के रूप में विकसित न करने के उनके अनुरोध को स्वीकार किया था, और इससे श्रीलंका ‘हवाई अड्डे को बचा सका’[6] था। यह बयान उन्होंने 2020 अगस्त में संसदीय चुनावों से पहले दिया था।
अक्टूबर 2013 में हस्ताक्षर किया गया भारत-श्रीलंका संयुक्त उपक्रम समझौता जिसमें 500 मेगावाट का सामपुर कोल पॉवर प्लांट / त्रिंकोमाली कोल पॉवर प्लांट (500 मिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना) भी पर्यावरण व विस्थापन संबंधी चिंताओं और नवीकरणीय ऊर्जा पर स्विच करने के श्रीलंका के फैसले की वजह से शुरु नहीं की जा सकी। यह परियोजना 2014 में भारत के सहयोग से श्रीलंका में कार्यान्वित की जाने वाली सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक थी।'[7] भारत ने श्रीलंकाई मीडिया द्वारा कोल पॉवर प्लांट परियोजना के संबंध में पूछे गए सवालों का जवाब दिया और कहा कि 'परियोजना में पर्यावरणीय पहलुओं पूरी तरह से ध्यान में रखा गया है।'[8] श्रीलंका ने 2016 में भारत की मदद से उसी स्थान पर तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) संयंत्र विकसित करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन श्रीलंका की ऊर्जा से जुड़ी जरुरतों को पूरा करने की क्षमता के बावजूद संयंत्र के विकास को लेकर अनिश्चितता जारी है। श्रीलंका की ऊर्जा आपूर्ति का लगभग 60 % हिस्सा एलपीजी, कच्चे तेल, कोयला, विमानन ईंधन और गैसोलीन के रुप में आयात किया जाता है।[9] 2017 के 'आर्थिक परियोजनाओं में सहयोग के द्विपक्षीय समझौते' में भी सामपुर में 50 मेगावाट सौर ऊर्जा संयंत्र का जिक्र है।
त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फार्म का मुद्दा
दोनों देशों ने त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फार्म का मुद्दा को विकसित करने में रुचि दिखाई[10] और 2017 में त्रिंकोमाली अपर फार्म में इस्तेमाल नहीं किये जा रहे 84 टैंक के संचालन को लेकर नए सिरे से चर्चा की। लेकिन परिचालन पहलुओं को लेकर मतभेद और श्रीलंका के ट्रेड यूनियनों के विरोध के कारण यह चर्चा आगे नहीं बढ़ सकी। 2017 में, सीलोन पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों ने अपनी हड़ताल तत्कालीन प्रधानमंत्री (पीएम) रानिल विक्रमसिंघे के इस आश्वासन के बाद ही समाप्त की कि 'भारत को तेल टैंकों को पट्टे पर देने का प्रस्ताव था और उनकी सरकार अपने राज्य की संपत्ति बेच नहीं रही थी।'[11] वर्तमान में, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) की सहायक कंपनी, लंका इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (लंका आईओसी), लोवर फर्म में पंद्रह टैंकों का संचालन करती है।
स्रोत: exploresrilanka.lk, त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फार्म
विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का जिक्र किया गया कि, श्रीलंका हिंद महासागर में त्रिंकोमाली प्राकृतिक बंदरगाह के रणनीतिक महत्व का उपयोग करना चाहता है, संभवतः भारत की भागीदारी के बिना। जून 2020 में, श्रीलंका के ऊर्जा एवं बिजली मंत्री महिंदा अमरवीरा ने 'आईओसी द्वारा संचालित तेल टैंकों को पुनः हासिल' करने की बात कही।[12] उन्होंने 17 फरवरी 2021 को श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री गामनपिला की कही बात को ही दोहराया था, जिन्होंने कहा था कि श्रीलंका जल्द ही अपर फार्म में अप्रयुक्त पड़े टैंकों को फिर से हासिल करेगा।[13] श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री के इस बयान को 2017 में श्रीलंका की सार्वजनिक उद्यम समिति (सीओपीई) की सिफारिशों से जोड़कर देखा जा सकता है। समिति ने 'आईओसी से तेल टैंकों के अधिग्रहण' की सिफारिश की थी और 2003 में भारत और श्रीलंका के बीच हस्ताक्षरित समझौते की वैधता पर भी सवाल उठाया था।'[14] भारत ने हालांकि, इन रिपोर्ट्स को खारिज कर दिया और कहा कि 'दोनों देशों की सरकारें संयुक्त रूप से 2017 में बनी द्विपक्षीय सहमति के अनुसार सुविधा के विकास और संचालन हेतु ऐसे तरीके तलाश रही है, जो दोनों पक्षों को मंजूर हों।'[15] त्रिंकोमाली रणनीतिक रुप से बहुत अहम जगह पर स्थित है, जिसकी अनदेखी भारत नहीं कर सकता।
