पांच वर्ष पहले अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति बाराक ओबामा ने आने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को सलाह दी थी कि उत्तर कोरिया अमेरिका के लिए सबसे कठिन विदेश नीति की चुनौती होगी। अगर राष्ट्रपति परिवर्तन के समय किसी बैठक का मौका मिला होता तो राष्ट्रपति ट्रंप ने प्योंगयांग के साथ युद्ध से बचने तथा उत्तर कोरियाई खतरे को कम करने का श्रेय साफ तौर पर दावा किया होता ।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने उत्तर कोरिया के प्रति अभूतपूर्व दृष्टिकोण अपनाया। ' रणनीतिक धैर्य ' की ओबामा की नीति को छोड़ते हुए,[1] ट्रम्प प्रशासन ने एक नीति अपनाई जो "अधिकतम दबाव" तथा "अधिकतम संविद" के बीच विद्यमान थी। यह युद्ध के खतरे तथा कड़े प्रतिबंधों के साथ शुरू हुआ तथा राजनयिक संबंधों के लिए एक नाटकीय मोड़ पर राष्ट्रपति ट्रम्प तथा उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग-उन के बीच तीन ऐतिहासिक शिखर सम्मेलनों को देखा गया। ट्रम्प के नेतृत्व स्तर के संविद के दृष्टिकोण ने उत्तर कोरिया के लिए कूटनीतिक की शुरुआत कर दी, जिसके परिणामस्वरूप किम जोंग-उन की दक्षिण कोरिया, चीन तथा रूस के नेताओं के साथ बैठकें हुईं।.[2]
हालांकि यह सत्य है कि ट्रंप के अभूतपूर्व कदम ने युद्ध के जोखिम से स्थिति को बचाया तथा कूटनीति के लिए गति प्रदान की, परंतु इसने मौलिक रूप से कुछ भी नहीं बदला है। उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु भंडार को बनाए रखा है तथा यूरेनियम को समृद्ध करने और अपनी परमाणु और मिसाइल क्षमताओं को आगे बढ़ाना जारी रखा है। जून 2018 में सिंगापुर शिखर सम्मेलन के बाद शुरू हुई वाशिंगटन तथा प्योंगयांग के बीच परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता 2019 वियतनाम शिखर वार्ता के विफलता के बाद टूट गई थी। किम जोंग-उन के साथ 'महान संबंध' के ट्रंप के दावे के बावजूद उनका नजरिया वाशिंगटन तथा प्योंगयांग के बीच कूटनीतिक खाई को पाट नहीं सका।[3]
2019 के मध्य से उत्तर कोरिया पनडुब्बी से प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल सहित कम दूरी की मिसाइलों के परीक्षण में व्यस्त है। हालांकि राष्ट्रपति ट्रम्प ने ज्यादातर इन मिसाइल परीक्षणों के खतरे को कम किया, परन्तु यह वास्तव में कोरियाई प्रायद्वीप में शांति प्रक्रिया गति से हट गया था, जिसमें उत्तर कोरिया ने 2018 में घोषित परीक्षण पर स्वैच्छिक स्थगन को छोड़ दिया था। इसके अलावा, जनवरी 2021 में आयोजित वर्कर्स पार्टी ऑफ कोरिया (डब्लूपीके) की 8वीं कांग्रेस में किम जोंग-उन ने परमाणु तथा मिसाइल क्षमता को आगे बढ़ाने को प्राथमिकता देने पर जोर दिया।[4]
हालांकि ट्रंपियन दृष्टिकोण ने अंतर-कोरियाई संबंधों में सुधार के लिए स्थितियां पैदा कर दी हैं, लेकिन अमेरिका-उत्तर कोरिया के परमाणु निरस्त्रीकरण वार्ता में सीमित प्रगति ने अंतर-कोरिया कूटनीति में गति धीमी कर दी, जिससे 2018 में अंतर-कोरिया शिखर सम्मेलनों के बाद किए गए कुछ समझौतावादी उपायों को पलट कर रख दिया गया। जून 2020 में अंतर-कोरियाई संपर्क कार्यालय को उड़ाने वाले उत्तर कोरिया के कदम को दक्षिण कोरिया के साथ संबंधों को बड़ा झटका लगा था।
शायद ट्रंप के रवैये से फायदा होने वाला एकमात्र सम्बन्ध उत्तर कोरिया-चीन समीकरण रहा है, जो 2012 में किम जोंग-उन के सत्ता में आने के बाद से लगातार खराब स्थिति में रहा था। 2018 के बाद से दोनों कम्युनिस्ट सहयोगियों के बीच संबंधों में पारस्परिक नेतृत्व स्तर के यात्राओं के साथ महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। अमेरिका-चीन रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता के संदर्भ में प्योंगयांग के साथ बीजिंग के संबंधों में पुनर्स्थापन एक संकेत है जो इस धारणा को पुष्ट करता है कि वह परमाणु देश उत्तर कोरिया के साथ रहने के लिए तैयार है। इसका अभिप्राय यह भी है कि उत्तर कोरियाई परमाणु निरस्त्रीकरण का लक्ष्य है कि अतीत में प्रेरित अमेरिका-चीन सहयोग तेजी से ख़त्म हो रहा है।
वाशिंगटन की "नई" उत्तर कोरिया नीति
