द वाशिंगटन पोस्ट में छपे एक ऑप-एड में, राष्ट्रपति जो बिडेन ने 8-16 जून 2021 तक होने वाली अपनी यूरोप की यात्रा को "हमारे सहयोगियों और भागीदारों के प्रति अमेरिका की नई प्रतिबद्धता को दर्शाने और चुनौतियों का सामना करने व इस नए दौर के खतरों को रोकने हेतु अपनी लोकतंत्रों की क्षमता का प्रदर्शन करने वाली यात्रा" करार दिया।[i] "अमेरिका इज़ बैक" की घोषणा करते हुए, इस यात्रा के दौरान कई द्विपक्षीय बैठकें और तीन शिखर सम्मेलन - ब्रिटेन में जी7 शिखर सम्मेलन, नाटो शिखर सम्मेलन और ब्रुसेल्स में यूरोपीय संघ-अमेरिका शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। यूरोप में, इस यात्रा को ट्रम्प के राष्ट्रपति रहने के दौरान अशांति भरे चार वर्षों के बाद ट्रान्साटलांटिक 'रीसेट' का अवसर माना गया। यह शोध-पत्र बिडेन की यात्रा के प्रमुख परिणामों और इसके प्रभाव पर प्रकाश डालता है।
यात्रा के परिणाम
शिखर सम्मेलन के दौरान, बैठकों के बाद कई संयुक्त बयान जारी किए गए। तीनों बैठकों में चार मुद्दे - कोविड -19 महामारी, जलवायु परिवर्तन, चीन और रूस विशेष रुप से छाए रहे। बैठकों के पश्चात्, जी7 शिखर सम्मेलन में यूके और यूएस ने एक नए अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए, और 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड' नामक एक विस्तृत वैश्विक अवसंरचना की पहल की घोषणा की गई। इन बैठकों के सबसे महत्वपूर्ण परिणामों में से एक था, जी7 और नाटो दोनों द्वारा पहली बार चीन को सुरक्षा जोखिम मानने का संकेत देना रहा। इस यात्रा के प्रमुख परिणाम निम्नवत् हैं –
1. एक नया अटलांटिक चार्टर
10 जून 2021 को राष्ट्रपति बिडेन और प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन द्वारा एक नए अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर किए गए। इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया था कि - हालांकि, पहले चार्टर पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से दुनिया विगत अस्सी वर्षों में काफी बदल गई है, लेकिन यूके और अमेरिका के मूल आदर्श व मूल्य अभी भी समान हैं। यह नया चार्टर 1941 के तत्कालीन प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल और राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट द्वारा दिए गए बयान पर आधारित है, जिसमें युद्ध के बाद की दुनिया को लेकर उन्होंने अपने संयुक्त लक्ष्य तय किए हैं। मूल चार्टर दोनों देशों के बीच सहयोग की ऐतिहासिक घोषणा और आने वाले दशकों में उनके 'विशेष संबंध' की नींव थी। नया चार्टर, लोकतंत्र, नियम-आधारित व्यवस्था जैसी प्राचीन व साझा प्रतिबद्धताओं पर जोर देते हुए; दोनों भागीदारों को साइबर हमलों से उत्पन्न खतरे से निपटना, जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई, जैव विविधता की सुरक्षा व स्वास्थ्य सुरक्षा जैसी 21वीं सदी की चुनौतियों का सामना करने हेतु प्रतिबद्ध करता है।
चार्टर दोनों भागीदारों से खतरों के खिलाफ लचीलापन अपनाकर सामूहिक सुरक्षा और अंतर्राष्ट्रीय स्थिरता बनाए रखने का आह्वान करता है और यह कहता है कि "जब तक परमाणु हथियार हैं - नाटो परमाणु गठबंधन बना रहेगा।"[ii] रूस और चीन की निंदा करते हुए, चार्टर "विघटन के ज़रिए हस्तक्षेप का विरोध करता है ... और ऋण पारदर्शिता, स्थिरता व ऋण राहत की सुदृढ़ व्यवस्था के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दोहराता है।"[iii]
2. बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डब्ल्यू)
जी7 ने विकासशील देशों में 40 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अवसंरचना जरूरत को पूरा करने में मदद करने हेतु दुनिया के प्रमुख लोकतंत्र देशों के नेतृत्व में "बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड" नामक एक वैश्विक अवसंरचना विकास पहल शुरू की। बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (बी3डब्ल्यू) के ज़रिए, जी7 और अन्य समान विचारधारा वाले साझेदार देश "निजी क्षेत्र की पूंजी को चार मुख्य क्षेत्रों - जलवायु, स्वास्थ्य व स्वास्थ्य सुरक्षा, डिजिटल तकनीकी, और लैंगिक समानता व समानता" संबंधी उद्देश्यों के लिए जुटाने हेतु समन्वय करेंगे।[iv] पहल के तहत चिन्हित किए गए शुरुआती क्षेत्र लैटिन अमेरिका और कैरिबियन, अफ्रीका और इंडो-पैसिफिक हैं।
परियोजनाओं के वित्तपोषण की योजना बनाने के लिए, "निजी क्षेत्र, अन्य अमेरिकी हितधारक और जी7 भागीदारों के साथ, बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड आने वाले समय में निम्न व मध्यम आय वाले देशों के लिए अरबों डॉलर के अवसंरचना निवेश को बढ़ावा देगा।"[v] यह अवसंरचना विकास योजना चीन की महत्वाकांक्षी बीआरआई से सामने आईं चुनौतियों को स्वीकार करती प्रतीत होती है, जिसके तहत 100 से अधिक देशों ने रेलवे, बंदरगाहों, राजमार्गों आदि जैसी परियोजनाओं में सहयोग करने हेतु बीजिंग के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। हालांकि, एक नई बी3डब्ल्यू पहल विकासशील दुनिया की अवसंरचना जरूरतों को पूरा करने की एक महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन यह साफ नहीं है कि सदस्य देशों और निजी क्षेत्र द्वारा कितना धन लगाया जाएगा।
3. चीन पर संगठित गतिरोध
शिखर सम्मेलन में चीन चर्चा का मुख्य मुद्दा बनकर उभरा। हालांकि, यूरोपीय संघ और अमेरिका ने पिछले कुछ महीनों में चीन के प्रति सख्त रुख अपनाया है, लेकिन, जी7, नाटो और यूरोपीय संघ-अमेरिका शिखर सम्मेलन के बयानों को बीजिंग के खिलाफ एक संगठित गतिरोध दिखाने का प्रयास माना जा सकता है। जी7 के बयान में जबरन श्रम से जुड़ी एक मुख्य बात देखने को मिली। हालांकि चीन का किसी ने नाम नहीं लिया, लेकिन जी7 द्वारा "वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में हर तरह के जबरन श्रम का इस्तेमाल पर चिंता व्यक्त करना, जिसमें कृषि, सोल व परिधान क्षेत्रों सहित कमजोर समूहों और अल्पसंख्यकों के राज्य प्रायोजित मजबूर श्रम शामिल हैं", चीन की ओर एक इशारा माना जा सकता है।[vi] जी7 ने यह बात इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा[vii] द्वारा मार्च 2021 में चीनी अधिकारियों पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद कही है। इसी तरह, यूरोपीय संघ-अमेरिका के बयान से शिनजियांग और तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन जैसे मुद्दों पर उनके साथ मिलकर काम करने की मंशा झलकती है। दोनों बयानों में ताइवान स्ट्रेट में शांति व स्थिरता के महत्व और क्रॉस-स्ट्रेट मुद्दों के शांतिपूर्ण हल को भी रेखांकित किया गया। पूर्व और दक्षिण चीन सागर की स्थिति पर, बयानों में यथास्थिति को बदलने और तनाव बढ़ाने के किसी भी एकतरफा प्रयास का विरोध किया गया।