स्रोत: साउथ एशिया वॉइस
एक संयुक्त उद्यम के रूप में त्रिंकोमाली ऑयल टैंक फार्म के विकास का उल्लेख 1987 के भारत-श्रीलंका समझौते में भी किया गया था। श्रीलंका तब 'भारत की सुरक्षा चिंताओं को दूर करने हेतु सहमत हुआ था, जिसमें किसी देश द्वारा सैन्य उपयोग हेतु त्रिंकोमाली या किसी अन्य बंदरगाह की अनुमति नहीं देना और संयुक्त उद्यम के रूप में त्रिंकोमाली को बहाल व संचालित करने पर सहमति व्यक्त की थी।'[16] पिछली दो सरकारों द्वारा बनी सहमति को श्रीलंका भविष्य में मानेगा या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है।
ईसीटी का मुद्ददा
स्रोत: roar.media, कोलंबो ईस्ट कंटेनर टर्मिनल
13 जनवरी 2021 को, श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे ने श्रीलंका के 23 ट्रेड यूनियन नेताओं से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि 'ईसीटी को बेचा या पट्टे पर नहीं दिया जाएगा।'[17] उन्होंने यह भी कहा, उनकी सरकार 'टर्मिनल का विकास निवेश परियोजना के रूप में करने की योजना बना रही है जिसका 51 प्रतिशत स्वामित्व श्रीलंका सरकार के पास होगा और शेष 49 प्रतिशत भारत के अडानी समूह और अन्य हितधारकों के निवेश के रूप में होगा।'[18] लेकिन, वर्तमान सरकार की ईसीटी समझौते को कार्यान्वित करने की अनिच्छा 2020 के मध्य तक स्पष्ट थी। राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे ने जुलाई 2020 में ईसीटी से जुड़े मुद्दों पर एक पांच सदस्यीय समिति नियुक्त की।[19] समिति ने बंदरगाह का पूरा संचालन श्रीलंका पोर्ट अथॉरिटी (एसएलपीए) द्वारा किये जाने और भारत तथा जापान की मदद से कोलंबो के वेस्ट कंटेनर टर्मिनल (डब्ल्यूसीटी के संचालन एवं विकास हेतु 'संभावित सार्वजनिक-निजी साझेदारी' की सिफारिश की।[20] 1 फरवरी, 2021 को, श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने ट्वीट किया कि उन्होंने ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ताओं से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया है कि उनकी सरकार “सरकार से संबंधित संपत्ति को बनाए रखने की अपनी नीति का सख्ती से पालन करती है।” [21] एसएलपीए के ट्रेड यूनियन नेताओं ने बंदरगाह का प्रबंधन किसी भी विदेशी कंपनी को न देने की मांग कर रहे थे। उनका कहना है कि टर्मिनल से 2019 में 273 मिलियन अमेरिकी डॉलर का मुनाफा हुआ है, [22] और अगर बंदरगाह के संचालन का काम दूसरे देश को दिया जाता है, तो इससे एसएलपीए को प्रति माह 12 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होगा।[23]
श्रीलंकाई मीडिया के अनुसार, सरकार की भारत की निजी कंपनी अडानी समूह को लेकर कुछ चिंताएं भी थी, जिसे ईसीटी को विकसित करने का काम सौंपा गया था। श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने कहा था कि जिस भारतीय कंपनी को ईटीसी का प्रबंधन करना था, उसने 'ईसीटी से जुड़ी चिंताओं का पता लगाने हेतु नियुक्त समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया था।'[24] ईसीटी पर नीतिगत मतभेदों के बीच, श्रीलंका ने भारत को 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर के मुद्रा विनिमय का भुगतान किया, लेकिन इस बात पर जोर दिया कि 'यह कदम ईसीटी निर्णय से संबंधित नहीं है बल्कि समय पर वापस भुगतान के दायित्व को पूरा किया गया है।'[25] कोलंबो ईसीटी के संबंध में लिए गए निर्णय पर श्रीलंका का एजेंडा वर्तमान सरकार के बिल्ड, ऑपरेट एवं ट्रांसफर (बीओटी) अवधारणा के तहत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के प्रवाह पर केंद्रित है।[26] पिछले कुछ महीनों में, न्यू फोर्ट्रेस एनर्जी, नेथनियल रोथचाइल्ड, सिलिकॉन वैली के इंसाफ मोहिदीन जैसे निवेशकों ने निवेश की संभावनाएं तलाशने हेतु श्रीलंका का दौरा किया था। इसके अलावा, ईसीटी के मुद्दे को लेकर श्रीलंका के भीतर भी मतभेद हैं। विपक्षी दल सामगी जना बलवगेया (एसजेबी) ने फैसले का विरोध किया और 'चीन-केंद्रित नीति का पालन करने को लेकर सरकार को दोषी ठहराया'।