ट्रंप के विपरीत बिडेन विदेश तथा सुरक्षा मामलों में अच्छी तरह से वाकिफ हैं। ओबामा के अंतर्गत उप राष्ट्रपति के रूप में उनके अनुभव को देखते हुए यह असंभव है कि नया प्रशासन उत्तर कोरिया के प्रति ट्रंप की नीति जारी रखेगा। अपने चुनाव अभियान के दौरान, बिडेन ने वादा किया कि वह ' सैद्धांतिक कूटनीति ' का पालन करेंगे,[5] जिसका अर्थ कूटनीति के लिए एक पारंपरिक ऊर्घ्वगामी दृष्टिकोण की वापसी है जिसे ट्रम्प ने नेतृत्व वाले मूल्यांकन के पक्ष में मोड़ दिया था। हालांकि, कुछ लोगों को 'रणनीतिक धैर्य' के ओबामा के दृष्टिकोण की वापसी की उम्मीद है क्योंकि यह उत्तर कोरिया के परमाणु तथा मिसाइल कार्यक्रम को रोकने में अप्रभावी था। बिडेन ने किम जोंग-उन से मिलने की इच्छा का भी सुझाव दिया लेकिन "इस शर्त पर कि वह (किम) इस बात से सहमत होंगे कि वह अपनी परमाणु क्षमता को नीचे खींच लेंगे।”[6] परमाणु कार्यक्रम के "पूर्ण, सत्यापनीय तथा अपरिवर्तनीय विघटितीकरण" (सीवीआईडी) के बजाय "ड्राइंग डाउन" शब्द का उपयोग अच्छी तरह से वाशिंगटन के एक अधिकतम स्थिति से दूर जाने का सुझाव हो सकता है।
विदेश विभाग के अनुसार, बिडेन प्रशासन एक "नया दृष्टिकोण" अपनाएगा ... उत्तर कोरिया में क्रियाशीलता की स्थिति की एक नीति की समीक्षा के माध्यम से शुरू.. कोरिया गणराज्य के साथ निकट परामर्श तथा समन्वय में, जापान के साथ, अन्य सहयोगियों और भागीदारों के साथ चल रहे दबाव विकल्पों तथा भविष्य की कूटनीति की संभावना पर।[7] सहयोगियों और भागीदारों के साथ घनिष्ठ समन्वय पर जोर का मतलब है ट्रम्प प्रशासन के 'एकला चलो' दृष्टिकोण से प्रस्थान। अमेरिका में कोविड-19 स्थिति को देखते हुए उम्मीद थी कि उत्तर कोरिया के मुद्दे को पीछे रखा जाएगा क्योंकि नया प्रशासन घरेलू एजेंडे को प्राथमिकता देता है। हालांकि, हाल ही में विदेश विभाग की एक ब्रीफिंग में कहा गया है कि उत्तर कोरियाई परमाणु मुद्दा संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक "तत्काल प्राथमिकता है तथा हम अपने सहयोगियों के साथ इसे मिलकर संबोधित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”[8]
एक और पहलू यह है कि सबसे अधिक संभावना बिडेन प्रशासन की उत्तर कोरिया नीति में परमाणु निरस्त्रीकरण के साथ कुछ महत्व रखेगा वह है मानव अधिकार। उत्तर कोरिया के प्रति अपने रवैये में ट्रंप प्रशासन ने पिछले अमेरिकी प्रशासनों के विपरीत मानवाधिकारों की चर्चा को नजरअंदाज कर दिया था। ट्रम्प ने उत्तर कोरियाई मानवाधिकार दूत के लिए एक उम्मीदवार को भी मनोनीत नहीं किया, जो कांग्रेस द्वारा 2004 में स्थापित विदेश विभाग के अंतर्गत एक पद है। उत्तर कोरिया में मानवाधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के साथ कार्य करने से ट्रंप प्रशासन का इनकार 2018 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से वाशिंगटन के हटने से कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।[9] उत्तर कोरिया के प्रति वाशिंगटन के दृष्टिकोण के लिए मानव अधिकार एजेंडे की किसी भी संभावित वापसी को प्योंगयांग से वापस धकेल दिया जाएगा तथा सियोल के साथ संघर्ष में पुनः वापसी हो सकता है, जो वर्तमान में प्योंगयांग के साथ जुड़ाव को प्राथमिकता देने वाली नीति का अनुसरण करता है।[10]
वापस पहली स्थिति में
राष्ट्रपति ट्रम्प के इस दावे के बावजूद कि "अब उत्तर कोरिया से परमाणु खतरा नहीं है" तथा उन्होंने "काफी हद तक समस्या का समाधान" किया है”[11], के बावजूद, बिडेन प्रशासन को अपेक्षाकृत कम अलग-थलग तथा अधिक उन्नत परमाणु तथा मिसाइल सक्षम उत्तर कोरिया विरासत में मिल रहा है। राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ तीन बैठकें करते हुए, एक उपलब्धि पिछले उत्तर कोरियाई नेतृत्व कभी हासिल नहीं कर सका, किम जोंग-उन ने अपनी राजनीतिक वैधता में सुधार किया तथा साहसिक कूटनीतिक कदम उठाने के लिए आत्मविश्वास को बढ़ाया।