एक तरफ तो जी7 और ईयू-यूएस शिखर सम्मेलन के वक्तव्य में चीन से जुड़े सामरिक और राजनीतिक मुद्दों पर सदस्यों के बीच अभिसरण और समन्वय का आह्वान करता है, तो वहीं नाटो की ओर से जारी विज्ञप्ति सुरक्षा पहलू पर प्रकाश डालती है। इसके अलावा, नाटो की विज्ञप्ति में पहली बार चीन का उल्लेख किया गया है - जो बीजिंग की सैन्य शक्ति को लेकर गठबंधन के सदस्यों के बीच बढ़ती चिंता को दर्शाता है। हालांकि, चीन को सीधे तौर पर खतरा नहीं कहा गया, लेकिन यह माना गया कि "चीन का बढ़ता प्रभाव और अंतर्राष्ट्रीय नीतियां ऐसी चुनौतियां पेश कर सकती हैं जिन्हें हमें गठबंधन के रूप में साथ मिलकर निपटना होगा"।[viii] इसमें चीन के मुखर व्यवहार और दुष्प्रचार के इस्तेमाल को नियम-आधारित विश्व व्यवस्था के लिए चुनौती माना गया है। विज्ञप्ति में नाटो के सदस्य देशों की दो चिंताओं पर प्रकाश डाला गया है - पहला, चीन का तेजी से अपने परमाणु हथियारों को बढ़ाना और परमाणु त्रय स्थापित करने हेतु बड़ी संख्या में परिष्कृत वितरण प्रणाली बनाना। विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि चीन अपने सैन्य आधुनिकीकरण को लेकर 'अपारदर्शी' है और 'यह सैन्य-नागरिक एकीकरण की सार्वजनिक रूप से घोषित रणनीति' है।[ix] दूसरी चिंता, रूस के साथ उसका सैन्य सहयोग बढ़ाना है, जिसमें यूरो-अटलांटिक क्षेत्र में रूस के साथ सैन्य अभ्यासों में भाग लेना भी शामिल है।
4. रूसी चुनौती को दूर करना
तीनों शिखर सम्मेलनों के दौरान रूस चर्चा के मुख्य मुद्दों में से एक रहा। जी7 और ईयू-यूएस दोनों शिखर सम्मेलनों में रूस के साथ स्थिर व पूर्वानुमेय संबंध बनाने का आह्वान किया गया। जी7 ने रूस से "अन्य देशों की लोकतांत्रिक प्रणालियों में हस्तक्षेप सहित, अपने अस्थिर व्यवहार और दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों को रोकने, और अपने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों व प्रतिबद्धताओं को पूरा करने" को कहा।[x] इसी विषय पर आगे कहा गया कि, रूस को "उन लोगों की पहचान करनी चाहिए, उन्हें रोकना चाहिए और पकड़ना चाहिए, जो अपनी सीमा से रैनसमवेयर हमले करते हैं, फिरौती के लिए वर्चुअल करेंसी का दुरुपयोग करते हैं, और अन्य साइबर अपराध करते हैं"।[xi] ईयू-यूएस शिखर सम्मेलन के दौरान, रूस पर ईयू-यूएस उच्च स्तरीय वार्ता के ज़रिए अपनी नीतियों का समन्वय करने का फैसला किया गया।[xii] बयान में रूस के प्रति दोतरफा दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला गया - इसमें मास्को से रैनसमवेयर नेटवर्क से खतरों को दूर करने, नागरिक समाज, विपक्ष व स्वतंत्र मीडिया पर कार्रवाई को रोकने और राजनीतिक कैदियों को रिहा करने का आह्वान किया गया; इसमें दोनों भागीदारों की संचार का रास्ता खुला रखने और साझा हित के क्षेत्रों में 'जरुरत के अनुसार सहयोग' की संभावनाओं को बनाए रखने की भी प्रतिबद्धता दोहराई गई।
नाटो की विज्ञप्ति में रूस की आक्रामक कार्रवाइयों को यूरो-अटलांटिक सुरक्षा को खतरा बताया गया है। सदस्य देशों ने बिगड़ते सुरक्षा माहौल को सुधारने के लिए पूर्वी भाग में मोर्चा संभालने सहित नाटो की रक्षा व सुरक्षा स्थिति को बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की। विज्ञप्ति में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि नाटो "संघर्ष नहीं चाहता और इससे रूस को कोई खतरा नहीं है"।