[27] पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि भारत के साथ बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से पीछे हटना एक बड़ी गलती थी।[28] तो वहीं जनमत विमुक्ति पेरमुना (जेवीपी) श्रीलंका सरकार के फैसले के समर्थन में सामने आई।[29] भारत चाहेगा कि त्रिपक्षीय समझौता लागू किया जाए क्योंकि इससे कोलंबो के पोर्ट ट्रांसशिपमेंट व्यवसाय को लाभ होगा, जिसकी 60 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत के पास है। भारत इसे हर स्थिति में अपनी जीत के अवसर के रूप में भी देखता है, क्योंकि श्रीलंका के ‘ऋण की तुलना में निवेश’ को प्राथमिकता देने की वजह से यह पोर्ट श्रीलंका के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करेगा।[30] संयुक्त उद्यमों के संबंध में चिंताओं के बीच, श्रीलंका की कैबिनेट ने 2 मार्च 2021 को भारत और जापान की मदद से कोलंबो बंदरगाह के वेस्ट कंटेनर टर्मिनल को एक संयुक्त उद्यम (सार्वजनिक-निजी साझेदारी) के रूप में विकसित करने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अब भारत और जापान को इस मुद्दे पर निर्णय लेना है। इसी बीच, भारत ने श्रीलंका सरकार के इस दावे का खंडन किया है कि डब्ल्यूसीटी में भारत की भागीदारी की पेशकश को भारतीय उच्चायोग, कोलंबो से अनुमोदन मिल चुका है।[31]
स्रोत: newsin.asia, कोलंबो वेस्ट कंटेनर टर्मिनल
विरोधाभासी रूप से, श्रीलंका के भीतर चीन के निवेश के जवाब में कम प्रतिरोध देखने को मिलता है। श्रीलंका ने भारत के साथ ईसीटी परियोजना को रद्द करने में चीन के हस्तक्षेप को यह कहते हुए इनकार कर दिया कि चीन भारत-श्रीलंका संबंधों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।[32] ईसीटी के फैसले के ठीक बाद ही, मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 'एक चीनी कंपनी ने डेल्फ़्ट द्वीप, अनालातिवु और नैनातिवुइन जाफना क्षेत्र में 12 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुमानित लागत से तीन अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को विकसित करने की बोली जीती थी।'[33] श्रीलंका की कैबिनेट अगले कुछ महीनों में इस मामले पर अंतिम फैसला लेगी। यदि श्रीलंका सरकार चीन के साथ मिलकर पोर्ट का विकास करने का फैसला करती है, तो भारत को परियोजना के सुरक्षा निहितार्थ से जुड़ी बातों को भी देखना होगा क्योंकि डेल्फ़्ट द्वीप तमिलनाडु में रामेश्वरम तट से केवल 48 किलोमीटर ही दूर है।
स्रोत: Voyage.com, डेल्फ़्ट द्वीप, श्रीलंका
महिंद्रा राजपक्षे के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान भारत-श्रीलंका संबंधों में चीन महत्वपूर्ण कारक रूप से उभर कर सामने आया, जिसका प्रभाव भारत की अपेक्षा के अनुसार पिछली एकता सरकार के दौरान भी कम नहीं हुआ। 2020 में राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद राष्ट्रपति गोटाबया राजपक्षे ने इस बात पर बल दिया कि श्रीलंका 'रणनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर भारत को प्राथमिकता देने के दृष्टिकोण' का पालन करेगा, [34] जो एक तरह से द्विपक्षीय सहयोग को मजबूत करने का आश्वसन था। इसके बावजूद, हालिया घटनाक्रम से ऐसा होता हुआ दिख नहीं रहा है।
निष्कर्ष
श्रीलंका में अपनी सामरिक संपत्ति को विकसित करने में भारत की भूमिका को लेकर विरोधभाव होना कोई नई बात नहीं है। श्रीलंका सरकार की मौजूदा विदेश नीति में संभावित आर्थिक आर्थिक लाभ के बावजूद, भारतीय निवेश को लेकर अनिश्चितता देखने को मिल रही है। द्विपक्षीय स्तर पर इसका सकारात्मक पहलू यह है कि दोनों देशों ने बातचीत और वार्ता के दरवाजे अभी बंद नहीं किए हैं जिससे संभवतः एक-दूसरे की चिंताओं को दूर करने में मदद मिल सकती है।
*****
* डॉ. समता मल्लेम्पती, शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां
[1] Tweet by Prime Minister Mahinda Rajapaksa on 1 February 2021, https://twitter.com/PresRajapaksa/status/1356174990056554499?ref_src
[2]National Policy Framework, Government of Sri Lanka,http://www.doc.gov.lk/images/pdf/NationalPolicyframeworkEN/FinalDovVer02-English.pdf. Accessed on 8 February 2021.