भले ही उत्तर कोरियाई परमाणु हथियारों को किम जोंग-उन के साथ ट्रम्प के व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर कम धमकी दी गई हो, लेकिन वह दृष्टिकोण एक नए प्रशासन के साथ बदल रहा है। यदि अतीत में कोई मार्गदर्शक है, तो प्योंगयांग वाशिंगटन का ध्यान पाने के लिए अपनी उन्नत क्षमता का प्रदर्शन करने तथा फिर बातचीत की तलाश करने के लिए मिसाइल अथवा परमाणु परीक्षणों की एक श्रृंखला आयोजित करके संकट के निर्माण की अपनी कोशिश की और परीक्षण की रणनीति की संभावना को वापस करेगा। अतीत के विपरीत, वाशिंगटन तथा बीजिंग के बीच बढ़ती रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए, कड़े प्रतिबंधों को लागू करने के लिए चीन को इसमे शामिल करना बिडेन प्रशासन के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।
बिडेन प्रशासन की चुनौती अतीत की गलतियों से बचने तथा सीखने की होगी। ओबामा के रणनीतिक धैर्य ' तथा उचित समय का दृष्टिकोण अनिवार्य रूप से उत्तर कोरिया को अपनी परमाणु तथा मिसाइल क्षमताओं को विकसित करने का स्थान देगा। दूसरी ओर, ट्रम्प प्रशासन ने एक सार्थक समझौते के लिए आवश्यक जमीनी स्तर के राजनयिक कार्य के बिना उत्तर कोरिया के साथ रियलिटी शो की तरह शिखर सम्मेलनों का आयोजन करवाना भी उतना ही व्यर्थ था।
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* डॉ. जोजिन वी. जॉन , शोध अध्येता, विश्व मामलों की भारतीय परिषद, नई दिल्ली।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार शोधकर्ता के हैं न कि परिषद के।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां
[1] The policy of ‘strategic patience’ essentially mean a dual track approach that kept Washington open for engagement with Pyongyang for its good behavior while seeking to impose sanctions for its bad behavior. See, ChangsopPyon(2011), "Strategic Patience or Back to Engagement? Obama's Dilemma on North Korea", North Korean Review, Vol. 7, No. 2 (FALL 2011), pp. 73-81.
[2]Jojin V. John, "Korean Peninsula at the Crossroads: Perceptional Gaps and Emerging Challenges to Diplomacy", ICWA Issue Brief, November 06, 2019/show_content.php?lang=1&level=3&ls_id=4815&lid=2827, Accessed on February 22, 2021.
[3] "Kim-Trump personal relations 'not enough to resume' US-North Korea talks", BBC, January 11, 2020, https://www.bbc.com/news/world-asia-51074956 , Accessed on February 23, 2021.
[4]Duyeon Kim, "What North Korea’s Party Congress means for Biden and the world", Bulletin of the Atomic Scientist, February 12, 2021, https://thebulletin.org/2021/02/what-north-koreas-party-congress-means-for-biden-and-the-world/, Accessed on February 22, 2021.
[5]"Special contribution by U.S. Democratic presidential candidate Joe Biden", Yonhap News Agency, October 30, 2020, https://en.yna.co.kr/view/AEN20201030000500325, Accessed on February 22, 2021.
[6]"Biden says will meet N.K. leader if he agrees to draw down nuclear capacity", Yonhap News, Ocober 23, 2010, https://en.yna.co.kr/view/AEN20201023003251325, Accessed on February 22, 2021.
[7]https://www.state.gov/briefings/department-press-briefing-february-9-2021/, Accessed on February 22, 2021.
[8]"U.S. says North Korea an urgent priority for the United States", Reuters, February 13, 2020, https://www.reuters.com/article/us-northkorea-usa-idUSKBN2AC2EK, Accessed on February 22, 2021.
[9]Robert R. King, "A North Korean Human Rights Agenda for the Biden Administration", CSIS, December 15, 2020, https://www.csis.org/analysis/north-korean-human-rights-agenda-biden-administration, Accessed on February 23, 2021.
[10]Ahn Sung-mi, “Biden’s NK human rights agenda could cause clash with Seoul”, Korea Herald, February 13, 2021, www.koreaherald.com/view.php?ud=20210210000869, Accessed on February 23, 2021.
[11]"Trump declares North Korea 'no longer a nuclear threat'", CNN, June 13, 2018, https://edition.cnn.com/2018/06/13/politics/trump-north-korea-nuclear-threat/index.html, Accessed on February 23, 2021.