[xiii] इसने रूस से उभरने वाले तीन प्रमुख खतरों की बात की - पहला, इसकी बढ़ती मल्टी-डोमेन सैन्य निर्माण, मुखर स्थिति, बढ़ी सैन्य क्षमताएं, और नाटो से सटी सीमाओं पर उत्तेजक गतिविधियों के साथ-साथ इसके बड़े पैमाने पर बिना किसी सूचना और उत्तेजक सैन्य अभ्यास, क्रीमिया में सैन्य निर्माण, कैलिनिनग्राद में आधुनिक दोहरी क्षमता वाली मिसाइलों की तैनाती, बेलारूस के साथ सैन्य एकीकरण और नाटो के मित्र देशों के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करना। दूसरा, रूस द्वारा नाटो के सहयोगी देशों के खिलाफ हाइब्रिड कार्रवाई में तेजी, जिसमें प्रॉक्सी का माध्यम भी शामिल है। तीसरा, लघु व मध्यम दूरी की मिसाइल प्रणालियों को तैनात करने समेत अपने परमाणु शस्त्रागार का विविधीकरण। रूस ने अपने सामरिक परमाणु बलों के लगभग 80 प्रतिशत हिस्से का पुनर्पूंजीकरण[xiv] किया है, और यह अपने नए व अस्थिर हथियारों और दोहरी-सक्षम प्रणालियों के ज़रिए अपनी परमाणु क्षमताओं का विस्तार कर रहा है।
5. कोविड-19 महामारी का प्रबंधन
शिखर सम्मेलन का मुख्य ध्यान महामारी से निपटने में अपने प्रयासों में समन्वय करना और 2022 के अंत तक दुनिया की दो-तिहाई आबादी का टीकाकरण करना था। नाटो की विज्ञप्ति में महामारी पर नागरिक प्रतिक्रिया का समर्थन करने, सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने, जरुरी चिकित्सा आपूर्ति प्रदान करने व चिकित्सा आपूर्ति प्रदान करने में गठबंधन द्वारा किए गए प्रयासों पर प्रकाश डाला गया, तो वहीं जी7 और ईयू-यूएस शिखर सम्मेलन के संयुक्त बयानों में आगे की कार्रवाई पर प्रकाश डाला गया। दुनियाभर के लोगों के टीकाकरण की समय-सीमा तय करने के अलावा, जी7 शिखर सम्मेलन में 870 मिलियन खुराक उपलब्ध कराने की भी प्रतिबद्धता जताई गई, जो जल्द उपलब्ध होगी और कोवैक्स के ज़रिए 2021 के अंत तक कम से कम इस संख्या की आधा खुराक वितरित करने का लक्ष्य रखा गया है। ईयू-यूएस शिखर सम्मेलन में सहयोग को बढ़ाने और वैक्सीन व चिकित्सीय उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में आने वाली परेशानियों को पहचानने और उन्हें हल करने के लिए एक संयुक्त ईयू-यूएस कोविड विनिर्माण एवं आपूर्ति श्रृंखला कार्यबल की स्थापना की गई। यह कार्यबल नई उत्पादन सुविधाओं, खुली व सुरक्षित आपूर्ति श्रृंखला बनाए रखने, किसी भी अनावश्यक निर्यात प्रतिबंध को दूर करेगा, और तय शर्तों पर जानकारी व तकनीकी के स्वैच्छिक साझाकरण को प्रोत्साहित करेगा। दोनों बयानों में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को मजबूत करने और वैश्विक स्वास्थ्य प्रणाली में इसकी अग्रणी व समन्वयकारी भूमिका में इसका समर्थन करने का भी आह्वान किया गया।
कोविड-19 महामारी की उत्पत्ति से संबंधित अध्ययन के मुद्दों पर, यूरोपीय संघ-अमेरिका के बयान में कोविड-19 की उत्पत्ति पर पारदर्शी, साक्ष्य-आधारित और विशेषज्ञों के नेतृत्व वाले डब्ल्यूएचओ द्वारा शुरु किए गए दूसरे चरण के अध्ययन को बढ़ाने का आह्वान किया गया, जिसमें किसी तरह का हस्तक्षेप न हो। दूसरी ओर, जी7 ने चीन में तैयार विशेषज्ञों की रिपोर्ट की सिफारिश के अनुसार पारदर्शी, विशेषज्ञों के नेतृत्व वाले, अध्ययन का आह्वान किया।
6. जलवायु परिवर्तन
संयुक्त वक्तव्यों में जलवायु परिवर्तन को विशेष महत्व दिया गया, जिसमें सभी साझेदारों ने पेरिस समझौते को लागू करने पर अपनी प्रतिबद्धताओं को दोहराया। जी7 ने ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में कमी के प्रयासों में तेजी लाने और ग्लोबल वार्मिंग की सीमा को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने, जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने हेतु अनुकूलन और लचीलापन में मजबूती लाने, जैव विविधता के नुकसान