[3]Ibid
[4]Ministry of External Affairs, Government of India, Transcript of Weekly Media Briefing by Official Spokesperson (27 April 2017). https://www.mea.gov.in/media-briefings.htm?dtl/28431/Transcript_of_Weekly_Media_Briefing_by_Official_Spokesperson_April_27_2017. Accessed on 7 February 2021.
[5]Ministry of External Affairs, Government of India, Transcript of Weekly Media Briefing by Official Spokesperson (27 April 2017). https://www.mea.gov.in/media-briefings.htm?dtl/28431/Transcript_of_Weekly_Media_Briefing_by_Official_Spokesperson_April_27_2017. Accessed on 7 February 2021.
[6]“India heeded his request not to seek joint venture to run Mattala airport: Sri Lanka PM Mahinda Rajapaksa”, economic times 10 July 2020, https://economictimes.indiatimes.com/industry/transportation/airlines-/-aviation/india-heeded-his-request-not-to-seek-joint-venture-to-run-mattala-airport-sri-lanka-pm-mahinda-rajapaksa/articleshow/76896339.cms?from=mdr.Accessed on 11 February 2021.
[7]High Commission of India, Colombo,“ High Commissioner's address at the inauguration of the 4th Asia Energy Security”,26February 2014, https://hcicolombo.gov.in/speech?id. Accessed on 12 February 2021.
[8]Ibid
[9]USAID, SARI/EI Publication, “Prospects for regional cooperation and cross border energy trade in the BIMSTEC region”, February 2020, Page. 12,https://irade.org/BIMSTEC%20Background%20Paper_February%202020.pdf. Accessed on 13 February 2021.
[10]Trincomalee oil tanks were built by the British during the World War II, to help the Royal Navy and Air Force against Japanese advances in the region.The British utilised the Trincomalee harbour, one of the world’s largest natural harbour for commercial and strategic purposes. Each tank has the capacity to store 12,000 tones of oil.
[11]“Sri Lanka only leasing out oil tanks to India: RanilWickremesinghe”, The Economic Times, 6 May 2017, https://economictimes.indiatimes.com/industry/energy/oil-gas/sri-lanka-only-leasing-out-oil-tanks-to-india-ranil-wickremesinghe/articleshow/58547969.cms?from=mdr. Accessed on 8 February 2021.
[12]Govt. mulling reclamation of oil tanks in Trincomalee oil farm, News First, 4 June 2020, https://www.newsfirst.lk/2020/06/04/govt-mulling-reclamation-of-oil-tanks-in-trincomalee-oil-farm/. Accessed on 10 February 2021.
[13] “SL to re-acquire Trinco Oil Tank Farm soon; Minister”, Daily Mirror, 17 February 2021, http://www.dailymirror.lk/breaking_news/SL-to-re-acquire-Trinco-Oil-Tank-Farm-soon-Minister/108-205999. Accessed on 18 February 2021.
[14]ShiharANeez, “Sri Lanka’s high opportunity cost of unutilised China Bay oil tanks”, Place of Publication? 8 December 2020, http://www.ft.lk/columns/Sri-Lanka-s-high-opportunity-cost-of-unutilised-China-Bay-oil-tanks/4-709910. Accessed on 11 February 2021.
[15] High Commission of India, Colombo, Press Release, Upper Oil Tank Farms in Trincomalee, 18 February 2021, https://hcicolombo.gov.in/press?id, Accessed on 19 February 2021.
[16]The 1987 Indo-Sri Lanka Accord, Sangam publication, ?https://www.sangam.org/FB_HIST_DOCS/ISL%20Accord%20.htm. Accessed on 10 February 2021.
[17] President of Sri Lanka, “ECT will not be sold or leased – President tells Trade Union reps”, 13 January 2021, https://www.president.gov.lk/ect-will-not-be-sold-or-leased-president-tells-trade-union-reps/. Accessed on 20 February 2021.
[18] Ibid
[19]Government of Sri Lanka, Presidential Secretariat Press Release, “Committee to look into concerns connected with development of JCT & ECT Terminals of Colombo Port”, July 2020, https://www.presidentsoffice.gov.lk/index.php/2020/07/03/committee-to-look-into-concerns-connected-with-development-of-jct-ect-terminals-of-colombo-port/. Accessed on 10 February 2021.
[20]“Cabinet approval to operate Eastern Terminal 100% under the Ports Authority”, Colombo Page, 2 February 2021, http://www.colombopage.com/archive_21A/Feb02_1612243344CH.php. Accessed on 5 February 2021.
[21]Mahinda Rajapaksa, https://twitter.com/PresRajapaksa/status/1356174990056554499. Accessed on 3 February 2021.
[22]“Sri Lanka Cabinet Backs Handing Over Strategic Port Terminal to Indian Firm”, Maritime gateway, 27 November 2020, https://www.maritimegateway.com/sri-lanka-cabinet-backs-handing-strategic-port-terminal-indian-firm/. Accessed on 4 February 2021.
[23]Ibid
[24]India demands implementation of East Container Terminal agreement, Colombo gazette, 1 February 2021, https://colombogazette.com/2021/02/01/india-demands-implementation-of-east-container-terminal-agreement/. Accessed on 4 February 2021.
[25]KelumBandara, “India’s concerns over ECT understandable - Ajith NivardCabraal”, Dailymirror Sri Lanka, 11 February, 2021, http://www.dailymirror.lk/opinion/Indias-concerns-over-ECT-understandable-Ajith-Nivard-Cabraal/172-205541. Accessed on 14 February 2021.
[26]Ibid
[27]“Opposition slams Government over pro-China policy”, Colmbogazette, 2 February 2021, https://colombogazette.com/2021/02/02/opposition-slams-government-over-pro-china-policy/. Accessed on 4 February 2021.
[28] Withdrawal of projects with India, Japan & U.S. is a mistake : Ranil, Ceylon News, 25 Feb 2021, https://ceylontoday.lk/news/withdrawal-of-projects-with-india-japan-u-s-is-a-mistake-ranil
[29]“JVP supports port workers’ struggle to keep ECT under Sri Lanka’s control”, Colombopage, 23 January 2021, http://www.colombopage.com/archive_21A/Jan08_1610084538CH.php. Accessed on 6 February 2021.
[30]Indian High Commissioner to Sri Lanka, Gopal Bagly interview to Daily Mirror, “High level interaction and commitment - the way forward on path to recovery”, Daily Mirror, 10 December 2020, http://www.dailymirror.lk/opinion/High-level-interaction-and-commitment-the-way-foward-on-path-to-recovery/172-201525. Accessed on 12 February 2021.
[31]Suhasini Haider and Meera Srinivasan, “India, Japan cool to Colombo offer of new port project”, 6 March 2021, https://www.thehindu.com/news/national/india-japan-cool-to-colombo-offer-of-new-port-project/article34007699.ece. Accessed on March 8, 2021.
[32] Meera Srinivasan, China had no role in Sri Lanka’s decision on ECT’, The Hindu, 10 February 2021, https://www.thehindu.com/news/international/china-had-no-role-in-sri-lankas-decision-on-ect/article33804071.ece
[33]S. Rubatheesan, “India fumes as China gets northern power projects”, Sunday Times, 7 February 2021, http://www.sundaytimes.lk/210207/news/india-fumes-as-china-gets-northern-power-projects-431894.html. Accessed on 15 February 2021.
[34] Interview with Foreign Secretary Sri Lanka, Admiral Jayanath Colombage, 19 September 2020, https://www.youtube.com/watch?v=N8w6DfoLMmE&trk=organization-update-content_share-embed-video_share-article_title. Accessed on 20 February 2021.