को रोकने, वित्त जुटाने और नवोन्मेषों के इस्तेमाल की प्रतिबद्धता दोहराई। जी7 ने 2050 तक शुद्ध शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन हासिल करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और कोयले से बिजली उत्पन्न करने को खत्म[xv] करने की प्रतिबद्धता दोहराई। यूरोपीय संघ और अमेरिका ने जलवायु उपायों पर समन्वय गहरा करने और बढ़ावा देने, कार्बन रिसाव के जोखिम को दूर करने व स्थायी वित्त पर सहयोग करने पर यूरोपीय संघ-अमेरिका उच्च-स्तरीय जलवायु कार्य समूह की स्थापना की घोषणा की। स्वच्छ ऊर्जा पर, यूरोपीय संघ-अमेरिका ऊर्जा परिषद स्वच्छ ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता, ऊर्जा क्षेत्र के डीकार्बोनाइजेशन, और टिकाऊ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला व ऊर्जा सुरक्षा पर नए सिरे से ध्यान देते हुए रणनीतिक ऊर्जा मुद्दों पर एक समन्वय निकाय के रूप में कार्य करती रहेगी। जलवायु-तटस्थ भविष्य के लिए जरुरी हरित प्रौद्योगिकियों के विकास और स्केलिंग को बढ़ावा देने हेतु भागीदार ट्रान्साटलांटिक ग्रीन टेक्नोलॉजी एलायंस की दिशा में भी काम करेंगे।
जलवायु परिवर्तन को "बड़ा खतरा" मानते हुए, जो यूरो-अटलांटिक क्षेत्र और गठबंधन के पड़ोसी देशों में सुरक्षा को प्रभावित करता है, नाटो की विज्ञप्ति में कहा गया कि उसका उद्देश्य गठबंधन को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने और अनुकूल बनाने हेतु अग्रणी संगठन बनाना है। इसने महासचिव से नाटो की राजनीतिक एवं सैन्य संरचनाओं और सुविधाओं द्वारा जीएचजी उत्सर्जन में कमी हेतु ठोस लक्ष्य तैयार करने और 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल करने की व्यवहार्यता का आकलन करने का आह्वान किया। नाटो ने जलवायु परिवर्तन और सुरक्षा पर अपने एजेंडे को लागू करने हेतु एक कार्य योजना बनाने का भी समर्थन किया, जो विश्वसनीय प्रतिरोध और रक्षा की स्थिति सुनिश्चित करते हुए इसकी जागरूकता, अनुकूलन, शमन व आउटरीच प्रयासों को बढ़ाएगा। जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए, मित्र राष्ट्रों द्वारा उचित प्रयास करने और अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, सैन्य गतिविधियों और संगठनों से जीएचजी उत्सर्जन को मापने में मदद करने हेतु मानचित्रण पद्धति तैयार करने का निर्णय लिया गया, जिससे उत्सर्जन को कम करने हेतु स्वैच्छिक लक्ष्य तय तैयार करने में मदद मिलेगी।
यात्रा का विश्लेषण
राष्ट्रपति बिडेन की यूरोप यात्रा को उन सहयोगियों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास माना जा सकता है, जिनका अमेरिका के दुनिया की अगुवाई करने की क्षमता से मोहभंग हो चुका था। यात्रा का संकेत बेहद अहम था - इसका साफ संदेश था कि अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ वापस जुड़ रहा है, नाटो उसके लिए महत्वपूर्ण है, ट्रान्साटलांटिक संबंध फल-फूल रहे हैं और एकजुट पश्चिमी देश अभी भी विश्व व्यवस्था का नेतृत्व कर सकते हैं।
इस यात्रा का यूरोपीय नेताओं ने स्वागत किया, लेकिन अमेरिकी नेतृत्व की विश्वसनीयता पर जनता की राय बेहद निराशावादी रही। इस साल की शुरुआत में 11 यूरोपीय देशों में ईसीएफआर द्वारा किए गए एक सर्वे में, 51% लोग इस विचार से सहमत नहीं दिखे कि, बिडेन के शासन में अमेरिका जलवायु परिवर्तन, मध्य पूर्व में शांति, चीन के साथ संबंध, और यूरोपीय सुरक्षा जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को हल करने में रुचि दिखायेगा।[xvi] साथ ही, केवल 10% लोगों ने वाशिंगटन को "विश्वसनीय" सुरक्षा भागीदार बताया किया, जबकि लगभग 60% का मानना था कि उनका देश किसी बड़े संकट में अमेरिकी मदद पर निर्भर नहीं रह सकता।[xvii]
इस यात्रा को ट्रान्साटलांटिक संबंधों को पटरी पर लाने का राजनयिक प्रयास माना जा सकता है। भले ही सहयोगियों ने एजेंडे पर सहमति जताई, लेकिन, कई ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें हल करना जरुरी है - पहला, क्या चीन पर एक सुसंगत रुख अपनाया जा सकता है - जी7 और नाटो शिखर सम्मेलन में, राष्ट्रपति बिडेन ने चीन पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की, लेकिन यह रुख कायम रहेगा, यह अनिश्चित है। भले ही अमेरिका ने चीन के प्रति अपनी नीति में "लोकतंत्र बनाम सत्तावादी"[xviii] दृष्टिकोण अपनाया है, लेकिन यूरोपीय संघ के सदस्य राज्य इसपर सहमत नहीं नज़र आये। यूरोपीय संघ समस्या-आधारित प्रतिस्पर्धा और सहयोग का दृष्टिकोण अपनाना पसंद करता है जिससे वे जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर चीन के साथ सहयोग करने की जरुरत को समझते हैं, और यह मानते हैं कि बीजिंग यूरोपीय संघ का एक व्यवस्थित प्रतिद्वंद्वी और आर्थिक प्रतियोगी है। हालांकि, यूरोपीय संघ अपनी निर्भरता और महामारी के दौरान सामने आई खामियों से अवगत है, इसलिए यूरोपीय संघ चीन को अमेरिका के नज़रिए से नहीं देखता है। भले ही यूरोपीय संघ ने हाल ही में मानवाधिकार मुद्दों पर चीनी अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाते हुए चीन पर सख्त रुख अपनाया है और यूरोपीय संसद ने ब्रसेल्स व बीजिंग के बीच निवेश संधि के अनुसमर्थन को रोका है, लेकिन, कई यूरोपीय देशों के व्यापार हित अभी भी चीन से जुड़े हुए हैं। यूरोपीय संघ द्वारा एक सुसंगत चीन नीति तैयार करने में असमर्थता के पीछे यह भी एक प्रमुख वजह रही है।
दूसरा, रूस और चीन दोनों नाटो के लिए एक जैसे खतरे हैं, इसपर भी सभी यूरोपीय देश सहमत नहीं हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक प्रेस वार्ता में कहा कि "नाटो एक सैन्य संगठन है; चीन के साथ हमारे संबंधों का मुद्दा केवल सैन्य मुद्दा नहीं है। नाटो ऐसा संगठन है जो उत्तरी अटलांटिक से संबंधित है, जबकि चीन का उत्तरी अटलांटिक से कोई लेना-देना नहीं है...इसलिए, यह बहुत अहम है कि हमारे बीच मतभेद न हों और हम चीन के साथ अपने संबंधों में पूर्वाग्रह न आने दें।"[xix] इसी तरह, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल ने भी कहा था कि मास्को अभी भी यूरोपीय सुरक्षा[xx] के लिए सबसे बड़ा खतरा है। मध्य और पूर्वी यूरोपीय देशों को भी इस बात की चिंता[xxi] है कि चीन के प्रति गठबंधन में इस तरह के पुनर्संरेखण से संसाधनों का इस्तेमाल घरेलू मुद्दों को हल करने में न हो सकेगा। कुल मिलाकर, चीन द्वारा पेश की गई चुनौतियों पर अभिसरण देखने को मिला है, हालांकि, मुद्दों को हल करने तरीके पर ट्रान्साटलांटिक मतभेद अभी भी बने हुए हैं।
तीसरा, जलवायु परिवर्तन - शिखर सम्मेलन के दौरान जी7 और ईयू-यूएस दोनों कोयले के इस्तेमाल को रोकने के लिए समय-सीमा तय करने हेतु किसी समझौते पर पहुंचने में विफल रहें। इसके अलावा, जी7 ने गरीब देशों को कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने और ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में मदद करने हेतु अमीर देशों द्वारा सालाना 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करने की प्रतिबद्धता को पूरा करने हेतु अपना योगदान बढ़ाने का वादा किया, लेकिन संयुक्त बयान में उनकी वित्तीय प्रतिबद्धताओं में कमी देखने को मिली। यह वित्तीय सहायता 2009 में संयुक्त राष्ट्र में विकसित देशों द्वारा किए गए समझौते का हिस्सा है, जहां वे विकासशील और अल्प विकसित देशों को जलवायु वित्त के लिए 2020 तक हर साल 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान करने पर सहमत हुए थे।
चौथा, टीकाकरण - महामारी के दौरान सभी को वैक्सीन उपलब्ध कराने के प्रयासों के लिए विकसित देशों की आलोचना हुई है। हालांकि, जी7 के नेताओं ने 870 मिलियन से अधिक खुराक देने का वादा किया था, लेकिन इसे विभिन्न मानवीय एवं गैर-सरकारी एजेंसियों ने 'पर्याप्त नहीं' माना था और कहा गया था कि नेता "महामारी को खत्म करने हेतु वास्तविक कार्रवाई करने में विफल रहे हैं"।[xxii] हालांकि, जी7 और ईयू-यूएस दोनों के बयानों में विश्व स्तर पर उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर और वैक्सीन की सस्ती व न्यायसंगत पहुंच के ज़रिए महामारी का मुकाबला करने की बात की गई थी, लेकिन दोनों में से किसी भी बयान में विश्व व्यापार संगठन में दक्षिण अफ्रीका और भारत द्वारा प्रस्तावित बौद्धिक संपदा अधिकारों की अस्थायी छूट का जिक्र नहीं है। हालांकि, अमेरिका वैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए अस्थायी छूट का समर्थन करता है, लेकिन यूरोपीय संघ ने अब तक इस प्रस्ताव का विरोध किया है।
कई मतभेदों और कमियों के बावजूद, यह यात्रा यूरोपीय महाद्वीप और नाटो के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता की पुष्टि करती है। संयुक्त बयानों में मुख्य मुद्दों के प्रति ट्रांस-अटलांटिक गठबंधन में रणनीतिक सोच अपनाने पर सहयोग पर प्रकाश डाला गया। संबंधों को नए सिरे से तय करने से उन्हें महत्वाकांक्षी एजेंडा सेट करने का अवसर मिला है जो मौजूदा समय में प्रासंगिक है। यह सच है कि ट्रांस-अटलांटिक संबंध पहले जैसे नहीं हो सकेंगे; यूरोपीय संघ को खुद को विश्वसनीय भागीदार दिखाने के लिए अपने स्वयं के हितों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा के लिए विगत चार सालों में अपनाये गए रास्ते पर आगे बढ़ना जारी रखना होगा। अपने लिए तय किए गए लक्ष्यों और महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने के लिए गठबंधन के सदस्यों द्वारा कितनी इच्छा दिखाई जाती है और संसाधन उपलब्ध कराये जाते हैं, यह देखा जाना अभी बाकी है।
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डॉ. अंकिता दत्ता विश्व मामलों की भारतीय परिषद में शोध अध्येता हैं।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।
पाद टिप्पणियां
[i]The Washington Post, 5 June 2021, https://www.washingtonpost.com/opinions/2021/06/05/joe-biden-europe-trip-agenda/ Accessed on 19 June 2021
[ii]The New Atlantic Charter, The White House, 10 June 2021, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2021/06/10/the-new-atlantic-charter/, Accessed on 19 June 2021
[iii]The New Atlantic Charter, The White House, 10 June 2021, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2021/06/10/the-new-atlantic-charter/, Accessed on 19 June 2021
[iv] Fact Sheet: President Biden and G7 Leaders Launch Build Back Better World (B3W) Partnership, The White House, 12 June 2021, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2021/06/12/fact-sheet-president-biden-and-g7-leaders-launch-build-back-better-world-b3w-partnership/, Accessed on 19 June 2021
[v] Fact Sheet: President Biden and G7 Leaders Launch Build Back Better World (B3W) Partnership, The White House, 12 June 2021, https://www.whitehouse.gov/briefing-room/statements-releases/2021/06/12/fact-sheet-president-biden-and-g7-leaders-launch-build-back-better-world-b3w-partnership/, Accessed on 19 June 2021
[vi] ‘Carbis Bay G7 Summit Communiqué - Our Shared Agenda for Global Action to Build Back Better’, Cornwall, UK, 13 June 2021, https://www.consilium.europa.eu/media/50361/carbis-bay-g7-summit-communique.pdf, Accessed on 20 June 2021
[vii] ‘Carbis Bay G7 Summit Communiqué - Our Shared Agenda for Global Action to Build Back Better’, Cornwall, UK, 13 June 2021, https://www.consilium.europa.eu/media/50361/carbis-bay-g7-summit-communique.pdf, Accessed on 20 June 2021
[viii] ‘Brussels Summit Communiqué’, NATO, 14 June 2021, https://www.nato.int/cps/en/natohq/news_185000.htm, Accessed on 21 June 2021
[ix] ‘Brussels Summit Communiqué’, NATO, 14 June 2021, https://www.nato.int/cps/en/natohq/news_185000.htm, Accessed on 21 June 2021
[x]Carbis Bay G7 Summit Communiqué, n.6
[xi]Carbis Bay G7 Summit Communiqué, n.6
[xii]Carbis Bay G7 Summit Communiqué, n.6
[xiii]Brussels Summit Communiqué, n.8
[xiv]Brussels Summit Communiqué, n.8
[xv]Carbis Bay G7 Summit Communiqué, n.6
[xvi] Ivan Krastev and Mark Leonard, “The Crisis of American Power: How Europeans See Biden’s America”, Policy Brief, ECFR, January 2021, https://ecfr.eu/wp-content/uploads/The-crisis-of-American-power-How-Europeans-see-Bidens-America.pdf, Accessed on 23 June 2021
[xvii] Ivan Krastev and Mark Leonard, “The Crisis of American Power: How Europeans See Biden’s America”, Policy Brief, ECFR, January 2021, https://ecfr.eu/wp-content/uploads/The-crisis-of-American-power-How-Europeans-see-Bidens-America.pdf, Accessed on 23 June 2021
[xviii] Rosa Balfour, “The EU-U.S. Summit Is a Test for New Transatlantic Cooperation”, Carnegie Europe, 15 June 2021, https://carnegieeurope.eu/strategiceurope/84769, Accessed on 23 June 2021
[xix]Reuters, 13 June 2021, https://www.reuters.com/article/g7-summit-macron-china/frances-macron-says-g7-is-not-hostile-towards-china-idUSP6N2IP00T, Accessed on 24 June 2021
[xx]Reuters, 13 June 2021, https://www.reuters.com/article/g7-summit-macron-china/frances-macron-says-g7-is-not-hostile-towards-china-idUSP6N2IP00T, Accessed on 24 June 2021
[xxi]Reuters, 13 June 2021, https://www.reuters.com/article/g7-summit-macron-china/frances-macron-says-g7-is-not-hostile-towards-china-idUSP6N2IP00T, Accessed on 24 June 2021
[xxii]Politico, 13 June 2021, https://www.politico.eu/article/5-takeaways-from-britain-g7-summit-cornwall-boris-johnson-coronavirus-china-trade-coal-brexit/, Accessed on 25 June 2021